वरुण गांधी के 'मेरे लोग'

सोमवार, मार्च 30, 2009

वरुण गांधी पर मामले दर्ज हो रहे हैं। जितना उन पर मामले दर्ज होगें वो उतने ही हीरो बनते जाएगें। उनके सरेंडर करने के पीछे के जितने नाटक हो सकते थे उतने हो गये...लोगों ने हल्ला कटवाना था कटवा लिया॥कांग्रेस को डराना था डरा दिया। वरुण के समर्थक यानी उनके लोग या उनकी भाषा में कहें कि 'मेरे लोग' । जितना बबाल काट सकते थे उन्होने काटा...लेकिन वरुण की इस नाटकीय गिरफ्तारी से जितनी पब्लीसिटी मिल गई उसे भारतीय जनता पार्टी ज़रुर भुनाना चाहेगी और मै तो कहुंगा कि भुना लिया है॥तभी तो कई भाजपा नेता अब तो खुलकर वरुण के समर्थन में सामने आ गयी है...लेकिन वरुण के मेरे लोगों ने ही जितना हल्ला काटा है जितना बबाल किया है उसे किस श्रेणी में रखेंगे ये कहना मुश्किल है..

"ये जलेबियां किसे दूं"

गुरुवार, मार्च 26, 2009

मैं एक दिन शाम को बाज़ार में घूमने निकला । सोचा कि चल कर कुछ खा पी लें । अगर आप कहीं जाए तो खाने पीने का मन तो अक्सर हो ही जाता है मेरे साथ तो ऐसा ही है। मै जलेबी के मज़े ले ही रहा था कि कहीं से एक छोटा सा पिल्ला कहीं से आ गया। मेरी ओर ऐसे घूर रहा था कि जैसे मुझे जानता हो।मैने भी उस देखा जब उसे लगा कि मै उसे देख रहा हूं तो कुत्ते की कभी सीधी न होने वाली पूंछ यूं हिली जैसे उसके पीछे बैठे किसी आदमी को हवा चाहिए हो और कुत्ता हवा कर रहा हो।मै समझ गया कि हो न हो ये मेरी जलेबियों पर नज़र गड़ाये बैठा है। मैने बड़े ही सख्त अंदाज उसे डांटा और मुंह फेर कर जलेबी का स्वाद लेने लगा। मैने थोडी देर बाद फिर देखा कि वो अब भी मुझे कातर निगाहों से देख रहा था।मुझे भी इस बार दया आ गई मैने जलेबी की एक टुकड़ा उसकी तरफ फेंका वो कुत्ता लपकने ही वाला था कि पास में ही मैले कुचैले कपड़ों में खड़ी एक छोटी सी बच्ची ने उसे भगा कर जलेबी के टुकड़े को खा लिया वो टुकड़ा ज़मीन पर गिरकर मटमैला भी चुका था। मैने फिर उस छोटी बच्ची को थोड़ी सी जलेबी दे दी और मुंह दूसरी तरफ फेर कर खड़ा हो गया और जलेबी खाने लगा। लगभग 2 मिनट बाद मेरी नज़र उन पर पड़ी तो मैंने उन कुत्तों पर जलेबी फेंकनी चाही जैसे ही मै मुड़ा मेरी आंखे फटी रह गई मुझे समझ नही आया कि मै क्या करुं। मुझे समझ नहीं आया कि क्या मैने सही किया था उन्हें जलेबी खिलाकर या गलती का ज़िम्मेदार किसे ठहराऊं। जैसे ही मै पलटा मैने देखा कि एक तरफ चार से पांच कुत्ते मेरी तरफ देख रहे थे कि और वहीं दूसरी तरफ कातर निगाहों से कुछ छोटे बच्चे मैले कपड़ों में मेरी ओर उन कुत्तों से भी ज्यादा अपेक्षाओं से देख रहे थे।अब समझ नहीं आया कि मै किन्हें उन जलेबियों को खिलाऊं।मै किसकी तरफ उन जलेबियों को बढ़ाऊं।पर मुझे ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं पड़ी मैने उन जलेबियों को छोटे बच्चों को दे दी ये सोचकर कि वैसे अगर जलेबियों को कहीं भी दूं खाना तो इन बच्चों ने ही है।

