राजनीति लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
राजनीति लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

क्यों होते है यूपी बिहार के दुश्मन ?

शनिवार, नवंबर 07, 2009

पिछले दिनों गुस्ताखियों का कुछ ऐसा दौर चला कि नेताओं ने अपनी ही पोल खोल दी। पहले महाराष्ट्र के नेता महाराष्ट्र के लोगों की बात करते थे तो शिव सेना ने मराठियों को अपनी असलियत बता दी, ये भी साफ कर दिया कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन मराठी है और कौन उत्तर भारतीय। उत्तर भारतीयों के विरोध से चुनाव जीता और मराठियों ने उनकी इस चुनावों में जो बखिया उधेड़ी तो लगे बकर बकर करने मराठियों के खिलाफ़। उन्हें ही गालियां बकने लगे। जैसे ही लगा कि मराठी वोट नही मिल रहे है तो बोलती बंद कर ली अपनी ही । लेकिन सवाल मराठी नहीं है सवाल है बिहारी या कहें कि यूपी बिहारी, राज ठाकरे की तो सारी राजनीति ही इन पर चल रहा है। सोचता हूं कि अगर यूपी बिहार वाले महाराष्ट्र न जाये तो राज ठाकरे की पार्टी तो कभी उभर ही नहीं पायेगी। मुझे लगता था कि सिर्फ महाराष्ट्र में ही राज ठाकरे है लेकिन मै गलत था ।एक और राज ठाकरे ने अब अपने पर फैलाये है, औऱ वो है बीजेपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। इनका कहना है कि उनके प्रदेश में सिर्फ उन्ही कंपनियों को घुसने दिया जायेगा जो मध्यप्रदेश के लोगों को काम देंगे। यहां तक तो ठीक था लेकिन उन्होंने तो ये भी कह दिया कि काम न सिर्फ मध्यप्रदेश को लोगों को ही दिया जाये बल्कि ये भी कह डाला कि बिहारियों को न दिया जाये। उनके शब्दों में कहें तो किसी बिहारी को यहां काम नहीं दिया जाये और सिर्फ उनके लोगों को काम दिया जाये। अब इसे कहते है एकता में अनेकता

सच ही है कि कहावतें भी समय के साथ बदलती है ।पहले मज़ाक लगता था लेकिन आज लगता है कि सच है ,बचपन से पढ़ते आ रहे थे कि अनेकता में एकता है हमारे देश में, लेकिन इसका सार आज के परिवेश में उचित नहीं लगता, देश के हालातों को तो देखकर यही लगता है कि आज अनेकता में एकता नहीं है बल्कि एकता में अनेकता है। ये अलग बात है कि पलटने की फितरत और खुद के अस्तित्व को भी नकारने की हिम्मत रखने वाले हमारे नेताओं की फेहरिस्त में शामिल शिवराज सिंह अपनी बात से पलट गये। औऱ माफी मांग ली लेकिन दिल की बात को उत्तेजना में दबा नहीं पाये। औऱ दिल की बात सामने आ गयी। उम्मीद के मुताबिक मुकर गये औऱ अपनी सफाई दे दी लेकिन अब क्या कहें सच तो सच है कभी भी सामने आ जाता है जब दिमाग में उत्तेजना भर जाती है हम बनावटी बातें नहीं कर पाते है जो दिल में होता है बक देते है, सच में कभी ट्राई करियेगा सही बोल रहा हूं।

जिस प्रकार की घटनायें देश में घटित हो रही है उसमें एक बात तो कॉमन है कि सब के सब यूपी बिहार वालों से बहुत चिढ़ते है पता नहीं क्यों, पर चिढ़ते है। हो सकता है शायद इसलिये की यूपी बिहार के लोग ज्यादा टैलेटेड है । अरे ये मै नहीं मानता और भी प्रदेशों में टैलेंटेड लोग है लेकिन यूपी बिहार वालों की संख्या ज़रा ज्यादा है ऐसा यूपी बिहार वालों को लगता है क्योंकि हर जगह उनका ही विरोध होता है। इसलिये लोगों की चिढ़ ज़रा ज्यादा है। मेरी बातों को बल देने के लिये नितीश भी आगे आये है जो बिहार के मुख्यमंत्री है , इसलिये उनका चुप रहना गलत होता और ये बात लालू के लिये फायदेमंद साबित होती जो कि नहीं हो पाई।

हां मुझे राजनेताओं से डर लगता है....

