लगभग दो साल पहले की बात है जब मैं अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था। इस वक्त एक अलग ही जोश था दुनिया बदलने वाला टाइप का...उस वक्त सभी लड़कों की तरह मै भी दोस्तों के साथ रहता था। और हम सभी पांच लड़के इंदिरापुरम् में रहा करते थे। वैसे तो ये इंदिरापुरम.... ग़ाज़ियाबाद में आता है लेकिन नोएडा-दिल्ली के पास ही है तो यहां का इलाका पॉश है। ऊंची सैलरी वाले लोग यहां ज्यादा रहते है। ऊंची बिल्डिंग हैं और ऊंचे लोग। एक शाम की बात है कि मै अपने बिल्डिंग एस पी एस के पास के प्लाज़ा में चावल खरीदने जा रहा था। मेरे साथ मेरा दोस्ता था.. जो कुछ दूर तो मेरे साथ आया लेकिन गर्लफ्रेंड के फोन ने उसे थोड़ा अलग कर दिया था। मै प्लाज़ा के पास पहुंचा थोड़ी भीड़ थी ...कुछ लोग दुकानों से सामान खरीद रहे थे। कुछ लड़के वहां पर आने जाने वाली लड़कियों को निहार रहे थे.....लकड़ी का काम चल रहा था फर्नीचर की दुकान थी.... कुछ लोग वहां बनी रेलिंग.. जो सीमेंट की बनी हुई और एक बार्डर की तरह काम कर रही कि कोई बाइक सवार प्लाज़ा के अंदर बाइक लेकर न चला आये। उस रेलिंग पर बहुत लोग बैठे थे। कुछ मंगोलिया के लोग थे जो चीनी लोगों की तरह लग रहे थे मेरा दोस्त उनसे बातें करने लगा क्योंकि उनकी समझ में अंग्रेजी ही आ रही थी। नोएडा के कॉल सेंटर्स में ये लोग काम करते थे। कुछ लड़के बैठे सिगरेट के कश उड़ा रहे थे। मै दुकान की सीढ़ियां चढ़ ही रहा था कि एक हट्टे कट्टे मोटे से आदमी...वहां बैठी दो लड़कियों पर ज़ोर से चिल्लाया.... लड़कियों कि उम्र यही कोई बीस से पच्चीस के बीच रही होगी.... रंग सांवला या कहूं कि सांवला से थोड़ा और काला.... दोनों लड़कियां ने एक सस्ती सी टी शर्ट जिसका रंग उड़ चुका था उसे पहने रखा था, बाल बांधे हुए थे, जिसमें क्लिप लगी थी, दोनों ने बेहद साधारण जीन्स पहन रखी थी.... पैरों में हवाई चप्पल थी... लिबास दोनों के बेहद साधारण थे.... उन्हें देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वो बेहद गरीब परिवार से होंगी या कहें कि किसी घर पर नौकरानी का काम करती होंगी.... मै एक ऐसा आदमी हूं जो हर किसी से नहीं बोलता, लेकिन सबको देखकर आब्जर्व ज़रुर करता है लेकिन वो लड़कियां इतनी साधारण थी कि इत्तेफाक देखिये कि मेरी नज़र भी उन पर पहले नहीं पड़ी.....पर उस तगड़े आदमी की नज़र उन पर पड़ गई थी। वो आदमी करीब पांच फुट दस इंच के आस पास होगा मुझसे लंबा था.... तगड़ा सा.... बरमूड़ा नीचे पहन रखा था..... स्पोर्ट्स शू पहन रखे थे..... एक ब्लैक कलर की टी शर्ट पहन रखी थी.... हाथ में मोबाइल था.... पसीने लथपथ था.... शायद थोड़ा मोटा होने की वजह से जागिंग से लौटा होगा या किसी दुकान पर समान ले रहा होगा... उसने चिल्लाकर कहा कि ...ऐ लड़की यहां कैसे बैठी है....वो लड़कियां तो एक बार को इतनी वज़नी आवाज़ सुनकर सहम गई.. और बोलीं.....हम तो यूं ही बैठे हैं बाजार घूमने आये थे........डर की वजह से उनकी आवाज़ लड़खडा रही थी शायद......मोटा आदमी बोला....साली मा***द यहां यूं ही बैठी है ब***द... उसके आदमी के आवाज़ के भारीपन में गालियां सुनकर वो और ज्यादा डर गई..... डर कर बोली भाई साहब गाली काहे दे रहे हैं.... हम यहां घूमने नहीं आ सकते क्या ?... यहां और भी लोग तो बैठे थे आप उनसे कुछ क्यों नहीं कहते। आदमी का गुस्सा सांतवे आसमान पर चढ़ चुका था क्योंकि अब ये उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था..... उसने अपने गुस्से से लाल मुंह से बोला.....