"सज़ायाफ्ता" चुनाव प्रत्याशी

गुरुवार, मार्च 19, 2009

चर्चित मधुमिता हत्या कांड के मुख्य आरोपी और सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दोषी साबित किये जा चुके पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की ज़मानत याचिका दायर कर रहे हैं ताकि वो चुनाव ल़ड़ सकें..आपको बता दें कि अमरमणि त्रिपाठी को सीबीआई की विशेष अदालत आजीवन कारावास की सजा़ सुना चुकी है। और फिलहाल वर्तमान में वो अभी जेल का मज़ा उठा रहे हैं। इस सज़ा पर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका भी डाल रखी है...इनका कहना है कि जब तक सुनवाई चल रही है तब तक के लिए उन्हें ज़मानत दे दी जाए..कारण सुन कर मेरे भाईयों आप हैरान हो जायेंगे..अमरमणि ने कारण दिया है कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ना है इसलिए उन्हें तब तक के लिए ज़मानत दे दी जाए....अरे यार ये नेता तो आम लोगों को बेवकूफ समझते हैं क्या...अमरमणि को क्या लगता है जनता उन्हें वोट देगी...उन्हें खुद का वोट भी मिल जाए तो ही वो ख़ैर समझे....अमरमणि जैसे कई नेता हैं जो इन चुनाव में प्रत्याशी हैं जिन्हें जेल में सड़ना चाहिए वो नेता बनकर ख़ून चूसने को तैयार हो रहे हैं...उनकी भी गलती नहीं है हम है दोषी जो ऐसे चोरों लुटेरों को वोट देते हैं..गुस्सा तो बहुत है ऐसे नेताओं पर सोचता हूं दोषी हम देशवासी हैं या हमारी डरपोंक देशभक्ति है जो इन जैसों को चुनाव में खड़े होने देती है या ये कहें कि संविधान का इस्तेमाल ये लोग ज्यादा जानते हैं.....

"क्रिकेट" और"बॉलीवुड" की "जय हो"

लोकसभा चुनाव के घमासान से पहले आईपीएल के लफड़े से वैसे ही लोग परेशान हैं। और दूसरी ओर ऑस्कर विजेता ए.आर रहमान की धुन से चुनाव जीतने की जुगत में लगी है, यूपीए सरकार । सुरक्षा को लेकर पहले से ही देश परेशान है और अब हमारे देश के कुछ 'सांप्रदायिक लोग' जैस ललित मोदी आईपीएल के लिए खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं । सांप्रदायिक कहने का मेरा तात्पर्य था कि हमारे भारत देश में क्रिकेट एक धर्म हो चुका है और ललित मोदी न चुनाव देख रहे हैं और न ही खिलाड़ियों की सुरक्षा व्यवस्था क्योंकि अगर चुनाव होगें तो खिलाड़ियों का सुरक्षा कैसे मिल सकेगी और अगर उन्हें मिली तो हम आम जनता का क्या होगा,और वो क्रिकेट को लेकर कुछ भी नहीं सोच रहे हैं... मै तो ललित मोदी से कहुंगा कि अरे भाई साहब देश में चुनाव पांच साल बाद आते हैं और आपका आईपीएल तो हर साल आता है तो कम से कम इस साल तो कुछ आराम दीजिए.. दर्शकों को चुनाव के इस खेल का आनंद लेने दीजिये....शीर्षक तो मैने अपने चिठ्ठे का दिया है 'क्रिकेट और बॉलीवुड की जय हो'...क्रिकेट की चर्चा मै कर चुका और बॉलीवुड की चर्चा की वो इसलिए क्योंकि अगर बॉलीवुड न होता तो कई लोगों का सपना नेता बनकर देश चलाने का सपना अधूरा रह जाता ...यही नहीं कई पार्टीयां तो फ़िल्म स्टार को चुनावी मैदान में उतारती हैं तो कोई संगीत को ही अपना तारणहार समझ रही है..यार ये राजनेता हम आम आदमियों को कब तक बेवकूफ़ समझते रहेंगे....हर साल एक ही तरह के वादे और इरादे ज़ाहिर करेंगे ...सपा अगर बॉलीवुड की प्रोडक्शन पार्टी है तो कांग्रेस म्युज़िक लवर पार्टी है...बीजेपी भी कम पीछे नहीं है....चुनाव आने वाले हैं इस बार उसे ही वोट डालें जो बकवास कम करता हो औऱ सच में उसने आपके लिए कुछ किया हो...सिर्फ इस बीच नहीं अपने राज में हर बार और....नोट के लालच में आकर वोट न डालें नहीं सपने दिखाकर गढ्ढे में गिराना पुराना खेल है कुछ राजनेताओं का ......

