मै रहने वाला उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर शहर का हूं जो कि एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है ...पता नहीं है या नहीं... पर ज्यादातर लोग यही कहते हैं। क्योंकि मै नोएडा़ में रहता हूं तो पता नहीं चलता क्या हो रहा है वहां । कम ही आता हूं यहां पर, इत्तेफाक से किन्ही कारणों से मै इस रक्षाबंधन के मौके पर घर पर ही मौजूद था। इसी बीच मुझे याद आया कि क्यों ने इसी बहाने कुछ काम कर लिया जाये। तो सोचा कि अपनी बाइक का लॉक जो कि कई दिनों से खराब पड़ा था उसे बनवा लिया जाये। यहीं सोचकर अपने घर से मै मुज़फ्फरनगर की मार्केट की तरफ निकला मौसम काफी अच्छा था औऱ सड़क के दोनों तरफ ऐसा लग रहा था कि बरसात के पानी से सारे पेड़ भीगे हुए हों, शायद यहां बारिश हुई है, मै अपनी बाइक से शहर की तरफ चला जा रहा था। रास्ते में मिलने वाली नहरें पूरी तरह भरी पड़ी थी जिसका फायदा वहां के गांव वाले उठा रहे थे, बहुत से छोटे बच्चे नहरों में तैराकी सीख रहे थे या फिर अठखेलिया करके नहर में बहने वाले पानी के मज़े ले रहे थे। गर्मी को दूर करने के लिये बरसात ने बहुत दिनों बाद अपने रंग दिखाये थे जिसके मज़े ये बच्चे लूट रहे थे। मै अपनी मस्ती में मस्त बाइक पर हवाओं के थपेड़ों का मज़ा लेते हुए आगे बढ़ता जा रहा था। शहर पहुंचा, वहा पर कोई ओवर ब्रिज बन रहा था तो रास्तों की हालत काफी खराब थी किसी तरह मैं रेलवे ट्रैक के पास तक पहुंचा जिसके पार मुझे जाना था लेकिन फिर समस्या खड़ी हो गयी, लेकिन मैने हार नहीं मानी मै फिर भी आगे बढ़ा औऱ बड़ी मेहनत के बाद रेलवे ट्रैक पार किया। पार करने के बाद सबसे पहले मै गया सर्विस स्टेशन वहां पता लगा कि ये समस्या उनके बस की बात नहीं हैं। उन्होने मुझे बताया कि मै मीनाक्षी पिक्चर हाल के पास जाकर वहां पर जो सर्विस की दुकाने हैं वहा ठीक करवा लूं। मै किसी तरह वहां पहुचा तो एक दुकान पर बाइक खड़ी की, बाइक खड़ी करते ही एक छोटा बच्चा उम्र यही कोई दस साल ही रही होगी, सांवला रंग, एक शर्ट औऱ एक फुल पैंट पहन रखी थी, शर्ट औऱ पैंट दोनो पर ग्रीस के दाग, ऐसे लग रहा था कि कई दिनों से ये शर्ट धुली नहीं है, औऱ अक्सर आपने देखा होगा कि बाइक सर्विस वाले या कार सर्विस वालों के कपड़ो पर अगर ग्रीस के दाग न हो तो समझो कि वो अच्छा मैकेनिक नहीं होगा। वो लड़का काफी देर तक मेरी बाइक पर अपनी बुद्धि लगाता रहा फिर जाकर अपने दुकान मालिक को सारी कहानी बता दी उसके मालिक ने उससे पता नहीं क्या कहा, वो मेरे पास आकर बोला कि भाईजान अभी सही करता हूं आपकी मोटरसाइकल,....मैने कहा ठीक है...वो मेरे पास खड़ा हो गया....तभी मैने पूछा कि कौन सही करेगा तुम या कोई और....उसने कहां शहबा़ज़ भाई... मैने कहा ठीक है।.....वो बहुत देर तक मेरे हाथों पर बंधी राखियां देखता रहा। मैने कहा कि क्या हुआ,..उसने पूछा भाईजान आज राखी है क्या....मैने कहा हां आज रक्षाबंधन है...उसके भाईजान कहने से पहले ही मुझे अंदाज़ा हो गया था कि हो न हो ये किसी मुस्लिम समाज का लड़का है। मैने उससे पूछा क्यों क्या हुआ। उसने कहा कुछ नहीं आपने दो राखी बांधी है आपकी दो बहनें हैं क्या? मैने कहां बहनें तो बहुत है लेकिन जिसकी राखी आयी थी उसकी बांध ली....