मंगलवार, जून 30, 2009

(नोट- सच्ची घटनाओं पर आधारित है, मेरे द्वारा देखी गई)

ये भी एक ऐसा सच है जिसे सुनकर हो सकता है कि कुछ लोगों को हंसी आ जाये लेकिन क्या करें डर लगता है तो लगता है। मै एक बार लखनऊ से आते वक्त रेलवे स्टेशन पर अपनी ट्रेन के इंतजार में खड़ा था। कुछ ही देर में मैने देखा कि मेरे आसपास खड़े लोग किसी चीज़ को बड़ी ही तल्लीनता से देख रहे है। अक्सर हम लोगों से हो जाता जैसे बूढ़ा आदमी मंदिर आने पर सर झुका लेता है औऱ जैसे 22-23 साल के लड़के किसी सुंदरी को देखकर उसको बड़ी ही तल्लीनता से देखते है उसी तरह मेरे आसपास खड़े लोग एक दिशा की ओर देख रहे थे मैने भी उत्सुकतावश उस ओर देखा..मैने देखा कि कुछ पुलिसवाले हाथों बंदूक लिये खड़े थे...संख्या की बात करुं तो लगभग पांच से सात लोग होंगे। मैने देखा कि उनके पास एक आदमी और खड़ा था लेकिन वो वर्दी में नहीं था। सर पर अंगोछा बांधे, पैरों में सैंडिल, धारियों वाली शर्ट और काली रंग की पैंट। धारियां वो नहीं जैसा कि हिंदी फिल्मों में ट्रेंड है दिखाने का। बड़ा ही साधारण सा आदमी था वो लंबी सी मूंछ,भरा चेहरा गुटखा खा रहा था शायद, साथ में पुलिसवालों से हंसीमज़ाक भी कर रहा था। पुलिस वाले भी उसकी बातों पर हंस रहे थे। लेकिन एक बात जो साधारण नहीं थी वो थी उसके हाथों में पड़ी वो हथकड़ी जिसकी मोटी सी रस्सी एक मोटे से पुलिस वाले के हांथों में भी बंधी थी। एक मजेदार बात बताता हूं कि अक्सर आपने भी इस तरह की घटना देखी होगी कि बदमाशों के हाथों की हथकड़ी की रस्सी हमेशा मोटे से पुलिसवाले के हाथों में बांधी जाती है ताकि बदमाश भागे भी तो भी न भाग सके क्यों कि भारी आदमी को कहां तक घसीटेगा ...शायद.....मैने भी उसके हथकड़ी पहने सख्त से चेहरे को देखकर थोड़ा डर महसूस किया। क्यों बदमाशों से पाला ज़रा कम ही पड़ा है उस वक्त मेरी उम्र 19 के आसपास रही होगी और मीडिया जगत में मेरी इंट्री नहीं हुई थी। डर के मारे एक बार देखने के बाद मै दोबारा उन लोगों को एक टक देखा भी नहीं....हां डर की वजह से तिरछी नज़र से देख रहा था। उसी तरह जिस तरह अगर कोई स्मार्ट सा लड़का किसी लड़की को प्रेम पत्र थमा दे औऱ लड़की मना भी कर दे तो भी हर रोज वो लड़की तिरछी नज़रों से उसे देखेगी ज़रुर चाहे नाक भौं सिकोड़ ही क्यों न रही हो। उसी तरह मुझे भी बदमाश देखने की लालसा तो थी इसीलिए मै तिरछी नज़र से देख रहा था। अब डर भी लग रहा था...लेकिन डर पर काबू पाया औऱ प्रेमचंद का फैन हूं इसलिए उनकी किताब पढ़ने लगा गोदान....अभी पंद्रह से बीस मिनट हुए होंगे कि मैने फिर देखा कि लोग उसी तरफ देख रहे थे जिस तरफ पहले देख रहे थे। मुझे लगा कि फिर कोई बदमाश होगा या उसी को देख रहे होंगा जिसको पहले देख रहे थे। लेकिन जब वे लोग लगभग पांच दस मिनट तक देखते रहे तो मैने भी देख ही लिया। मै देखता हूं कि लगभग 15 से 20 पुलिसवाले, चार से पांच काले वस्त्रधारी जांबाज़, खड़े थे सबके हाथों में बंदूखे सब बड़े सख्त चेहरे से सभी की ओर घूरकर देख रहे थे। मैने भी जिज्ञासावश देखने लगा मुझे लगा कि यार लगता है कि कोई बड़ा गैंगस्टर है..... लगताहै कि कहीं पेशी होगी...