उत्तर प्रदेश की या तो किस्मत खराब है या तो यहां के नेता ज़रुरत से ज्यादा ही स्याणे हो गये हैं, या ये भी हो सकता है कि दोनों ही हो। जिस तरह का पूरक बजट आया है उसे देखकर लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के 47 से ज्यादा ज़िले सूखाग्रस्त हुये ही न हो। प्रदेश में 47 ज़िले सूखा ग्रस्त घोषित हो चुके हैं लेकिन इस बजट को देखकर लोगों को ये लग रहा होगा प्रदेश सूखाग्रस्त नहीं मूर्तित्रस्त है। जिस कारण यहां हर रोज़ कभी हाथी तो कभी सुश्री मायावती अपनी औऱ साथ में उनके गुरु काँशीराम की मूर्तियां लगवाई जा रही हैं। आपको बता दूं कि मूर्ति में होने वाला खर्च है लगभग 512 करोड़ से ज्यादा लेकिन आपको ये जानकर औऱ ज्यादा शर्म आयेगी कि सूखाग्रस्त ज़िलों के लिये सिर्फ 250 करोड़ रुपये खर्च का बजट लाया गया है। शर्म इसलिये कि यार हमने ही तो चुना है मायावती को। पता नहीं खुद ने या किसी और ने लेकिन वोट तो हमें ही देने होते हैं। बड़ा संकट खड़ा हो जाता है जब वोटिंग का समय आता है। समझ में ही नहीं आता है कि किसे वोट दें... उस वक्त तो सभी एकदम देवता स्वरुप नज़र आते है लेकिन असली रंग दिखता है कुछ समय सत्ता में बीत जाने पर, जब पता चलता है कि घोटाले में हर किसी का नाम आया। तो फिर यूपी के लोगों तैयार हो जाओ, इस लेख में दो बातों पर ज़ोर दूंगा कि एक तो मायावती के मज़ेदार औऱ लोगों को बेवकूफ बनाने वाले पूरक बजट पर.....दूसरा क्या इस वक्त उनके अलावा कोई विकल्प है आपके पास हाहाहा। जी पहले मुद्दा मायावती के पूरक बजट पर। आपको पता है उत्तर प्रदेश के लोगों को विकास नहीं पार्क चाहिये, आप कहेंगे कि क्या बात कर रहे हो यार पार्क ज्यादा ज़रुरी है या बिजली... तो मै कहूंगा कि पार्क अरे बच्चों के लिये पार्क से ज्यादा सही जगह कुछ हो सकती है ? फिर आप कहेंगे कि पार्क से ज्यादा जरुरी है शिक्षा व्यवस्था पर खर्च ताकि बच्चों के लिये पढा़ई और सस्ती हो जाये, ज्यादा से ज्यादा बच्चे पढ़ सकेंगें। लेकिन फिर भी सिर्फ मै ही नहीं इस बार तो सरकार भी कह रही है कि लोगों के लिये पार्क औऱ मूर्तियां ज्यादा ज़रुरी है। विधानसभा में इस बार 75 अरब 60 करोड़ का पूरक बजट पेश किया गया। इसमें राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि से खर्च के लिये मात्र 250 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे है। एक और खास बात कि राजधानी के लोगों के लिये एक खुशी की खबर है कि राजधानी के विकास में सौ करोड़ रुपये लगाये जायेंगे पता नहीं इतने खर्च होंगे कि नहीं पर पास तो हुए हैं। अब ये मत कहियेगा कि यार मेरे यहां कि नाली पता नहीं कब ठीक होगी, घर के बाहर की सड़क कब बनेगी या पता नहीं कूड़ा उठाने वाले कब आयेंगे बदबू से घर भर गया है मच्छर बहुत हो रहे है छिड़काव कब होगा यार। फिकर नॉट बजट पास हो गया सब हो जायेगा। कोई ये तो नहीं कह रहा है न पिछली बार भी विकास के नाम पर बहुत पैसे आये थे तब तो कुछ नहीं हुआ। बड़ी दिक्कत हो जाती है जब ऐसे सवाल आते हैं तो। एक और खुश खबरी पूरे प्रदेश के लोगों के लिये, अरे बता रहा हूं यार परेशान न हो। पता है कि इस बार मूर्तियों और पार्कों के लिये साढ़े पांच अरब रुपये से अधिक की व्यवस्था की गई है। कहीं से आवाज आई कि क्यों यार बिजली बहुत दिनों से नहीं आ है। क्या हुआ, कुछ नहीं यार जो लकड़ी की खम्भा लगा था आंधी में टूट गया है इस वजह से बिजली नही आ रही है। तो क्या शिकायत नहीं की क्या। की थी यार कहा तो था कि आयेगा ठीक करने.. लेकिन आया नहीं। मै बोला कि ठीक ही तो है यार सरकार पार्क काहे के लिये बनवा रही है बिजली नही आ रही है बिजली नहीं आ रही है.. जब देखो तब रोना रोते हो यार जाओ पार्कों में सो जाओ चबड़ चबड़ न करो। कोई बोला कि यार बरसात नहीं हुई मेरे खेत तो धूप में जल गये... सारी फसल बर्बाद हो गई, अब क्या करें पता नहीं सरकार कुछ करेगी या नही, मै बोला अरे कर तो रही है 250 करोड़ रुपये पास तो कर दिये है जाओ मदद मिल जायेगी। पर कैसे होगा पूरे इतने ज़िले है उनमें से 47 ज़िले सूखाग्रस्त हैं.. ऐसे में कितनों को मिलेगी मदद। मै बोला देखो भइया कम कम मत करो पहले जाओ पहले पाओ...