मेरी एक बहुत बुरी आदत बनती जा रही है कि मुझे गलत लगने वाली बातें गलत ही लगती है। हमारे नोएडा शहर में एक ट्रेंड चल रहा है...मुझे ये तो नहीं पता कि हर शहर में ऐसा होता है या नहीं लेकिन हमारे नोएडा लगता है आम लोगों का शहर नहीं रह गया है। जहां भी जाओ एक बोर्ड हर तरफ मिलता है और वो बोर्ड है...ये आम रास्ता नहीं है..का ...भगवान कसम मेरी नजर में तो ऐसी जगह पता नहीं कौन सी है.. जो आम लोगों के लिए हो। सुरक्षा के नाम पर हर सेक्टर में गेट पर एक लोहे का दरवाजा लगा होता है औऱ बड़े से बोर्ड पर लिखा होता है कि ये आम रास्ता नहीं है अंग्रेजी में भी अंग्रेजी बुद्धुओं के लिए भी लिखा होता हैं वो भी अंग्रेजी में साथ बड़ी मूंछों वाले कुछ लठैत...ये बोर्ड कोई आम बोर्ड नहीं है। इन बोर्डस पर बाकायदा घुसने का समय और जाने का समय लिखा जाता है। अगर आप गलत समय पर आये तो अंदर नहीं जा सकते और अगर चले गये तो वापस तो नहीं जाने दिया जाएगा। या तो आप उस वक्त लड़ाई करिये या फिर गुंडो की तरह दादागिरी दिखाकर आइये..... भाई साहब आम आदमी तो आ ही नहीं सकता है। मैने एक चीज़ नोटिस की है कि अगर हर रास्ता आम न रहे तो आम आदमी कहां रहे। अक्सर इस तरह के बोर्ड आपको उन सेक्टर्स में मिलते है जो तथाकथित पॉश इलाके होते है और हेहेहेहेहेहेहेहेहे...आप तो समझते ही होंगे कि पॉश इलाकों में आम आदमी कहां रहते हैं ?...माफ करियेगा वो लोग रहते ही कहां हैं वो तो ज्यादातर विदेशों में रहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि वो आदमी कहां रहे जो उन कॉलोनियों के दूसरी तरफ रहते हैं। आपमे से ही ज्यादातर लोग ये सोच रहे होंगे कि दूसरा रास्ता भी तो हो सकता है। तो उनकें लिए जवाब है कि रास्ते तो बहुत हैं पर वो रास्ता कोई खास है क्या। सिर्फ इसलिए कि पॉश सेक्टर है चारों तरफ सो बार्डर लगा दो और हर दरवाजे पर मुछ्छड़ सिक्योरिटी गार्ड खड़ा कर दो बस। आखिर क्या है ये.... आम रास्तों को लोग क्यों खास बना रहे हैं सिर्फ उन चंद लोगों के लिए जो उन जगहों पर रहते हैं। क्या डर है उन्हें चोरी डकैती का। अरे जिसे चोरी करनी होगी वो क्या छह फुट के दरवाजे के उस पार नहीं जा सकता है। दिखावे के लिए दरवाजे लगाने से कोई जगह खास नहीं हो जाती है। ऊपर से ये बोर्ड जो ये कहता है कि ये आम रास्ता नहीं है....क्या घटियापन है उन लोगों का जो उन जगहों पर रहते हैं। क्या खास है उस रास्ते पर। आम आदमी का रास्ता क्यों नहीं है वो ..जरा कोई तो मुझे बताये। क्या जरा सा भी ये पता चलता है उन लोगों को कि किसी आदमी को कितनी परेशानी होती है जब चार कदम की दूरी को वो पचास कदमों से पूरी करता है। कौन देता है ये हक कि किस रास्ते को आम बनाना है और किसे खास ?...... कौन होता है ये कहने वाला कि ये रास्ता आम नहीं है। ज़रा कोई तो मुझे बताये कि क्या खास है उस रास्तों पर।
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
कुछ और लिखाड़...
-
-
-
-
-
फिर लगेगा नाइट कर्फ्यू !3 वर्ष पहले
-
-
-
-
-
-
-
दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)14 वर्ष पहले
-
-
ये आम रास्ता नहीं है.....
शनिवार, जुलाई 11, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 6:37 pm 8 टिप्पणियाँ
लेबल: सामाजिक
सदस्यता लें
संदेश (Atom)