फिर सोचने लगा कि यार इतने ख़तरनाक अपराधी को ट्रेनों से सफर क्यों करवाते हैं....... यार कितना रिस्क रहता है। लेकिन देखते ही देखते मेरे विचारों ने मुझे मूर्ख बना दिया। सफेद कुर्ता, सफेद पैजामा, सफेद जूते टफ्स कम्पनी के......मूंछे लंबीं काली, ...बाल काले, दोनो हाथों की आठ अंगुलियों में सोने की अंगूठियां, अब सिर्फ हीरे की पहचान है मुझे .....नगों की जानकारी कम है लेकिन वो यहां देना ग़ैरज़रुरी है, दांये हाथ में एक ब्रेसलेट सोने का , बांये हाथ में एक रिस्ट वॉच सोने की लग रही थी पर हो सकता है कि धोखा हो क्योंकि वो बार-बार कुर्तें की बांहो से ढंक जा रहा था सो मै ठीक से देख नहीं पाया.... दांये हाथ में मोबाइल संभवत: वो विंडो मोबाइल रहा होगा क्योंकि काफी चौड़ा था, सेहत में मोटा, कद ज्यादा छोटा तो नहीं पर मुझसे थोड़ा छोटा था, खड़ा था ....न तो किसी से बोलता और न हीं हंसी मज़ाक,...... हां आसपास खड़े पुलिसवाले औऱ काले वस्त्रधारी वीर जिन्हे ब्लैक कैट कमांडो कहते हैं, वो लोगों को धक्का देकर उनसे दूर रहने की हिदायत ज़रूर दे रहे थे।मुझे लगा कि चलों अच्छा है लोगों को बदमाशों से दूर रहना चाहिए। सफेदपोश महाशय कभी फोन पर बात करते तो कभी साथ में खड़े सहयोगी संभवत वो उनका पीए होगा क्योंकि रह रह कर वो उस चिल्ला भी देते थे। मैं उन्हे बड़ा अपराधी समझ बैठा था कि तभी एक भीड़ आ गई और वो नेता जी( नाम नहीं लूंगा यार कुछ तो संस्पेंस रहने दो, मुझे राजनेताओं से डर लगता है यार) के नाम के नारे लगा रही थी हाथों में बैनर लिये। .ये खेल चल ही रहा थी कि मेरी दिल्ली की ट्रेन आ गई और मेरे साथ वो दोनों लोग लाव लश्कर के साथ बैठ गये ये अलग बात है नेता जी और चमचे एसी क्लास में, मै स्लीपर में औऱ वो बदमाश जनरल कोच में। सीट पर बैठकर मै विचारों पर नये सिरे से विचार करने लगा .....कि देखों यार मै दोनों को बदमाश समझने लगा था जबकि एक तो उसमें से नेता जी थे। अभी मानसिक द्वंद चल ही रहा था कि अचानक मेरा दिमाग ठनका......फिर ख्याल आया कि यार ये नेता जी तो कई बार घोटालों, औऱ हत्याओं, साथ ही ग़ैरकानूनी रुप से हथियार रखने में नाम आता रहा है...ये अलग बात है कि साबित न हुआ हो...इनका चेहरा टीवी पर देखा था ये तो महाशय बाहुबली नेता है। तब समझ में आने लगा कि क्यों पुलिसवाले दोनो के साथ खड़े थे एक की रक्षा के लिए और एक से रक्षा के लिए। लेकिन दोनों की फितरत एक ही थी। यहां तक की काम भी एक जैसा करते थे । इसलिए इनसे तो लोगों की रक्षा करनी चाहिए। इसलिए मै कहता हूं कि यार मुझे इन राजनेताओं से बहुत डर लगता है क्योंकि पुलिस भी इनकी रक्षा करती है अगर कहीं इनसे बात बिगड़ गई तो फिर मेरी मदद कौन करेगा। जनरल कोच वाले से कर लेगा लेकिन एसी क्लासवाले से कैसे करेगा क्यों कि भाईसाहब एसी का टिकट मंहगा आता है औऱ जनरल औऱ स्लीपर का कम रुपयों में।

