हमारे एक ब्लागर साथी है आदर्श राठौड़। अपने ब्लाग प्याला पर लिखते है। उन्होंने अपने एक पोस्ट में उन्होंने बस वालों को दिन में एक -एक रुपये की चोरी करते हुए देख कर अपनी बात कही... मैने सोचा की क्यों न मै भी अपनी एक मज़ेदार वृत्तांत लिखुं जिसमें शायद पढने वाले को मज़ा आये। हुआ यूं कि जैसे हर कोई शाम के समय अक्सर घरों से घूमने निकल पड़ते उसी तरह मै भी अपनी शाम की चहल पहल के लिए निकल पड़ा। बाज़ारों से होकर गुजर रहा था कि मुझे याद आया कि मेरी दवाईयों का स्टाक खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। आपको बता दूं कि मै अपने पास दवाइयों की पूरी दुकान रखता हूं क्योंकि हो सकता है कभी भी उसकी जरुरत पड़ जाये। अक्सर मै ये दवाइयां लगभग एक ही दुकान से लेता हूं क्योंकि घर के पास हैं औऱ मिल भी आसानी से जाती है। लेकिन अक्सर वो मुझे दो या तीन रुपये के नाम पर टॉफियां दे देता था। मै भी टॉफी का अच्छा खासा शौकीन हूं इसीलिये मेरी दोस्ती शहर के कई डेंटिस्ट से है। और मै आपको बता दूं कि मुझे डिस्काउंट तक मिल जाता है। ऐसे ही एक दिन डॉक्टर ने कड़े अंदाज में कहा कि अगर आपने टॉफी खाना बंद नहीं किया तो सारे दांतों का अंतिम संस्कार करना पड़ेगा। मै मान गया। मैने अगले दिन दवाइयां लेने दुकान पर पहुंचा इस बार फिर हर बार कि तरह दुकान वाले ने मुझे टॉफी थमा दी मैने मन मारकर मना कर दिया। लेकिन उसने मुझसे कहा कि सर खुले नहीं है तो ले लीजिये। मैने उसके ट्रंक में सिक्के देख लिये थे। पर मैने कहा कि कोई बात नहीं बाद में दे देना पैसे। उसने मना कर दिया..कहने लगा कि टॉफी ही लीजिए। मैने कहा यार टॉफी मै अब नहीं खाता तो मुझे मेरे पांच रुपये दे दो। उसने टॉफी दे दी। मै वो लेकर आ गया घर आकर मैने सोचा कि दिन भर कि कमाई करने के बाद उसके पास इतने सिक्के भी नहीं थे लेकिन मैने फिर सोचा कि टॉफी के बहाने वो हर बार मुझे टॉफी लेने को मजबूर करता रहा या कहे कि मै अपने पैसे की टॉफी खरीद रहा था । और मै समझ रहा था कि उसके पास सिक्के नहीं होते इसलिए वो मुझे टॉफी देता था। इस बार मुझे उसकी चालाकी समझ में आ गई तो मैने उसकी चालाकी के लिए उसे सबक सिखाने की ठानी। मैने उसके दुकान हर बार की तरह दवाइयां लेता और वो मुझे टॉफी देता और मै सभी टॉफियों को इकट्ठा करना शुरु कर दिया तो एक दिन जब मै उसके दुकान पर गया तो उसने मुझसे दवाई के बदले पैसे मांगे चूंकी मेरी दवाई की कीमत 65 रुपये है मैने उसे 40 रुपये थमाए अब उसे इंतजार था कि मै बाकी पैसे दूंगा मैन अपने बैग से खूब सारी टॉफियां निकाली और लगभग पच्चीस रुपये की टॉफियां उसके टेबल पर पटक मारी। उसने मुझसे कहा कि भाई साहब बाकी पैसे.... मैने कहा कि दे तो दिये। ये लो बाकी पैसे की टॉफियां। उसने कहा कि क्यों मज़ाक कर रहे हो सर। क्योंकि मै एक पत्रकार हूं तो ज्यादा तेज आवाज़ या बद्तमीज़ी से बोल नहीं सकता था। इसलिए उसने मुझे घूरकर देखा..मैने उससे कहा कि क्यों ..जब आप पैसे के बदले टॉफी दे सकते हो तो मै भी पैसे के बदले टॉफियां दे रहा हूं तो क्या गलत है। रखों और खूब खाओ....या औरों को दे देना....इतना कहकर मै वापस आने लगा और वो मेरे मुंह को देखता रह गया। वहां ज्यादातर लोग मेरी इस हरकत को गौर से देख रहे थे कुछ मज़ा ले रहे कुछ हंस रहे थे। शायद दुकानवाले की समझ में कुछ तो आया होगा।
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
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दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)14 वर्ष पहले
