जरनैल सिंह ने वो किया जो उन्हें उस वक्त नहीं करना चाहिये था जिस वक्त वो एक पत्रकार की हैसियत से गए थे...पर एक सच ये भी नहीं भूलना भी नहीं चाहिए कि और दूसरी जगह वो चिदंबरम साहब को ढूंढ भी नहीं पाते...जरनैल सिंह की ये जनरल हरकत है जो टाइटलर को क्लीन चिट मिल जाने के बाद हर सिख के अंदर दबी पड़ी है..वो जूता जो फेंका गया था वो जूता नहीं था वो उस गुस्से की झलक थी जो आज सभी के अंदर भड़क रही है..जरनैल सिंह ने चिदंबरम पर जूता नहीं फेंका था उन्होंने उस आदमी पर जूता फेंका जो कांग्रेस की टाइटलर को टिकट देने या उसे क्लीन चिट देने की बात पर सफाई देने आया था...उस समय चिदंबरम गृहमंत्री नहीं थे उस वक्त वो उस आदमी के पक्ष में खड़े थे जिस पर हज़ारों सिखों की हत्या का आरोप था...उस समय चिदंबरम सिर्फ और सिर्फ सफाई वक्ता थे जो उस मुद्दे पर सफाई देने आया था..अगर उस वक्त कोई भी होता तो शायद उस पर जूता ज़रूर फेंकते जरनैल...
सभी पत्रकार बंधु या समूह जरनैल के कृत्य को गलत ठहरा रहें है..पर किसी ने तब क्यों नहीं मुंह खोलकर सीना चौड़ा कर ये कहना ठीक समझा कि टाइटलर जैसे को क्लीन चिट कैसे मिल गई....और क्यों नहीं पत्रकार या समूह इस मुद्दे को लेकर एक मुहिम के तहत इस फैसले को गलत ठहराकर हर रोज इस मुद्दे को रोज उछाले ताकि इसका सही हल निकले और सच सबके सामने आ सके...जितने दिन हम जरनैल सिंह की इस हरकत को गलत ठहराने की ख़बर पर चर्चा करेंगे उतने समय में अगर पीछे पड़ कर सभी पत्रकार इस मुद्दे को अंजाम तक पहुंचाने में लग जायें तो शायद किसी और पत्रकार को ऐसा काम न करना पड़े..जरनैल ने सही किया या गलत इस बहस में पड़ना बेवकूफी होगी क्योकि वो एक क्रोध की फुहार भर थी जो सिर्फ छलकी भर हैं...अगर वो घड़ा फूट गया तो एक बार फिर देश जल उठेगा और हम सभी अख़बारों और चैनलों में लोगों के मारे जाने की ख़बरें चलती रहेंगी और देश जलता रहेगा......
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
3 दिन पहले