सुंदरता नहीं सुविधा चाहिए

सोमवार, जून 29, 2009

जी हां क्या चाहते है आप सुंदरता या सुविधा....ये सवाल कई बार मेरे दिमाग में कौंधता है जब जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जनता के पैसे को बेकार यूं ही मूर्तियों और हाथियों पर खर्च करती हैं। और तो और अपनी इस हरकत को भी बड़े गुणगान की तरह बताती भी हैं। उनका कहना ये है कि हाथी अच्छे काम के लिए दरवाजो़ पर लगाया जाता है। किस हद तक गिर गये है ये लोग की जनता के जिस पैसे का इस्तेमाल पानी, बिजली औऱ अन्य सुविधाओं में करना चाहिए था उसका इस्तेमाल वो अपनी बेवकूफियों पर खर्च कर रही है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग दो हज़ार करोड़ रुपये को वो इन मूर्तियों पर खर्च कर चुकी हैं। जनता को बेवकूफ साबित करके वो क्या दिखाना चाहती हैं ये तो कोई नहीं जानता। सुरक्षा व्यवस्था अच्छी करने का खर्च वो अपनी लालसा को पूरी करने में खर्च कर रही हैं। और वो खुद को महान करवाने के लिए तिकड़मबाजी भी शुरु कर चुकी है। क्योंकि खुद की भी मूर्तियां भी धड़ल्ले से बनवा रही हैं। और तर्क ये हैं कि काँशीराम जी की इच्छा थी। अबे राजनीति के रक्त पिपासूओं जनता को ये सब नहीं जमता। इसी वजह से लोकसभा चुनावों में मुंह की खानी पड़ी और आसार नहीं है कि विधानसभा में भी जीत पाओगे। सुप्रीम कोर्ट में इस मूर्तिबाज़ी के खिलाफ याचिका दायर की गई है लेकिन जो पैसा खर्च हो चुका उसका हिसाब कैसे देगी ये मुद्रा की राक्षस। मै लखनऊ गया था मैने देखा शहर को सुंदर बना दिया गय़ा है लेकिन हर जगह किसने सुंदर बनाया है इसका सबूत मायावती या कांशीराम की मुर्तियां बता रही है। यही नहीं आने वाली तीन जुलाई को चालीस प्रतिमाओं को अनावरण करने वाली हैं। खास बात तो ये है कि इनमें से छह मूर्तियां तो सिर्फ उसकी है। मायावती और कांशीराम की प्रतिमाओं पर लगभद सात करोड़ रुपये खर्च कर दिये है। आखिर इन पैसों की क्या ये इस्तेमाल सही जगह किया गया। अगर इन्हीं पैसों का इस्तेमाल बिजली, पानी और विकास कार्यों पर लगाया होता तो शायद प्रदेश आगे बढ़ता और यही काम हमारे देश के नेता करें तो भी देश आगे बढेगा लेकिन आजकल राजनीति इसलिए नहीं कि जाती कि लोगों की मदद करें बल्कि इसिलिए की जाती है कि चुनावों में लगाई गयी रकम को जल्द से जल्द लपेटा जाये फिर मिलने वाले पैसों को बैंकों के गुप्त खातों मे जमा करवाया जाए। चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

गरीब देश के करोड़पति सांसद

सोमवार, मई 18, 2009

15वीं लोकसभा में जहां हर दूसरा सांसद करोड़पति है, वहीं हर चौथे सांसद के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है। नवनिर्वाचित सांसदों में से 300 की संपत्ति करोड़ों में हैं। वहीं 150 सांसद ऐसे हैं, जिनके एक या एक से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह विश्लेषण नेशनल इलेक्शन वॉच नामक संस्था ने प्रत्याशियों द्वारा दाखिल शपथ पत्र के आधार तैयार किया है। विश्लेषण के मुताबिक, नवनिर्वाचित सांसदों में से 73 के खिलाफ संगीन मामले दर्ज हैं, यह आंकड़ा पिछली लोकसभा के ऐसे सांसदों से 30.9 फीसदी ज्यादा है। पिछली लोकसभा में 128 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले और 55 के खिलाफ संगीन मामले विचाराधीन थे। यूपी से सबसे ज्यादा दागी सांसद हैं। राज्यों के आधार पर 15 वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा उत्तरप्रदेश से निर्वाचित 30 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले में हैं। इसके बाद महाराष्ट्र (23) व बिहार (17) का स्थान है। मध्यप्रदेश के 4, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के दो-दो व दिल्ली के एक सांसद के खिलाफ आपराधिक मामला है। करोड़पति सांसदों में भी यूपी आगे हैकरोड़पति सांसदों में भी उत्तरप्रदेश (52) यूपी सबसे आगे है। इसके बाद महाराष्ट्र (37) व आंध्र प्रदेश (31) का स्थान है। मध्यप्रदेश के 15, राजस्थान के 14, पंजाब के 13, गुजरात के 12, हरियाणा के 9, दिल्ली के 7, हिमाचल प्रदेश के 3 और छत्तीसगढ़ के 2 व चंडीगढ़ का एक सांसद करोड़पति है। सबसे धनवान सांसद खम्मम से टीडीपी के नामा नागेश्वर राव (173 करोड़ रुपए) हैं। दूसरा स्थान हरियाणा के कुरुक्षेत्र से नवीन जिंदल (131 करोड़ रुपए) का है।

