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ऑस्ट्रेलिया पर कब जागेगा हिंदुस्तान..

शनिवार, जनवरी 09, 2010


आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमले पर आम भारतीय जाग  रहा है पता नहीं हिंदुस्तान कब जागेगा। ये कहना कि आम भारतीय ही हिंदुस्तान है गलत होगा क्योंकि एक आम भारतीय कभी भी हिंदुस्तान नहीं होसकता है। क्योंकि अगर होता तो वो कबका जाग चुका होता।जितने दिनों से आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले हो रहे है, उस पर आम जनता को ही इसके खुल कर सामने आना चाहिये था। यहीं नहीं जिस तरह से भारतीय सरकार भारतीयों को लेकर रवैया अपनाती है उसे देखकर तो लगता है कि जैसे वो देश के नागरिक ही न हो।

पिछले लगभग एक साल से आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर जानलेवा हमले हो रहे है। और इसके पीछे बाकायदा नस्लीय मुद्दा है। लेकिन न तो ऑस्ट्रेलिया ये मानता है और न ही इसके लिये कुछ करता है ताकि ये खुलकर सामने न आ जाये कि ये नस्लीय हिंसा है। आस्ट्रेलियन सरकार इस बात को मानने को बिलकुल तैयार नहीं है कि ये हिंसा नस्लवादी है।जबकि पुलिस को इसके लिये विशेष अधिकार भी दिये गये हैं, लेकिन इसके बाद भी वहां पर हिंसा का वारदात कम होने का नाम नहीं ले रहा है। वहां पर हिंसा के शिकार हुए भारतीय लोग ऑस्ट्रेलिया का दलील से इत्तेफाक नहीं रखते है।
शायद हमें पता हो कि किसी अमेरिकी या ब्रिटिश नागरिक के साथ ऐसी कोई वारदात हो जाती है तो शायद उसने ऑस्ट्रेलिया में बबाल मचा दिया होता, यही सोच उसको मज़बूत बनाती है, और इसी वजह से दुनिया का महाताकत है, क्योंकि उसकी ताकत उसके नागरिक है जिनके लिये वो सारे विश्व को हिला सकता है। क्या बाकी विश्व में, और भारत में अमेरिकी पर कोई हमला होता है, कुछ भी करने से पहले दिमाग में ये बात होती है कि वो अमेरिकी है।इसीलिये उनके साथ कोई कुछ नहीं कहता। यही नहीं हमारे यहां के नपुंसक नेता भी इस पर अपने वर्जन दे चुके होते। लेकिन शायद ऐसा भारत में ही हो सकता है कि भारतीय पर हमला हो और भारत उसके लिये सिर्फ फाल्तू बातों के अलावा कुछ न करे।

समझ में ये नहीं आता कि जो देश अपने लोगों की सुरक्षा के लिये कड़े कदम नहीं ले सकता है उसके नेताओं को देश का नेता होने का हक क्यों मिल जाता है। देश के नागरिकों की सुरक्षा न कर पाने वाले नेताओं को भूलकर भी वोट न देने का कसम खानी पड़ेगी। शर्म की बात है कि भारत अपने ही नागरिकों पर हो रहे हमले के बाद भी कुछ नहीं कर पा रहा है। इसके बाद सारे विश्व में भारतीयों और उनके देश को लेकर जिस तरह की इमेज बन रही होगी इसका तो सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है

फिर भड़की आरक्षण की दादागीरी...

