रुचिका केस- पुलिस का घिनौना चेहरा

गुरुवार, दिसंबर 31, 2009


सभी लोग रुचिका के हत्यारे का नाम राठौड़ राठौड़ कर रहे है। लेकिन यही लोग तब कहां थे जब रुचिका जिंदा थी और वो इस राठौड़ के द्वारा सताई जा रही थी। मीडिया में तमाम चैनल दिन भर बस इसी कोशिश में है कि रुचिका की आत्महत्या के दोषी को सजा मिले। अरे कानून ने सजा तो दे दी है । हां ये बात अलग है की ये सजा़ नाकाफी है। छ महीने की सज़ा और उस पर भी कारावास नहीं दस मिनट मे मिल गयी ज़मानत। लो कर लो बात, राक्षसी हंसी लिये राठौड़ अपनी पहुंच की ताकत दिखाता हुआ आम आदमी और मृत रुचिका पर हंसता हुआ बाहर आ गया। ये जो लोग आज राठौड़ के खिलाफ खड़े हुये हैं असल में वो राठौड़ के खिलाफ नहीं खडे हुए है बल्कि वो उस सज़ा के खिलाफ खड़े हुये है जो रुचिका को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले राठौड़ को मिली है। लेकिन सवाल ये है कि उसे कितनी सजा मिलेगी। दस साल, चौदह साल या फिर फांसी । फांसी को तो लगभग हम भूल ही जाये क्योंकि जिनको फांसी मिली है वो भी आज सरकारी खजाने से मजे में है। तो फांसी तो एक तरह से मजेदार फैसला हो गया है। पहले लोग फांसी नाम से डरते थे, लेकिन आज फांसी के नाम से खुश हो जाते है कि सोचते है कि चलो अब तो जिंदा रहने का सर्टिफिकेट मिल गया है। और जिस पुलिस आफसर ने सारे पुलिस प्रशासन को अपनी जेब में रखकर रुचिका के परिवार की ऐसी तैसी कर डाली उसको जेल में कितना कष्ट होगा इसका अंदाज़ा आप लगा सकते है मेरा मतलब है कि वहा भी उसको घर जैसा ही लगेगा। जो लोग आज रुचिका को इसाफ दिलवाने के लिये सड़को पर उतरे है और मीडिया जोर शोर से मामले को उठा रहा है शायद रुचिका को इंसाफ मिल जाये । दोषी वो लोग है जिन्होने रुचिका के भाई को पुलिस स्टेशन में रखकर उसकी पिटाई की और रुचिका को ऐसा कदम उठाने को मजबूर कर दिया। इसमें वो लोग भी दोषी है जो राठौड़ पर केस चलने के बाद भी उसको पावर दिये जा रहे थे। उसका प्रमौशन किया जा रहा था। और रुचिका और उसके परिवार के लिये और ज्यादा मुसीबत खड़ी की जा रही थी। इन मामलो पर लगाम लगाने के लिये जिस पुलिस व्यवस्था को बनाया गया है अगर वो ही भक्षक बन जाये तो क्या होता है इसका पता रुचिका के मामले से चल रहा है

देश में बात मनवाने का रास्ता सिर्फ हिंसा

गुरुवार, दिसंबर 24, 2009

जो लोग अखबार पढते है या जरा सा भी देश के प्रति जागरुक रहते है उनके दिमाग में ये सवाल पता नहीं कौंधा है या नहीं। पिछले साल राजस्थान में आरक्षण के लिये धमाचौकड़ी मची। काफी खून बहा और साथ ही सरकारी संपत्ति के नुकसान का अनुमान न ही लगाओ तो बेहतर है। क्योंकि इस मामले पर तो सुप्रीम कोर्ट भी गुर्जरों की कुछ नहीं उखाड़ पाया। मजेदार बात ये है कि इस मुद्दे ने वहा की सरकार को हिला दिया। लेकिन दुख की बात ये है कि गुर्जरों को आरक्षण मिल गया। दूसरो के कुछ भी सोचने से पहले मै बता दूं कि मै आरक्षण का पुरजोर विरोधी हूं क्या करुं जनरल कटैगरी में पैदा हुआ हूं इसलिये इसका गम झेलते हुए दुख होता है इसलिये बोलना मेरा अधिकार है। यहां बात हो रही है गांधी के उस देश की जहां बिना हिंसा के कोई काम नहीं होता है। चाहे गुर्जरों का आऱक्षण हो या तेलंगाना का मुद्दा।

केंद्र सरकार ने चंद्रशेखर राव और तेलंगाना समर्थकों को गजब की चालाकी से बेवकूफ बनाया। पहले तो मान गये बाद में नेताओं वाली फितरत दिखा कर अपना बयान वापस ले लिया। और मरते क्या न करते क्योंकि तेलंगाना राज्य का मुद्दा कांग्रेस सरकार के लिये गले की हड्डी बन गया है। तेलंगाना के लिये भी लोगों ने हिंसा का रास्ता ही अपनाया, तभी ये मामला सरकार की नज़रो में आया। ये अलग बात है कि दिखावे के लिये चंद्रशेखर राव ने भूख हड़ताल की थी लेकिन जब छात्रो ने हल्ला मचाना शुरु किया तभी सरकार के कानों पर जूं रेंगी है। अहिंसा के देश में आज हिंसा के बिना कुछ नहीं होता है। लेकिन गांधी का देश गांधा का देश कहत कहते हम नहीं चूकते है।

अब इसमें गलती किसकी है पता नहीं पर अब हर उस नेता को जिसको मुख्यमंत्री बनने का कीड़ा है वो उनके अंदर फिर से दौड़ेने लगेगा । मायावती भी उत्तर प्रदेश को तीन भागों में बांटने की तैयारी कर रही है अभी तक वो पूरे उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बना रही थी मुर्ति बना बना कर। अब वो उत्तर प्रदेश को हरित और पूर्वाचल करने की तैयारी में है। हां ठीक ही है इसी बहाने मंत्रियों का संख्या बढ़ेगी। आम लोगों की जेब का पैसा भ्रष्ट नेताओं के स्विस खातों में जायेगा। और इमानदारी की आड़ में सारे काम हो जायेगे। प्रदेश के विकास के नाम पर करोड़ो रुपये आयेगे। और वो सीधे इटरनेट के ज़रुये स्विट्जरलैंड के टूर पर निकल जायेगे।

हाय रे देश
क्या होगा तेरा
नेताओं की शक्ल में
राक्षसों ने डाला डेरा

अब तो तेरा भगवान ही मालिक है

मंदी ने अमीरी कम कर दी है....

शुक्रवार, दिसंबर 18, 2009

मै समझ रहा था कि मंदी का असर उन लोगों पर पड़ा है जो बेचारे किसी फर्म में नौकरी किया करते है। क्योंकि जिनके पास पैसे है वो तो आज भी मंहगे से मंहगे कपड़े खरीद रहे है लेकिन वो लोग जो किसी की नौकरी किया करते है उन्हे ही सबसे ज्यादा फर्क पड़ा है। क्योंकि किसी की नौकरी गयी है तो किसी की सैलरी कम हो गयी है। मैने अपने किसी दोस्त से सुना की एक आदमी ने एक शो रूम से एक लाख रुपये के जूते खरीदे है और वो भी सिर्फ चार जो़ड़ी जूते। कमाल है बहुत पैसे है ऐसे लोगों के पास। लेकिन मैने ऐसे लोगों को भी देखा है जिनके पास पैसों की कमी हो गयी है।

मै एक दुकान पर कचौड़िया खाने जाता हूं। मेरा उस दुकान के साथ रिश्ता सा बन गया है क्योंकि उसकी कचौडियों के स्वाद के लिये मेरी जीभ लपलपाने लगती है। मै रोज़ाना ही उसकी दुकान पर जीभ की तृप्ति के लिये जाता हूं। मै अक्सर वहा पर तरह तरह के लोगों से मिलता हूं। ऐसे ही एक आदमी को मै अक्सर वहा देखता था जो मारुति के स्विफ्ट माडल के साथ वहा आता था। मेरी ही तरह उसकी जीभ भी उसे यहां खींच लाती थी। उसकी एक आदत थी कि दुकान के पास मौजूद भिखारियों को दस दस रुपये के नोट दे दिया करता था। और वो ऐसा रोज करता था। उसकी इस आदत की वजह से दुकान वाले ने भी उसको ऐसा न करने की सलाह दे चुका था क्योंकि उसे लगता था कि ऐसा करने से भिखारियों को बढ़ावा मिलता है। लेकिन पैसे की गर्मी ने महाशय को पैसे लुटाने को मजबूर सा कर दिया था। समय़ बीतता गया एक दिन वो अपनी लाल रंग की स्विफ्ट के बगैर आया और सिर्फ सिंगल कचौड़ी का आर्डर दिया और उसे ही खाने लगा। हर बार की तरह उसे देखकर बाल भिखारियों की भीड़ सी लग गयी। उसने उनकी तरफ देखा और फिर खाने में मस्त हो गया। भिखारियों को थोड़ा अजीब लगा तो उन्होने उस पर ज़ोर डालना शुरु कर दिया। थोड़ी देर के बाद कचौड़ी खत्म हुई और उसने दस रुपये का नोट निकाला और एक भिखारी को देते हुए बोला सब लोग बांट लेना। ये कहकर चला गया

दुकान वाला और मै एक दूसरे को देखकर मुस्कुराये क्योंकि थोड़ी देर पहले ही उसकी और मेरी मंदी के विषय पर ही बात हो रही थी और मै उससे पूछ रहा था कि उसकी खरीददारी पर कितना फर्क पड़ा है। ये देखने के बाद कि स्विफ्ट वाले आदमी ने सिर्फ एक दस का नोट ही दिया है भिखारियों में बहस सी छिड़ गयी कि अब दस रुपये को पांच में कैसे बांटा जाये। तभी उनमें से ही एक ने बोला यार अब तो परेशानी बढ़ गयी है इस मंदी ने तो लोगों की अमीरी कम कर दी है।

दवा पर टैक्स ?

रविवार, दिसंबर 06, 2009

इंकम टैक्स देने के बाद भी सरकार को सरकार बने रहने देने के लिये हम हर सामान पर टैक्स देते है। चाहे दंतमंजन हो या दूध। लेकिन ज़रुरत के सामानों पर टैक्स लगना गलत है। कमाल तो ये है कि दवाई पर भी टैक्स है। कम से कम गरीबों को एक चीज तो है खाने को कम से कम उस पर से तो टैक्स हटा लेना चाहिये। सरकार की टैक्स की नीति पर विचार करने की ज़रुरत है। लेकिन एक वही एक ऐसी चीज़ है जो हर बजट में बढ़ती है। टैक्स के मामले में सरकार हमेशा से ही अपने फायदे को देखती नज़र आयेगी। दिल्ली में तो हालत औऱ ज्यादा खराब हो रहे है, खबर है कि दिल्ली में एक सौ ग्यारह ज़रुरत की चीज़ों पर वैट को बढ़ाया जा रहा है। दुखद है कि इसमें दवाईयां भी शामिल है। सरकार की सुविधा, सुरक्षा और आराम में कटौती नहीं की जाती है। नेता आराम से होटलों में बिना पैसे दिये रहते है नेतागीरी दिखाते है, यहीं नहीं उनके बच्चे भी अपने बापों के दादागीरी की प्रथा को आगे बढ़ाते है। और अपने बाप के नाम पर दादागीरी दिखाते है। लेकिन सरकार टैक्स में कटौती नहीं करती है। दवा पर टैक्स तो शर्म की बात है । केद्र सरकार, और दिल्ली की सरकार को टैक्स में फेरबदल करना चाहिये कि कम से कम दवाओं पर तो टैक्स न रखा जाये।

मुंबई का डॉन कौन?....बाल ठाकरे

रविवार, नवंबर 22, 2009

इत्तेफाक से मै भी मीडिया से हूं, लेकिन इसकी ताकत का अंदाजा मुझे कभी नहीं हुआ। और अब तो बिलकुल नहीं होगा। कभी पढ़ा था कि जो पिटा नहीं वो पत्रकार नहीं। और ऐसा ही हुआ। बाल ठाकरे के खिलाफ खबर क्या चली कि उसके चमचे लाठी डंडे लेकर आईबीएन सेवन औऱ लोकमत के आफिस पर तोड़फोड़ करने पहुंच गये। कमाल तो ये है कि सभी राजनेता रह रह कर निंदा कर रहे है। मज़े की बात एक और कि निंदा करना बहुत मजे़दार होता है। निंदा में रस इतना है कि मत पूछो। रिक्शा चलाने वाला भी अमेरिका पर हुये हमलों पर निंदा कर सकता है। क्योंकि उसके अलावा वो कुछ कर भी नहीं सकता। रिक्शे वालों का तो समझ आता है लेकिन मुंबई के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, हो या हमारे प्रधानमंत्री, उनके ये कहने से कि ये गलत है क्या हो जाता है। सीधी भाषा में कहें कि क्या उखाड़ लेते है ये। सच तो ये है कि मीडिया के सामने ये भले ही मीडिया वालों से प्यार की बातें करे, कार्रवाई की बातें करें, लेकिन सच में मन ही मन बहुत खुश होंगे। इसलिये अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई औऱ सच मानिये होगी भी नहीं, क्योंकि मुंबई में सबसे बड़ा गुंडा है बाल ठाकरे । पिछली बार जब एक और चैनल के दफ्तर में तोड़फोड़ हुई थी तब क्या कर लिया था, निंदा तो तब भी की थी। क्या उखाड़ लिया।

रही बात मीडिया की तो आज के चैनल पंगु हो चले हैं। मेरी कोई औकात नहीं है इतने बड़े पत्रकारों पर सवाल उठाने की लेकिन बाल ठाकरे के खिलाफ क्यों नहीं एक मुहिम शुरु की जाती। क्या किसी चैनल पर हमले के बाद उस खबर पर दो दिन खबर दिखाने के बाद बंद कर देने से काफी हो जाता है। क्या फर्क पड़ जाता है। आजकल तो एक चैनल दूसरे चैनल पर हुए हमले पर कहता फिरता है कि चलो अच्छा हुआ। संजय राउत की क्या बात कहुं, वो खुद को संपादक कहते है, सवाल ये है कि सामना का संपादक क्या ऐसा आदमी होना ज़रुरी है कि वो चंद शब्दों को उलट पलट करना जानता हो बस, हो गई एडीटरगीरी। क्या समाचार पत्र के उसूल कुछ नहीं होते। पत्रकारिता के उसूल कोई मायने नहीं रखते। रहीं बात पत्रकारिता कि तो संजय राउत संपादक नहीं हो सकते, क्योंकि जो आदमी किसी दूसरे की कठपुतली हो वो पत्रकार तो हो नहीं सकता। कलम चलाना पत्रकारिता नहीं होती संजय जी। मकसद ही आदमी को पत्रकार बनाता है। बाल ठाकरे खुद एक संपादक है लेकिन उनके टाइप की संपादकी समझ से बाहर है। सामना का नाम मराठी रख दें तो बेहतर है क्योंकि जब बाल ठाकरे अपनी आलोचनाओं का सामना नहीं कर सकते है तो किस बात को पत्रकार है वो। मेरा पिछला आर्टिकल सही था।

क्या ठाकरे सठिया गये हैं?