करोड़पति सांसदो की गिनती हर पार्टी के हिसाब से

कांग्रेस : 138, भाजपा : 58, सपा : 14, बसपा : 13,डीएमके : 11, शिवसेना : 9, जेडीयू : 8,बीजेडी : 7,एआईटीसी : 6,शिरोमणि अकाली दल : 6,

राहुल तेरे वादे.....


यूपी में राहुल इफेक्ट के चलते कांग्रेस को यूपी में तो कम से कम जीत मिली है॥और यहां तक कि कांग्रेस को इस लोकसभा चुनाव में जीत के कर्ताधर्ता भी असल में राहुल गांधी ही रहे हैं॥यूं तो इस बार कांग्रेस औऱ यूपीए को इन चुनावों में भारी सफलता मिली है...और भविष्य के प्रधानमंत्री के प्रबल दावेदार राहुल गांधी ने इन चुनावों गांधी होने का भरपुर फायदा भी उठाया॥क्योंकि अगर वो गांधी परिवार से न होते तो शायद उन्हें जीत के लिए शायद काफी जूते चप्पलें घिसनी पड़ती॥लेकिन ये राहुल के ओजस्वी भाषणों का ही परिणाम है कि यूपीए ने शानदार जीत दर्ज की है...इन सबके पीछे राहुल गांधी के वादों की चर्चा भी काफी गर्म रहीं...ये वादों का ही नतीजा है कि भारत की जनता ने राहुल के नये विचारों को अपनाया और राजीव गांधी के अक्स वाले इस गाँधी को ही जीत का सेहरा पहनना पड़ रहा है...और ये सच भी है राहुल गांधी की वजह से कांग्रेस को फायदा हुआ है....राहुल गांधी के वादों में कितना दम है ये तो अब पता चलेगा क्यों जितना किसी बात को कहना आसान होता है उससे कहीं ज्यादा कठिन उस बात को प्रैक्टिकली करना...इसलिए वादों औऱ राहुल के इरादों पता तो चलेगा॥कि राहुल की बातों मे कितना दम है औऱ पार्टी के हाईकमान कहां तक उनके विचारों अपनाते हैं...

कौन जीता, यूपीए या गांधी परिवार

रविवार, मई 17, 2009


चुनाव के नतीजे सामने आ गये है और ये तो साफ हो गया कि पिछली सरकार इस बार भी सरकार बनायेगी...और हो सकता है कि देश को एक स्थिर सरकार देकर देश का विकास पर ध्यान देगी...लेकिन सवाल उठता है कि देश का उतना विकास हुआ जितना होना चाहिए था या नहीं...देश पर कई संकट आये और कुछ तो चले गये और कुछ धीरे धीरे जा रहे हैं॥लेकिन एक बात पर ध्यान देना ज़रुरी है कि पांच साल की सरकार में विकास के लिए जो काम हुए या कहे कि आम आदमी को फायदा पहुंचाने वाले जितने काम हुए वो पिछले दो सालों में हुए...चाहे पेट्रोल डीज़ल की कीमत में कमी हो या बढ़ती मंहगाई पर काबू पाने की जुगत...लेकिन इन बातों को छोड़ दें तो दाद देनी होगी मनमोहन सिंह की॥जिन्होने खुद पर लग रहे कमज़ोर के लेबल से पार पाकर फिर से सरकार के नये प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं....लेकिन कमज़ोर और निर्णायक प्रधानमंत्री इस बार बन पायेंगे या नहीं इस बात में अभी भी संदेह है क्योंकि अभी भी वो ये कहते दिख रहे हैं कि राहुल गांधी उनके मंत्रीमंडल में शामिल हो जायें...मै ये नहीं कहता कि राहुल को नहीं शामिल नहीं होना चाहिए बल्कि मै तो राहुल का समर्थक हूं पर मै एक प्रधानमत्री को ये कहते हुए पसंद नहीं कहुंगा कि वो दूसरे को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रुप में सुझाये...इसक मतलब मनमोहन जी देश चलाने में सक्षम नहीं हैं....खैर बधाई हो यूपीए को जिन्होने साबित किया कि विकास का मुद्दा ही देश में चुनाव जिताता है न कि सांम्प्रदायिकता का ज़हर....लेकिन काम अब शुरु हुआ क्योकि अब वो एक स्थिर सरकार चला सकते हैं...और पिछले छूटे हुए कुछ कामों को करवा सकते हैं....और देश के विकास की पैसेंजर को एक्सप्रेस बना सकते हैं...

