वंदेमातरम वंदेमातरम...इन शब्दों को जैसे ही अपनी ज़बान पर लाता हूं या कहीं से सुनता हूं तो दिल में धड़कने तेज़ हो जाती है, नसें फड़कने लगती है। रौंगटे खड़े हो जाते है। अपने अंदर एक जोश और मर मिटने का जज्ब़ा पैदा होने लगता है। पता नहीं ये मेरे साथ होता है या सभी के साथ। बचपन से राष्ट्रगीत को इस कदर में मेरे जहन में बसा दिया गया है कि अगर देश को कभी मेरी ज़रुरत महसूस होने लगी तो इस गीत के लिये शायद जान देने से पीछे नहीं हटूंगा। ये वादा मैने खुद से किया है। अक्सर हम टीवी या समाचार पत्रों में कई नेताओं को भी इसका प्रयोग करते देखते होंगे इसलिये ज्यादातर लोग इसको बोलना या सुनना एक मज़ाक समझते हैं। ऐसे लोगों को कहना चाहुंगा कि ये न समझे कि मै बड़बोला हूं। हर किसी को आगे आना पडेगा जब देश की सुरक्षा का सवाल होगा। हमें ये बात याद रखनी चाहिये कि देश को जब भी हमारी ज़रुरत होगी हमें उसके लिये आगे आना होगा। इसलिये मुझे हर किसी का नहीं पता, पर अपना पता है कि ऐसे समय में मै तो पीछे नहीं हटूंगा।
मेरे लिये देश सबसे पहले है, मेरा धर्म, मेरा परिवार, मेरा प्यार, मेरे रिश्ते, या फिर मेरा भगवान ही क्यों न हो, ये सब बाद में। मेरा भगवान कभी मुझसे पूछने नहीं आयेगा कि तुमने देश के लिये मुझे क्यों छोड़ा। जिस वंदेमातरम पर हर किसी को सवाल करने की आदत हो गयी है। और जो लोग ये सोचते हैं कि इसमें देश की वंदना है उनके लिये ये बता दूं, कि हां है वंदना ....है वंदना और रहेगी वंदना.... तुम्हारे होने पर भी और तुम्हारे न होने पर भी। मै कह देना चाहता हूं उन धर्मभीरुओं से कि हां देश के आगे तुम जैसों की कोई बिसात नहीं, कोई औकात नहीं है। कोई धर्म, कोई भगवान, कोई खुदा देश से पहले नहीं होता। ये बात किसी के समझ में आये तो भी ठीक और नहीं आती तो भी ठीक। क्योंकि कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम देश को कितना प्यार करते हो, क्योंकि जो देश के पहले भगवान या खुदा को मानते है थू है उन पर। ये भगवानों, खुदाओं की क्या बिसात है देश के आगे। ये वही देश है जिसके सीने पर पांव रखकर हर किसी ने चलना सीखा है। ये वही मातृभूमि है जिसने हमें खाने को दिया, हर तरह की आज़ादी दी। किसी के साथ कोई भेद नहीं किया । ये तो हम है जो खुदगर्जी के लिये इन चीज़ों पर अधिकार जताते है, लेकिन चंद लोगों के बनाये भगवान के पीछे भागते रहते है, लेकिन जो है उसकी कद्र नहीं करते, और उसको पूजते है जिसका अस्तित्व है या नहीं ये तो या वो भगवान जानता है या फिर उस पर विश्वास करने वाला। लेकिन देश से पहले धर्म और भगवान को मानना उसकी बेइज्जती करना है। जिस वंदेमातरम पर फतवा जारी हुआ है और जिस मुद्दे पर लगभग हर कट्टर धार्मिक ठेकेदारों ने अपने विचार रख कर रस्साकशी का खेल खेल रहे हैं। उनके लिये ये जानना बेहद ज़रुरी है कि देश की वंदना करना भगवान की वंदना करने से ज्य़ादा ज़रुरी है। जिस देश के वासी अपने देश की पूजा नहीं करते उसको तो भगवान भी नहीं बचा सकता और न ही भगवान बचाने आयेगा। हम ही एकदूसरे के भगवान है।
टीवी पर आ रहे एक कार्यक्रम में जमीयत ए उलेमा हिंद की हिमायत कर रहे एक महाशय वंदेमातरम की खिलाफत सिर्फ इसलिये कर रहे थे क्योंकि वंदेमातरम गीत में देश की वंदना है या कहें कि पूजा है। और उनके लिये धर्म के किताबी ज्ञान के मुताबिक भगवान की इबादत के अलावा वो किसी औऱ की इबादत नहीं कर सकते है। इसलिये क्योकि वंदेमातरम में देश की वंदना यानी पूजा है, फतवा जारी कर दिया गया। ऐसे मूर्ख लोगों को समझाया नहीं जा सकता । अब हम उन लोगों को अनपढ़ कहें या कम पढ़े लिखे लोग ये तो मेरी समझ से बाहर है। अब सवाल ये है कि उन कम पढ़े लिखे, बिना सोच विचार करने वाले लोगों को किस तरह समझाया जाये। अब कैसे बताया जाये कि देश की पूजा सबसे बड़ी पूजा है, और इससे पहले किसी भगवान या खुदा की कोइ बिसात नहीं।मै चाहता हूं कि हम सभी को इसके लिये आगे आने की और नई सोच विकसित करने की ज़रुरत है। सब मिलकर कहिये वंदेमातरम्.. वंदेमातरम्.... वंदेमातरम्.... वंदेमातरम्.....
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
3 दिन पहले