हम भारतीय 'कुत्ते' हैं ?.........

रविवार, अगस्त 15, 2010

                          सुपर बग के बारे पढ़कर सिर्फ यही लगा कि विदेशी हमारी सफलता से जल रहे हैं। उन्हे  बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि  आखिर कैसे भारत में मेडिकल सेवाएं बाकी देशों से सस्ती है। और तो और अच्छी भी। ये सिर्फ एक दुर्भावना से प्रेरित कदम है जिसमें एक वायरस का नाम न्यू डेल्ही मोटालो 1 का नाम दिया गया है। अभी तक तो  ये अंग्रेज भारत को सांपों का देश कहते थे। चलो एक और नामकरण हो गया बैक्टीरिया वाला देश। लेकिन उसके बाद भी हम और विदेशों में रह रहे भारतीय इससे भी सबक नहीं लेंगे।

विदेशों में काम करना उन्हें इस कदर भा गया है कि वो वापस आना ही नही चाहते हैं। ऑस्ट्रेलिया के किस्से तो मैने बहुत पढ़े है। लोगों को विदेश जाकर काम करने का शौक बहुत होता है। इसके लिये कई लोग तो जीवन भर इंतजार करते है। कनाडा को तो जैसे दूसरा भारत तक कहा जाने लगा हैं। देश के बाहर काम करने की चाहत का एक किस्सा मेरे साथ कुछ दिन पहले ही हुआ समझ नहीं आया उस वक्त कौन सही था और कौन गलत पर....... कुछ मित्रों के साथ दोपहर के खाने के वक्त बैठे थे। बातचीत भारत के इतिहास पर हो रही थी। एक मित्र इसमें काफी अच्छी जानकारी रखते हैं। हमारे इन दोस्त मंडली में एक ने बोला कि 
'यार मज़ा तो बाहर देश में काम करने का है'
मैने पूछा क्यों
'क्यों का यार उनके शहर देखो,उनके घर देखो, उनका रहने का तरीका देखो'
'हां इसमें क्या है,हमारे देश में भी ऐसे लोग रहते है जो साफ सुथरे तरीके से रहते है'
'अरे नहीं यार विदेश में जैसे लोग गंदे तरीके से रहते है,हमारे यहां उसे साफ कहते है'
मित्रों में से एक ने पूछा ' क्या बात कर रहे हो यार, तुम कहां हो आये हो....'
'कहीं होकर आने से कुछ नहीं होता है, मैने देखा है......'.
'तो फिर तुमने टीवी में देखा होगा'
हम सभी के मुंह से हंसी छूट गयी...

''विदेश में जाकर काम करने मे क्या अच्छा है...यहां से भर भर कर जाते है वहां जाकर होटलों में काम करते है
टैक्सी चलते हैं.....यहां आकर खुद को एनआरआई बताते है.....''

''तो क्या हुआ....वहां एक डालर कमा लेते है तो यहां के पचास रुपये हो जाता है....''
'अबे तो क्या हुआ...वही काम यहां करते है ....तो छोटे थोड़े ही हो जाते है....यहां भी जितना मेहनताना होगा उतना ही मिलेगा.....''

''अबे तुम्हे नहीं पता है...विदेशों में ड्राइवर की भी बहुत पूछ होती है। लोग एक दूसरे से बात करते है इज्जत के साथ कि वो ड्राइवर है'' 

''अरे यार तुम भी कैसी बात कर रहे हो....ये सोच तो अपने अपने ऊपर निर्भर करती है। कुछ लोग ड्राइवर को अच्छी नजरों से देखते है और कुछ लोगों उसे  छोटा काम समझते है''

''भाई साहब कनाडा में तो लोग इज्जत से कहते है वो ड्राइवर है...''.

तभी एक दोस्त ज़ोर से  हंसा औऱ बोला....''.हां जैसे यहां पर आईएएस अधिकारी, या पुलिस अधिकारी को कहते हैं......वैसी ही इज्जत वहां ड्राइवर की होती होगी....''

हम सारे जोर से हंस पड़े....तभी एक दूसरे दोस्त ने बोला 
'' यार कुछ भी कहो लेकिन होटलों में काम करना सभी जगह एक जैसा ही होता है....आप यहां भी बर्तन साफ करेंगे,झाड़ू लगायेंगे, सर्व करेंगे, और दूसरे देश में भी। बस  होता ये है कि हम यहां अपने देशवासियों के लिये करते हैं। औऱ वहां पर विदेशी गोरों के लिये....उनके लिये खाना सर्व करना हमें इज्जतदार लगता है...और अपने लोगों को सर्व करना शर्मनाक....ये कैसी मानसिकता है .''....