लालू हैं बयान बदलू

मंगलवार, अप्रैल 07, 2009

लालू ने वरुण गांधी के भड़काऊ भाषण पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए,अपने बतोलेबाज़ी की हदें तोड़ दी हैं...उनका कहना है कि अगर वे गृहमंत्री होते तो वरुण गांधी पर रोलर चलवा देते...अब पता नहीं रोलर किसपे चलेगा या नहीं पर भोजपुरी में कहते हैं कि 'लालू के जियरा के लोलर हो गइल' ये तो साफ हो गया है....राबड़ी तो अपने बयान से खुद को फ्रंट फुट पर खेलने की कोशिश कर रही थीं तो लालू कैसे पीछे रहते...सो उन्होने भी बक दिय़ा जो कहना था....अब मुस्लिमों के क्षेत्र में खड़े लालू को अपने प्वाइंट्स तो बढ़ाने ही थे और आज कल तो वरुण से अच्छा मुद्दा तो कोई हो ही नहीं सकता...अपने बयान के बाद उन पर किशनगंज में मुकद्दमा दर्ज तो हो गया है पर आज तक कोई नेता मुकदमों से डरता नज़र आया है जो वो आएगें वैसे भी लालू तो पुराने खिलाड़ी है...मेरे तो आज तक ये समझ नहीं आता कि इन मुकद्दमों में कोई नेता फंसता है तो वो जेल में क्यों नहीं जाता...कानून तो हर आम आदमी के लिए होता है.... ओह मै अब समझा कानून तो आम आदमी के लिए होता है और नेता तो ख़ास होते हैं इसलिए उन पर मुकद्दमा कैसे दर्ज हो सकता हैं और कार्रवाई कैसे हो सकती है....

वरुण गांधी के 'मेरे लोग'

सोमवार, मार्च 30, 2009

वरुण गांधी पर मामले दर्ज हो रहे हैं। जितना उन पर मामले दर्ज होगें वो उतने ही हीरो बनते जाएगें। उनके सरेंडर करने के पीछे के जितने नाटक हो सकते थे उतने हो गये...लोगों ने हल्ला कटवाना था कटवा लिया॥कांग्रेस को डराना था डरा दिया। वरुण के समर्थक यानी उनके लोग या उनकी भाषा में कहें कि 'मेरे लोग' । जितना बबाल काट सकते थे उन्होने काटा...लेकिन वरुण की इस नाटकीय गिरफ्तारी से जितनी पब्लीसिटी मिल गई उसे भारतीय जनता पार्टी ज़रुर भुनाना चाहेगी और मै तो कहुंगा कि भुना लिया है॥तभी तो कई भाजपा नेता अब तो खुलकर वरुण के समर्थन में सामने आ गयी है...लेकिन वरुण के मेरे लोगों ने ही जितना हल्ला काटा है जितना बबाल किया है उसे किस श्रेणी में रखेंगे ये कहना मुश्किल है..