बुधवार, नवंबर 18, 2009

बाला साहब ठाकरे, ये एक ऐसा नाम है जिसको अगर मुंबई में सख्त लहजे में बोल दिया जाये तो अगले दिन अस्पताल जाने के अस्सी प्रतिशत चांस है। और इनका नाम अगर बुद्धिजीवियों के बीच ले तो एक पत्रकार के तौर पर भी ले सकते है। बाल ठाकरे सामना समाचार पत्रिका में संपादक भी रह चुके हैं। ऐसे में लेखक वाली पावर तो उनके अंदर है ही, और वो पावर है अपनी अभिव्यक्ति को लिखकर बताना। लेकिन आजकल लगता है कि बाल ठाकरे को लिखने का कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है। इसलिये इस बार सचिन तेंदुलकर पर अपनी विचार उन्होने रखे है। बाल ठाकरे कहते है कि सचिन को राजनीति नहीं करनी चाहिये।
कहते है कि अगर क्रिकेट धर्म है तो सचिन तेंदुलकर उसका भगवान है, वैसे तो भारत में कई धर्म है लेकिन क्रिकेट एक ऐसा धर्म है जिसकी पैठ सभी में है। और सचिन सबके देवता है। अब इस देवता पर उंगली उठाई है बाल ठाकरे ने। औऱ इसका कारण है सचिन के वो शब्द जिनको उन्होने अपने क्रिकेट करियर के बीस साल होने के बाद कही थी। सचिन ने ज़िम्मेदार भारतीय की तरह कहा कि वो पहले भारतीय है बाद में मराठी। और वो भारत के लिये मैच खेलते है न कि महाराष्ट्र के लिये। सचिन ने ये भी कह दिया कि मुंबई पर सबका हक है।

बस ये जो आखिरी लाइन थी उसको लेकर बाल ठाकरे का दिमाग फ़िर गया। बाल ठाकरे ने अपने लेख में लिखा है कि सचिन क्रिकेट पर ध्यान दें न कि राजनीति के मैदान में उतरे। सोचता हूं कि सचिन को क्या पड़ी है कि वो कीचड़ में कूदे। अपने कपड़े गंदे करवाने है क्या। लेकिन एक कहावत है कि बिल्ली के सपनों में छीछड़े ही छीछड़े। वही हालत बाल ठाकरे की है। जिनको हर बात में राजनीति नजर आती है। सचिन को राजनीति ज़रुरत नहीं है लेकिन अगर कभी उनके दिमाग में ऐसा आया भी तो उनका जीतना तय है।

मुझे तो यही लगता है कि बाल ठाकरे बूढ़े हो गये है, और उनको अब तीर्थयात्रा पर चले जाना चाहिये। क्योंकि उनकी बड़बड़ चुनावों में मराठी जनता ने बंद कर दी है। शर्म बची हो तो सचिन को आगे से इस तरह की नसीहत देने से बचें नहीं तो शिवसेना भी कुछ नहीं कर पायेगी। क्योंकि उसमें भी सचिन में ढेरों चाहने वाले है जो ठाकरे के इस तल्ख लहज़े पर सफाई देने आगे आने लगे है। ऐसे में उनके लेखों में उनके द्वारा जो मुद्दे उठाये जा रहे उसे देखकर लगता है कि बाल ठाकरे सठिया गये है।

वंदेमातरम यानी देशपूजा

रविवार, नवंबर 15, 2009


वंदेमातरम वंदेमातरम...इन शब्दों को जैसे ही अपनी ज़बान पर लाता हूं या कहीं से सुनता हूं तो दिल में धड़कने तेज़ हो जाती है, नसें फड़कने लगती है। रौंगटे खड़े हो जाते है। अपने अंदर एक जोश और मर मिटने का जज्ब़ा पैदा होने लगता है। पता नहीं ये मेरे साथ होता है या सभी के साथ। बचपन से राष्ट्रगीत को इस कदर में मेरे जहन में बसा दिया गया है कि अगर देश को कभी मेरी ज़रुरत महसूस होने लगी तो इस गीत के लिये शायद जान देने से पीछे नहीं हटूंगा। ये वादा मैने खुद से किया है। अक्सर हम टीवी या समाचार पत्रों में कई नेताओं को भी इसका प्रयोग करते देखते होंगे इसलिये ज्यादातर लोग इसको बोलना या सुनना एक मज़ाक समझते हैं। ऐसे लोगों को कहना चाहुंगा कि ये न समझे कि मै बड़बोला हूं। हर किसी को आगे आना पडेगा जब देश की सुरक्षा का सवाल होगा। हमें ये बात याद रखनी चाहिये कि देश को जब भी हमारी ज़रुरत होगी हमें उसके लिये आगे आना होगा। इसलिये मुझे हर किसी का नहीं पता, पर अपना पता है कि ऐसे समय में मै तो पीछे नहीं हटूंगा।

मेरे लिये देश सबसे पहले है, मेरा धर्म, मेरा परिवार, मेरा प्यार, मेरे रिश्ते, या फिर मेरा भगवान ही क्यों न हो, ये सब बाद में। मेरा भगवान कभी मुझसे पूछने नहीं आयेगा कि तुमने देश के लिये मुझे क्यों छोड़ा। जिस वंदेमातरम पर हर किसी को सवाल करने की आदत हो गयी है। और जो लोग ये सोचते हैं कि इसमें देश की वंदना है उनके लिये ये बता दूं, कि हां है वंदना ....है वंदना और रहेगी वंदना.... तुम्हारे होने पर भी और तुम्हारे न होने पर भी। मै कह देना चाहता हूं उन धर्मभीरुओं से कि हां देश के आगे तुम जैसों की कोई बिसात नहीं, कोई औकात नहीं है। कोई धर्म, कोई भगवान, कोई खुदा देश से पहले नहीं होता। ये बात किसी के समझ में आये तो भी ठीक और नहीं आती तो भी ठीक। क्योंकि कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम देश को कितना प्यार करते हो, क्योंकि जो देश के पहले भगवान या खुदा को मानते है थू है उन पर। ये भगवानों, खुदाओं की क्या बिसात है देश के आगे। ये वही देश है जिसके सीने पर पांव रखकर हर किसी ने चलना सीखा है। ये वही मातृभूमि है जिसने हमें खाने को दिया, हर तरह की आज़ादी दी। किसी के साथ कोई भेद नहीं किया । ये तो हम है जो खुदगर्जी के लिये इन चीज़ों पर अधिकार जताते है, लेकिन चंद लोगों के बनाये भगवान के पीछे भागते रहते है, लेकिन जो है उसकी कद्र नहीं करते, और उसको पूजते है जिसका अस्तित्व है या नहीं ये तो या वो भगवान जानता है या फिर उस पर विश्वास करने वाला। लेकिन देश से पहले धर्म और भगवान को मानना उसकी बेइज्जती करना है। जिस वंदेमातरम पर फतवा जारी हुआ है और जिस मुद्दे पर लगभग हर कट्टर धार्मिक ठेकेदारों ने अपने विचार रख कर रस्साकशी का खेल खेल रहे हैं। उनके लिये ये जानना बेहद ज़रुरी है कि देश की वंदना करना भगवान की वंदना करने से ज्य़ादा ज़रुरी है। जिस देश के वासी अपने देश की पूजा नहीं करते उसको तो भगवान भी नहीं बचा सकता और न ही भगवान बचाने आयेगा। हम ही एकदूसरे के भगवान है।
टीवी पर आ रहे एक कार्यक्रम में जमीयत ए उलेमा हिंद की हिमायत कर रहे एक महाशय वंदेमातरम की खिलाफत सिर्फ इसलिये कर रहे थे क्योंकि वंदेमातरम गीत में देश की वंदना है या कहें कि पूजा है। और उनके लिये धर्म के किताबी ज्ञान के मुताबिक भगवान की इबादत के अलावा वो किसी औऱ की इबादत नहीं कर सकते है। इसलिये क्योकि वंदेमातरम में देश की वंदना यानी पूजा है, फतवा जारी कर दिया गया। ऐसे मूर्ख लोगों को समझाया नहीं जा सकता । अब हम उन लोगों को अनपढ़ कहें या कम पढ़े लिखे लोग ये तो मेरी समझ से बाहर है। अब सवाल ये है कि उन कम पढ़े लिखे, बिना सोच विचार करने वाले लोगों को किस तरह समझाया जाये। अब कैसे बताया जाये कि देश की पूजा सबसे बड़ी पूजा है, और इससे पहले किसी भगवान या खुदा की कोइ बिसात नहीं।मै चाहता हूं कि हम सभी को इसके लिये आगे आने की और नई सोच विकसित करने की ज़रुरत है। सब मिलकर कहिये वंदेमातरम्.. वंदेमातरम्.... वंदेमातरम्.... वंदेमातरम्.....

दिल्ली भारत से अलग है।

गुरुवार, नवंबर 12, 2009

अभी कुछ देर पहले टीवी पर दिल्ली कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की ज्ञानवाणी सुनी। उनका कहना था कि दिल्ली में आने वाले वाहनों को अब से अलग से टैक्स देना होगा। कमाल है क्या दिल्ली देश से अलग है। एक तो पहले ही टोल के नाम पर अलग अलग टैक्स दे दे कर दिल्ली में आने वाले पहले ही परेशान थे लेकिन इस नये टैक्स से तो प्राइवेट वाहनों वालों को दिल्ली के लिये अलग से हफ्ता देना होगा। हफ्ते से मेरा मतलब टैक्स से है क्योंकि हम इतने टैक्स देते है कि आने वाले भविष्य में अगर ज़ोर से सांस लेने पर भी टैक्स देना पड़े तो चैकियेगा मत। और हां ये मै नहीं कहता हूं कुछ लोग है जो टैक्स को हफ्ता कहते है। अरे भाई हफ्ता वही होता है जो भाई लोगों को देना होता है मन मारकर, उसी तरह टैक्स भी है। अच्छी बात ये है कि सरकार को जो टैक्स देते है उसका इस्तेमाल हमारे लिये ही होता है । अपने देश की राजधानी में ही घुसने पर अलग से टैक्स कमाल है। आप लोगों को जानकारी होगी ही कि हम हर चीज़ पर टैक्स देते हैं। चाहे वो कोई खानेपीने का सामान ही क्यों न हो। उसकी कीमत चुकाने के बाद भी टैक्स अलग से देते है। ये अलग बात है कि इंकम पर भी टैक्स देते है। ये सारा पैसा हमारे लिये ही इस्तेमाल होता है लेकिन दिल्ली जाने के लिये अलग से टैक्स की बात पचती नहीं दिख रही।

आदरणीय हिंदी हमें शर्म है खुद पर

मंगलवार, नवंबर 10, 2009


मेरी प्यारी हिंदी
क्या कहूं, लेकिन धीमे से ही कहुंगा कि प्लीज किसी से कहना मत कि बहुत से लोग तुम्हे जानते हैं। नहीं तो वो मुंबई नहीं जा पायेंगे। वैसे क्या चल रहा है आजकल, बड़े चर्चे सुन रहा हूं। तुम्हारे चर्चे तो विधानसभा में भी गूंजने लगे हैं। तुम्हारे नाम पर तो जूतम पैजार भी हो रही है। तेरे लाल डटे हुए हैं मोर्चे पर। घबराना मत, हम जैसे लेखक है तुझे तेरा सम्मान दिलाने के हक में, हम तुझे हमेशा याद करते है। जब भी कलम उठती है तेरी याद आती है। क्या करें, मेरी मां को भी तुमसे बड़ा लगाव था। जब वो कलम चलाना सिखा रही थी तो उसने तेरी पूजा करनी सिखाई। इसलिये तुझे मां ही समझता हूं। चिंता मत करना मेरी कलम जब भी उठेगी तेरे लिये उठेगी, तुझे तेरा दर्जा दिलावाकर रहेगी। मुझे तेरा दर्द पता है, मुझे पता है कि कैसे अंग्रेजी तेरा चीरहरण करती है, तभी तो हिंदी के आराधकों की नसें फड़कने लगती थी। लेकिन शर्म है खुद पर, कैसे कहूं पर अब तो जिस राष्ट्र की तू राष्ट्र भाषा है वहां के दुराचारियों की नज़रें भी तेरे अधखुले बदन को चीड़ फाड़ने के लिये ताड़ रही है। मगर घबरा मत...तेरे उपर जिस राज ठाकरे जैसे दुराचारियों की नज़रें पड़ी है उनके अस्तित्व की पहचान खुद उन्हें भी नहीं हो पायेगी। तुझे राष्ट्रभाषा कहने का छद्दम दर्जा तो दे दिया गया लेकिन क्या तुझे उसके जितनी इज्जत मिल पाई है। ये सवाल मै तुझसे अच्छा जानता हूं। हम तो तेरे आराधक है, हमें तो तुझमें अपना भगवान नज़र आता है। लेकिन कसम है तेरी, जिस जिस की गंदी नजरें तुझ पर उठेंगी उसे उसकी ही नज़रों गिरा देंगे।

लेकिन आदरणीय हिंदी अंत में इतना ही कहुंगा कि हमें शर्म है खुद पर जो तेरे दुश्मनों को तुझमें विश्वास न दिलवा पा रहें हैं। क्या करें जिस देश की तुम राष्ट्रभाषा हो उसी देश के वो नेता हैं। जो यहां के लोगों की ही नुमाइंदगी करते हैं। और इस लोकतंत्र में हम उन पर दबाव नहीं बना सकते हैं। पर शर्म इस बात की है कि वो दूसरों पर दबाव बना लेते है, और उनको तेरे देश का संविधान भी नहीं रोक पाता , जिस देश की तू राष्ट्रभाषा है
हमें माफ करना।

क्यों होते है यूपी बिहार के दुश्मन ?

शनिवार, नवंबर 07, 2009

पिछले दिनों गुस्ताखियों का कुछ ऐसा दौर चला कि नेताओं ने अपनी ही पोल खोल दी। पहले महाराष्ट्र के नेता महाराष्ट्र के लोगों की बात करते थे तो शिव सेना ने मराठियों को अपनी असलियत बता दी, ये भी साफ कर दिया कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन मराठी है और कौन उत्तर भारतीय। उत्तर भारतीयों के विरोध से चुनाव जीता और मराठियों ने उनकी इस चुनावों में जो बखिया उधेड़ी तो लगे बकर बकर करने मराठियों के खिलाफ़। उन्हें ही गालियां बकने लगे। जैसे ही लगा कि मराठी वोट नही मिल रहे है तो बोलती बंद कर ली अपनी ही । लेकिन सवाल मराठी नहीं है सवाल है बिहारी या कहें कि यूपी बिहारी, राज ठाकरे की तो सारी राजनीति ही इन पर चल रहा है। सोचता हूं कि अगर यूपी बिहार वाले महाराष्ट्र न जाये तो राज ठाकरे की पार्टी तो कभी उभर ही नहीं पायेगी। मुझे लगता था कि सिर्फ महाराष्ट्र में ही राज ठाकरे है लेकिन मै गलत था ।एक और राज ठाकरे ने अब अपने पर फैलाये है, औऱ वो है बीजेपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। इनका कहना है कि उनके प्रदेश में सिर्फ उन्ही कंपनियों को घुसने दिया जायेगा जो मध्यप्रदेश के लोगों को काम देंगे। यहां तक तो ठीक था लेकिन उन्होंने तो ये भी कह दिया कि काम न सिर्फ मध्यप्रदेश को लोगों को ही दिया जाये बल्कि ये भी कह डाला कि बिहारियों को न दिया जाये। उनके शब्दों में कहें तो किसी बिहारी को यहां काम नहीं दिया जाये और सिर्फ उनके लोगों को काम दिया जाये। अब इसे कहते है एकता में अनेकता

सच ही है कि कहावतें भी समय के साथ बदलती है ।पहले मज़ाक लगता था लेकिन आज लगता है कि सच है ,बचपन से पढ़ते आ रहे थे कि अनेकता में एकता है हमारे देश में, लेकिन इसका सार आज के परिवेश में उचित नहीं लगता, देश के हालातों को तो देखकर यही लगता है कि आज अनेकता में एकता नहीं है बल्कि एकता में अनेकता है। ये अलग बात है कि पलटने की फितरत और खुद के अस्तित्व को भी नकारने की हिम्मत रखने वाले हमारे नेताओं की फेहरिस्त में शामिल शिवराज सिंह अपनी बात से पलट गये। औऱ माफी मांग ली लेकिन दिल की बात को उत्तेजना में दबा नहीं पाये। औऱ दिल की बात सामने आ गयी। उम्मीद के मुताबिक मुकर गये औऱ अपनी सफाई दे दी लेकिन अब क्या कहें सच तो सच है कभी भी सामने आ जाता है जब दिमाग में उत्तेजना भर जाती है हम बनावटी बातें नहीं कर पाते है जो दिल में होता है बक देते है, सच में कभी ट्राई करियेगा सही बोल रहा हूं।

जिस प्रकार की घटनायें देश में घटित हो रही है उसमें एक बात तो कॉमन है कि सब के सब यूपी बिहार वालों से बहुत चिढ़ते है पता नहीं क्यों, पर चिढ़ते है। हो सकता है शायद इसलिये की यूपी बिहार के लोग ज्यादा टैलेटेड है । अरे ये मै नहीं मानता और भी प्रदेशों में टैलेंटेड लोग है लेकिन यूपी बिहार वालों की संख्या ज़रा ज्यादा है ऐसा यूपी बिहार वालों को लगता है क्योंकि हर जगह उनका ही विरोध होता है। इसलिये लोगों की चिढ़ ज़रा ज्यादा है। मेरी बातों को बल देने के लिये नितीश भी आगे आये है जो बिहार के मुख्यमंत्री है , इसलिये उनका चुप रहना गलत होता और ये बात लालू के लिये फायदेमंद साबित होती जो कि नहीं हो पाई।

ले गये गुण्डे धनिया को......