"क्रांतिकारी" गांधी

बुधवार, मार्च 18, 2009

देश को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने वाले मोहन दास करमचंद गांधी के उपनाम के साथ एक ऐसा गांधी भी है जो क्रांतिकारी विचार वाले हैं और वो हैं वरुण गांधी ..जी हां इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की क्रांतिकारी छवि को नया आयाम देने के लिए अब राजनीति के मैदान में उतरे हैं वरुण गांधी....नया जोश है या नया ख़ून ये तो नहीं पता पर अपने पिता की छवि उनमें साफ देखने को मिल सकती है....पीलीभीत में दिये गये उनके भाषण में एक बात तो साफ हो रही है कि वो कितना भी ये कह लें कि वो किसी भी धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन उनके भाषण में धर्म विशेष के लिए की गई टिप्पणियों से सब साफ़ हो रहा है...इतना ज़रुर है कि अगर इस तरह के तीन चार भाषण वो दे दें तो देश में सांप्रदायिकता की आग अवश्य लग जाएगी....हिन्दुत्व की बात करने वाले लोगों में वरुण प्रसिद्ध हो गये हैं...ठाकरे जैसे लोगों के लिए वो हिंदुत्व के नए सिपाही हैं ...चाहे इस भाषण के बाद वरुण सभी से माफ़ी की बात कह रहे हों पर दिल की बात कभी न कभी तो ज़ुबान पर आ ही जाती है....आगे की बात फिर कभी क्योंकि अभी वरुण को बहुत कुछ देखना अभी बाकी है....

कहां है आदर्श आचार संहिता

लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद चुनाव की आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है पर जिस देश के राजनीतिज्ञ को वहां के आम लोग अपना आदर्श मानना छोड़ दें । वहां के राजनीतिज्ञों से आदर्श आचार संहिता का पालन करने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। एक बात का तो कम से कम हम आम वोटरों को दिमाग में रखना ही चाहिए कि पूरे पांच सालों बाद लोकसभा के चुनाव आते हैं। ये बात अलग है कि ऐसी नौबत कम ही आईं है। और फिर अबकी बार सरकार ने पूरे पांच साल भी पूरे कर लिए है । ऐसे में चुनाव होने वाले हों तो हर नेता यही कहेगा न कि कौन सी आचार संहिता ? कैसी आचार संहिता ? सब चलता है मेरे दोस्त । अपने ही वोटरों को सपने दिखाकर ख़ुद के सपने पूरे करने के बाद भी हर चुनाव में हमारे राजनेता वोट मांगने से ज़रा सा भी नहीं कतराते हैं । कभी होली का नेग कहकर पैसा दिया जाता है तो कभी मौलाना पर पैसे की गंगा बहाई जाती है। कोई नेता सिनेमा हॉल में फिल्म दिखाकर अपने कार्यकर्ताओं समेत सभी लोगों को आचार संहिता का पालन करने का संदेश देने का पाठ भी पढ़ाते हैं । अरे भाई जो लोग संसद की मर्यादा का पालन नहीं कर पाते वो चुनाव की आदर्श आचार संहिता की पालन कैसे कर सकेंगे।

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