जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता,
बढते हुए अपराधों पर,
जुल्म के शिकार अबोधों पर,
जाति पर, नवजातों पर
मै लिखता हूं...
जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच कि सिवा कुछ नहीं लिखता
देश के गद्दारों पर,
सफेदपोश मक्कारों पर,
चोरों पर नाकारों पर
मै लिखता. हूं
जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता
शहर में होते बलात्कारों पर
शिकार हुई औरतों पर
मासूम बच्चियों के दर्द पर
मै लिखता हूं ..
जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता
4 टिप्पणियाँ:
सच लिखना अच्छी बात है, क्योंकि वही प्रभावित करता है, वही सार्थक होता है।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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सही कर रहे हो भैया, सच लिखते रहो. शुभकामनाएं.
कवि का सत्य से साक्षात्कार दिलचस्प है जिसका जरिया पत्रकारिता के रूप में हाजिर है। बहुत अच्छा।
कवि का सत्य से साक्षात्कार दिलचस्प है जिसका जरिया पत्रकारिता के रूप में हाजिर है। बहुत अच्छा।
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