बुधवार, जुलाई 29, 2009


राजस्थान में पिछली सरकार यानी बीजेपी के शासनकाल के दौरान आरक्षण की ऐसी आग लगी थी कि सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर हुए हिंसा को शर्मनाक करार देना पड़ा था। लेकिन उस वक्त कानून व्यवस्था के चलते सब कुछ ठीक हो गया। लेकिन किसी ने ये न सोचा था कि आग बुझी नहीं सुलग रही है और अगर उस पर पानी न डाला गया तो वो फिर से भड़क सकती है। राजस्थान में फिर से आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ा है। पिछड़ों को मजबूत करने के लिए शुरु हुए इस सिलसिले को आज लोगों ने हथियार बना लिया है। राजस्थान में आज गुर्जरों को आरक्षण चाहिए, तो मुसलमानों को तथाकथित अल्पसंख्यक होने का आरक्षण, यहीं नहीं अब तो राजस्थान में जब सरकार ने ये तय कर दिया कि आरक्षण ज़रूर मिलेगा और वो भी पांच फीसदी तो ब्राह्मणों ने भी अपने लिए आरक्षण का आवाज़ उठा दी लेकिन जाति के आधार पर नहीं और न ही पिछड़े होने के आधार और न ही अल्पसंख्यक होने का तमगा पहनकर, इन्होने मांगा है गरीब होने के नाम पर। मैं अब इस मांग को ज़ायज़ बताकर इसको सही नहीं ठहराउंगा क्यों कि कई लोगों को इससे परेशानी हो सकती है। मै सिर्फ इस मामले को उठाकर इस मामले सही सोच को अपनाने की बात कह रहा हूं। कल को हर कोई कह सकता है कि उसे आरक्षण चाहिए उस वक्त क्या करेंगे। क्या उस वक्त शांति की अपील करेंगे। मेरे गुर्जर दोस्त है उनसे मैने इस मुद्दे पर बात की तो उन्होने कहा कि देखा शुक्ला हमने क्या कहा था पिछली बार का डर इस बार काम आया, पिछली बार अगर बबाल न होता तो इस बार फिर से उसके डर की वजह से आरक्षण के लिए सरकार तैयार न होती। सवाल ये उठता है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण का मुद्दा उठा साथ ही गुर्जरों को आरक्षण का मुद्दा भी...लेकिन यहां मै बता दूं कि गुर्जरों को आरक्षण तो मिल जायेगा लेकिन गरीब सवर्णों को नहीं क्योंकि हमारे भारतीय संविधान में धन के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान ही नहीं है। तो इस पर आरक्षण की बात करना बेमानी है। एक बात जो मेरे समझ नहीं आई वो ये कि या तो शायद गुर्जर आंदोलन करने वालों को ये बात पता ही नहीं है और या तो वो पता होने के बाद भी वो इससे अंजान बने रहकर ब्राह्मणों को भी अपने साथ लेकर चलना चाह रहे थे...क्यों चाहिए आरक्षण इसका पता तो इनमें से ज्यादातर को पता नहीं होगा और जिन्हे पता होगा शायद उन्हें इसकी ज़रुरत ही न महसूस होती हो।

ये कैसा बदनाम प्यार ?

मंगलवार, जून 16, 2009

इतने दिनों से प्यार में पड़े पागल प्रेमी जो कल तक एक दूसरे को फूटी आंख नहीं भाते थे आज एक दूसरे के लिए प्यार की मिसाल बता रहे हैं । मै बात कर रहा हूं। चंद्र मोहन उर्फ चांद मोहम्मद औऱ अनुराधा बाली उर्फ फ़िज़ा
की जो कुछ महीने पहले ही प्यार के पता नहीं कौन कौन सी कसमें छोड़ी हो जो न खायी हो उसके बाद दोनों के बीच बढ़ी दूरियों के बारे मे कौन नहीं जानता । फिजा की बात तो बडी ही मज़ेदार है। पहले इतना रोई की लगा कि अब तो धोखा खाकर अक्ल खुल गई होगी लेकिन  पिछले दिनो जब चांद मोहम्मद वापस आ गये तो तो जैसे प्रेम को फिर कोई पंख लग गये हों। एक बात समझ नहीं आती की मियां ये कि जब आप दोनो की पहले विवाह हो चुका था तो प्रेम की पींगे क्यों बढ़ाई? अपनी और साथ ही साथ प्रेम शब्द को इन दोनों ने इतना दागदार कर दिया है कि प्रेम एक पवित्र रिश्ता न होकर मात्र जिस्मों के मिलन का एक बहाना मात्र हो गया है। चांद मोहम्मद जो कि मेरे ख्याल से मे 50 की उम्र को पार कर चुके होंगे ने कहा है कि वो फिजा़ से नहीं मिल रहे थे क्यों कि उन्हे भड़काया गया था। अरे रे मेरे भड़काउ शेर जब मौज लेनी हुई तो वापस आ गये जब जी भर गया तो फिर वापस भड़का जाओंगे क्यो मोहम्मद साहब आपकी नजर में मौज लेना प्रेम है क्या? वैसे बात कुछ भी कहो कमाल का राजनीज्ञ है चंद्र मोहन जिसका तथाकथित प्रेम भड़का तो दूसरी शादी तक कर ली वो भी धर्म बदल कर औऱ साथ ही पहली को छोड़ भी दिया औऱ जब जी भरने सा लगा तो चल दिये विदेश दूसरी की तलाश मे अब कौन सा धर्म बदल रहे हो विदेशी मेम के चक्कर में कहीं क्रिस्चियन तो नहीं बन रहे हो। इन जैसे प्रेमियों की करतूतों की वजह से प्रेम जैसी पवित्र बंधन दूषित होता है कम से कम इन जिस्मानी प्रेम के भूखों को तो प्रेमी जोड़ो का नाम नहीं देना चाहिए नहीं तो प्रेम बदनाम होता है। इस फिज़ा को तो कौन कहे पता नही ये बेवकूफ है या बेवकूफ होने का नाटक करती है मीडिया मे इतने ड्रामे करने के बाद भी चंद्र मोहन के मोहनी सूरत में पड़ गयी यै इसे भी राजनीति का चस्का चढ़ा था जो अपना रास्ता साफ करने के लिए हरियाणा के पूर्व उप मुख्यमंत्री को चुन लिया की जैसे ही धोखा देने की बात होगी ड्रामा करुंगी और जैसे ही वापस आयेगा थक हारकर इज्जत बचाकर तो अपनाने का नाटक करके फिर अपनी गोटिया फिट करुंगी । चांद को जाने के बाद आपने देखा ही होगा कि किस तरह तथाकथित छली गई लड़की को अपनाने के लिए किस तरह लोग सामने आये थे । अब तो उन्हें भी शर्म आ रही होगी कि किन चक्करों में फंसा दिया इस लड़की ने......

