मीडिया में काम करना काफी थकाऊ होता है। दिन भर की भागदौड़, हर काम को समय से भेजने की तेजी, सभी कुछ। मेरी भी काम की शिफ्ट खत्म हो चुकी थी। थक तो काफी गया था, शाम तीन बजे से रात के 12 बजे तक की शिफ्ट है। काम खत्म करके सीधा घर आ जाता हूं। रास्ते में कही रुकता तक नहीं, सूनसान सड़कें होती है, रुकने का मन ही नहीं करता, सूनेपन से डर लगता है। बाइक पर बैठा सीधे अपने घर की ओर निकल पड़ा, रास्ते में कानों में हेडफोन लगाये मधुर संगीत का आनंद लेते हुए खाली सड़कों पर लगभग अकेला चला आ रहा था, लगभग अकेला इसलिये क्योंकि इक्का दुक्का गाडियां मुझे और मेरी बाइक को देखती हुई निकल जा रही थी।
बस मेरे घर के पास का आखिरी चौराहा जहां से मुझे अपने कमरे के लिये मुड़ना है। चौराहे पर ही सूनसान रात में एक लड़की एक छोटे से पेड़ के नीचे खड़ी है, मैने दूर से ही देख लिया। रात के अंधेरे में सड़को पर रोशनी करती स्ट्रीट लाइट से छुपती वो लड़की किसी का इंतजार कर रही थी शायद। एक टाटा इंडिका कार जिस पर पीली पट्टी पर काले अक्षरों से नंबर लिखा था वो उसके पास जाकर रुक गयी। सोचा कि हो सकता है कि वो उसमें बैठ जाये। पर नहीं वो नहीं बैठी, वो गाड़ी के ड्राइवर से बात कर रही थी। मै उनको क्रॉस करके आगे चला जा रहा था, मेरी नजर उस लड़की पर थी, पत्रकारों की गंदी आदत नहीं जाती है, कुछ भी संदेहास्पद लगता है तो नज़रे टिक ही जाती है। मुझे एक बार के लिए लगा कि कहीं वो कैब वाले उस लड़की को छेड़ने के लिहाज़ से तो नहीं खड़े है, पर नहीं चिल्लाने की आवाज नहीं आई, पर फिर भी मै रुका, मै पलटा उसे देखने के लिये, वो लड़की सफेद सी दिखने वाली टीशर्ट में थी, अंधेरे में सावला सा दिखने वाला चेहरा था, न ज्यादा पतली ना मोटी, वहां से हिली तक, नहीं कैब वाले से बात कर रही थी।
दिमाग ठनका, मुझे यकीन हो चला की उस लड़की को कोई नहीं छेड़ रहा है, हां वो किसी का इंतज़ार ज़रुर कर रही थी। किसका ये खुद उसे भी पता नहीं होगा, पर हां जिसके पास उसकी कीमत लगाने का माद्दा होगा वही उसे ले जायेगा। उसी का लडकी को इंतजा़र था शायद, मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ, पता नहीं क्यों पर मै वहां से सीधे घर न जा सका। आगे ही मैने मोटरसाइकिल पर सवार दो पुलिस वालों को देखा। मै उनके पास गया और उन्हे पूरी घटना बताई। घटना सुनने के बाद उन्हे समझने में देर न लगी कि वो कौन है। या फिर वो यहां क्यों खड़ी थी रात में । पुलिस को खबर करके मै सीधे अपने घर आ गया।
पर एक बात जो मेरे दिमाग में घर कर गयी कि क्या सच में वो लड़की उन्ही लड़कियों में से थी जिनको अपनी कीमत चाहिये होती है। या फिर कोई और थी। क्या मैने सही किया पुलिस को खबर करके। पुलिस ने जो भी कदम उठाया हो।मुझे नही मालूम पर इतना ज़रूर पता है कि अगले दिन उस जगह पर पेड़ और उसकी छाया तो थी पर वो लड़की नहीं थी। अब सोचता हूं कि पेट के लिये शायद वो ऐसा करती होगी, खुद को दोषी महसूस कर रहा हूं, सोच रहा हूं कि क्या मैने सही किया ?
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
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क्या मैने सही किया ?
सोमवार, अप्रैल 19, 2010प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 11:52 am 8 टिप्पणियाँ
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