मै एक दिन बाइक से अपने ऑफिस की ओर जा रहा था। कानों में हेडफोन लगाये, आखों पर काला चश्मा, सफेद रंग की टी शर्ट, और गले से बैग लटकाये अपनी मस्ती में मस्त होकर, नोएडा के 12-22 चौराहे पर रुका रेड लाइट की वजह से। देखा कि एक आदमी मेरे पास आया कुछ बोलने लगा। मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, अरे मैने तो कानों में हेड फोन जो डाल रखा था, मैने उससे इशारे से रुकने को कहा फिर कानों से हेडफोन निकाला औऱ फिर पूछा कि क्या हो गया। उसने कहा कि भाईसाहब मुझे लेबर चौक तक जाना है क्या मुझे छोड़ दोगे। मैने ऊपर से नीचे तक उसे ध्यान से देखा देखने में तो ठीक लग रहा था, देख कर लग रहा थी कि किसी ऑफिस में काम करता है। मैने उससे कहा कि चलो छोड़ दूंगा, बैठ जाओ। वो फिर तुरंत बैठ गया। ग्रीन लाइट होते ही मैने बाइक स्टार्ट की औऱ आगे बढ़ गया, थोड़ा आगे जाकर मैने कौतूहलवश पूछ लिया, क्या हुआ बस नहीं आ रही है क्या ?.. उसने कहा आ रही है लेकिन मै जाना नहीं चाहता था । मैने पूछा क्यों क्या हुआ पैसे खत्म हो गये हैं क्या...तो बोला अरे नहीं भाई साहब ग़ाज़ियाबाद जाने वाली बसें जाने लायक थोड़े ही होती हैं, मैने पूछा क्यों, उसने कहा कि एक बस ड्राइवर के साथ बदमाश टाइप के चार क्लीनर होते हैं पैसे तो ज्यादा लेते ही है साथ ही अगर आपसे बद्तमीजी करने से भी पीछे नही हटते हैं। और अगर कहीं आपकी भाषा में बिहारी टच देख लें तो समझो कि आपको बेवकूफ बनाने में देर नहीं करेंगे या दादागीरी दिखायेगें। मैने पूछा क्यों आपके साथ कुछ हो गया है क्या। उसने कहा हां अभी कल ही मैं जा रहा था तो मुझसे लेबर चौक के ही दस रुपये मांगने लगा, मैने कहा कि थोड़ी ही दूर है तो इतने क्यों उसने कहा कि कहां से आया है बे, मैने कहा कि 12-22 से, तो वो बोला अपना गांव बता बे बिहारी, मैने कहा कि आपको क्या करना तो उसने कहा कि जहां से आया है वहां इतनी दूर के उतने लगते होंगे जितने तू दे रहा है। यहां नहीं लगते । मैने कहा इतने नहीं दूंगा तो उसने कहा कि यहीं उतर जा फिर, काफी मनाने पर भी नहीं माना तो उसने मुझे बिना बस रोके धीमे करवाके नीचे धक्का दे दिया मुझे कुछ चोटें आई लेकिन चलो बच तो गया उनसे। मैने तो सुना है कि यहां इतनी सी बात में गोली तक मार देते हैं। मै हंसा औऱ बोला हो सकता है भाई मैने तो नहीं सुना आज तक ऐसा। उसने कहा कि हां भाई साहब होता है। तो फिर मैने बोला कि यार आज तक तो मैने सिर्फ ब्लूलाइन बसों के लिये ही ऐसा सोचता था कि उसमें गुंडागर्दी होती है, इधर की बसों के बारे में तो नहीं सुना आज तक। अब क्या बताऊं सर मैने तो झेला है इसलिये नहीं जाता बसों से। तो क्या हुआ टैम्पो से चले जाया करो, अरे नहीं भाई साहब उसमें तो और भी बुरा हाल है। मैने कहा क्यों उसमें क्या हो गया अब क्या उसमें भी आपके साथ ऐसा ही हो गया क्या ? अरे नहीं उसमें से तो मौत से वापस आया हूं.... कैसे ? क्या बताऊं सर उसका ड्राइवर तीन पहियों को इतनी तेज़ी से चला रहा था कि लग रहा था कि अब गिरा की तब गिरा, मै किसी तरह राम राम जपकर उतरा.... आगे देखा कि मेरे सामने फिर जैसे ही वो टैम्पो आगे बढ़ा कि मिट्टी में फिसलकर पलट गया ज्यादातर लोगों को चोटे आईं। अब आप ही बताईये कि कैसे जाये आदमी अपने काम पर। इतने में लेबर चौक आ गया वो आदमी उतर गया। फिर मुझे याद आया कि यार उसका नाम तो पूछ लिया होता। लेकिन फिर सोचा कि चलो क्या फर्क पड़ता है हर रोज कोई न कोई मिल जाया करता है कहां तक सबके नाम रटता फिरुं, लेकिन समस्या विकराल है, अगर मेरे पास बाइक न होती तो मेरी तो हर रोज किसी बस या ऑटो चालक से लड़ाई होती। एक आम आदमी जिसको सिर्फ इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर भरोसा है वो कैसे इनमें सफर करते होगें जिनके पास अपना वाहन है वो लोग इसका सिर्फ अंदाज़ा लगा सकते हैं। हालात ये है लेकिन फिर अक्सर टीवी पर औऱ कई सरकारी प्रचार कर लोग सलाह देते है कि प्रदूषण कम करना हो या ईंधन की बचत करनी हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें या शेयर करके आये जायें। डर जाता हूं कि कहीं ऐसा कोई कानून आ जायेगा तो फिर इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट वालों की तो दादागीरी कैसे झेल पाउंगा। क्योंकि उस वक्त कोई और चारा नहीं रहेगा। और ये मुद्दा अभी किसी की नज़रों में भी नहीं है। लेकिन इस समस्या से हर कोई परेशान है, कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता तो कोई इस बात को छोड़कर अपने राग में लग जाता है।
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
3 दिन पहले
4 टिप्पणियाँ:
कुछ बसों में अक्सर ऐसे लोगों से कभी कभी पाला पड़ जाता है लेकिन ऐसी घटनाएं बहुत कम होती हैं....लेकिन यह देखा गया है कि गरीब दिखने वाले आदमीयों के साथ व्यवाहर अक्सर सही नही किया जाता।
परमजीत जी बातों से पूरी तरह सहमत.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
परमजीत जी से सहमत!
गरीब की जोरू सब की भाभी यू ही तो नही कहा गया है ?
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