साली ब***द, मा***द, रंडी साली तू मुझसे पूछ रही है.... साली ब****ड़ी उठ यहां से.... इतना कहकर वो मारने के लिए आगे बढ़ा.... लेकिन इतने में लड़कियां डर के मारे खड़ी हो गई... लेकिन मोटे से आदमी का गुस्सा शांत नहीं हुआ.. उसने एक ज़ोरदार लात जड़ दी एक लड़की के... वो लड़की इस ज़ोरदार लात पड़ने से एकदम से बिखर गई.... बेसुध होकर वो लड़की इस तरह गिर पड़ी जिस तरह भूकंप के झटके से कोई बिल्डिंग भरभरा कर गिर जाती है। पहले वाली लड़की को तो होश नहीं आया काफी देर तक..... लेकिन इतने में दूसरी लड़की दीदी कह कर रोने लगी। उसके आंसू देखकर मेरी रुह कांप गई क्योंकि उसका रोना कोई आम रोना नहीं था। उसके रोने में वो दर्द था जो दर्द लिये हर झुग्गीवाला जीता है....जो विरोध करता है.... वो बदमाश बन जाता है...औऱ जो सहता है वो दम तोड़ देता है.... या जिनमें इतनी भी हिम्मत नहीं होती वो इसी तरह से बेबसी के आंसू लेकर रोते हैं। क्योंकि इन आंसूओं में वो बेबसी होती है जो कहती है कि वो कुछ नहीं कर सकते.... क्योंकि उनका साथ यहां कोई नहीं देगा.... इस समाज में क्योंकि यहां वही सभ्य माना जाता है जिसके कपड़े सभ्य होते हैं... और वो तो इन लड़कियों के बेहद साधारण थे। ख़ैर जहां कुछ लोग इसे सभ्यता मानते वहीं कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं। कुछ लोग आगे बढ़े उस आदमी को रोकने के लिए। लेकिन अभी भी कोई उन लड़कियों को उठाने को आगे नहीं आया। दूसरी लड़की ने रोते हुए अपनी दीदी को हाथ देकर उठाया.... और उसके कपड़े झाड़कर बोली की चलो दीदी यहां से चलें.... इतने में वो मोटा आदमी बोला .... जाती कहां है मा***द रुक तेरी मां***त... जाती कहां है.... इतना कह कर वो आगे बढ़ा लेकिन पहले से उसे रोक रहे लोगों ने एक बार फिर उसे रोका तब उसने राज़ खोला भड़कने का....मुझे रोको मत भाईसाहब ये साली दोनो रंडियां हैं कॉलगर्ल हैं.... इतना कह कर उसने एक बार फिर दौड़कर उन दोनों के बाल पकड़ लिए। इतने में मुझे भी लगा कि मामला बढ़ रहा है तो मैने कहा कि लोगों का साथ मुझे भी जाना पड़ेगा क्योंकि रोकने वाले ज्यादातर दुकान वाले थे जो नहीं चाहते होंगे कि उनका वो मोटा ग्राहक उनकी दुकान से सामान न खरीदे। मैने उस मोटे आदमी से जो मुझसे सेहत में डबल था.... उससे कहा कि सर जी आप क्यों इन्हें मार रहे हो यार.... जाने दो इन्हें जा तो रही हैं। तो वो बोला कि अरे नहीं भाई साहब मै तो इन्हे अभी पुलिस के हवाले करुंगा..... मैने कहा कि यार आप कैसे कह सकते है कि ये रंडियां हैं। इतना कहने पर वो तो मुझ पर भी तेल पानी लेकर चढ़ने लगा। बोला क्यों बे तू भी साले लगता है इनसे मिला हुआ है। मैने अपना नाम जुड़ने से पहले और लोगों की नज़र में आने से पहले उसकी अक्ल ठिकाने लगाई कि अबे ओ ब****ड़े साले यहीं घुसा दूगां समझ गया। साले यहीं रहता हूं एफ सात सौ पांच में...साले एक फोन पर यहीं मां**द जायेगी। समझ गया मेरे तेवर देख कर वो भी समझ गया कि यहीं का लोकल है लगता है.... इतने मेरा दोस्त आ गया वो ज़रा मुझसे तगड़ा है। दोनों को देखकर उस मुटल्ले की अक्ल ठिकाने आई.... तब वो बड़े ही प्यार से बोला कि भाईसाहब ये कॉल गर्ल हैं। इतने में उन लड़कियों को अपने उपर लांछन लगता देख वो भड़क गई और बोली नहीं भाईसाहब हम पास की हैं यहीं बंगाली कॉलोनी के पास मेरा घर है... मेरे भाईया रिक्शा चलाते हैं..... हम तो सिर्फ पास के सब्जी मार्केट से सब्जी लेने आये थे....तो सोचा कि यहां थोड़ी देर बैठ जायें..... इतने में मोटा फिर भड़का साली झूठ बोल रही है.... मारने बढ़ा लेकिन पहले ही मेरे दोस्त ने उसके हाथ को रोका। दोनों लड़कियां अपने बाल छुड़ा कर दूर हट गई.... अब मसला ये हो गया कि किसे सच माना जाये औऱ किसे गलत....