बाला साहब ठाकरे, ये एक ऐसा नाम है जिसको अगर मुंबई में सख्त लहजे में बोल दिया जाये तो अगले दिन अस्पताल जाने के अस्सी प्रतिशत चांस है। और इनका नाम अगर बुद्धिजीवियों के बीच ले तो एक पत्रकार के तौर पर भी ले सकते है। बाल ठाकरे सामना समाचार पत्रिका में संपादक भी रह चुके हैं। ऐसे में लेखक वाली पावर तो उनके अंदर है ही, और वो पावर है अपनी अभिव्यक्ति को लिखकर बताना। लेकिन आजकल लगता है कि बाल ठाकरे को लिखने का कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है। इसलिये इस बार सचिन तेंदुलकर पर अपनी विचार उन्होने रखे है। बाल ठाकरे कहते है कि सचिन को राजनीति नहीं करनी चाहिये।
कहते है कि अगर क्रिकेट धर्म है तो सचिन तेंदुलकर उसका भगवान है, वैसे तो भारत में कई धर्म है लेकिन क्रिकेट एक ऐसा धर्म है जिसकी पैठ सभी में है। और सचिन सबके देवता है। अब इस देवता पर उंगली उठाई है बाल ठाकरे ने। औऱ इसका कारण है सचिन के वो शब्द जिनको उन्होने अपने क्रिकेट करियर के बीस साल होने के बाद कही थी। सचिन ने ज़िम्मेदार भारतीय की तरह कहा कि वो पहले भारतीय है बाद में मराठी। और वो भारत के लिये मैच खेलते है न कि महाराष्ट्र के लिये। सचिन ने ये भी कह दिया कि मुंबई पर सबका हक है।
बस ये जो आखिरी लाइन थी उसको लेकर बाल ठाकरे का दिमाग फ़िर गया। बाल ठाकरे ने अपने लेख में लिखा है कि सचिन क्रिकेट पर ध्यान दें न कि राजनीति के मैदान में उतरे। सोचता हूं कि सचिन को क्या पड़ी है कि वो कीचड़ में कूदे। अपने कपड़े गंदे करवाने है क्या। लेकिन एक कहावत है कि बिल्ली के सपनों में छीछड़े ही छीछड़े। वही हालत बाल ठाकरे की है। जिनको हर बात में राजनीति नजर आती है। सचिन को राजनीति ज़रुरत नहीं है लेकिन अगर कभी उनके दिमाग में ऐसा आया भी तो उनका जीतना तय है।
मुझे तो यही लगता है कि बाल ठाकरे बूढ़े हो गये है, और उनको अब तीर्थयात्रा पर चले जाना चाहिये। क्योंकि उनकी बड़बड़ चुनावों में मराठी जनता ने बंद कर दी है। शर्म बची हो तो सचिन को आगे से इस तरह की नसीहत देने से बचें नहीं तो शिवसेना भी कुछ नहीं कर पायेगी। क्योंकि उसमें भी सचिन में ढेरों चाहने वाले है जो ठाकरे के इस तल्ख लहज़े पर सफाई देने आगे आने लगे है। ऐसे में उनके लेखों में उनके द्वारा जो मुद्दे उठाये जा रहे उसे देखकर लगता है कि बाल ठाकरे सठिया गये है।
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
3 दिन पहले