क्या है कट्टरवादी सोच

गुरुवार, अप्रैल 30, 2009

कट्टरवाद ...क्या है ये कट्टरवाद....कौन है ये कट्टरवादी...इन सवालों ने मुझे बहुत परेशान कर रखा था...फिर मैने सोचा कि इन सवालों के जवाब के लिए मुझे अपने जीवन में झांकना होगा......क्योंकी जीवन के कई व्यवहारिक तजुर्बे कई सवालों के जवाब वो खुद ही दे देते है....आज से 10 साल पहले मैने अपने जीवन के कुछ पलों को याद किया...उसमें याद आया कि मै हिंदुवादी संगठन में जाया करता था...वहां पहले मुझे लगता था कि ये सब काफी मनोरंजक है.... मै वहां जाता था...वहां खेलकूद होता है मौज मस्ती होती है...ऐसे ही कुछ दिन बीत गये.....लगभग एक दो महीने बाद जब मै रेगुलर हो गया तो मुझसे मिलने एक दिन एक महाशय आये उन्होंने मुझसे बात की ...उन्होने मुझसे कहा कि मै संगठन में बतौर सक्रिय कार्यकर्ता शामिल हो जाऊं...पर मैने मना कर दिया मैने कहा कि मै संगठन में ही तो हूं तो अलग से क्या शामिल हो जाऊं...पर उन्होंने कहा कि नहीं... सिर्फ यहां आना ही हिंदुत्व नहीं है...मैने पहली बार हिंदुत्व नाम के शब्द को सुना था..मैने पूछा कि सर ये हिन्दुत्व क्या होता है...तो क्या थी उनकी परिभाषा मै आपको बताता हूं...
जो आपका धर्म है वो हिन्दु है और जो हिन्दू धर्म के लिए लड़ता है उसे हिन्दुत्व कहते हैं,
मैने पूछा, सर मुझे एक बात अभी भी समझ नहीं आया कि हिन्दु और हिन्दुत्व में क्या समानता है,
फिर उन्होने मुझे कहने लगे बेटा देश में खतरा बढ़ गया है मुसलमानों ने हम पर बहुत अत्याचार किये है इसी वजह से हमें अपने धर्म को बचाना है...
आखिर हमारे धर्म को किससे ख़तरा है,
मुसलमानो से ..क्यों कि वो नहीं चाहते कि हिन्दु जीयें...
लेकिन वो क्यों नहीं चाहते कि हम जियें....
क्यों कि मुसलमान कातिल होते है...और फिर उन्होने इतिहास का हवाला दिया....
मैने कहा पर सर अब तो राजा महाराजा शासनकाल खत्म हो गये हैं तो अब इन बातों का क्या औचित्य.
औचित्य है और वो ये कि वो आज भी हिन्दुओं के दुश्मन है..उनकी नज़र में हम काफिर हैं और इसलिए वो हमारे धर्म को खत्म करना चाहते हैं...
लेकिन मेरे तो बहुत से मुस्लिम दोस्त हैं उनसे ये बातें नहीं होती...वो तो मेरे अच्छे दोस्त हैं...
नहीं बेटा वो पहले दोस्ती करके आपसे मिलते हैं पर बाद में दग़ा देते हैं.....

इसी विषय पर करीब एक घंटे की चर्चा के बाद उन्होने मुझे पूरी तरह से संतुष्ट तो नहीं किया पर हां एक सोच में डाल गये की क्या सही होना चाहिए और क्या गलत....