चले जाना और हां कुछ पैसे वहां के अधिकारी को खिला देने हो जायेगा। वो बोला कि अबे लिखाड़ तूझे नहीं लगता कि जब इतने कम पैसों में सबका तो नहीं हो पायेगा, मूर्ति पर ज्यादा खर्च क्यों करें... क्यों न किसानों पर खर्च करें। मै बोला चुप कर सरकार तेरी है या मायावती की। खर्च के लिये बहाने कौन लायेगा तू कि सुश्री मायावती, वो बोला मायावती तो मै बोला तो फिर चल अपने से मतलब रख। बड़ा आया सुझाव लेकर। मायावती के पास कम है सुझाव वाले जो तू भी नया सुझाव लेकर पहुंचेगा। उनकी सरकार उनका पैसा जहां चाहे वहां खर्च करें तुझे क्या। कोई बोला कि विकास के नाम पर अक्सर लखनऊ को ही क्यों याद किया जाता है। प्रदेश मै और भी तो कई गांव व शहर हैं। मै बोला अबे वो राजधानी है बोले तो पहचान अपने प्रदेश की। और शहरों को विकास की क्या ज़रुरत है वो तो शहर है, और गांवों को गांव ही रहने दो नहीं तो अपने बच्चों को गांव कैसे दिखाओगे। मिट्टी से कैसे जोड़ोगे। हमने सुना है कि मायावती जी एक नया हेलीकॉप्टर खरीद रही हैं। तुम बे हमेशा मायावती के पीछे ही पड़े रहते हो। क्या चक्कर है ? अब क्या वो सड़क मार्ग से जायें कहीं... पुराना वाला खराब हो रहा है, तो नया तो चाहिये ही न। कितने का आयेगा हेलीकॉप्टर, यही आयेगा कुछ नब्बे लाख के आसपास का, क्यों तुम्हें कैसे पता कि उतने का आयेगा। अरे भाई पिछली बार मैने ही तो मंगवाया था। अरे हां लिखाड़ भईया हमने भी देखा था एक रात आपके पास बहुत पैसा आ गया था तो अगले दिने आपके घर के नीचे होंडा सिटी आ गई थी। ओए कौन बोला कौन बोला वो हमारी नहीं थी गिफ्ट में मिली थी। हेलीकॉप्टर बनाने वालों ने दी थी। लिखाड़ भईया हमने सुना है कि अब तो न्यायाधीशों के लिये भी होंडा सिटी कार ही खरीदी जा रही है, पिछली कहां गई, पुरानी हो गयी है तो नयी तो चाहिये ही। और इतने मामले चल रहे हैं कि न्यायाधीशों से जानपहचान तो बना के रखनी पड़ेगी ही। अब होंडा देकर अपनी संबंध मजबूत किये जा रहे है। तुम लोग भी न बस पीछे ही पड़ जाते हो। आपसी रिश्ते मजबूत करने से ही आगे काम बनता है। इतना कहकर सभी लोग चले गये अपने अपने घर ....और भी बहुत कुछ है लेकिन यहां पर यही खत्म कर रहा हूं क्यों कि लोगों को इसे जानकर ही बोरियत महसूस होने लगी है क्यों कि उनके लिये सिर्फ बिजली पानी, सड़क के अलावा कुछ सूझता ही नहीं है। बहुत सोच लिया तो चिकित्सा सुविधाओं के बारे ये अलग बात है कि इसमें कुछ नही हैं इस बार। कुछ लोग कहेंगे कि शिक्षा भी तो एक मुद्दा है, तो भाई साहब शिक्षा कब से मु्द्दा हो गया, हममें से कितनो के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। हम हर वो सच जानते हैं जो हम जानना चाहते हैं लेकिन उस वक्त हमें उस बात के जवाब का ख्याल ही नहीं आता क्योंकि सवालों में इतने उलझा जाते है कि जवाब ढूढे नहीं मिलता। ठीक इसी तरह हम जानते है कि सरकारी स्कूलों का क्या स्तर है तो कोई नहीं चाहता कि उसमें अपने बच्चों को पढ़ाये। और जो लोग पढ़ाते है वो उतने में ही खुश हैं। इन सभी चीज़ो के लिए अगर कोई दोषी है तो वो हम हैं क्यों हम है इसका जवाब भी हमारे अंदर है बस उसको ढूढना ज़रुरी है। रही बात इसके विकल्प की तो जब दिमाग में कुछ विकल्प आयेगा तो मै आपको बताउंगा नहीं तो आपके दिमाग में आये तो मुझे ज़रुर बताईगा।
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
कुछ और लिखाड़...
-
-
-
-
-
फिर लगेगा नाइट कर्फ्यू !3 वर्ष पहले
-
-
-
-
-
-
-
दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)14 वर्ष पहले
-
-
मायावती का पूरक बजट, मै हूं हिमायती!!!!!
मंगलवार, अगस्त 04, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 8:57 pm
लेबल: हास्य व्यंग
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणियाँ:
आपने मु्द्दा तो बहुत सही उठाया है, बड़ी ही विकट समस्या है ये लेकिन कोई हल नहीं है, क्योंकि इसका हल एक ही है वो हल है हम।
एक टिप्पणी भेजें