बुधवार, अक्तूबर 28, 2009



बसों से सफ़र करते रहो तो जीवन के कई अनोखे और मज़ेदार अनुभव होते है। मै अपने घर से बस में सफर करता हुआ मुज़फ्फरनगर शहर की तरफ जा रहा था। रास्ते में जानसठ कस्बे में जो की एक तहसील भी है वहां पर लगे एक होर्डिंग को देखकर खुद को हंसे बिना नहीं रोक सका। असल में वो स्वच्छता अभियान के तहत लगाया गया होर्डिंग था जो कि लोगों को जागरुक कर रहा था। लेकिन उस होर्डिंग पर जिस तरह के चित्र और वाक्य लिखे थे उसे देखकर स्वत ही हंसी आ गयी। आसपास के लोगों को स्वच्छता अभियान में भागीदारी देने के लिये घर में ही शौचालय बनाने का संदेश था जो इस प्रकार था कि मुझे हंसी आ गई।



इस होर्डिंग में एक अच्छा संदेश लिखा था जिसका मकसद समाज के दिलो दिमाग तक पहुंचना था। और साथ ही लोगों में एक डर बैठाकर सही रास्ता चुनने की सलाह थी जो मुझको बहुत अच्छी लगी।

हिमाचल की वादियों में कुछ दिन

सोमवार, अक्तूबर 26, 2009



पिछले कुछ महीनों से परेशान होने के बाद शांति की तलाश में काफी जगहों पर मुझे भटकना पड़ा। समस्या तब सामने आयी ,जब ये सोचना पड़ी कि जायें तो जाये कहां। खानाबदोश जीवन में भी अपना एक मजा है, इसलिये मै निकल पड़ा अपना सामान बांधकर, काफी सोच विचार के बाद ये तय किया कि मै पहाड़ो पर जाकर कुछ शांति की तलाश करुं। ये जो तस्वीरें आप देख रहे हैं उनको देखकर आपको इसका एहसास ज़रुर होगा



इन तस्वीरों की खूबसूरती यहीं खत्म नहीं होती है, हिमाचल प्रदेश में अच्छी जगहें तो बहुत है लेकिन इस बार योजना बनीं कुल्लु और मनाली की, पहाड़ों के बीच से बहती नदी का बहाव

और दो पहाड़ों के बीच दिखते बादलों का झुंड, इन सभी नज़ारों के बीच ख़ुद को पाकर दिल बागबाग हो गया है, एक बात दिमाग में आई कि हिमाचल में जाकर वहां के लोक गीतों और

लोक नृत्यों को देख लेना बहुत किस्मत की बात है।चारों तरफ से पहा़ड़ों से घिरा मणीकरण, वहां के एक स्कूल में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने का मौका मिला, वहां पर आसपास के सभी स्कूलों के बच्चे मौजूद थे जो अपनी कला से अपने प्रदेश की खूबसूरती को दिखा रहे थे, औऱ वो भी अपनी लोकनृत्यों औऱ गायकी से..




दीपावली यानी पैसा खर्च = ख़तरा ख़रीद

शनिवार, अक्तूबर 17, 2009

दीपावली के शुभ अवसर पर लेख को शुरु करने से पहले सभी पढ़ने वालों को दीपावली की शुभकामनायें, और हां ये दीपावली बस आज के लिये ही नहीं है ये तो बीते हुये कल से लेकर आने वाले दो दिनों तक चला करती है। यूं तो मेरी उम्र तेईस साल ही है लेकिन बचपन की याद आ ही जाती है, मुझे याद है कि दीपावली के दो दिन पहले से ही मिठाइयों के ढेर लग जाया करते थे साथ ही पटाखों की लिस्ट तैयार हो जाया करती थी। हर बार ये प्रतियोगिता हुआ करती थी कि मेरे दोस्तों के यहां ज्यादा पटाखे आये है या मेरे यहां। हर बार ज़िद करके पटाखों में जितने पैसे पिछले साल फूंके थे उससे ज्यादा का बजट इस बार तैयार हो जाया करता था। पापा कितना भी मना करें लेकिन हर साल पटाखों की संख्या साल दर साल बढ़ती जाती थी। मुझे याद है हम अपने घर से ज्यादा चाचा के पास जाकर दीपावली मनाना ज्यादा पसंद करते थे क्योंकि चाचा पटाखों के शौकीन थे, वो हर तरह का पटाखा जलाना चाहते थे चाहे वो पैराशूट हो या सेवन शॉट या फिर टेन शॉट, उस वक्त इन्हीं नामों से पटाखे आया करते थे। दो दिन पहले ही पटाखे लाना फिर उनको दीपावली के दिन तक धूप में सुखाना फिर शाम होते ही समेटकर सूटकेस या किसी बैग में भर लेना ये रुटीन हुआ करता था। दीपावली के दिन तो जैसे सिर्फ पटाखा जलाना ही मकसद ही बचा रह गया था। शाम को सबसे पहले इंतजार होता था कि जल्दी से पूजा का कार्यक्रम समाप्त हो फिर पटाखे जलाने का कार्यक्रम शुरु । शुरुआत होती थी पटाखों में सबसे बड़े और नये पटाखे को जलाकर, इसी के साथ पटाखा फोडू प्रतियोगिता शुरु । रात के बारह बजे तक पटाखे फोड़ने का प्रोग्राम चलता रहता था। सिर्फ पटाखे जलाते रहना ही मजेदार नहीं होता, जब तक सामने से कोई फायर न हो मतलब ये है कि पटाखए जलाने में प्रतियोगिता हुआ करती थी।सभी पड़ोसियों से पटाखे जलाने का कांम्पटीशन होता था, अगर वो कोई बम फोड़ते थे तो उनसे बड़ा बम हमें भी फोड़ना होता था नहीं तो हार मानी जाती थी।

दीपावली की रात पटाखे जलाने के बाद अगले दिन फिर वही रुटीन शुरु, पटाखे धूप में सुखाये फिर रात में जलाये। ये दीपावली अगले दो दिन लगातार चला करती थी। दीपावली के अगले दिन तो ज्यादा रोचक काम सभी बच्चे किया करते थे, जो पटाखे किसी कारण से नहीं फट सके थे उसे इकट्ठा करने का काम, ये काम कुछ लोगों के लिये गंदा हो सकता है लेकिन उस वक्त वो बड़ा ही रोचक खेल था बचे हुए बिना फटे हुए पटाखों को इकट्ठा करके उनका बारुद निकालकर उन्हें कागज में रखकर जलाना। उसमें भी ख़तरा तो था ही लेकिन मज़ा भी बहुत आता था।

लेकिन आज सोचता हूं तो दुख होता है। जब अपने कुछ दोस्तों के चेहरे और उनके हाथों को देखता हूं तो सारा मज़ा काफूर हो जाता है और दिल सहम जाता है। एक डर दिल में बैठ जाता है कि ये त्यौहार खतरों के खेल जैसा क्यों हो गया है, क्यों पटाखों के खेल में हम खुद को ख़तरे में डाल देते हैं। जब पटाखे जलते है तो उनमें रोशनी होती है लेकिन उन्ही रोशनियों में जलते हुए मेरे एक दोस्त की आखों की रोशनी चली गई थी। वो अब हर साल दीपावली के दियों को ठीक से देख तक नहीं पाता, दुख होता है ,लेकिन क्या करें अब कुछ नहीं हो सकता है।

हमें दीपावली पर इस बात का ध्यान ज़रुर देना चाहिये कि पटाखे हमारे लिये कितना बड़ा खतरा है, साथ ही इससे हमारे पर्यावरण को भी कितना नुकसान होता है, इसका पता हमें उस वक्त नहीं चलता जब हम ठीक होते है और हमारे साथ कोई दुर्घटना नहीं होती है ये हमें तब पता चलता है जब हमें पटाखे जलाने का मज़ा सज़ा के रुप में मिलता है। तो इस दीपावली में सब मिलकर पटाखों से तौबा करें ये हमें प्रण लेना होगा। पटाखों को खरीदने से पैसों की बर्बादी तो होती ही है साथ ही हम पैसों में खुद के लिये खतरा खरीदते है और कुछ नहीं। हमें समझदारी से काम लेना होगा, पर्यावरण को बचाये पटाखो से तौबा करें, खुशियां मनाये पर पटाखों के साथ नहीं कहीं ऐसा न हो कि आज का मज़ा कल के लिये सज़ा बन जाये।SAY NO TO CRACKERS

जो लिखता हूं सच लिखता हूं

गुरुवार, अक्तूबर 15, 2009

जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता,

बढते हुए अपराधों पर,
जुल्म के शिकार अबोधों पर,
जाति पर, नवजातों पर
मै लिखता हूं...

जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच कि सिवा कुछ नहीं लिखता

देश के गद्दारों पर,
सफेदपोश मक्कारों पर,
चोरों पर नाकारों पर
मै लिखता. हूं

जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता

शहर में होते बलात्कारों पर
शिकार हुई औरतों पर
मासूम बच्चियों के दर्द पर
मै लिखता हूं ..

जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता

ये एटीएम देश का बंटवारा करवायेगा!!!!

रविवार, अक्तूबर 11, 2009

देश का बंटवारा शुरु हो गया है, इसकी शुरुआत की है बैंकिंग सेक्टर ने, अब ये बात आप को जैसे ही पता चली होगी आपको सदमा ज़रुर लगा होगा। कल शाम जब मै कुछ पैसे निकालने एटीएम गया तो आम दिनों के अलावा मेरी आंखों ने जो देखा वो सच में हैरत में डालने वाला था। मै अपने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम पर गया ।

जहां मैने देखा कि वहां पर उसे ऑपरेट करने के लिये कुछ भाषाओं के विकल्प दिये रहते हैं। पिछले कुछ दिनों से मै देख रहा हूं कि पहले वहां पर दो ही भाषाओं के विकल्प दिये रहते थे और वो थे अंग्रेजी (जो कि जल्द ही हमारी मातृभाषा में तब्दील होने वाली है)। और दूसरा विकल्प थी हमारी वर्तमान तथाकथित मातृभाषा और कई ऑफिसों कि राजभाषा हिंदी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से वहां पर एक तीसरी भाषा ने भी अपने स्थान बना लिया है और वो है पंजाबी भाषा। मै उस वक्त सन्न रह गया जब मैने इस तीसरे विकल्प को देखा। हो सकता है कि मेरी नज़र सिर्फ कल ही पड़ी हो लेकिन ये तो तय है कि बहुत पहले से ही भाषा के तीसरे विकल्प के तौर पर चिपका हुआ होगा। उस वक्त दुख हुआ जब उस तीसरे विकल्प को मैने देखा। दुख इस बात का था कि एटीएम चलाने के लिये अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल तो एक बार के लिये समझ में आता है, दूसरा हिंदी का होना भी अच्छा लगता है कि चलो कम से कम हमें अपने ही देश में अपनी राजभाषा में एटीएम चलाने को मिलता है, लेकिन अब ये पंजाबी, कमाल है....

पंजाबी भाषा में कोई बुराई नहीं है लेकिन हिंदी होने के बावजूद पंजाबी का होना या फिर किसी और भाषा का होना क्या दर्शाता है। जिस आदमी को पंजाबी ही आती है वो पंजाबी में एटीएम चला ले, क्या हिंदी जानने के लिये उसे मेहनत नहीं करनी चाहिये जो कि हमारी राष्ट्रभाषा है साथ ही मातृभाषा भी। मातृभाषा कहने में बहुत लोगों को परेशानी तो हो रही होगी ये बात तो पता चलती है लेकिन क्यों ?? ये पता नहीं चलता। कम से कम हिंदी को राष्ट्रभाषा तो कह ही सकते हैं। कम से कम राष्ट्रभाषा का अपमान नहीं करना चाहिये। यहां एटीएम में पंजाबी विकल्प होने को गलत नहीं बताया जा रहा है। बल्कि पंजाबी भाषा की ज़रुरत को कटघरे में खड़ा कि या जा रहा है। पंजाबी भाषा को एटीएम में रखने के पीछे उसे बढ़ावा देना गलत नहीं है लेकिन क्या एटीएम में हिंदी भाषा होने के बावजूद पंजाबी विकल्प की ज़रुरत है???? और अगर है तो क्यों ? इस विकल्प के बाद एक बात दिमाग में खटकती है कि भाषा के आधार में हिस्से करने का ये एक तरीका भी हो सकता है जिस तरह चीन जम्मू कश्मीर के लोगों वीज़ा के साथ साथ एक अलग तरह का पत्र भी दे रहा है। ताकि यहां के लोगों को लगे कि वो कुछ अलग है आखिर ज़रुरत क्यों है????

आखिर में इससे ज़ुड़ा हुआ एक और मजे़दार मुद्दा। मै इस एटीएम के बाद आईसीआईसीआई

के एटीएमपर गया जहां पर मै यही देखने गया था कि क्या वहां पर भी कई ऑप्शन मौजूद हैं । तो मैने देखा कि वहां पर भी तीन भाषाओं का विकल्प मौजूद मिला और फिर उसके पीछे का कारण सोचकर मै हंसी से लोटपोट हो गया।
वहां पर भी तीन विकल्प थे हिंदी, अंग्रेज़ी, और....मराठी। अब मराठी क्यों है इसके पीछे क्या कारण है इसके लिये आपको अपने आईसीआईसीआई के मुख्य शाखा के बारे पता करना होगा जहां से आपके एटीएम बनकर आते है और सारा कामकाज असल में चलता है। चलिये मै बता देता हूं आपके एटीएम कार्ड बनकर आते हैं मुंम्बई से ..और क्या वहां काम करना कोई आसान काम है ?? वहां पर तो "राज" चलता है। अब ये मत पूछना किसका 'राज' चलता है।

कश्मीर में आयेगा विशेष दूत!!

रविवार, अक्तूबर 04, 2009


जम्मू कश्मीर एक ऐसा मुद्दा रहा जिस पर हमेशा से ही पाकिस्तान और हिंदुस्तान के अलावा भी लगभग सभी देशों की निगाहें बनी रहती है। और पाकिस्तान इसका इस्तेमाल उस वक्त करता है जब उस पर आतंकवादी हमले करवाने का आरोप लगता है। अब जबकि पिछले साल 26 नवंबर को मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान पर कार्रवाई का जबरदस्त दबाव बन रहा है तो अब एक नया पैतरा खेला गया है। आपको बता दें कि एक खबर के मुताबिक इस्लामी सम्मेलन संगठन (ओआईसी) द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिए एक विशेष दूत नियुक्त किए जाने के फैसला किया गया है हालांकि भारत ने इस फैसले को सिरे से खारिज कर दिया है। राजनयिक सूत्रों ने स्पष्ट कर दिया है कि उस विशेष दूत का भारत में कभी स्वागत नहीं किया जाएगा। इसी साल बाराक ओबामा ने जम्मू-कश्मीर और भारत-पाकिस्तान के लिए विशेष दूत नियुक्त किए जाने की तैयारी थी, लेकिन भारत के तेवर को देखते हुए ओबामा ने अपना फैसला बदल दिया था। ओआईसी 57 मुस्लिम देशों का संगठन है। इसका मुख्यालय जेद्दा में है।

हर साल पाकिस्तान के कहने पर ही इस्लामी सम्मेलन संगठन की प्रत्येक बैठक में जम्मू-कश्मीर पर अलग से प्रस्ताव पारित करवाया जाता है। ओआईसी में इस प्रस्ताव को भी पारित करवाने में पाकिस्तान की विशेष भूमिका है। हर बार की तरह पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने और अपनी धरती पर आतंकवादी संगठनों को कई तरह की मदद देने के आरोप लग रहे हैं। इसी बीच पाकिस्तान ने भारत पर दबाव बनाने की ये नई चाल चली है। आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने में आनाकानी के भारत के आरोपों के बीच पाकिस्तान ने यह नई रणनीति अपनाई है। पाकिस्तान की कोशिश है कि वो आतंकवाद के आरोपों को दबाये और जम्मू-कश्मीर के मसले को फिर से अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाये ताकि उस पर से ये आरोप ठंडे बस्ते में जा सके। पाकिस्तान आतंकवाद के आरोपों को जम्मू-कश्मीर से जोड़कर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने पेश करना चाहता है ताकि इसे लोगों के प्रतिकार के तौर पर लिया जा सके।

वैसे तो ओआईसी एक कागजी संगठन है, और इसके प्रस्तावों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय गंभीरता से नहीं लेता। लेकिन, सऊदी अरब के अब्दुल्ला बिन अब्दुल रहमान अल बकर को जम्मू-कश्मीर पर विशेष दूत नियुक्त करने का फैसला इस्लामी दुनिया में जम्मू-कश्मीर के मसले पर नई रुचि पैदा करता है। विदेश मंत्रालय ने ये साफ तो कर दिया है कि ओआईसी के विशेष दूत का भारत में कभी स्वागत नहीं होगा लेकिन देश में गद्दारों को कमी नहीं है, इसलिये कश्मीर की भलाई का राग अलापने वाले हुर्रियत के नेता इस तथाकथित विशेष दूत का स्वागत करेंगे और बातचीत में भी हिस्सा लेंगे। कश्मीर इन दिनों किस कदर भारत पर दबाव बनाने का हथियार बन रहा है इसका उदाहरण कुछ दिन पहले ही सामने आया था जब भारत का दोस्ती के मुखौटा पहनने वाल सबसे बड़ा दुश्मन चीन के भारतीय दूतावास में जम्मू-कश्मीर के लोगों की वीजा अर्जी पर पासपोर्ट के बजाय अलग पेपर पर वीजा मंजूरी की मुहर लगाना शुरू किया था जिसका भी भारत ने विरोध किया था। लेकिन इस विरोध का कितना असर हुआ है इसका पता नहीं चल पाया । अब ओआईसी का यह नया फैसला भारत के लिए इस्लामी दुनिया में रामुजनयिक मुश्किलें पैदा कर रहा है। लेकिन भारत अपनी हमेशा वाली नींद सोया हुआ हैं। औऱ इन मामलों को गंभीरता से नहीं ले रहा है। जो कि आगे चलकर बड़ी परेशानी की कारण बनेगा।

क्या हमें ज़रुरत है 911 की?