एक सप्ताह बीत गये मै अपने मित्र के यहां गया जो एक मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखते हैं....मै पहुंचा पहले मेरी बात ठीक ठाक हुई पर थोड़ी देर बाद मुझे लगा जैसे वो मुझे नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है
मुझे इस बात पर यकीन होने लगा कि जो बातें मुझे बताई गई थी वो सही थीं...

कुछ समय और बीत गया...और फिर मेरे सामने जो सच्चाई सामने आई वो ये थी कि जिस तरह मुझे समझाने मेरे 'सर' आये थे उसी तरह मेरे मित्र को भी समझाने आये थे उनके मौलाना साहब...उसी तरह मुसलमान होने का मतलब और वही सब बता गये जिन बातों मेरे सर ने मुझे बताई थी.....

इन घटना से मुझे तो साफ हो गया कि किसी भी धर्म में कट्टरता नाम की कोई चीज़ नहीं होती...होती है तो बस वो अनावश्यक डर जो एक पीढी से दूसरी पीढी तक फैलाया जाता है...
और कोई भी उसकी पीछे की सच्चाई को जानने की कोशिश नहीं करता.....और यूं ही चलता रहता है....

आखिर पाकिस्तान में हंगामा क्यों है बरपा

सोमवार, अप्रैल 27, 2009

मैने एक दिन अख़बार खोला उसमे पहले ही पेज पर एक ख़बर थी कि तालिबान ने पाकिस्तान के कुछ इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया...मुझे इस बात का बहुत दुख हुआ कि पाकिस्तान किस तरह अपने ही भष्मासुर से ख़तरे में पड़ गया है.....पर एक बात मेरे दिमाग मे खटकती है कि आखिर पाकिस्तान तालिबान से समझौता कैसे कर सकता है....यहां एक बात तो गौर करने लायक है कि जब पाकिस्तान को पहले से पता था कि तालिबान उसके शहरों पर कब्ज़ा करते हुऐ आगे बढ़ रहा है तो वो क्यों उन पर ध्यान न देकर भारत की तरफ आखें तरेर रहा है..इस घटना से एक बात तो साफ है कि या तो पाकिस्तान दुनिया की नज़रों से तालिबान का ध्यान हटवाने की कोशिश कर रहा है.....पर सवाल उठता है क्यो....जहां तक मुझे समझ में आ रहा है कि वो ये है कि पाकिस्तान पहले से ही ये चाहता रहा है भारत से अपनी दुश्मनी निकालनी है तो अगर उसने तालिबान का साथ दिया तो तालिबान भारत के खिलाफ़ उसकी मदद करेगा...और इस बात को साफ करते हैं पाकिस्तान के वो कदम जिनके होने से ये शक़ पुख्ता भी होता है...पाकिस्तान जब तालिबान के खिलाफ बाहरी मुल्कों से पैसे की मांग कर रहा है..तो दूसरी तरफ़ तालिबान के कब्ज़े वाले इलाकों में सैन्य कार्रवाई करने के बजाय वो तालिबान के शरीयत कानून को लागू करने की छूट दे दी...जिससे हुआ ये कि वहां के लोगों की मुसीबतें बढ़ गई और तालिबान को ये भी समझ आ गया या कहें कि समझाया गया कि पाकिस्तान तालिबान के साथ है न कि उसके खिलाफ....इसीलिए इसके चलते तालिबान पहले से ही भारत पर हमले की बातें कर रहा हैं....आखिर अभी तक तालिबान क्यों सिर्फ अमेरिका को ही अपना दुश्मन समझता था और अब है कि वो भारत के खिलाफ भी आतंकी कार्रवाई की घुड़की दे रहा है....इसके पीछ सारी चालें चल रहा है पाकिस्तान क्यों एक तरफ तो वो तालिबान से लड़ने औऱ आतंक के खिलाफ अपनी झूठी कार्रवाई की दुहाई देकर दूसरे देशों से मदद मांग रहा है...मदद मांगने के पीछे वजह ये भी है कि दूसरे देशों के सामने अपने यहां हो रही आतंकवादी घटनाओं के पीछे भारत की बात करके अपने लोगों को अंधेरे में रख सके, और बाहरी देशों का ध्यान तालिबान से दूर रख सके, वहीं बाहरी देशों को ये भी लगेगा कि पाकिस्तान सच में आतंकवादियों से पीड़ित है....जबकि ये सिर्फ और सिर्फ ढोंग है और कुछ भी नहीं......

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