इंकम टैक्स देने के बाद भी सरकार को सरकार बने रहने देने के लिये हम हर सामान पर टैक्स देते है। चाहे दंतमंजन हो या दूध। लेकिन ज़रुरत के सामानों पर टैक्स लगना गलत है। कमाल तो ये है कि दवाई पर भी टैक्स है। कम से कम गरीबों को एक चीज तो है खाने को कम से कम उस पर से तो टैक्स हटा लेना चाहिये। सरकार की टैक्स की नीति पर विचार करने की ज़रुरत है। लेकिन एक वही एक ऐसी चीज़ है जो हर बजट में बढ़ती है। टैक्स के मामले में सरकार हमेशा से ही अपने फायदे को देखती नज़र आयेगी। दिल्ली में तो हालत औऱ ज्यादा खराब हो रहे है, खबर है कि दिल्ली में एक सौ ग्यारह ज़रुरत की चीज़ों पर वैट को बढ़ाया जा रहा है। दुखद है कि इसमें दवाईयां भी शामिल है। सरकार की सुविधा, सुरक्षा और आराम में कटौती नहीं की जाती है। नेता आराम से होटलों में बिना पैसे दिये रहते है नेतागीरी दिखाते है, यहीं नहीं उनके बच्चे भी अपने बापों के दादागीरी की प्रथा को आगे बढ़ाते है। और अपने बाप के नाम पर दादागीरी दिखाते है। लेकिन सरकार टैक्स में कटौती नहीं करती है। दवा पर टैक्स तो शर्म की बात है । केद्र सरकार, और दिल्ली की सरकार को टैक्स में फेरबदल करना चाहिये कि कम से कम दवाओं पर तो टैक्स न रखा जाये।
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- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
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दवा पर टैक्स ?
रविवार, दिसंबर 06, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 2:54 pm 1 टिप्पणियाँ
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