चेन्नई का जीतना तय था। अब इसे महेद्र सिंह धौनी कि काबिलियत कहें या फिर उनकी किस्मत। चेन्नई सूपरकिंग्स के ओवरऑल परफार्मेन्स पर नजर डालें तो इस बात से कोई मना नहीं कर सकता ही कि मुंबई इंडियंस की टीम चेन्नई से कही ज्यादा मजबूत और अच्छा परफार्म कर रही थी। लेकिन फाइनल में पासा पलट गया। चेन्नई की जीत के नायक रहे सुरेश रैना..मुंबई इंडियस की तरफ से सचिन के अलावा सभी ने धोखा दिया, पोलार्ड ने कुछ अच्छे हाथ दिखाये...लेकिन टीम का उल्टा धौनी यानी सौरभ तिवारी कुछ नहीं कर पाये।
चेन्नई जीत तो उस वक्त ही तय हो गयी थी जब उन्होने टॉस जीता था। आईपीएल के पहला सेमीफाइनल मैच देखने के बाद अगले दो मैचों की भविष्यवाणी तो मैने कर दी थी कि कौन जीतने वाला है। तो फिर धुरंधरों को समझ में क्यो नहीं आ रहा होगा। दोनों सेमीफाइनल औऱ फाइनल मैचों में टॉस ही सारी भूमिका तय कर दे रहा था। टॉस जीतो मैच जीतो। सीधा सा फंडा था जिसको समझने में धौनी गलती नहीं कर सकते ..बस सचिन की किस्मत ने साथ नहीं दिया नहीं तो टॉस के साथ मैच भी वही जीतते।
इस मैच की जीत के साथ ये तय हो गया कि सचिन कितनी भी कोशिश करले लेकिन उनकी कप्तानी में कोई टीम या कहें कि उनकी उपस्थिति में कोई टीम कप नहीं ला सकती। शायद इसीलियें सचिन ने टी20 मैचो में खेलने से इंनकार कर दिया है। जिस तरह से उनके न रहते हुए टीम ने पहले ही वर्ल्ड कप में चैंपियन बन गयी, सचिन को ये बात खली तो बहुत होगी पर इसके बाद ही उन्होने तय कर लिया होगा कि वो कच्छा क्रिकेट के फॉरमैट में नहीं खेंलेंगे। वरना आईपीएल में बढ़िया प्रदर्शन, और पूरे देश की भावनाओं के साथ सचिन खिलवाड़ नहीं करते।
ऐसा नहीं है कि मै मुंबई इंडियंस का फैन हूं, ऐसा भी नहीं कि चैन्नई सूपरकिंग्स का दुश्मन हूं। पर इतना ज़रुर है कि पिछले दो तीन मैच में मज़ा नहीं आया। सही कहूं तो आईपीएल में कोई भी टीम जीते या कोई भी टीम हारे.इससे न तो मुझे दुख होता है औऱ . न हीं खुशी। हां भारत जब हारता है तो नींद नहीं आती..लेकिन आईपीएल मे कोई भी जीते कोई भी हारे...कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई भी जीते कोई भी हारे। फिर भी लोग आईपीएल को पसंद करते है उनकी पसंद की टीम है। लेकिन मै किसी टीम को पसंद ही नहीं कर पाया।सभी में तो अपने खिलाड़ी खेल रहे है। किसे सपोर्ट करुं ये समझ ही नहीं आया। इसलिये मैच को मैच की तरह देखता हूं।
लेकिन पिछले दो मैच तो फिक्स थे। टॉस जीतना मतलब मैच जीतना