मेरे घर आये थे 'ज़ालिम' वोट मांगने

बुधवार, अप्रैल 01, 2009

अभी कल की ही बात है मैं अपने घर पर आराम कर रहा था....सोचा कि थोड़ा टीवी देख लूं ..लेकिन लोकसभा चुनाव की ख़बरें देखते देखते बोर हो गया...अब मै बस बैठा ही था कि तभी दरवाजे की बेल बजी..मैने दरवाज़ा खोला तो पाचासों लोगों की भीड़ देखकर एक बार को तो मैं डर ही गया...जब पाचास साठ आदमी आपके घर के सामने खड़े हों तो कौन नहीं डरेगा....एक बार को तो लगा कि कहीं मैने कुछ ऐसा तो नहीं किया कि मोहल्ले के लोग मेरे घर पर धावा बोलने आ गये....अरे मै एक पत्रकार हूं तो मेरा डरना तो जायज़ ही है क्योंकि दूसरों के गलती दिखा दिखा कर मैने कईयों को अपना दुश्मन बना लिया है...लोकिन गांधी सी मूरत और सूरत बनाकर एक खादीधारी मेरे द्वार पर खड़ा था हाथ जोड़े....मुझे समझते देर न लगा कि ये महाशय यहां वोट के लिए आए हैं....इससे पहले कि वो कुछ बोलते मैंने ही उनसे कह डाला कि बिलकुल जी वोट आपको ही देंगे चिंता न करें....समझदारी का परिचय देते हुए मेरे कह दिया कि मै आपको ही वोट दूंगा...इससे न तो मेरा कुछ जाता है और वो भी खुश हो जाते हैं...क्या जाता है कहने में कि वोट उनको ही देंगे भले ही मेरा नेता कोई और हो....सच में तो कभी ये बताना ही नहीं चाहिये कि आप किसे वोट देंगे क्योंकि ये तो आपका पर्सनल फैसला होता है...जैसे ही मैने दरवाजा खोला मैंने देखा कि नेता जी मुझसे वोट मांग रहे थे और साथ में खड़े हैं इनके मुशटन्डे से लोग जो बदमाश टाइप भी लग रहे थे सारे मुझे घूर रहे थे शायद ये सोच रहे हों कि'' बेटा वोट इसे ही देना नहीं तो ख़ैर नहीं" और सच बताऊं तो वो थे शहर के छंटे बदमाश क्योंकि उनमें से कुछ लोग तो वो थे जिनको सड़क पर खड़े होकर छिछोरापंती करते मै अक्सर देखा करता था...और कुछ तो वो लोग थे जो शहर के हिस्ट्रीशीटर रह चुके थे....अब वोट मांगने आए थे तो उन्हें मना करके उनसे दुश्मनी कौन ले सो मैने बोल दिया कि वोट उसे ही देंगे पर सच तो मुझे ही पता है कि मुझे वोट किसे देना है और किसे नहीं..।

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