फिर भड़की आरक्षण की दादागीरी...

बुधवार, जुलाई 29, 2009


राजस्थान में पिछली सरकार यानी बीजेपी के शासनकाल के दौरान आरक्षण की ऐसी आग लगी थी कि सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर हुए हिंसा को शर्मनाक करार देना पड़ा था। लेकिन उस वक्त कानून व्यवस्था के चलते सब कुछ ठीक हो गया। लेकिन किसी ने ये न सोचा था कि आग बुझी नहीं सुलग रही है और अगर उस पर पानी न डाला गया तो वो फिर से भड़क सकती है। राजस्थान में फिर से आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ा है। पिछड़ों को मजबूत करने के लिए शुरु हुए इस सिलसिले को आज लोगों ने हथियार बना लिया है। राजस्थान में आज गुर्जरों को आरक्षण चाहिए, तो मुसलमानों को तथाकथित अल्पसंख्यक होने का आरक्षण, यहीं नहीं अब तो राजस्थान में जब सरकार ने ये तय कर दिया कि आरक्षण ज़रूर मिलेगा और वो भी पांच फीसदी तो ब्राह्मणों ने भी अपने लिए आरक्षण का आवाज़ उठा दी लेकिन जाति के आधार पर नहीं और न ही पिछड़े होने के आधार और न ही अल्पसंख्यक होने का तमगा पहनकर, इन्होने मांगा है गरीब होने के नाम पर। मैं अब इस मांग को ज़ायज़ बताकर इसको सही नहीं ठहराउंगा क्यों कि कई लोगों को इससे परेशानी हो सकती है। मै सिर्फ इस मामले को उठाकर इस मामले सही सोच को अपनाने की बात कह रहा हूं। कल को हर कोई कह सकता है कि उसे आरक्षण चाहिए उस वक्त क्या करेंगे। क्या उस वक्त शांति की अपील करेंगे। मेरे गुर्जर दोस्त है उनसे मैने इस मुद्दे पर बात की तो उन्होने कहा कि देखा शुक्ला हमने क्या कहा था पिछली बार का डर इस बार काम आया, पिछली बार अगर बबाल न होता तो इस बार फिर से उसके डर की वजह से आरक्षण के लिए सरकार तैयार न होती। सवाल ये उठता है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण का मुद्दा उठा साथ ही गुर्जरों को आरक्षण का मुद्दा भी...लेकिन यहां मै बता दूं कि गुर्जरों को आरक्षण तो मिल जायेगा लेकिन गरीब सवर्णों को नहीं क्योंकि हमारे भारतीय संविधान में धन के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान ही नहीं है। तो इस पर आरक्षण की बात करना बेमानी है। एक बात जो मेरे समझ नहीं आई वो ये कि या तो शायद गुर्जर आंदोलन करने वालों को ये बात पता ही नहीं है और या तो वो पता होने के बाद भी वो इससे अंजान बने रहकर ब्राह्मणों को भी अपने साथ लेकर चलना चाह रहे थे...क्यों चाहिए आरक्षण इसका पता तो इनमें से ज्यादातर को पता नहीं होगा और जिन्हे पता होगा शायद उन्हें इसकी ज़रुरत ही न महसूस होती हो।

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