बाकी जब आयेगी तब बाधुंगा। उसने कहा कि जितनी बहनें होती है उतनी राखी बांधते है क्या? मैने कहा हां । उसने फिर पूछा कि अगर किसी के बहने न हो वो क्या करता है आज के दिन... मैने कहा कि किसी पड़ोस की किसी लड़की को बहन मानकर उससे राखी बंधवा सकता है। उसने कहा सच में ऐसा करते हैं। क्यों बांधते है आप लोग राखी। मैने कहा कि ये त्योहार है औऱ इस दिन सभी भाई अपनी बहन की रक्षा करने की कसम खाते हैं। पहले तो उसकी समझ में मेरी बात नहीं आई मैने कहा कि उसे उम्र भर मदद करने का वादा करते हैं चाहे जो हो जाये। तब उसकी समझ में मेरी बात आई...पर मेरी तो बहन नहीं है तो क्या मै भी किसी से भी राखी बंधवा सकता हूं... मैने कहा क्यों नहीं....फिर उसने कहा कि नहीं ..कहीं मेरे अब्बू मुझे मारेंगे तो नहीं। मैने कहा कि पूछ कर बंधवाना....इतना सुनकर उसे थोड़ी आशा बंधी। और तब तक उसका असली मैकेनिक आ गया औऱ उसे कुछ और काम पकड़ा दिया और मै सोचता रहा कि अब पता नहीं उसके अब्बू क्या कहेंगें। चिंता उसे होगी या नहीं, उस बच्चे को ये याद रहेगा या नहीं.... पर मुझे लगता रहा कि उसके अब्बू क्या कहेंगे। क्योंकि उस दस साल के लड़के के दिमाग में कुछ और नहीं था...वो तो बस किसी बहन की रक्षा के लिये इसे पहना जाता था। लेकिन अब उसके अब्बू उसे क्या शिक्षा देते हैं ये उन पर निर्भर करता है, चाहे वो उसे धर्म का पाठ पढाकर उसकी सोच को बदल सकते हैं...और उसे धर्म का अंधा पैरोकार बना सकते हैं या फिर उसे मानवता का पाठ पढ़ाकर उसे एक अच्छी ज़िदगी दे सकते हैं। बस मै यही सोचता रहा पता नहीं क्या हुआ होगा उसके अब्बू उससे क्या कहेंगे??
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
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गुरुवार, अगस्त 06, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 5:59 pm 5 टिप्पणियाँ
लेबल: सामाजिक
भाई साहब मै अब बस में सफ़र नहीं करता??
मै एक दिन बाइक से अपने ऑफिस की ओर जा रहा था। कानों में हेडफोन लगाये, आखों पर काला चश्मा, सफेद रंग की टी शर्ट, और गले से बैग लटकाये अपनी मस्ती में मस्त होकर, नोएडा के 12-22 चौराहे पर रुका रेड लाइट की वजह से। देखा कि एक आदमी मेरे पास आया कुछ बोलने लगा। मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, अरे मैने तो कानों में हेड फोन जो डाल रखा था, मैने उससे इशारे से रुकने को कहा फिर कानों से हेडफोन निकाला औऱ फिर पूछा कि क्या हो गया। उसने कहा कि भाईसाहब मुझे लेबर चौक तक जाना है क्या मुझे छोड़ दोगे। मैने ऊपर से नीचे तक उसे ध्यान से देखा देखने में तो ठीक लग रहा था, देख कर लग रहा थी कि किसी ऑफिस में काम करता है। मैने उससे कहा कि चलो छोड़ दूंगा, बैठ जाओ। वो फिर तुरंत बैठ गया। ग्रीन लाइट होते ही मैने बाइक स्टार्ट की औऱ आगे बढ़ गया, थोड़ा आगे जाकर मैने कौतूहलवश पूछ लिया, क्या हुआ बस नहीं आ रही है क्या ?.. उसने कहा आ रही है लेकिन मै जाना नहीं चाहता था । मैने पूछा क्यों क्या हुआ पैसे खत्म हो गये हैं क्या...