"सज़ायाफ्ता" चुनाव प्रत्याशी

गुरुवार, मार्च 19, 2009

चर्चित मधुमिता हत्या कांड के मुख्य आरोपी और सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा दोषी साबित किये जा चुके पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की ज़मानत याचिका दायर कर रहे हैं ताकि वो चुनाव ल़ड़ सकें..आपको बता दें कि अमरमणि त्रिपाठी को सीबीआई की विशेष अदालत आजीवन कारावास की सजा़ सुना चुकी है। और फिलहाल वर्तमान में वो अभी जेल का मज़ा उठा रहे हैं। इस सज़ा पर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका भी डाल रखी है...इनका कहना है कि जब तक सुनवाई चल रही है तब तक के लिए उन्हें ज़मानत दे दी जाए..कारण सुन कर मेरे भाईयों आप हैरान हो जायेंगे..अमरमणि ने कारण दिया है कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ना है इसलिए उन्हें तब तक के लिए ज़मानत दे दी जाए....अरे यार ये नेता तो आम लोगों को बेवकूफ समझते हैं क्या...अमरमणि को क्या लगता है जनता उन्हें वोट देगी...उन्हें खुद का वोट भी मिल जाए तो ही वो ख़ैर समझे....अमरमणि जैसे कई नेता हैं जो इन चुनाव में प्रत्याशी हैं जिन्हें जेल में सड़ना चाहिए वो नेता बनकर ख़ून चूसने को तैयार हो रहे हैं...उनकी भी गलती नहीं है हम है दोषी जो ऐसे चोरों लुटेरों को वोट देते हैं..गुस्सा तो बहुत है ऐसे नेताओं पर सोचता हूं दोषी हम देशवासी हैं या हमारी डरपोंक देशभक्ति है जो इन जैसों को चुनाव में खड़े होने देती है या ये कहें कि संविधान का इस्तेमाल ये लोग ज्यादा जानते हैं.....

"क्रांतिकारी" गांधी

बुधवार, मार्च 18, 2009

देश को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने वाले मोहन दास करमचंद गांधी के उपनाम के साथ एक ऐसा गांधी भी है जो क्रांतिकारी विचार वाले हैं और वो हैं वरुण गांधी ..जी हां इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की क्रांतिकारी छवि को नया आयाम देने के लिए अब राजनीति के मैदान में उतरे हैं वरुण गांधी....नया जोश है या नया ख़ून ये तो नहीं पता पर अपने पिता की छवि उनमें साफ देखने को मिल सकती है....पीलीभीत में दिये गये उनके भाषण में एक बात तो साफ हो रही है कि वो कितना भी ये कह लें कि वो किसी भी धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन उनके भाषण में धर्म विशेष के लिए की गई टिप्पणियों से सब साफ़ हो रहा है...इतना ज़रुर है कि अगर इस तरह के तीन चार भाषण वो दे दें तो देश में सांप्रदायिकता की आग अवश्य लग जाएगी....हिन्दुत्व की बात करने वाले लोगों में वरुण प्रसिद्ध हो गये हैं...ठाकरे जैसे लोगों के लिए वो हिंदुत्व के नए सिपाही हैं ...चाहे इस भाषण के बाद वरुण सभी से माफ़ी की बात कह रहे हों पर दिल की बात कभी न कभी तो ज़ुबान पर आ ही जाती है....आगे की बात फिर कभी क्योंकि अभी वरुण को बहुत कुछ देखना अभी बाकी है....

शहादत पर सियासत , “अंत”पर “तुले”अंतुले

रविवार, दिसंबर 21, 2008

ए आर अंतुले की बयानबाजीं उन्हें किस देश का राजनितिज्ञ साबित कर रही ये तो उनके आज कल के बयान इसका जीता जागता सबूत दे ही रहें हैं। ऐसी पाकिस्तान परस्ती भी किस काम की जिसमें "उनके देश" के लोग भी उनका साथ नहीं दे रहे हैं । नवाज़ शरीफ़ ने दिलेरी तो ख़ूब दिखाई पर उनके देश में ही उनकी कोई ख़ास पूछ नहीं है। लेकिन जब नवाज़ साहब ने ये कह तो कह ही दिया की मुम्बई हमले में पाकिस्तान का हाथ है । तब भी भारत में 'मुशर्रफ'की तरह ही सोच रखने वाले यानि अल्पसंख्यक मामले के पूर्व केन्द्रीय मंत्री अंतुले शहीद ए टी एस प्रमुख हेमंत करकरे की शहादत पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं । उन्होंने बेशर्मी की हद तो तब कर दी जब उन्होंने इस पर जाँच की मांग कर डाली। भला उन्हें कौन बताए कि सर क्यों आप अपने राजनीतिक कैरियर का "अंत"  करने पर "तुले" हैं अंतुले साहब । जनता अब जाग रही है सर !!!!!!

Related Posts with Thumbnails