अब अगर मेजबान देश के खिलाड़ी ही किसी टूर्नामेंट में भाग न ले रहे हो तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। आप, हम, और सबको पता है कि हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी है, लेकिन इसकी हालत राष्ट्रीयता जैसी ही हो गयी है। मध्धम बहुत मध्धम। हॉकी को पहले गिल ने चबाया अब जो बिना रस का लच्छा बचा है उसे हॉकी इंडिया के सदस्य चूसे जा रहे है। कुछ दिनों बात ही भारत में हॉकी विश्वकप होने जा रहा है। पहली बार जब ये जानकारी मिली तो बहुत आश्चर्य हुआ, वो इसलिये कि कमाल है कि विश्व कप जैसा बड़ा आयोजन हो रहा है और टीवी चैनल्स पर प्रचार तक नहीं आ रहे है।
हॉकी का इतना बड़ा त्यौहार सर पर है और लोकल ट्रेनों में सफर करने वाले देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी, के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी प्रैक्टिस तक के लिये मैदान में नहीं उतर रहे है। अब करें भी तो क्या करें। क्योंकि सरकारी तंत्र की तरह चलने वाले हॉकी इंडिया ने खेल के लिये मिलने वाले पैसों से इतने मज़े कर लिये है कि खिलाडियों को उनका हक तक नहीं मिल रहा है। नौबत ये आ गयी है कि हॉकी खिलाडियों ने भत्ता न मिलने पर बबाल काट दिया है। हॉकी खिलाड़ियो ने मांग रखी है कि उनको उनके हक के पैसे दिये जायें। लेकिन पैसे हों तब न। हॉकी इंडिया के सदस्यो ने सहारा की तरफ से मिली स्पांसरशिप के पैसों को मौज के लिये खर्च कर दिया और उन पैसों में से चवन्नी भी खिलाडियों के खाते में नहीं गयी।
देश में जब जब हॉकी सुधरने की स्थिति में पहुंची है, तब तब ऐसे हालात पैदा हुए है कि खेल सिर्फ धरातल की ओर ही गया है। खिलड़ियों की मांग जायज है और हमेशा कि तरह हॉकी इंडिया गलत है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या हर बार की तरह मुद्दा यहीं पर गर्म होकर ठंडा हो जायेगा, या फिर इसका एक स्थाई हल निकलेगा। खिलाडियों को धमकियां दी जा रही है कि या तो वो मान जाये या फिर टीम से हट जाये। एक कहावत है कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, उसी तर्ज पर हॉकी इंडिया के सदस्य, खिलाड़ियों पर दबाव बना रहे है कि या तो वो प्रैक्टिस पर लौट जाये या फिर उन्हें टीम से हटा दिया जायेगा। हॉकी इंडिया की तानाशाही की हालत ये है कि उन्होने पहले ही 22 खिलाड़ियो की सूची तैयार कर ली है, जो कि वैकल्पिक रुप से इस्तेमाल की जायेगी, भारतीय खिलाडियों के न खेलने की दशा में।
कितना शर्मनाक है हॉकी इंडिया के लिये कि खिलाडियों को खुद आगे आकर कहना पड़ रहा है कि स्पांसर से मिले पैसों में से कुछ पैसे खिलाडियों को भी मिलने चाहिये। लेकिन हॉकी इंडिया कहता है कि उनके पास पैसे ही नहीं है। फिलहाल हॉकी में चल रही उठापटक खत्म नहीं हुई है। और इसके लिये इंडियन हॉकी फेडरेशन भी पहल नहीं कर रही है। अब वो भी क्या करे क्योंकि उनके हाथ पहले से ही काले है। इस मसले में पड़ कर वो अपनी गर्दन छुड़ा रहे है।
देश की शान रहे इस खेल के खिलाडियों की हालत देखकर कहीं न कही हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की आखों में भी आंसू होगें। लेकिन दुख है कि वो कुछ कर नहीं सकते है। और अगर वो होते तो यही कहते कि आखिर क्यों हॉकी को इस देश का राष्ट्रीय खेल बनाया गया जब इसकी कद्र किसी को नहीं है।