मुद्दा अब कुछ लोगों के बीच था.... एक तो ख़ुद उन लडकियों के बीच, दूसरा उस मोटे आदमी के बीच जिसे पता नहीं कहां से पता चल गया था कि वो लड़कियां कॉलगर्ल थी.... तीसरा मेरे बीच। क्योंकि वहां पर खड़े बाकी सब लोग तो वो पूरा मामला किसी हिंदी फिल्म के क्लाइमेक्स की तरह बड़े चाव से देखभर रहे थे। इतने में मै बोला कि पुलिस के हवाले करने से कोई फायदा नहीं होगा अगर ये लड़कियां कॉलगर्ल नहीं होंगी तो भी वो फंस जायेंगी इस चक्कर में....तो ऐसा करना चाहिए कि इन्हें जाने देना चाहिए और हिदायत देनी चाहिए कि आइंदा न आयें.... ये बात पहले तो उस मोटे आदमी को पची नहीं पता नहीं क्यों.... लेकिन जब उन लडकियों ने कहा कि वो नहीं आयेंगी.... तब जाकर वो मान गया..... उन लड़कियों ने लंबी सांस ली और धीमें कदमों से चलीं गयी। जो लड़की रो रही थी.... वो लगातार रोये जा रही.... सुबक रही थी ..लगता था पहली बार इस तरह के माहौल में आई थी..... क्योंकि उसे डर था कि वो बच नहीं पायेगी और कुछ न कुछ गलत हो जाएगा.... और रोते रोते ही जैसे ही उसने सुना कि जाने को कह दिया गया है वो बोली जल्दी जल्दी चलो दीदी जल्दी घर चलो हम यहां कभी नहीं आयेंगे..... रोते ही जा रही थी.. उसी तरह से जिस तरह अगर आप कभी दुर्घटनाग्रस्त होकर अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हों और फिर आपकी जान बच जाय ....उस वक्त आपके परिवारवाले आपको देखकर रो रहे हों कि आप मौत के मुंह से बच कर आये है। जिस तरह की भावना उस वक्त आती है वैसी ही खुशी झलक रही थी उसके आंसुओं में....कहीं न कहीं मन में डर भी था कहीं ये छिन न जाए.... और मन में एक तरह की ठंडक..... एक सुकून ये सोचकर कि चलो बच गये.... वो दोनों चले गये। सभी अपने अपने घर चले गये लेकिन मेरा मानसिक द्वंद चल रहा। अगले दिन मै उसी प्लाजा में गया वहां कि बेकरी से पैटी, और पेस्ट्रीज खाने। वहां पहुंचा कि बेकरी वाले ने मुझे पहचान लिया और बोला कि.... कल तो बड़ी बहस हो गई सर... मैने कहा हां यार बेकार में वो मोटा उन लड़कियों को पीट रहा था.... बेकरी वाला चुप हो गया फिर बोला.... सर वो आदमी सही कह रहा था.... मैने उसकी बात सुनी तो मेरे दिमाग सन्न रह गया.... उसने कहा कि मै उन्हें पिछले कुछ दिन से उन्हें नोट कर रहा था... वो कॉल गर्ल ही लग रही थी.... औऱ तो और मैने तो उनमें से एक को तो उस मोटे से आदमी की कार में बैठकर कहीं जाते हुए भी देखा था.... उसकी बात सुनकर मेरी पैटी मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही था.... उस वक्त मुझे अपनी बेवकूफी पर जवाब नहीं सूझ रहा था....मै जिन्हें गलत समझ रहा असल में वो सही थे और मै बेफिज़ूल में उस मोटे आदमी से लड़ बैठा.... मैने बेकरीवाले से पूछा ....तो फिर वो उनसे लड़ क्यों रहा था.... बेकरी वाला बोला कि अरे भाईसाहब पैसे की बात नहीं फिट नहीं बैठी होगी.... इसलिए वो मोटा साला ...ठर्की ...बिगड़ गया होगा... ये सब रोज़ का धंधा है सर.... पैसे वाला है इसलिए अय्याशी करता है साला.... मै अब कुछ सोच समझ नहीं पा रहा था कि सच क्या है क्योंकि कल की बहस एकदम सही थी कुछ भी बनावटी नहीं लग रहा था क्या उसके लड़की के आंसू झूठे थे? क्या ये बेकरीवाला सही कह रहा है ? क्या कल की बहस बेफिज़ूल थी ? क्या मोटा आदमी अय्याश और वो लड़कियां वैश्या थीं ?........
(नोट: लड़कियां कुछ कुछ भोजपुरी में बोल रही थी, मैने उसे हिंदी में परिवर्तित किया है)
(नोट: लड़कियां कुछ कुछ भोजपुरी में बोल रही थी, मैने उसे हिंदी में परिवर्तित किया है)