आदरणीय हिंदी हमें शर्म है खुद पर

मंगलवार, नवंबर 10, 2009


मेरी प्यारी हिंदी
क्या कहूं, लेकिन धीमे से ही कहुंगा कि प्लीज किसी से कहना मत कि बहुत से लोग तुम्हे जानते हैं। नहीं तो वो मुंबई नहीं जा पायेंगे। वैसे क्या चल रहा है आजकल, बड़े चर्चे सुन रहा हूं। तुम्हारे चर्चे तो विधानसभा में भी गूंजने लगे हैं। तुम्हारे नाम पर तो जूतम पैजार भी हो रही है। तेरे लाल डटे हुए हैं मोर्चे पर। घबराना मत, हम जैसे लेखक है तुझे तेरा सम्मान दिलाने के हक में, हम तुझे हमेशा याद करते है। जब भी कलम उठती है तेरी याद आती है। क्या करें, मेरी मां को भी तुमसे बड़ा लगाव था। जब वो कलम चलाना सिखा रही थी तो उसने तेरी पूजा करनी सिखाई। इसलिये तुझे मां ही समझता हूं। चिंता मत करना मेरी कलम जब भी उठेगी तेरे लिये उठेगी, तुझे तेरा दर्जा दिलावाकर रहेगी। मुझे तेरा दर्द पता है, मुझे पता है कि कैसे अंग्रेजी तेरा चीरहरण करती है, तभी तो हिंदी के आराधकों की नसें फड़कने लगती थी। लेकिन शर्म है खुद पर, कैसे कहूं पर अब तो जिस राष्ट्र की तू राष्ट्र भाषा है वहां के दुराचारियों की नज़रें भी तेरे अधखुले बदन को चीड़ फाड़ने के लिये ताड़ रही है। मगर घबरा मत...तेरे उपर जिस राज ठाकरे जैसे दुराचारियों की नज़रें पड़ी है उनके अस्तित्व की पहचान खुद उन्हें भी नहीं हो पायेगी। तुझे राष्ट्रभाषा कहने का छद्दम दर्जा तो दे दिया गया लेकिन क्या तुझे उसके जितनी इज्जत मिल पाई है। ये सवाल मै तुझसे अच्छा जानता हूं। हम तो तेरे आराधक है, हमें तो तुझमें अपना भगवान नज़र आता है। लेकिन कसम है तेरी, जिस जिस की गंदी नजरें तुझ पर उठेंगी उसे उसकी ही नज़रों गिरा देंगे।

लेकिन आदरणीय हिंदी अंत में इतना ही कहुंगा कि हमें शर्म है खुद पर जो तेरे दुश्मनों को तुझमें विश्वास न दिलवा पा रहें हैं। क्या करें जिस देश की तुम राष्ट्रभाषा हो उसी देश के वो नेता हैं। जो यहां के लोगों की ही नुमाइंदगी करते हैं। और इस लोकतंत्र में हम उन पर दबाव नहीं बना सकते हैं। पर शर्म इस बात की है कि वो दूसरों पर दबाव बना लेते है, और उनको तेरे देश का संविधान भी नहीं रोक पाता , जिस देश की तू राष्ट्रभाषा है
हमें माफ करना।

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