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अरे सर....खुले नहीं है.. टॉफी ले लो
मंगलवार, जून 23, 2009हमारे एक ब्लागर साथी है आदर्श राठौड़। अपने ब्लाग प्याला पर लिखते है। उन्होंने अपने एक पोस्ट में उन्होंने बस वालों को दिन में एक -एक रुपये की चोरी करते हुए देख कर अपनी बात कही... मैने सोचा की क्यों न मै भी अपनी एक मज़ेदार वृत्तांत लिखुं जिसमें शायद पढने वाले को मज़ा आये। हुआ यूं कि जैसे हर कोई शाम के समय अक्सर घरों से घूमने निकल पड़ते उसी तरह मै भी अपनी शाम की चहल पहल के लिए निकल पड़ा। बाज़ारों से होकर गुजर रहा था कि मुझे याद आया कि मेरी दवाईयों का स्टाक खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। आपको बता दूं कि मै अपने पास दवाइयों की पूरी दुकान रखता हूं क्योंकि हो सकता है कभी भी उसकी जरुरत पड़ जाये। अक्सर मै ये दवाइयां लगभग एक ही दुकान से लेता हूं क्योंकि घर के पास हैं औऱ मिल भी आसानी से जाती है। लेकिन अक्सर वो मुझे दो या तीन रुपये के नाम पर टॉफियां दे देता था। मै भी टॉफी का अच्छा खासा शौकीन हूं इसीलिये मेरी दोस्ती शहर के कई डेंटिस्ट से है। और मै आपको बता दूं कि मुझे डिस्काउंट तक मिल जाता है। ऐसे ही एक दिन डॉक्टर ने कड़े अंदाज में कहा कि अगर आपने टॉफी खाना बंद नहीं किया तो सारे दांतों का अंतिम संस्कार करना पड़ेगा। मै मान गया। मैने अगले दिन दवाइयां लेने दुकान पर पहुंचा इस बार फिर हर बार कि तरह दुकान वाले ने मुझे टॉफी थमा दी मैने मन मारकर मना कर दिया। लेकिन उसने मुझसे कहा कि सर खुले नहीं है तो ले लीजिये। मैने उसके ट्रंक में सिक्के देख लिये थे। पर मैने कहा कि कोई बात नहीं बाद में दे देना पैसे। उसने मना कर दिया..कहने लगा कि टॉफी ही लीजिए। मैने कहा यार टॉफी मै अब नहीं खाता तो मुझे मेरे पांच रुपये दे दो। उसने टॉफी दे दी। मै वो लेकर आ गया घर आकर मैने सोचा कि दिन भर कि कमाई करने के बाद उसके पास इतने सिक्के भी नहीं थे लेकिन मैने फिर सोचा कि टॉफी के बहाने वो हर बार मुझे टॉफी लेने को मजबूर करता रहा या कहे कि मै अपने पैसे की टॉफी खरीद रहा था । और मै समझ रहा था कि उसके पास सिक्के नहीं होते इसलिए वो मुझे टॉफी देता था। इस बार मुझे उसकी चालाकी समझ में आ गई तो मैने उसकी चालाकी के लिए उसे सबक सिखाने की ठानी। मैने उसके दुकान हर बार की तरह दवाइयां लेता और वो मुझे टॉफी देता और मै सभी टॉफियों को इकट्ठा करना शुरु कर दिया तो एक दिन जब मै उसके दुकान पर गया तो उसने मुझसे दवाई के बदले पैसे मांगे चूंकी मेरी दवाई की कीमत 65 रुपये है मैने उसे 40 रुपये थमाए अब उसे इंतजार था कि मै बाकी पैसे दूंगा मैन अपने बैग से खूब सारी टॉफियां निकाली और लगभग पच्चीस रुपये की टॉफियां उसके टेबल पर पटक मारी। उसने मुझसे कहा कि भाई साहब बाकी पैसे.... मैने कहा कि दे तो दिये। ये लो बाकी पैसे की टॉफियां। उसने कहा कि क्यों मज़ाक कर रहे हो सर। क्योंकि मै एक पत्रकार हूं तो ज्यादा तेज आवाज़ या बद्तमीज़ी से बोल नहीं सकता था। इसलिए उसने मुझे घूरकर देखा..मैने उससे कहा कि क्यों ..जब आप पैसे के बदले टॉफी दे सकते हो तो मै भी पैसे के बदले टॉफियां दे रहा हूं तो क्या गलत है। रखों और खूब खाओ....या औरों को दे देना....इतना कहकर मै वापस आने लगा और वो मेरे मुंह को देखता रह गया। वहां ज्यादातर लोग मेरी इस हरकत को गौर से देख रहे थे कुछ मज़ा ले रहे कुछ हंस रहे थे। शायद दुकानवाले की समझ में कुछ तो आया होगा।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 4:20 am 1 टिप्पणियाँ
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