''बिलकुल ठीक..यही शब्द थे मेरे.....दिमाग में इस कदर गुलामी की बेड़ियां जकड़ी हुई है कि हम आज भी अंग्रेजो को देखकर उनके लिए आदर जागता है...उन्हे अपना अन्न दाता समझते हैं। वो कुछ भी कहे हमें लगता है कि वो सही कह रहे है''

''चलो ये तो हुई जो पढ़े लिखे नहीं है ज्यादा उनकी बात....लेकिन उनकी तो काफी इज्जत होती है जो पढ़े लिखे है...और विदेशों में काम कर रहे है.....उन्हे तो काफी पैसा मिलता है और इज्जत भी''

''हां ये ठीक है....लेकिन इज्जत शायद नहीं मिलती है। अगर मिलती तो ब्रिटेन अपने ओलंपिक में भारतीयों को न छूने की हिदायत नहीं देता। इससे क्या दिखता है उनके दिल में हमारे लिए कितनी इज्जत है''

एक मिनट के लिय चुप हो गये हम सब....

''अरे यार एक देश ऐसा कर रहा है इसका मतलब ये तो नहीं कि सभी देशों में ऐसा हो रहा है''

''हां क्यों ऑस्ट्रेलिया भूल गये क्या....या सिर्फ क्रिकेट मैच में ही याद रहता है। वहां रोजाना पिट रहे भारतीयों को भूल गये ....स्टूडेंट तक को तो नहीं बख्श रहे है लोग वहां...टैक्सी ड्राइवरों की तो और भी बुरा हाल है। एक सरदार ड्राइवर को नस्ली टिप्पणी करके यू ब्लडी इंडियन कह दिया और उसको पैसे भी नहीं दिए.....खबरों की दुनिया से जुड़े हो यार ये तो पता ही होगा''

''अरे तो पुलिस भी कुछ करती है वहां की....पूरी खबर नहीं पढ़ी थी क्या....पुलिस के पास शिकायत के लिये जब वो ड्राइवर गया तो पुलिस वाला सिर्फ हंसता रहा। और उसे भगा दिया''

''अरे छोड़ो यार किस मसले पर बात करके दिमाग खराब कर रहे है यार हम लोग हम लोग खाना खा रह है शांति से खाओ"

हमारा मित्र जो इतिहास में गहरी जानकार रखता है उसने बहुत कमाल की बात कही।

''अरे सुनो ....तुम लोगों पता नहीं है....जो जन गण मन करते है हम लोग....किसके लिये बना था....देश के लिये ''
वो जोर से हंसा.....''बेवकूफों किताबे पढ़ो.....वो तब बना था जब इंग्लैड के राजा भारत की यात्रा पर आये थे....और उनके स्वागत में ये गीत लिखा गया था.....तुम्हे क्या लगता है रवीद्र नाथ टैगोर को यूं ही नोबल पुरस्कार मिला है.......गांधी को आज तक नहीं मिला''

एक दम सन्नाटा छा गया.....हम तो आज तक जन गण मन गाकर देश को सलामी देते आ रहे थे......लेकिन यही है हमारा भारत भाग्य विधाता.....किसी इंग्लैंड के अत्याचारी को हम भारत का भाग्य विधाता कह रहे थे....


इसीलिए कभी कभी कुछ बातें जानकर दिल दुखी हो जाता है...समझ नहीं आता कि किस इतिहास को लेकर हम चल रहे हैं। कौन सही है कौन गलत है। किसका तर्क सही है किसका गलत....

लेकिन एक बात तो सही है कि हमारी मानसिकता आज भी उभर कर सामने नहीं आई है। हमारे लिये विदेश में जाकर काम करना अपने देश में काम करने से ज्यादा इज्जतदार काम है। विदेश में चाहे होटलों में झाड़ू पोंछा ही क्यों न कर रहे हों। या फिर देश के बाहर मार खाकर पिटकर इज्जत गंवा कर आत्मसम्मान को खोकर कही काम क्यों न  कर रहे हो। क्या यही भारतीयता है। क्या यही देश की इज्जत है। क्या इसीलिए हम अपने देश पर गर्व करने की बात करते है।......

जिनके समझ में आया होगा वो समझ गये होंगे लेकिन क्या करें ...हम भारतीय 'कुत्ते' हैं....जिन्हें अगर कही रोटी दिख रही हो वहां पर पिटने मार खाने के बावजूद दुम हिलाते पहुंच जायेंगे।...शर्मनाक. है ये..... 

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