शुक्रवार, सितंबर 25, 2009


मै एक दिन हॉलीवुड की फिल्म देख रहा था। फिल्म की कहानी इस तरह थी कि एक कामकाजी आदमी जो अपने घर में अपनी बीवी और बच्चों के साथ रहता है। एक रात जब वो सो रहे थे तो उनके घर में उन्हें कुछ खटपट की आवाजें सुनाई देती है। पति पत्नी दोनों की नींद खुल जाती है। पति अपने हाथों में बेसबॉल का बैट लिये आगे बढ़ता है, उसके पीछे उसकी पत्नी चलती है, बेसबॉल का बैट लिये वो अपने बेटे के कमरे की तरफ जाता है, वहां पहुंचकर वो देखता है कि उसका बेटा ठीक है, फिर वो देखता है कि उसी कमरे की खि़ड़की खुली होती, ये देखकर उसे विश्वास हो जाता है कि उसके घर में कोई चोर घुस आया है। उस चोर की तलाश में वो बाकी कमरों की तरफ बढ़ता है । तभी उसे ज़ोर का धक्का लगता है। वो गिर पड़ता है औऱ चोर बाहर की तरफ भागने लगाता है, वो चोर के पीछे भागता है और फिर चोर के सर बेसबॉल का बैट मारता है वो गिर पड़ता है। उसकी बीवी तुरंत फोन उठाती है और फोन करती है। तभी थोड़ी देर में पुलिस आ जाती है। पुलिस वाला उसे कहता है कि चोर मर चुका है और हीरो को जेल जाना पड़ता है। पुलिसवाले से हीरो की पत्नी कहती है कि जब चोर उसके घर में घुस आया था तो उसे क्या करना चाहिये था अगर उसे मारना गलत था तो क्या करना चाहिये था। उस पुलिसवाले ने कहा आपको घर का सुरक्षित कोना पकड़कर 911( नाइन वन वन) पर फोन करना चाहिये था। बस।

मेरा दिमाग घूम गया। मैने सोचा कि क्या हिंदुस्तान में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं होनी चाहिये। क्या आपने कभी 100 नंबर डायल किया है। पता नहीं अक्सर मैने उस पर किसी को उठाते नहीं देखा। यहां तक कि एक बार मैने गाज़ियाबाद के कविनगर के पुलिस स्टेशन का लैंडलाइन नंबर लगाया तो वहां भी किसी ने फोन नहीं उठाया, हालांकि मुझे कुछ खास जानकारी नहीं चाहिये थी लेकिन फिर भी ज़रुरी काम होता तो!!!!

मुझे महसूस होने लगा कि अगर विदेशों की तर्ज पर भारत में इस तरह की एक केंद्रीय़कृत व्यवस्था होनी चाहिये। जहां पर क़ॉल करने पर वहां से एक ही जवाब आये " बतायें आपकी इमरजेन्सी क्या है" कहां से बोल रहे हैं और साथ में कुछ ज़रुरी सलाह देकर रुकने को कहे और पांच से दस मिनट के अंदर ही पुलिस या फायर ब्रिगेड या एंबुलेंस भिजवा दे। क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह की कुछ व्यवस्था होनी चाहिये। इस तरह की व्यवस्था होने के बाद कही न कही सुरक्षा व्यवस्था काफी हद तक ठीक हो जायेगी। एक ऐसा नंबर हो जहां पर कॉल करने के बाद जिस तरह से मोबाइल के काल सेंटर्स में कई लोग मदद के लिये चौबीसों घंटे उपलब्ध रहते है। उसी तरह 911 की तर्ज पर एक ऐसी व्यवस्था हो जहां पर कॉल करने के बाद वो हमारी डिटेल लेने के बाद हमें हर तरह की मदद पहुंचा सके। हममें से कई लोगों को ये पता होगा औऱ मुझे भी पता है कि पुलिस को बुलाना है तो 100 नंबर डायल करों और 101, 102 डायल करो फायर ब्रिगेड, औऱ एंबुलेंस के लिये। लेकिन हममें से ही कई लोगों को नहीं भी पता ये सारे नंबर।


सोचिये जब हमें कोई इंमरजेंसी होती है तो कैसे हमें कितने नंबर याद रहते है। सोचिये कि सिर्फ एक नंबर डायल करने पर ही हमें पुलिस, फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस, या कई अन्य तरह की मदद मिल जाये। हमें ज़रुरत है। लेकिन क्या इसका पता हमारे राजनेताओं को है। नागरिकों को एक खास नंबर देने की प्रणाली कई देशों में अपनायी जा चुकी है बहुत पहले से, लेकिन उस वक्त किसी को इस बात का ख्याल नहीं आया कि हमारे देश में भी इस तरह की कोई व्यवस्था होनी चाहिये। जब आतंकवादियों ने हमले करने शुरु किये और ये पता चलने लगा कि हमारे देश में भी छेद करने वाले नागरिक, और बाहरी देश के नागरिक देश को बर्बाद करने में लगे हुये है तो इस व्यवस्था की ज़रुरत सबको महसूस होने लगी है। उसी तर्ज पर हमारे देश में भी अब सभी नागरिकों को एक विशेष नंबर दिए जायेंगे जो उनकी पहचान होगी। 911 की तर्ज पर एक केद्रीयकृत व्यवस्था शुरु करने की ज़रुरत है। ताकि सुरक्षा की दृष्टि से देश में लोगों को विश्वास हो कि हम सुरक्षित है। जिस कारण से विदेशी नागरिक यहां आने से डरने लगे है उस पर भी लगाम कसने में भी मदद मिलेगी और हो सकता है कि किसी आतंकवादी घटना को घटित होने से पहले ही कोई नागरिक सूचना देकर पुलिस को सूचित कर दे। लेकिन क्या ऐसा हो पायेगा। कोई सुन रहा है क्या?

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस यानी परिवारवालों की शामत

सोमवार, सितंबर 21, 2009




कलमबंद की ओर से जनहित में जारी
दिल्ली की लाजपतनगर इलाके की मार्केट खरीददारी के लिये बढिया मानी जाती है। यहां पर हर उम्र के लिये और सबकी ज़रुरत का सामान मिलता है। लेकिन आप अगर खरीददारी का मन बना रहे हैं और वो भी लाजपतनगर मार्केट में तो ज़रा सावधानी बरतनी पड़ेगी। अरे जेबकतरों से नहीं भाई...जेब कुतरों से...आपको खबरदार इसलिये किया जा रहा है क्यों कि यहां पर ट्रैफिक की समस्या सबसे ज्यादा है। जिसका मज़ा उठाती है यहां ट्रैफिक पुलिस के वो हवलदार जो ईमानदार तो कतई नहीं। आगे कहने से पहले आपको दो तस्वीरे दिखाते हैं ।
ये जो पहली तस्वीर आप देख रहे हैं वो है जनाब राजन सिंह ....ये महाशय ट्रैफिक पुलिस में हवलदार के पद पर हैं और इनके साथ ये दूसरी तस्वीर में उनका नाम लेना उचित नहीं है क्योंकि यहां पर उनकी तस्वीर की ज़रुरत ज्यादा थी नाम की नहीं...



यहां पर आपको, सावधान किया जा रहा है, दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के हरियाणवी अंदाज के राजन सिंह से, जी हां...तेज़ नज़र, आवाज में पुलिसिया अकड़, शब्दों में कड़े तेवर, हवलदार की गोल टोपी लगाये ये जनाब लाजपत नगर इलाके की मार्केट में अक्सर सड़को पर चालान बनाते नज़र आते हैं। आप लोगों को सावधान इसलिये किया जा रहा है क्योंकि इन जनाब के कुछ उसूल हैं और उन उसूलों के चक्कर में आप लोग न फंसे इसलिये आपको सावधान किया जा रहा है। राजन सिंह जी को इनके उसूलों को तोड़ने वाले या इस पर सवाल उठाने वाले बिलकुल नहीं पसंद, इनके उसूलों के विषय में आगे विस्तार से बताया जा रहा है साथ ही उसूलों के कारण भी लिखे है ज़रा ध्यान दें और ख़ुद को बचायें।

राजन उसूल नंबर एक - ये जनाब सिर्फ परिवार के साथ के खरीददारी करने आने वाले लोगों पर अपनी नज़र ऱखते हैं।

कारण- परिवार के साथ आने वाले लोग बहस में ज्यादा नहीं पड़ते हैं, जल्दी से निपटने की कोशिश किया करते हैं, इसलिए आसान शिकार हैं।

उसूल नंबर दो - पुलिसया अकड़ और तेवर दिखाना ज़रूरी है।

कारण- पुलिसया अकड़ के आगे अच्छे अच्छों ढीली हो जाती है तो बेचारे परिवार के साथ आने वाले क्या करेंगे, जो पुलिस जी कहेंगे वही होगा।

उसूल नंबर तीन- अपनी तीखी नज़रों से सभ्य दिखने वालों को शिकार बनाना।

कारण- सभ्य लोग कानून नहीं जानते इसलिये उन्हें कानून से डराना आसान होता है भले ही ऐसा जिसका उल्लंघन किया गया हो।

उसूल नंबर चार- किसी लड़की के साथ आने वालों को प्रीफरेंस,

कारण- कारण सबको पता है, कोई बताना नहीं चाहेगा, किसी महिला के साथ आने वाले लोग ज़रा ढीले पड़ जाते है अब इसका कारण मत पूछियेगा, क्यों?

उसूल नंबर पांच- अगर शुद्ध हिंदी आती भी हो तो भी हिंदी भाषी लोगों से हरियाणवी अकड़ वाली भाषा ही प्रयोग करना।

कारण- आपमें से कई लोगों को पता होगा कि हरियाणवी या पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बोली को कई लोग अक्सर धौंस जमाने वाली भाषा भी कहते है। और ज्यादातर पुलिस, और बदमाश टाइप के लोग इसका अच्छा प्रयोग करते हैं।

उसूल नंबर छह- लोगों को घूरकर उन पर पुलिस की पावर का एहसास दिलवाना,

कारण- अब इसका क्या कारण दूं। पुलिस के पास पावर है तो है। एहसास नहीं दिलवाते तो भी लोग डरते हैं। जी मैं शरीफ लोगों की बात कर रहा हूं।

उसूल नंबर सात- कार को रखो दर किनार

कारण- अब गाड़ीवालों से कौन पंगा ले यार, नौकरी न खा लें।

उसूल नंबर आठ- ज्यादा सवाल जवाब मतलब ज्यादा चालान (जुर्माना)

कारण- पुलिस से ज्यादा सवाल जवाब करेगा कोई, इतनी हिम्मत

उसूल नंबर नौ- हर कोई कानून नहीं तोड़ता है, जिस पर नज़र पड़ी वही चोर

कारण- "मेरे दस हाथ तो है ना जो सबको पकड़ूं" ये जवाब भी मिलता है। सच में

उसूल नंबर दस- मै चाहे जिसे पकड़ू जिसे छोड़ूं ,मेरी मर्जी...

कारण- पुलिस की मर्जी है भईया कोई कारण नहीं है।



ये जितने भी उसूल लिखे गये हैं वो सत्य घटनाओं पर आधारित है। ये सारे के सारे जवाब अपने सामने से देखकर समझकर लिखे है। इतेफाक से मै अपनी महिला मित्र के साथ खरीददारी के लिहाज से लाजपतनगर पहुंच गया था जिसके बाद मै इनके चंगुल में फंस गया और मेरा चालान कर दिया गया। मुझे पहले तो लगा कि पत्रकार होने का फायदा उठाऊं जैसा कि अक्सर कुछ पत्रकार उठाते है लेकिन कानून तोड़ा था तो सोचा कि जुर्माना देने में कोई बुराई नहीं है। आपको बता दूं लाजपतनगर मार्केट की सड़क अब वन वे हो गयी है इसलिये जरा और सावधान हो जाइयेगा। हां ये अलग बात है कि पूरी सड़क पर वन वे का कोई बोर्ड नहीं है लेकिन फिर भी यहां पर राजन सिंह जी चालान बनाने में माहिर है। इसलिये तस्वीरों को ज़रा गौर से देखिये और पहचान लीजिये। और ज़रा बचकर.... कहीं परिवार के साथ आप इनकी नज़र में न आ जाईयेगा वरना पैदल चलने का भी चालान कैसे बनता है.. ये भी आपको सिखा दिया जायेगा । हां अगर आप कार से आते है तो ठीक है, या आपके साथ परिवार नहीं है तो बहुत बढ़िया। और एक बात तो भूल गया जेब में माल है तो सबसे बढ़िया है शायद अच्छे दोस्त ही बन जायें।

रंगोंभरी प्रकृति के दर्शन

रविवार, सितंबर 13, 2009





प्रकृति के एक निराली छटा ये भी है जहां एक ओर बारिश ने अपने रंग दिखाये तो ईर्ष्यालू इंद्रधनुष कहां पीछे रहने वाला था आखिर रंग दिखाना ही उसकी फितरत है....खूबसूरती की मिसाल

यार इस चीन का इलाज करो......

मंगलवार, सितंबर 01, 2009

पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से चीन की हरकतों में ईज़ाफ़ा हुआ है ,उसे देखकर लगता है कि हमारे देश को एक बार फिर युद्ध के लिये तैयार होना पड़ेगा। चीन की गतिविधियां दिनोदिन तेज़ होती जा रही है। बीते दिनों लद्दाख की सीमाओं पर चीनी हैलीकॉप्टर्स का विचरण करना इस बात को दर्शाता है कि दुश्मन देश इस बार पूरी तैयारी करके हमला करना चाहता है। हमारे सेनाप्रमुख इस बात को गंभीरता से ले रहे हैं या नहीं पर उनका ये कहना कि ये एक आम हरकत है, मेरे गले नहीं उतर रहा है। आपको बता दूं कि चीन ने न सिर्फ हवाई सीमाओं का उल्लंघन किया है, बल्कि हमारी सीमा के अंदर आकर खाने के पैकेट भी फेंके है। अब ये तो समझ ही गये होंगे आप कि खाने के पैकेट किसलिये फेंके। इसका एक कारण ये हो सकता है कि या तो उसने अपने लोगों तक खाना पहुंचाने के लिये वो पैकेट फेंके, दूसरा ये भी हो सकता है कि चीन ये तय करना चाह रहा हो कि युद्ध की स्थिति में वो यहां पर अपने सैनिकों तक खाना पहुंचा सकता है कि नहीं। पिछले कुछ महीनों से चीन की गतिविधियां तब संदिग्ध हो गयी थीं जब ये देश भारत की सीमाओं को लांघकर कई बार बार भारतीय सीमाओं में प्रवेश कर गया था। लेकिन मौके की नज़ाकत को समझकर सेना के कुछ कमांडर चीनी सेना से मिलने भी जा रहे हैं लेकिन इसका हल शायद ही निकले। क्योंकि चीन ने हर बार इन मुद्दों पर सीमा विवाद कहकर अपना पल्ला झाड़ा है। ये तो हम जानते है कि ताकत के मुकाबले चीन हमसे बहुत आगे है। इसलिये हमें अभी से संभलना होगा। चीन के अंदर भी गतिविधियां तेज़ हो गई हैं। भारतीय सीमा से मिलने वाले आपनी हर सीमा पर उसने भारी सेना तैनात कर दी गई है, हर सीमा पर तेजी से सामान पहुचाने के लिये बार्डर्स तक ट्रेनों का इंतज़ाम भी किया जाने लगा है, ये वो ट्रेन्स है जो आम ट्रेनों से काफी तेज़ चलती है। चीन हमेशा से ही भारत के लिये पाकिस्तान से बड़ा खतरा रहा है। क्योंकि वो परोक्ष रुप से हमेशा पाकिस्तान को मदद देता रहा है। चाहे वो तकनीकि हो या हथियार, उसने हमेशा भारत विरोधी गतिविधियों में पाकिस्तान का साथ देता रहा है। चीन पर किसी की नज़र नहीं पड़ रही है क्योंकि उसकी ताकत के बारे सबको पता है। इसलिये कोई भी उस पर यूंही इल्जाम नहीं लगा सकता है। पाकिस्तान पर सबकी नज़रें होती है क्योंकि वो प्रत्यक्ष रुप से ये करता आ रहा है। पाकिस्तान की आड़ में ये करना चीन के लिये फायदे का सौदा था। अब जब पाकिस्तान के अंदरुनी हालात कमज़ोर होने लगे हैं तो चीन के लिये ये मुश्किल होता जा रहा है कि भारत विरोधी कार्यों में वो पाकिस्तान की मदद ले सके तो इसीलिये वो अब सीधी चोट देने के मूड में है। आज के जैसे हालात है उसे देख कर ये कहा जा सकता है कि भारत को अपने पड़ोसियों से ही खतरा है। एक तरफ चीन है तो एक तरफ पाकिस्तान, एक तरफ बांग्लादेश है जो पाकिस्तान समर्थक है दूसरी तरफ नेपाल है जो सैनिक लड़ाई में अगर किसी देश का समर्थन नहीं दे सकता तो आर्थिक रुप से भारत को कमज़ोर बनाने में लगा हुआ है। नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र के पुत्र पारस के संबंध दाउद के गुर्गों से भी हैं जो भारत में नकली नोट का व्यापार करते थे। भारत का ये दोस्ती वाला रवैया हमेशा से ही भारत के पीठ में छुरा घुंपवाता रहा है। आज के हालात को देखते हुए कहा जा सकता है कि ये उसी तरह की गतिविधियां है जो पाकिस्तान कारगिल के वक्त करता रहा था। जब एक तरफ तो बातचीत का दौर जारी था तो दूसरी तरफ युद्ध की तैयारी चल रही थी। चीन इस बार पूरे युद्ध के मूड में है औऱ इस बार हमें तैयार रहना होगा। क्योंकि चीन की चाहत भी है युद्ध और मजबूरी भी। जिस तरह से चीन के आंतरिक हालात है उससे ये साफ है कि वो युद्ध ज़रुर करेगा। क्योंकि जनसंख्या की समस्या, नौकरियों की समस्या, रहने की समस्या से निजात पाने के लिये वो युद्ध ज़रुर करना चाहेगा, उसके लिये भारत ही उसका टारगेट है क्योंकि बाकियों से तो उसकी दोस्ती हो चुकी है, भारत का इस वक्त सबसे बड़ा दुश्मन है चीन.....