तो बोला अरे नहीं भाई साहब ग़ाज़ियाबाद जाने वाली बसें जाने लायक थोड़े ही होती हैं, मैने पूछा क्यों, उसने कहा कि एक बस ड्राइवर के साथ बदमाश टाइप के चार क्लीनर होते हैं पैसे तो ज्यादा लेते ही है साथ ही अगर आपसे बद्तमीजी करने से भी पीछे नही हटते हैं। और अगर कहीं आपकी भाषा में बिहारी टच देख लें तो समझो कि आपको बेवकूफ बनाने में देर नहीं करेंगे या दादागीरी दिखायेगें। मैने पूछा क्यों आपके साथ कुछ हो गया है क्या। उसने कहा हां अभी कल ही मैं जा रहा था तो मुझसे लेबर चौक के ही दस रुपये मांगने लगा, मैने कहा कि थोड़ी ही दूर है तो इतने क्यों उसने कहा कि कहां से आया है बे, मैने कहा कि 12-22 से, तो वो बोला अपना गांव बता बे बिहारी, मैने कहा कि आपको क्या करना तो उसने कहा कि जहां से आया है वहां इतनी दूर के उतने लगते होंगे जितने तू दे रहा है। यहां नहीं लगते । मैने कहा इतने नहीं दूंगा तो उसने कहा कि यहीं उतर जा फिर, काफी मनाने पर भी नहीं माना तो उसने मुझे बिना बस रोके धीमे करवाके नीचे धक्का दे दिया मुझे कुछ चोटें आई लेकिन चलो बच तो गया उनसे। मैने तो सुना है कि यहां इतनी सी बात में गोली तक मार देते हैं। मै हंसा औऱ बोला हो सकता है भाई मैने तो नहीं सुना आज तक ऐसा। उसने कहा कि हां भाई साहब होता है। तो फिर मैने बोला कि यार आज तक तो मैने सिर्फ ब्लूलाइन बसों के लिये ही ऐसा सोचता था कि उसमें गुंडागर्दी होती है, इधर की बसों के बारे में तो नहीं सुना आज तक। अब क्या बताऊं सर मैने तो झेला है इसलिये नहीं जाता बसों से। तो क्या हुआ टैम्पो से चले जाया करो, अरे नहीं भाई साहब उसमें तो और भी बुरा हाल है। मैने कहा क्यों उसमें क्या हो गया अब क्या उसमें भी आपके साथ ऐसा ही हो गया क्या ? अरे नहीं उसमें से तो मौत से वापस आया हूं.... कैसे ? क्या बताऊं सर उसका ड्राइवर तीन पहियों को इतनी तेज़ी से चला रहा था कि लग रहा था कि अब गिरा की तब गिरा, मै किसी तरह राम राम जपकर उतरा.... आगे देखा कि मेरे सामने फिर जैसे ही वो टैम्पो आगे बढ़ा कि मिट्टी में फिसलकर पलट गया ज्यादातर लोगों को चोटे आईं। अब आप ही बताईये कि कैसे जाये आदमी अपने काम पर। इतने में लेबर चौक आ गया वो आदमी उतर गया। फिर मुझे याद आया कि यार उसका नाम तो पूछ लिया होता। लेकिन फिर सोचा कि चलो क्या फर्क पड़ता है हर रोज कोई न कोई मिल जाया करता है कहां तक सबके नाम रटता फिरुं, लेकिन समस्या विकराल है, अगर मेरे पास बाइक न होती तो मेरी तो हर रोज किसी बस या ऑटो चालक से लड़ाई होती। एक आम आदमी जिसको सिर्फ इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर भरोसा है वो कैसे इनमें सफर करते होगें जिनके पास अपना वाहन है वो लोग इसका सिर्फ अंदाज़ा लगा सकते हैं। हालात ये है लेकिन फिर अक्सर टीवी पर औऱ कई सरकारी प्रचार कर लोग सलाह देते है कि प्रदूषण कम करना हो या ईंधन की बचत करनी हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें या शेयर करके आये जायें। डर जाता हूं कि कहीं ऐसा कोई कानून आ जायेगा तो फिर इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट वालों की तो दादागीरी कैसे झेल पाउंगा। क्योंकि उस वक्त कोई और चारा नहीं रहेगा। और ये मुद्दा अभी किसी की नज़रों में भी नहीं है। लेकिन इस समस्या से हर कोई परेशान है, कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता तो कोई इस बात को छोड़कर अपने राग में लग जाता है।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 10:21 am 4 टिप्पणियाँ
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