झुर्रियों के सहारे सुरक्षा !!!!

शुक्रवार, अगस्त 28, 2009

रात को अपने दोस्त के यहां से लौट रहा था। बाइक पर जा रहा था अपनी मस्ती में । मुझे याद आया कि एक तो सैलरी लेट आती है ,दूसरा पर्स में एक रुपया भी नहीं है तो क्यों न अपनी गुल्लक जैसी जमापूंजी से कुछ पैसे निकाल लिया जाये। पास के ही एटीएम गया... वहां देखा कि लाइन तो लंबी नहीं थी...पर लोग पैसे लेने के लिये काफी जल्दी मचा रहे थे। सुरक्षा के तैनात एटीएम का गार्ड अपना भोजन कर रहा था। मैने एक सभ्य आदमी की तरह लाइन में अपनी जगह ले ली। उस गार्ड की उम्र यही कोई पचपन के पास की रही होगी। दिन भर गर्मी में तपकर उसके कपड़ों से एक अजीब सी बदबू आ रही थी। मै उससे थोड़ा दूर हो गया.. वो अपना भोजन खाने मस्त था। दिन भर की भूख उस आदमी को कुछ सोचने ही नहीं दे रही थी। वो अपनी धुन में मस्त था। उसे किसी की कोई फिक्र नहीं थी। मैंने पैसे निकाले और अपनी घर की ओर जाने से पहले पास की दुकान से पोहा खरीदने के लिये रुका। दुकान की ओर जाते वक्त मेरी नजर पड़ी एक बूढे आदमी पर जो एक ज्वैलर्स की दुकान पर सोने की तैयारी कर रहा था। दिमाग में एक सवाल आया कि एक तो ये ज्वैलर्स की दुकान और ऊपर से ये गार्ड सोने की तैयारी कर रहा है, काहे का गार्ड है ये जो सोने जा रहा है। मैने सोचा कि आखिर इस उम्र में ये गार्ड भला कर भी क्या सकता है.. किसकी रक्षा कर सकेगा ये अच्छा है कि सो जाये। शायद वो रात भर जाग नहीं सकता। या कहूं कि जो ठीक से बैठ भी नहीं सकता वो कैसे किसी की सुरक्षा कैसे कर सकता हैं। उस वक्त उन दोनों जगहों के वृ्द्धों को देखकर मन दुखी हो गया। पता नहीं क्यों इस उम्र में उन बूढों को आराम करने के बजाय काम करना पड़ रहा है और वो भी सुरक्षा करने का ज़िम्मा उठाने का । और ज्वैलर्स की दुकान कुछ उन दुकानों में से होती हैं जो लुटेरों या चोरों का पसंदीदा होती है और बूढ़े हाथों में सुरक्षा की कमान होने से ये आसान शिकार बन जाती है। और इसी चक्कर में वृद्ध गार्ड्स को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। इनके हाथ में क्या है सिर्फ एक डंडा और शरीर में क्या है दिनभर की भूख और झुर्रियों से युक्त शरीर की थकान, बस। लेकिन आजकल सिर्फ यही नहीं लगभग हर जगह पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इन कमजोर कंधों में होती है। इन सिक्योरिटी गार्डस में से ज्यादातर वो होते है जो रिटायर्ड हो चुके होते है। ये लोग स्वाभिमानी है इसलिये हर वो काम करने को तैयार होते हैं जिनसे इनकी जीविका चल सके। लेकिन मन आज बहुत दुखी है.,,और सलाह है सरकार से कि इन वृद्ध लोगों के लिये कम से कम ऐसी व्यवस्था की जाये जहां पर इन्हे ऐसे काम मिले जिससे इन्हें अपनी जान से हाथ न धोना पड़े और साथ ही स्वाभिमान के साथ ये लोग अपने काम को अंजाम देने के बाद अपने कमाये पैसों से भोजन कर सकें और अपनी जीविका चला सकें। लेकिन पता नहीं इसका हल क्या है पर मेरी नज़र में तो इसका यही हल है। और कई वृद्धाश्रम इस काम को कर भी रहे हैं लेकिन आप भी जानते होंगे कि ये वृद्धाश्रम सिर्फ उन लोगों के लिये है जो अपने घरवालों के होते हुए भी वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर है। स्वाभिमानी बुज़ुर्ग जो वृद्धाश्रम में रहना पसंद नहीं करते और वहां पर जीवन नहीं काट सकते, साथ ही वो भी जो गरीब है औऱ उनके पास वृद्धाश्रम को देने के लिये पैसे नहीं है उनके लिये हमारी सरकार को कुछ करना चाहिये। पहला उनके रहने की व्यवस्था करनी चाहिये, दूसरा उनके जीविकोपार्जन की व्यवस्था करनी चाहिये ताकि ये लोग किसी पर बोझ न बनें, तीसरा आर्थिक तौर पर मदद किया जाये ताकि इन लोगों को मदद मिलती रहे। ये एक सुझाव है और एक अपील भी... पता नहीं इस लेख का कितना असर होगा पर... ब्लाग जगत में बहुत से लोगों के पास इसका जवाब होगा और अगर कोई है जो इसके बाबत कुछ कर सकता है तो कुछ करियेगा ज़रुर और या तो आप ही बतायें इसका हल क्या है ????

कौन कहता है..भारत टूट नहीं सकता ??????

गुरुवार, अगस्त 20, 2009



भारत के बारे हम लोगों में इतनी गलतफहमियां है हमारे मन में कि हमें लगता है कि भारत का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अक्सर आपने, मैने औऱ दूसरे लोगों ने सुना या कहा ज़रुर होगा कि हमारे देश का कभी कुछ बिगड़ सका...हमारे नेताओं के मुंह पर हर वक्त रहता है कि भारत पर कितने ही आक्रमणकारियों ने हमले किया लेकिन भारत का अस्तित्व आज भी है। उसका कुछ नहीं बिगड़ा। बचपन में किताबों में भी यहीं पढ़ा कि हमारे देश पर यूनानियों ने हमला किया, फिर उसके बाद तुर्क आक्रमणकारी आये, औऱ उसके बाद अंग्रेज आये। एक बात सबमे समान थी कि सभी लुटेरे थे। सभी भारत को लूटने के इरादे से ही आये थे। लेकिन हमने किताबों में ये भी पढ़ा कि हमारे भारत का कभी कुछ नहीं हुआ। मै तब सोचता था कि सम्राट अशोक जब राज करते थे तो इसी भारतवर्ष की हदें अफ़गानिस्तान, तक फैली हुइ थी। पाकिस्तान हो या बांग्लादेश, तिब्बत, भूटान, सभी देश उस वक्त भारतवर्ष कहे जाते थे। लेकिन क्या ये आज हमारे साथ है। नहीं है। क्यों नहीं है क्योंकि तरह तरह के आक्रमणकारी हमसे हमारी ही ज़मीन छीनकर ले गये है। हमारे खजानों का लूटा। मंदिरों को लूटा, मंदिरों को तोड़कर वहां अपने अपने धर्मस्थल बनाये। यहां तक सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को लूट लूट कर बिना परों वाली चिड़िया बनाकर छोड़ गये। और हम कहते है कि भारत का कभी कुछ नहीं हो सकता...कितने ही आक्रमणकारी आये और चले गये लेकिन कोई भी भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सका।।....
ये तो बात थी हमारे इतिहास की। लेकिन वर्तमान में भी हमारे नीति निर्माताओं ने भी किसी तरह की पहल नहीं की। इतिहास को तो ये कहकर हम अपना पीछा छुड़ा सकते हैं कि वो हमारा इतिहास था... लेकिन आज का क्या करेंगे। साठ साल पहले बांग्लादेश बना क्या कर लिया हमने....पाकिस्तान बना क्या कर लिया हमने.....चीन लगातार अपनी सीमायें बढ़ा रहा है यकीन ना हो अरुणांचल प्रदेश जाकर देख लीजिये। जहां लगातार उसकी सीमा बढ़ रही है। क्या कर रहा है भारत...सीमा इस कदर बढ़ा रहा है कि उसने अपनी अधिकार तक जमा लिया है उस पर... और उसे अपनी ज़मीन बताता है। कश्मीर में जो हो रहा है उस पर क्या कर लिया हमने। चलो पहले कुछ नहीं कर पाये अब क्या कर ले रहे हैं। लगातार उसने हमारे ज़मीन पर कब्जा कर रखा है। यहां तक की जिस सीमा को हमारे अंदर होना चाहिये वो हमारी नहीं है। हमारे प्यारे मानचित्र में हम जिस कश्मीर को देखते हैं...अगर किसी का बच्चा ये कहने लगे कि कश्मीर के उस हिस्से में जाना है तो शायद ही आप ले जा पायें। क्योंकि कि वो तो भारत में है ही नहीं। इसी कारण से भारत में अपनी सीमाओं में फेरबदल कर लिया है और उन सीमाओं से पहले ही अपने बार्डर बना लिये है। शायद इसलिये कि जितना है उसे बचा पायें पर पता नहीं बचा पायेगें या नहीं...क्योंकि घुसपैठ तो रोक नहीं पा रहे हैं ...। बांग्लादेश सीमा चलें तो वहां तो इस बात के जीते जागते उदाहरण हैं। बांग्लादेशी सीमा पर बसने वाले आधे से ज्यादा गांव और तीस हज़ार से ज्यादा बांग्लादेशी भारत की सीमा के अंदर रहते हैं। तो उसे भी हम भारत की ज़मीन न ही कहें तो अच्छा है क्यों कि उन ज़मीनों को आज तक खाली नहीं कराया जा सका है। हां बांग्लादेश से भारतीयों को जूते मारकर बाहर ज़रुर कर दिया गया है। वहां पर हिंदुओं का क्या हालत है ये आप तस्लीमा नसरीन की किताबों में पढ़ सकते है। और मै इसलिये नहीं कह रहा हूं कि वो हिंदुओं का समर्थन करती है बल्कि इसलिये क्योंकि हमारे भारत का ही मुस्लिम समाज उनसे नफरत करता है। सिर्फ इसलिये क्योंकि बांग्लादेश की उस हकीकत को उजागर करती है जिनका किसी को पता नही चलता । राजनैतिक स्तर पर सब ठीक दिखने वाली स्थिति अक्सर झूठी साबित होती है। तो उस सीमा पर भी भारतीयों का हक नहीं बचा है। अब बाकी सीमाओं का क्या बात करुं वहां तो पहले से ही आपस में ही नक्सलियों ने आतंक मचा रखा है। वहां की बात करना तो ठीक है ही नहीं । बात करते दक्षिण पूर्व की तो ये भारत का वो हाथ है जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता और वो दिन दूर नहीं है जब वो हाथ जो कि इस वक्त मानचित्र में काफी कमज़ोर दिखाई देता...औऱ कभी भी टूट सकता है। और ये हकीकत है कि अलगाववाद सबसे ज्यादा उन क्षेत्रों में ही फैला है। क्योंकि उस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है। तो कौन कहता है कि हमारे भारत का कभी कुछ नहीं बिगड़ सकता है क्योंकि कई आक्रमणकारी आये औऱ चले गये लेकिन आज भारत का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका...आपको पता नहीं हंसी आई या नहीं पर मुझे बहुत आती है। कमाल है भारतवर्ष और कमाल के लोग है यहां के....

मां चिंता मत करना मै ठीक हूं: आतंकी अजमल कसाब

शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

प्रिय मां
तुम चिंता मत करना मै ठीक हूं। यहां भारत में मेरे भाई लोग मेरी अच्छे से ख्याल रख रहे हैं। मेरी अच्छी ख़ातिरदारी हो रही है। कोई मुझे कुछ नहीं कहता है सब मुझसे अच्छा व्यवहार करते है। मां एक दिन तो मेरे ख़ातिरदारी करवाने की हद तोड़ दी मैने....मैने जेल के अधिकारियों से जेल का खाना नहीं मटन बिरयानी की मांगी पर जज नहीं माना नहीं तो मुझे वो मिल जाती...लेकिन चलो कोई बात नहीं बाकी सब चीज़े तो ठीक है..मुझे किताब मिलती है पढ़ने के लिये वो मेरा टाइम पास नहीं होता जेल में... मेरे रहने की व्यवस्था तो ठीक है लेकिन बाहर नहीं जाने देते यही ग़लत है यहां भारत में...लेकिन यहां मेरे कई दोस्त हो गये हैं जो अलग अलग जुर्म में यहां सज़ा काट रहे हैं..कोई अपनी बीवी के कत्ल में सज़ा काट रहा है तो कोई बलात्कार में जुर्म में लेकिन मज़ा है.. सब मेरे ही भाई है। हर कोई यहां मुझे बडे़ भाई की तरह मानता है क्योंकि मैने बड़ा काम किया था न इसलिये...मां तेरे बेटे ने तेरा और अपने देश का नाम रोशन किया है। लेकिन एक बात गलत है मेरे देश का नाम रोशन नहीं हो रहा है क्योंकि यहां पर तो हर कोई मान रहा है कि मै पाकिस्तानी हूं लेकिन मेरा अपना देश ही ये नहीं मान रहा है कि मै वहां का हूं ये बात रह रह कर मुझे खलती है। वहां का क्या हाल है मां मुझे पता चला है कि आईएसआई ने तुम्हें कहीं छुपा कर रखा है। चलो कोई बात नहीं मां ये तुम्हारी और मेरी सुरक्षा के लिये है मां थोड़ा कोऑपरेट करना उनसे...क्योंकि वो नहीं चाहते कि पाकिस्तान फंस जाये औऱ तुम्हे या मुझे कोई परेशानी न हो। मां तुम तो मुझे कुछ ज्यादा न खिला पाई लेकिन यहां भारत में मेरा वेट पांच किलो बढ़ गया है। मां तुझे तो पता था कि मुझे हार्निया है। लेकिन परेशान मत होना पाकिस्तान में तो मेरा इलाज नहीं हो पाता लेकिन यहां भारत में मेरा ठीक से इलाज चल रहा है और मेरी हालत में सुधार है। मां यहां साफ सुथरा खाना मिलता है..मेरे लिये अलग से खाना बनाने वाला आता है और वो यहीं रहता है..यहां मुझे खतरा है कि कहीं कोई मुझे ज़हर न दे दे खाने में...लेकिन तुम घबराओ मत यहां मैं हाईसिक्योरिटी में हूं मुझे कुछ नहीं होगा। मेरे ऊपर केस चल रहा है लेकिन परेशान मत होना मैं कभी न कभी छूट जाउंगा। यहां का कानून बहुत मददगार है हम जैसों को माफ कर देता है..तुम याद करो... कई अपने साथी पकड़े जाते है तो वो यहीं की जेलों में रहते हैं। बहुत से अपने भाई मिले हैं। मां विश्वास करना कसम से खा खा कर इतने मोटे हो रहे हैं कि बस पूछो मत। मां यहां पर आतंकी घटना वाले ही नहीं... नकली नोट में पकड़े गये..हथियार के साथ पकड़े गये..और आतंकी घटनाओं को अंजाम देने आये बहुत से अपने साथी यहां पर मिले वो सभी मुझसे मिल कर बहुत खुश हुए उनकी आंखों से आंसू आ गये। वो शाबासी दे रहे थे कि तुमने वो कर दिखाया जो हर कोई नहीं कर सकता है और जिसमें हम फेल हो गये थे । उसको तुमने कर दिखाया। मां यहां से मुझे सुनवाई के लिये कोर्ट में ले जाते हैं जज जी मिलने के लिये..बड़े मज़ाकिया है वो मां. अच्छे आदमी है। मै तो उनके साथ बहुत खेल करता हूं लेकिन वो उंची कुर्सी पर बैठते है न मां इसलिये कुछ कहते नहीं है। कभी कभी गुस्सा हो जाते हैं लेकिन चलो ठीक है इसी बहाने कुछ बोलते तो हैं वरना वहां तो सिर्फ वो दुष्ट वकील ही बोलता है.... कहता है कि उसके पास सबूत है कि मै आतंकवादी हूं। मां यहां पर आतंकवादी को गलत नजरों से देखा जाता है अपने देश की तरह नहीं कि हर मोहल्ले में तीन आतंकवादी है। लेकिन तुम चिंता मत करो मां यहां एक नेक बंदा भी वकील है जो कहता है कि वो मुझे बचा लेगा। उसने ही मुझे किताब दिलवाई थी। एक दिन तो मैने राखी बंधवाने की बात कही तो लेकिन कोई बांधने नहीं आया वो बताया है न कि यहां पर आतंकवादी को सही नहीं समझा जाता है। खैर तुम परेशान मत होना मुझे कुछ नहीं होगा मै कुछ सालों बाद छूट जाउंगा। मैंने कहा था न यहां का कानून बहुत मददगार है.. सख्त नहीं है अपने देश की तरह कि सरबजीत को बिना बात के भारतीय होने की वजह से पकड़ रखा है। ठीक है मां अब मैं सोने जा रहा हूं। तुम परेशान मत होना मै ठीक हूं। मै तुम्हे चिट्ठी लिखता रहूंगा। तुम अपना ख्याल रखना मै अपना ख्याल रखुंगा वैसे यहां मेरा ख्याल रखने के लिये बहुत से लोग हैं। खुदा हाफ़िज
तुम्हारा प्यार आतंकी बेटा
आमिर अजमल कसाब

धर्म संबंधी सवालों के जवाब मिलेंगे ??????

सोमवार, अगस्त 10, 2009

सुबह सुबह सोकर उठा फिर सोचा कि चलो रात अच्छी कटी और एक पूरे चौबीस घंटे शांति के साथ कटे। सुबह उठकर मैने सोचा कि क्यों न अपने ब्लाग को खोलें देखें कि क्या हो रहा है ब्लाग जगत में। अपने ब्लाग पर एक लेख पर एक टिप्पणी पढ़कर दिमाग एकदम से चकरायमान हो गया। मै पहले आपके एक बात बता दूं कि आजकल ब्लाग पर ऐसे लोगों को कमेंट आते है जो ब्लाग पढ़कर अपने टिप्पणी नहीं करते है। किसी और पोस्ट को पढ़कर किसी और मामले पर टिप्पणी चिपका देतें है। हां तो मै आपको बता रहा थी मेरे एक ब्लाग पर एक पोस्ट पर टिप्पणी देखकर मै सन्न रह गया । किसी ने लिखा था कि....

भाई शशाक जी मौहल्ला पर आपका एक पुराना लेख पढऩे को मिला। इसमें आपने धर्म बदलने संबंधी मुद्दे पर कई बातें लिखी। मेरे ब्लॉग पर लगभग सौ लोगों के बारे में है जो धर्म बदलकर मुस्लिम हो गए। क्या आप उनको पढऩा नहीं चाहेंगे कि आखिर यह मुस्लिम क्यों हो गए? आपको अपने कई सवालों के जवाब मिलेंगे।

तो ये थी टिप्पणी...धर्म पर चर्चा हो तो मोहल्ला सबसे फेवरेट जगह बनती जा रही है। चाहे धर्म का प्रचार हो या बबाली लेख। लेकिन एक बात जो मेरे समझ में नहीं आई कि क्यों ये भाई साहब मुझे समझा रहे है कि धर्म बदल लो। वो ये भी कह रहे हैं सौ से ज्यादा लोग घर्म बदलकर मुस्लिम बन गये..... वो अब ये चाहते है कि मै भी साइट पर जाकर मुस्लिम बनने के फायदे खोजूं और मुसलमान बन जाउं।कमाल है इन्हे लगता है कि मै ऐसा करुंगा???? मै आपने ब्लागर भाईयों से पूछना चाहुंगा कि मोहल्ला में ये क्या हो रहा है। आखिर ये जनाब किन सवालों के जवाब देना चाह रहे है। क्या कहना चाह रहे थे ये मेरे मित्र....कहीं इन्हे ये तो नहीं लग रहा कि मुझे अपनी बातों के जाल में फंसा कर मेरा धर्म परिवर्तन करवा लेंगे। तो ऐसे लोगों कों मेरी सलाह कि जैसा कि मेरा पेशा है उसी को देखकर समझ लेना चाहिये एक पत्रकार को समझाना दुनिया का सबसे बड़ा काम होता है। क्योकि उसके पास ढेरों तर्क होते है। जिससे समाने वाला फंस जाता है। क्योंकि यही तो उसका काम है। रही सौ लोगों वाली बात तो मै दो सौ से ज्यादा लोगों को जानता हूं जो मेरी तरह की सोच रखते हैं। हमारी कौम ही ऐसी है पत्रकार बिरादरी ऐसी ही होती है यार....एक बात और मेरे दिमाग में खटकी है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने ब्लाग या डॉट काम का प्रचार करने के लिये ऐसा किया गया हो। अभी तक मैने उस साइट या ब्लाग को पढ़ा तो नहीं है लेकिन ये एक शुरुआत है जहां से मै उस साइट पर जाकर इस बेकार की बात और उन तथाकथित सौ लोगों से मिलकर देखुं कि वो बेचारे मुस्लिम बनकर क्यों जी रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया उनके जीवन में कि उन्हे लगा कि धर्म परिवर्तन ही उनकी परेशानियों का हल है। या धर्म परिवर्तन करवाकर उनकी परेशानियां ( हो सकता है कि धन संबंधी परेशानिया, जैसा कि अक्सर होता है) सच में हल तो नहीं हो गयी। भाई साहब ने तो मुझे ऑफऱ किया है कि उनके ब्लाग पर जाकर देखुं कि कौन है वो सौ लोग.....मै इस मुद्दे पर आगे लिखता रहुंगा हर बार जिन लोगों की कहानी मै पढ़ता रहुंगा। पर मेरी एक दिली ख्वाहिश है कि मौहल्ला पर कृपया एक बोर्ड ज़रुर लगायें कि यहां धर्म का प्रचार करना मना है.....

बच्चे ने पूछा जितनी बहन होती है उतनी राखी बांधते है क्या?

गुरुवार, अगस्त 06, 2009

मै रहने वाला उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर शहर का हूं जो कि एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है ...पता नहीं है या नहीं... पर ज्यादातर लोग यही कहते हैं। क्योंकि मै नोएडा़ में रहता हूं तो पता नहीं चलता क्या हो रहा है वहां । कम ही आता हूं यहां पर, इत्तेफाक से किन्ही कारणों से मै इस रक्षाबंधन के मौके पर घर पर ही मौजूद था। इसी बीच मुझे याद आया कि क्यों ने इसी बहाने कुछ काम कर लिया जाये। तो सोचा कि अपनी बाइक का लॉक जो कि कई दिनों से खराब पड़ा था उसे बनवा लिया जाये। यहीं सोचकर अपने घर से मै मुज़फ्फरनगर की मार्केट की तरफ निकला मौसम काफी अच्छा था औऱ सड़क के दोनों तरफ ऐसा लग रहा था कि बरसात के पानी से सारे पेड़ भीगे हुए हों, शायद यहां बारिश हुई है, मै अपनी बाइक से शहर की तरफ चला जा रहा था। रास्ते में मिलने वाली नहरें पूरी तरह भरी पड़ी थी जिसका फायदा वहां के गांव वाले उठा रहे थे, बहुत से छोटे बच्चे नहरों में तैराकी सीख रहे थे या फिर अठखेलिया करके नहर में बहने वाले पानी के मज़े ले रहे थे। गर्मी को दूर करने के लिये बरसात ने बहुत दिनों बाद अपने रंग दिखाये थे जिसके मज़े ये बच्चे लूट रहे थे। मै अपनी मस्ती में मस्त बाइक पर हवाओं के थपेड़ों का मज़ा लेते हुए आगे बढ़ता जा रहा था। शहर पहुंचा, वहा पर कोई ओवर ब्रिज बन रहा था तो रास्तों की हालत काफी खराब थी किसी तरह मैं रेलवे ट्रैक के पास तक पहुंचा जिसके पार मुझे जाना था लेकिन फिर समस्या खड़ी हो गयी, लेकिन मैने हार नहीं मानी मै फिर भी आगे बढ़ा औऱ बड़ी मेहनत के बाद रेलवे ट्रैक पार किया। पार करने के बाद सबसे पहले मै गया सर्विस स्टेशन वहां पता लगा कि ये समस्या उनके बस की बात नहीं हैं। उन्होने मुझे बताया कि मै मीनाक्षी पिक्चर हाल के पास जाकर वहां पर जो सर्विस की दुकाने हैं वहा ठीक करवा लूं। मै किसी तरह वहां पहुचा तो एक दुकान पर बाइक खड़ी की, बाइक खड़ी करते ही एक छोटा बच्चा उम्र यही कोई दस साल ही रही होगी, सांवला रंग, एक शर्ट औऱ एक फुल पैंट पहन रखी थी, शर्ट औऱ पैंट दोनो पर ग्रीस के दाग, ऐसे लग रहा था कि कई दिनों से ये शर्ट धुली नहीं है, औऱ अक्सर आपने देखा होगा कि बाइक सर्विस वाले या कार सर्विस वालों के कपड़ो पर अगर ग्रीस के दाग न हो तो समझो कि वो अच्छा मैकेनिक नहीं होगा। वो लड़का काफी देर तक मेरी बाइक पर अपनी बुद्धि लगाता रहा फिर जाकर अपने दुकान मालिक को सारी कहानी बता दी उसके मालिक ने उससे पता नहीं क्या कहा, वो मेरे पास आकर बोला कि भाईजान अभी सही करता हूं आपकी मोटरसाइकल,....मैने कहा ठीक है...वो मेरे पास खड़ा हो गया....तभी मैने पूछा कि कौन सही करेगा तुम या कोई और....उसने कहां शहबा़ज़ भाई... मैने कहा ठीक है।.....वो बहुत देर तक मेरे हाथों पर बंधी राखियां देखता रहा। मैने कहा कि क्या हुआ,..उसने पूछा भाईजान आज राखी है क्या....मैने कहा हां आज रक्षाबंधन है...उसके भाईजान कहने से पहले ही मुझे अंदाज़ा हो गया था कि हो न हो ये किसी मुस्लिम समाज का लड़का है। मैने उससे पूछा क्यों क्या हुआ। उसने कहा कुछ नहीं आपने दो राखी बांधी है आपकी दो बहनें हैं क्या? मैने कहां बहनें तो बहुत है लेकिन जिसकी राखी आयी थी उसकी बांध ली....बाकी जब आयेगी तब बाधुंगा। उसने कहा कि जितनी बहनें होती है उतनी राखी बांधते है क्या? मैने कहा हां । उसने फिर पूछा कि अगर किसी के बहने न हो वो क्या करता है आज के दिन... मैने कहा कि किसी पड़ोस की किसी लड़की को बहन मानकर उससे राखी बंधवा सकता है। उसने कहा सच में ऐसा करते हैं। क्यों बांधते है आप लोग राखी। मैने कहा कि ये त्योहार है औऱ इस दिन सभी भाई अपनी बहन की रक्षा करने की कसम खाते हैं। पहले तो उसकी समझ में मेरी बात नहीं आई मैने कहा कि उसे उम्र भर मदद करने का वादा करते हैं चाहे जो हो जाये। तब उसकी समझ में मेरी बात आई...पर मेरी तो बहन नहीं है तो क्या मै भी किसी से भी राखी बंधवा सकता हूं... मैने कहा क्यों नहीं....फिर उसने कहा कि नहीं ..कहीं मेरे अब्बू मुझे मारेंगे तो नहीं। मैने कहा कि पूछ कर बंधवाना....इतना सुनकर उसे थोड़ी आशा बंधी। और तब तक उसका असली मैकेनिक आ गया औऱ उसे कुछ और काम पकड़ा दिया और मै सोचता रहा कि अब पता नहीं उसके अब्बू क्या कहेंगें। चिंता उसे होगी या नहीं, उस बच्चे को ये याद रहेगा या नहीं.... पर मुझे लगता रहा कि उसके अब्बू क्या कहेंगे। क्योंकि उस दस साल के लड़के के दिमाग में कुछ और नहीं था...वो तो बस किसी बहन की रक्षा के लिये इसे पहना जाता था। लेकिन अब उसके अब्बू उसे क्या शिक्षा देते हैं ये उन पर निर्भर करता है, चाहे वो उसे धर्म का पाठ पढाकर उसकी सोच को बदल सकते हैं...और उसे धर्म का अंधा पैरोकार बना सकते हैं या फिर उसे मानवता का पाठ पढ़ाकर उसे एक अच्छी ज़िदगी दे सकते हैं। बस मै यही सोचता रहा पता नहीं क्या हुआ होगा उसके अब्बू उससे क्या कहेंगे??

भाई साहब मै अब बस में सफ़र नहीं करता??

मै एक दिन बाइक से अपने ऑफिस की ओर जा रहा था। कानों में हेडफोन लगाये, आखों पर काला चश्मा, सफेद रंग की टी शर्ट, और गले से बैग लटकाये अपनी मस्ती में मस्त होकर, नोएडा के 12-22 चौराहे पर रुका रेड लाइट की वजह से। देखा कि एक आदमी मेरे पास आया कुछ बोलने लगा। मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, अरे मैने तो कानों में हेड फोन जो डाल रखा था, मैने उससे इशारे से रुकने को कहा फिर कानों से हेडफोन निकाला औऱ फिर पूछा कि क्या हो गया। उसने कहा कि भाईसाहब मुझे लेबर चौक तक जाना है क्या मुझे छोड़ दोगे। मैने ऊपर से नीचे तक उसे ध्यान से देखा देखने में तो ठीक लग रहा था, देख कर लग रहा थी कि किसी ऑफिस में काम करता है। मैने उससे कहा कि चलो छोड़ दूंगा, बैठ जाओ। वो फिर तुरंत बैठ गया। ग्रीन लाइट होते ही मैने बाइक स्टार्ट की औऱ आगे बढ़ गया, थोड़ा आगे जाकर मैने कौतूहलवश पूछ लिया, क्या हुआ बस नहीं आ रही है क्या ?.. उसने कहा आ रही है लेकिन मै जाना नहीं चाहता था । मैने पूछा क्यों क्या हुआ पैसे खत्म हो गये हैं क्या...तो बोला अरे नहीं भाई साहब ग़ाज़ियाबाद जाने वाली बसें जाने लायक थोड़े ही होती हैं, मैने पूछा क्यों, उसने कहा कि एक बस ड्राइवर के साथ बदमाश टाइप के चार क्लीनर होते हैं पैसे तो ज्यादा लेते ही है साथ ही अगर आपसे बद्तमीजी करने से भी पीछे नही हटते हैं। और अगर कहीं आपकी भाषा में बिहारी टच देख लें तो समझो कि आपको बेवकूफ बनाने में देर नहीं करेंगे या दादागीरी दिखायेगें। मैने पूछा क्यों आपके साथ कुछ हो गया है क्या। उसने कहा हां अभी कल ही मैं जा रहा था तो मुझसे लेबर चौक के ही दस रुपये मांगने लगा, मैने कहा कि थोड़ी ही दूर है तो इतने क्यों उसने कहा कि कहां से आया है बे, मैने कहा कि 12-22 से, तो वो बोला अपना गांव बता बे बिहारी, मैने कहा कि आपको क्या करना तो उसने कहा कि जहां से आया है वहां इतनी दूर के उतने लगते होंगे जितने तू दे रहा है। यहां नहीं लगते । मैने कहा इतने नहीं दूंगा तो उसने कहा कि यहीं उतर जा फिर, काफी मनाने पर भी नहीं माना तो उसने मुझे बिना बस रोके धीमे करवाके नीचे धक्का दे दिया मुझे कुछ चोटें आई लेकिन चलो बच तो गया उनसे। मैने तो सुना है कि यहां इतनी सी बात में गोली तक मार देते हैं। मै हंसा औऱ बोला हो सकता है भाई मैने तो नहीं सुना आज तक ऐसा। उसने कहा कि हां भाई साहब होता है। तो फिर मैने बोला कि यार आज तक तो मैने सिर्फ ब्लूलाइन बसों के लिये ही ऐसा सोचता था कि उसमें गुंडागर्दी होती है, इधर की बसों के बारे में तो नहीं सुना आज तक। अब क्या बताऊं सर मैने तो झेला है इसलिये नहीं जाता बसों से। तो क्या हुआ टैम्पो से चले जाया करो, अरे नहीं भाई साहब उसमें तो और भी बुरा हाल है। मैने कहा क्यों उसमें क्या हो गया अब क्या उसमें भी आपके साथ ऐसा ही हो गया क्या ? अरे नहीं उसमें से तो मौत से वापस आया हूं.... कैसे ? क्या बताऊं सर उसका ड्राइवर तीन पहियों को इतनी तेज़ी से चला रहा था कि लग रहा था कि अब गिरा की तब गिरा, मै किसी तरह राम राम जपकर उतरा.... आगे देखा कि मेरे सामने फिर जैसे ही वो टैम्पो आगे बढ़ा कि मिट्टी में फिसलकर पलट गया ज्यादातर लोगों को चोटे आईं। अब आप ही बताईये कि कैसे जाये आदमी अपने काम पर। इतने में लेबर चौक आ गया वो आदमी उतर गया। फिर मुझे याद आया कि यार उसका नाम तो पूछ लिया होता। लेकिन फिर सोचा कि चलो क्या फर्क पड़ता है हर रोज कोई न कोई मिल जाया करता है कहां तक सबके नाम रटता फिरुं, लेकिन समस्या विकराल है, अगर मेरे पास बाइक न होती तो मेरी तो हर रोज किसी बस या ऑटो चालक से लड़ाई होती। एक आम आदमी जिसको सिर्फ इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर भरोसा है वो कैसे इनमें सफर करते होगें जिनके पास अपना वाहन है वो लोग इसका सिर्फ अंदाज़ा लगा सकते हैं। हालात ये है लेकिन फिर अक्सर टीवी पर औऱ कई सरकारी प्रचार कर लोग सलाह देते है कि प्रदूषण कम करना हो या ईंधन की बचत करनी हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें या शेयर करके आये जायें। डर जाता हूं कि कहीं ऐसा कोई कानून आ जायेगा तो फिर इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट वालों की तो दादागीरी कैसे झेल पाउंगा। क्योंकि उस वक्त कोई और चारा नहीं रहेगा। और ये मुद्दा अभी किसी की नज़रों में भी नहीं है। लेकिन इस समस्या से हर कोई परेशान है, कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता तो कोई इस बात को छोड़कर अपने राग में लग जाता है।

मायावती का पूरक बजट, मै हूं हिमायती!!!!!

मंगलवार, अगस्त 04, 2009

उत्तर प्रदेश की या तो किस्मत खराब है या तो यहां के नेता ज़रुरत से ज्यादा ही स्याणे हो गये हैं, या ये भी हो सकता है कि दोनों ही हो। जिस तरह का पूरक बजट आया है उसे देखकर लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के 47 से ज्यादा ज़िले सूखाग्रस्त हुये ही न हो। प्रदेश में 47 ज़िले सूखा ग्रस्त घोषित हो चुके हैं लेकिन इस बजट को देखकर लोगों को ये लग रहा होगा प्रदेश सूखाग्रस्त नहीं मूर्तित्रस्त है। जिस कारण यहां हर रोज़ कभी हाथी तो कभी सुश्री मायावती अपनी औऱ साथ में उनके गुरु काँशीराम की मूर्तियां लगवाई जा रही हैं। आपको बता दूं कि मूर्ति में होने वाला खर्च है लगभग 512 करोड़ से ज्यादा लेकिन आपको ये जानकर औऱ ज्यादा शर्म आयेगी कि सूखाग्रस्त ज़िलों के लिये सिर्फ 250 करोड़ रुपये खर्च का बजट लाया गया है। शर्म इसलिये कि यार हमने ही तो चुना है मायावती को। पता नहीं खुद ने या किसी और ने लेकिन वोट तो हमें ही देने होते हैं। बड़ा संकट खड़ा हो जाता है जब वोटिंग का समय आता है। समझ में ही नहीं आता है कि किसे वोट दें... उस वक्त तो सभी एकदम देवता स्वरुप नज़र आते है लेकिन असली रंग दिखता है कुछ समय सत्ता में बीत जाने पर, जब पता चलता है कि घोटाले में हर किसी का नाम आया। तो फिर यूपी के लोगों तैयार हो जाओ, इस लेख में दो बातों पर ज़ोर दूंगा कि एक तो मायावती के मज़ेदार औऱ लोगों को बेवकूफ बनाने वाले पूरक बजट पर.....दूसरा क्या इस वक्त उनके अलावा कोई विकल्प है आपके पास हाहाहा। जी पहले मुद्दा मायावती के पूरक बजट पर। आपको पता है उत्तर प्रदेश के लोगों को विकास नहीं पार्क चाहिये, आप कहेंगे कि क्या बात कर रहे हो यार पार्क ज्यादा ज़रुरी है या बिजली... तो मै कहूंगा कि पार्क अरे बच्चों के लिये पार्क से ज्यादा सही जगह कुछ हो सकती है ? फिर आप कहेंगे कि पार्क से ज्यादा जरुरी है शिक्षा व्यवस्था पर खर्च ताकि बच्चों के लिये पढा़ई और सस्ती हो जाये, ज्यादा से ज्यादा बच्चे पढ़ सकेंगें। लेकिन फिर भी सिर्फ मै ही नहीं इस बार तो सरकार भी कह रही है कि लोगों के लिये पार्क औऱ मूर्तियां ज्यादा ज़रुरी है। विधानसभा में इस बार 75 अरब 60 करोड़ का पूरक बजट पेश किया गया। इसमें राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि से खर्च के लिये मात्र 250 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे है। एक और खास बात कि राजधानी के लोगों के लिये एक खुशी की खबर है कि राजधानी के विकास में सौ करोड़ रुपये लगाये जायेंगे पता नहीं इतने खर्च होंगे कि नहीं पर पास तो हुए हैं। अब ये मत कहियेगा कि यार मेरे यहां कि नाली पता नहीं कब ठीक होगी, घर के बाहर की सड़क कब बनेगी या पता नहीं कूड़ा उठाने वाले कब आयेंगे बदबू से घर भर गया है मच्छर बहुत हो रहे है छिड़काव कब होगा यार। फिकर नॉट बजट पास हो गया सब हो जायेगा। कोई ये तो नहीं कह रहा है न पिछली बार भी विकास के नाम पर बहुत पैसे आये थे तब तो कुछ नहीं हुआ। बड़ी दिक्कत हो जाती है जब ऐसे सवाल आते हैं तो। एक और खुश खबरी पूरे प्रदेश के लोगों के लिये, अरे बता रहा हूं यार परेशान न हो। पता है कि इस बार मूर्तियों और पार्कों के लिये साढ़े पांच अरब रुपये से अधिक की व्यवस्था की गई है। कहीं से आवाज आई कि क्यों यार बिजली बहुत दिनों से नहीं आ है। क्या हुआ, कुछ नहीं यार जो लकड़ी की खम्भा लगा था आंधी में टूट गया है इस वजह से बिजली नही आ रही है। तो क्या शिकायत नहीं की क्या। की थी यार कहा तो था कि आयेगा ठीक करने.. लेकिन आया नहीं। मै बोला कि ठीक ही तो है यार सरकार पार्क काहे के लिये बनवा रही है बिजली नही आ रही है बिजली नहीं आ रही है.. जब देखो तब रोना रोते हो यार जाओ पार्कों में सो जाओ चबड़ चबड़ न करो। कोई बोला कि यार बरसात नहीं हुई मेरे खेत तो धूप में जल गये... सारी फसल बर्बाद हो गई, अब क्या करें पता नहीं सरकार कुछ करेगी या नही, मै बोला अरे कर तो रही है 250 करोड़ रुपये पास तो कर दिये है जाओ मदद मिल जायेगी। पर कैसे होगा पूरे इतने ज़िले है उनमें से 47 ज़िले सूखाग्रस्त हैं.. ऐसे में कितनों को मिलेगी मदद। मै बोला देखो भइया कम कम मत करो पहले जाओ पहले पाओ...चले जाना और हां कुछ पैसे वहां के अधिकारी को खिला देने हो जायेगा। वो बोला कि अबे लिखाड़ तूझे नहीं लगता कि जब इतने कम पैसों में सबका तो नहीं हो पायेगा, मूर्ति पर ज्यादा खर्च क्यों करें... क्यों न किसानों पर खर्च करें। मै बोला चुप कर सरकार तेरी है या मायावती की। खर्च के लिये बहाने कौन लायेगा तू कि सुश्री मायावती, वो बोला मायावती तो मै बोला तो फिर चल अपने से मतलब रख। बड़ा आया सुझाव लेकर। मायावती के पास कम है सुझाव वाले जो तू भी नया सुझाव लेकर पहुंचेगा। उनकी सरकार उनका पैसा जहां चाहे वहां खर्च करें तुझे क्या। कोई बोला कि विकास के नाम पर अक्सर लखनऊ को ही क्यों याद किया जाता है। प्रदेश मै और भी तो कई गांव व शहर हैं। मै बोला अबे वो राजधानी है बोले तो पहचान अपने प्रदेश की। और शहरों को विकास की क्या ज़रुरत है वो तो शहर है, और गांवों को गांव ही रहने दो नहीं तो अपने बच्चों को गांव कैसे दिखाओगे। मिट्टी से कैसे जोड़ोगे। हमने सुना है कि मायावती जी एक नया हेलीकॉप्टर खरीद रही हैं। तुम बे हमेशा मायावती के पीछे ही पड़े रहते हो। क्या चक्कर है ? अब क्या वो सड़क मार्ग से जायें कहीं... पुराना वाला खराब हो रहा है, तो नया तो चाहिये ही न। कितने का आयेगा हेलीकॉप्टर, यही आयेगा कुछ नब्बे लाख के आसपास का, क्यों तुम्हें कैसे पता कि उतने का आयेगा। अरे भाई पिछली बार मैने ही तो मंगवाया था। अरे हां लिखाड़ भईया हमने भी देखा था एक रात आपके पास बहुत पैसा आ गया था तो अगले दिने आपके घर के नीचे होंडा सिटी आ गई थी। ओए कौन बोला कौन बोला वो हमारी नहीं थी गिफ्ट में मिली थी। हेलीकॉप्टर बनाने वालों ने दी थी। लिखाड़ भईया हमने सुना है कि अब तो न्यायाधीशों के लिये भी होंडा सिटी कार ही खरीदी जा रही है, पिछली कहां गई, पुरानी हो गयी है तो नयी तो चाहिये ही। और इतने मामले चल रहे हैं कि न्यायाधीशों से जानपहचान तो बना के रखनी पड़ेगी ही। अब होंडा देकर अपनी संबंध मजबूत किये जा रहे है। तुम लोग भी न बस पीछे ही पड़ जाते हो। आपसी रिश्ते मजबूत करने से ही आगे काम बनता है। इतना कहकर सभी लोग चले गये अपने अपने घर ....और भी बहुत कुछ है लेकिन यहां पर यही खत्म कर रहा हूं क्यों कि लोगों को इसे जानकर ही बोरियत महसूस होने लगी है क्यों कि उनके लिये सिर्फ बिजली पानी, सड़क के अलावा कुछ सूझता ही नहीं है। बहुत सोच लिया तो चिकित्सा सुविधाओं के बारे ये अलग बात है कि इसमें कुछ नही हैं इस बार। कुछ लोग कहेंगे कि शिक्षा भी तो एक मुद्दा है, तो भाई साहब शिक्षा कब से मु्द्दा हो गया, हममें से कितनो के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। हम हर वो सच जानते हैं जो हम जानना चाहते हैं लेकिन उस वक्त हमें उस बात के जवाब का ख्याल ही नहीं आता क्योंकि सवालों में इतने उलझा जाते है कि जवाब ढूढे नहीं मिलता। ठीक इसी तरह हम जानते है कि सरकारी स्कूलों का क्या स्तर है तो कोई नहीं चाहता कि उसमें अपने बच्चों को पढ़ाये। और जो लोग पढ़ाते है वो उतने में ही खुश हैं। इन सभी चीज़ो के लिए अगर कोई दोषी है तो वो हम हैं क्यों हम है इसका जवाब भी हमारे अंदर है बस उसको ढूढना ज़रुरी है। रही बात इसके विकल्प की तो जब दिमाग में कुछ विकल्प आयेगा तो मै आपको बताउंगा नहीं तो आपके दिमाग में आये तो मुझे ज़रुर बताईगा।

जिस देश में गांधी रहता था !!!!

शुक्रवार, जुलाई 31, 2009

आज कई दिनों बाद महात्मा गांधी की याद आई है। उन्होंने बहुत किया है हमारे देश को आज़ाद कराने के लिए। लेकिन यार सोचता हूं कि हम क्या कर रहे है। देश क्या कर रहा है। वो नेता क्या कर रहे है जिनके ऑफिसों में महात्मा गांधी की तस्वीरें धूल खा रही हैं। कुछ भी कहने से पहले कुछ बातें कहना चाहता हूं या कहूं कि कुछ याद दिलाना चाहता हूं और साथ में ये उन भारतीयों के लिए शर्म से भरी जानकारी भी हो सकती है जो देश के लिए कुछ भी करने का दम्भ भरते हैं। दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिस घर में तीन साल रहे अब उसकी मालकिन उसे नीलाम कर रही है। हैरत की बात यह है कि भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति ने इसे खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। जोहान्सबर्ग के उत्तर में बसा हुए ऑरचर्ड कस्बे की एक गली में बने इस मकान का डिजाइन गांधी के करीबी रहे वास्तुकार हर्मेन केलेनबैक ने तैयार किया था। बापू इस मकान में 1908 से 1911 तक केलेनबैक के साथ रहे थे। 25 साल से इस घर की मालिक रही नैंसी बाल इसे बेचकर केप टाउन में सैटल होना चाहती हैं। हालांकि उसने इस घर की कीमत अभी तक नहीं लगाई है। अब बारी आ रही है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा दिए गए उपहारों की नीलामी की । महात्मा गांधी ने अपनी आइरिश मित्र एम्मा हार्कर को उपहारस्वरूप भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा भेंट की थी। अब इस उपहार की बोली आठ सिंतबर को लगेगी। एशियाई कला के बोनहैम्स सेल में शामिल 13 इंच की इस प्रतिमा की कीमत लगभग चार लाख रुपये आंकी जा रही है। इस महीने के 14 जुलाई को गांधीजी के हस्ताक्षरित तीन पत्रों की नीलामी 4,750 पाउंड [लगभग तीन लाख अस्सी हजार रुपये] में हुई थी। जबकि उनके हाथ का बुना और हस्ताक्षर किया खादी का कपड़ा 2,215 पाउंड में बिका। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में महात्मा गांधी से जुड़े पत्र, हस्ताक्षरित पोस्टकार्ड तथा उनका बुना हुआ खादी का कपड़ा 9266 पाउंड में नीलाम हो गए।‘सूदबे’ कंपनी द्वारा आयोजित इस नीलामी में महात्मा गांधी के मौलाना अब्दुल बारी को उर्दू में लिखे तीन पत्र शामिल थे। इन पत्रों की कीमत 2500 से 3000 पाउंड आंकी गई थी, लेकिन टेलीफोन पर लगी बोली में इन पत्रों को 4892 पाउंड में नीलाम किया गया। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ी चीजों के मौजूदा मालिक जेम्स ओटिस ने उन वस्तुओं की विवादास्पद नीलामी को रद्द करने और उन्हें भारत को दान करने पर सैद्धांतिक सहमति दी है लेकिन आसार कम ही है। ओटिस ने कहा है कि न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास में हुई बातचीत के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी का चश्मा, चप्पलें तथा अन्य चीजों को इस शर्त पर भारत को दान करने पर रजामंदी दी है कि भारत गरीबों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च में बढ़ोत्तरी करेगा और सौंपे गए स्मृति चिन्हों को अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में रखेगा। चलों इसी बहाने बापू अपनी चीज़ो से भी कई लोगों का भला कर सकेंगे। लेकिन ऐसी हुआ नहीं हमारी सरकार अरे जिसे हमने वोट देकर दुबारा जिताया है उसने स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च बाढाने की शर्त ये कह कर नहीं मानी कि ये तो ब्लैकमेलिंग है। कमाल है हमारे नेताओं को उस वक्त ब्लैकमेलिंग ऩज़र नहीं आई जब प्लेने हाईजैक करके आतंकवादियों ने खूंखार आतंकवादी छुड़वाये थे। आज जब लोगों का भला होने की शर्त है तो ब्लैकमेलिंग वाह भाई हमारा भारत महान और जिसके नेता है इसके भगवान। हमारी वही सरकार जिसका गठन गांधी जी ने ही किया थी उसको इन नीलामियों से कोई लेना देना नहीं है। उल्टे कस्टम विभाग ने नीलामी में खरीद करने वाले विजय माल्या अरे वही जो किंगफिशर के मालिक है और ज्यादातर सुंदरियों के साथ दिखाई देते है, को नोटिस दे दिया है कि वे गांधी जी की घड़ी और चप्पलों पर 15 प्रतिशत यानी लगभग एक करोड़ रुपए का टैक्स दें। मज़े की बात तो ये है कि ये विभाग प्रधानमंत्री के अधीन आता है। विदेश व्यापार महानिदेशालय ने विजय माल्या से पूछा है कि आपने इन चीजों के आयात का लाइसेंस क्यों नहीं लिया था? पता नहीं शर्म से सिर झुकाऊ या फिर हंसू इन नेताओं और निदेशालयों पर। विजय माल्या की ओर से जब सरकार से पूछताछ की गई तो सरकार ने कहा कि उन्हें किसी भी किस्म की रियायत नहीं दी जा सकती क्योंकि कला और दुर्लभ वस्तुओं के आयात के लिए 1972 में एक विशेष कानून बना है। ये कानून सब पर लागू होता है। हां कानूनी पेंच है जिससे हम और आप अक्सर डर जाया करते हैं। दूसरा कमाल कहूं या नेताओं की बेवकूफी कि ये कानून जेम्स ओटिस पर लागू नहीं हुआ था जो 1972 के बाद गांधी जी की ये विरासतें भारत से एक फिल्म बनाने के बहाने ले गये थे। उसी ने गांधी जी की विरासत से नौ करोड़ रुपए कमाए हैं। माल्या ने टीपू सुल्तान की तलवार भी नीलामी में खरीदी थी और उसे सरकारी संग्रहालय को सौप दिया था। अमेरिका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पांच स्मृति चिन्हों की नीलामी हुई..जिसमें बापू का चश्मा, एक जोड़ा चप्पल, उनकी जेनिथ पाकेट घड़ी, एक तश्तरी और एक प्लेट शामिल थी। देश के जाने माने उघोगपति विजय माल्या ने इन्हें करीब 18 लाख अमेरिका डॉलर( करीब नौ करोड रुपए) में खरीद लिया । ऐसा नहीं है कि नौ करोड़ रुपए कोई बहुत बड़ी रकम है। भारत जैसे विशाल देश में इस रकम को चुका देने वाले लाखों की तादाद में होंगे। लेकिन ये काम किया पेशे से शराब बनाने वाले विजय माल्या ने दिखाया। जी हां शराब जिसका गांधीजी जीवन भर विरोध करते रहे। बापू की विरासत को बचाने के लिए एक ऐसा शख्स सामने आया....जो बापू के सिद्धातों पर बिलकुल नहीं चलता ..अरे जिस शख्स ने देश को आजादी दिलाने में इतनी अहम भूमिका निभाई ..उसके स्मृति चिन्हों को वापस लेने के मामले में भारत सरकार का इतना गैर जिम्मेदाराना रवैया शर्मनाक है। आखिर ये क्या हो रहा है कहां है वो इज्जत जो महात्मा गांधी हमें पूरी दुनिया में अपने नाम पर पहचान दिलवाते है वरना कौन जानता है भारत को। दूसरे देशों में जाओ तो महात्मा गांधी ही हमारी पहचान है। एक सच ये भी है.. लेकिन किस सच को आज हम अपनाना चाहते है ये हमारे अंतरआत्मा का सच है!!!!!

फिर भड़की आरक्षण की दादागीरी...

बुधवार, जुलाई 29, 2009


राजस्थान में पिछली सरकार यानी बीजेपी के शासनकाल के दौरान आरक्षण की ऐसी आग लगी थी कि सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर हुए हिंसा को शर्मनाक करार देना पड़ा था। लेकिन उस वक्त कानून व्यवस्था के चलते सब कुछ ठीक हो गया। लेकिन किसी ने ये न सोचा था कि आग बुझी नहीं सुलग रही है और अगर उस पर पानी न डाला गया तो वो फिर से भड़क सकती है। राजस्थान में फिर से आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ा है। पिछड़ों को मजबूत करने के लिए शुरु हुए इस सिलसिले को आज लोगों ने हथियार बना लिया है। राजस्थान में आज गुर्जरों को आरक्षण चाहिए, तो मुसलमानों को तथाकथित अल्पसंख्यक होने का आरक्षण, यहीं नहीं अब तो राजस्थान में जब सरकार ने ये तय कर दिया कि आरक्षण ज़रूर मिलेगा और वो भी पांच फीसदी तो ब्राह्मणों ने भी अपने लिए आरक्षण का आवाज़ उठा दी लेकिन जाति के आधार पर नहीं और न ही पिछड़े होने के आधार और न ही अल्पसंख्यक होने का तमगा पहनकर, इन्होने मांगा है गरीब होने के नाम पर। मैं अब इस मांग को ज़ायज़ बताकर इसको सही नहीं ठहराउंगा क्यों कि कई लोगों को इससे परेशानी हो सकती है। मै सिर्फ इस मामले को उठाकर इस मामले सही सोच को अपनाने की बात कह रहा हूं। कल को हर कोई कह सकता है कि उसे आरक्षण चाहिए उस वक्त क्या करेंगे। क्या उस वक्त शांति की अपील करेंगे। मेरे गुर्जर दोस्त है उनसे मैने इस मुद्दे पर बात की तो उन्होने कहा कि देखा शुक्ला हमने क्या कहा था पिछली बार का डर इस बार काम आया, पिछली बार अगर बबाल न होता तो इस बार फिर से उसके डर की वजह से आरक्षण के लिए सरकार तैयार न होती। सवाल ये उठता है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण का मुद्दा उठा साथ ही गुर्जरों को आरक्षण का मुद्दा भी...लेकिन यहां मै बता दूं कि गुर्जरों को आरक्षण तो मिल जायेगा लेकिन गरीब सवर्णों को नहीं क्योंकि हमारे भारतीय संविधान में धन के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान ही नहीं है। तो इस पर आरक्षण की बात करना बेमानी है। एक बात जो मेरे समझ नहीं आई वो ये कि या तो शायद गुर्जर आंदोलन करने वालों को ये बात पता ही नहीं है और या तो वो पता होने के बाद भी वो इससे अंजान बने रहकर ब्राह्मणों को भी अपने साथ लेकर चलना चाह रहे थे...क्यों चाहिए आरक्षण इसका पता तो इनमें से ज्यादातर को पता नहीं होगा और जिन्हे पता होगा शायद उन्हें इसकी ज़रुरत ही न महसूस होती हो।

हिम्मत है तो कोई मेरा धर्म बदलकर दिखाओ ???????

गुरुवार, जुलाई 23, 2009

इस टाइटल को पढ़कर इस समझने का प्रयास मत करियेगा ...क्योंकि ये आपकी सोच से अलग हो सकता है।अपनी बात कहने से पहले मै चाहता हूं कि आप कुछ इन खबरों पर ध्यान दें.....

1) ब्यावर- बेटे-बहू की मर्जी के बगैर दादा द्वारा पौतों का धर्म परिवर्तन करवाने का मामला सामने आया है। बच्चों के पिता ने दादा के खिलाफ धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने, अपहरण, हत्या का प्रयास करने और धारदार हथियार से चोट पहुंचाने के आरोप में सिटी थाना पुलिस में मामला दर्ज करवाया है........

2) भुवनेश्वर। उड़ीसा के कंधमाल जिले में धर्म परिवर्तन और पुन: धर्म परिवर्तन पिछले वर्ष हुए दंगे के मुख्य कारणों में थे। यह बात दंगे की जांच कर रहे एक न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कही है।

3) हाल में मलयेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में एक सिख परिवार के 41 साल के व्यक्ति मोहन सिंह का दिल के दौरे से निधन हो गया। परिवार के लोग जब उनका शव लेकर अंतिम संस्कार करने के लिए श्मशान जा रहे थे, तो उन्हें इस्लामिक विभाग के अधिकारियों ने रास्ते में रोक लिया। उन्होंने कहा कि मोहन सिंह 1992 में धर्म परिवर्तन करके मुसलमान हो गए थे, इसलिए उनके शव का अंतिम संस्कार सिख रीतिरिवाजों से नहीं, बल्कि मुस्लिम विधिविधान से ही किया जा सकता है।

4) लंदन - ब्रिटेन में एक कट्टरपंथी मौलवी ने कथित तौर पर 11 साल के एक स्कूली बच्चे का धर्म परिवर्तन करने की कोशिश की। सीन नाम के इस श्वेत लड़के को एक टेप में अरबी में आयतें पढ़ते और अल्लाह के प्रति निष्ठा जाहिर करते देखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक निर्वासित उमर बाकरी मोहम्मद के अनुयायी और विवादास्पद मौलवी अंजम चौधरी ने इस लड़के का धर्म बदलने की कोशिश की।

5) जबलपुर में धर्म न बदलने पर दलित परिवार पर हमला कर मारपीट एवं तोड़फोड़ करने वाले कुछ युवकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए धर्मसेना के साथ बड़ी संख्या में एसपी कार्यालय पहुंचे रामपुर बेन मोहल्ला के रहवासियों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा। आक्रोशित लोगों ने गोरखपुर थाने का घेराव कर मामले में त्वरित कार्यवाही की मांग की


ये तो कुछ ही मामले है धर्म परिवर्तन के.....पहले तो मै सोच रहा था कि आखिर लोग धर्म कैसे बदल लेते हैं। मेरे परिवार में भी इस बात पर चर्चा ज्यादा होती है कि आखिर कैसे लोग अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। हमारे यहां तो उन लोगों को हिकारत की नज़रो से देखा जाता है जो अपने धर्म को छोड़कर दूसरे का धर्म अपना लेते हैं। लेकिन यूं ही एक दिन खाली बैठा था और सोच रहा था कि आखिर क्यों लोग अपनी धर्म बदलते है और आखिर क्यों लोग इतने मजबूर बन जाते हैं कि उन्हें अपनी पूरे जीवन में जिस प्रकार से पूजा अर्चना की है उस पद्धति को छोड़कर दूसरी पद्धति अपना ले। परेशान हालात में मै सड़क पर यूं ही घूमने निकल पड़ा। थोड़ी दूर पर एक शिव मंदिर पड़ता है और क्योंकि मैं हिंदु धर्म से ताल्लुक रखता हूं और साथ ही ब्राह्मण जाति में जन्म लिया है तो अक्सर मंदिरों की पैड़ियों यानी दर पर सिर झुक ही जाता है। मैने भी सिर झुका लिया। आगे बढ़ा तो माथा ठनका। मैने सोचा कि आखिर अगर पिछले बीस सालों से जिस पद्धति को मैने और मेरे परिवार ने अपनाया है उसको अगर मै छोड़ दूं तब क्या होगा। मैने सोचा क्यों न मान लिया जाये कि मैने हिंदु धर्म छोड़ दिया। तब होगा ये कि मेरे परिवारवाले मुझसे लड़ाई कर लें। कुछ धार्मिक संगठन मेरे दुश्मन हो जाये या ये भी हो सकता है मुझे जान से मारने की भी कोशिश होने लगे। पर एक चीज जो मेरे दिमाग में आई वो ये कि उस वक्त जिस धर्म को मै अपनाउंगा.... क्या वो मुझे ये लगने लगेगा कि वो बेहतरीन है और उस पद्धति को अपना सकूंगा। जिस दर पर अक्सर अकारण ही सिर झुक जाया करता था क्या गैर धर्मी होने पर न झुकेगा। नहीं ऐसी नहीं हो सकता। क्यों जिस पद्धति को मैने बचपन से देखा, सुना और अपनाया है जिस विधि से मैने भगवान की पूजा अर्चना की है उस विधि को मै कैसे भूल पाउंगा। न चाह कर भी अक्सर उस तरीके से भगवान को याद करुंगा भले ही मेरा नाम उस वक्त शशांक शुक्ला की जगह शफीकुर्रहमान हो या सैम्पसन,या फिर सुखविंदर...लेकिन मै चाहे जिस नाम में भी रहूं चाहे जो भी नाम हो या जो भी धर्म लेकिन बचपन से जिस ज़िदगी के पैटर्न को अपनाया है उसे नहीं भूल पाउंगा। और मैं क्या कोई भी नहीं कर पायेगा हां वो भूलने की नाकाम कोशिश या नाटक ज़रूर करेगा। लेकिन उसका अपना सच वो कभी नहीं भूल पायेगा। मै कहता हूं कि धर्म परिवर्तन की बहुत सी घटनायें होती हैं इसलिए मै कह रहा हूं कि कोई मेरा धर्म बदलकर दिखाओ......कैसे मारोगे उस भक्ति को जिस भक्ति से मैने बरसों पूजा कि है। चंद मंत्रो या आयतों या अन्य विधियों से मेरी सोच नहीं बदली जा सकती हैं। नाम का धर्म बदल सकते हो पर काम का धर्म नहीं बदल सकते। सोच का धर्म नहीं बदल सकते और अगर मैने धर्म बदल भी लिया तो होगा ये कि आपकी नज़र में मै चाहे किसी भी धर्म में रहूं पर रहुंगा उसी धर्म का बाशिंदा जिस पर मेरी आस्था होगी और बिना आस्था किसी भी धर्म की कोई औकात नहीं।

किनके हाथों में होगी देश की सुरक्षा....

सोमवार, जुलाई 20, 2009


उत्तर प्रदेश के चंदौली में रविवार को सेना की भर्ती के दौरान मची भगदड़ के बाद फायरिंग में एक अभ्यर्थी की मौत हो गई। भर्ती में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए हंगामा कर रहे युवकों पर मिलेट्री पुलिस की फायरिंग में तीन अभ्यर्थी घायल भी हुए हैं। इसके बाद बेकाबू युवाओं ने पूरे शहर में तोड़फोड़ करने की कोशिश की। हंगामे के कारण दिन में करीब चार घंटे तक शहर में अफरातफरी रही। पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद हालात को काबू में किया है। उपद्रवियों ने सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़ व आगजनी की। चंदौली रेलवे स्टेशन पर तोड़फोड़ के कारण यातायात प्रभावित रहा। लंबी दूरी की कई ट्रेनों को दूसरे स्टेशनों पर रोक कर रखा गया। इसके अलावा उपद्रवियों ने कुछ वाहनों को फूंक डाला और जिला अदालत में तोड़फोड़ मचाई। भर्ती रैली में आसपास के इलाकों के साथ पड़ोसी राज्य बिहार से करीब दो हजार युवाओं ने भाग लिया था। युवाओं ने शारीरिक परीक्षण के दौरान धांधली की शिकायत की थी और उसके बाद ही सेना अधिकारियों से उनका विवाद हो गया था। ये तो थी वो ख़बर जो मै आपको बता रहा था लेकिन पता नहीं आप इस ख़बर बताने के पीछे के मकसद को समझ पायें होंगे या नहीं, मै ही आपको समझा दूं कि सेना की भर्ती के दौरान हुए इस विवाद के पीछे बात कुछ भी हो ये कुछ ऐसे सवाल खड़े कर रहा है जिससे हमे शर्म महसूस होनी चाहिए। जैसे की पहला सवाल सेना की भर्ती में घोटाला ? जैसा की भर्ती के दौरान गये अभ्यार्थियों ने कहा। तो क्या ये सच मान लिया जाये कि सेना में भी हर तरह के घोटाले होता है.... दूसरा सवाल ये है कि जो अभ्यार्थी शहर में उत्पात मचा सकते है हुड़दंग करते है क्या उनके हाथों में हमारे भारत की सुरक्षा रहेगी। जो खुद दंगई हो उनसे देश की सुरक्षा करवाना कहां तक ठीक हैं। ये हालत सिर्फ सेना में भर्ती होने वाले युवकों में ही नहीं है बल्कि पुलिस की भर्ती के दौरान, या लगभग सभी सुरक्षाबलों में भर्ती के दौरान इसी तरह बबाल मचता है। लेकिन सवाल ये है कि जब इन जैसे युवाओं के हाथों में सुरक्षा का ज़िम्मा रहेगा तो देश किस ओर जायेगा ये उसका भविष्य ही जाने। औऱ उसके बाद किस तरह की ख़बरे आती है वो तो आप भी देखते ही होगें। जहां पुलिस स्टेशन में बलात्कार हो जाता है फर्जी इनकाउंटर हो जाते हैं। बार्डर्स पर बलात्कार होते है, वहां के लोगों का उत्पीड़न किया जाता है। और ये सब क्यों होता है ये आप इस घटना से समज सकते हैं।

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