जिस देश में गांधी रहता था !!!!

शुक्रवार, जुलाई 31, 2009

आज कई दिनों बाद महात्मा गांधी की याद आई है। उन्होंने बहुत किया है हमारे देश को आज़ाद कराने के लिए। लेकिन यार सोचता हूं कि हम क्या कर रहे है। देश क्या कर रहा है। वो नेता क्या कर रहे है जिनके ऑफिसों में महात्मा गांधी की तस्वीरें धूल खा रही हैं। कुछ भी कहने से पहले कुछ बातें कहना चाहता हूं या कहूं कि कुछ याद दिलाना चाहता हूं और साथ में ये उन भारतीयों के लिए शर्म से भरी जानकारी भी हो सकती है जो देश के लिए कुछ भी करने का दम्भ भरते हैं। दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिस घर में तीन साल रहे अब उसकी मालकिन उसे नीलाम कर रही है। हैरत की बात यह है कि भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति ने इसे खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। जोहान्सबर्ग के उत्तर में बसा हुए ऑरचर्ड कस्बे की एक गली में बने इस मकान का डिजाइन गांधी के करीबी रहे वास्तुकार हर्मेन केलेनबैक ने तैयार किया था। बापू इस मकान में 1908 से 1911 तक केलेनबैक के साथ रहे थे। 25 साल से इस घर की मालिक रही नैंसी बाल इसे बेचकर केप टाउन में सैटल होना चाहती हैं। हालांकि उसने इस घर की कीमत अभी तक नहीं लगाई है। अब बारी आ रही है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा दिए गए उपहारों की नीलामी की । महात्मा गांधी ने अपनी आइरिश मित्र एम्मा हार्कर को उपहारस्वरूप भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा भेंट की थी। अब इस उपहार की बोली आठ सिंतबर को लगेगी। एशियाई कला के बोनहैम्स सेल में शामिल 13 इंच की इस प्रतिमा की कीमत लगभग चार लाख रुपये आंकी जा रही है। इस महीने के 14 जुलाई को गांधीजी के हस्ताक्षरित तीन पत्रों की नीलामी 4,750 पाउंड [लगभग तीन लाख अस्सी हजार रुपये] में हुई थी। जबकि उनके हाथ का बुना और हस्ताक्षर किया खादी का कपड़ा 2,215 पाउंड में बिका। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में महात्मा गांधी से जुड़े पत्र, हस्ताक्षरित पोस्टकार्ड तथा उनका बुना हुआ खादी का कपड़ा 9266 पाउंड में नीलाम हो गए।‘सूदबे’ कंपनी द्वारा आयोजित इस नीलामी में महात्मा गांधी के मौलाना अब्दुल बारी को उर्दू में लिखे तीन पत्र शामिल थे। इन पत्रों की कीमत 2500 से 3000 पाउंड आंकी गई थी, लेकिन टेलीफोन पर लगी बोली में इन पत्रों को 4892 पाउंड में नीलाम किया गया। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ी चीजों के मौजूदा मालिक जेम्स ओटिस ने उन वस्तुओं की विवादास्पद नीलामी को रद्द करने और उन्हें भारत को दान करने पर सैद्धांतिक सहमति दी है लेकिन आसार कम ही है। ओटिस ने कहा है कि न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास में हुई बातचीत के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी का चश्मा, चप्पलें तथा अन्य चीजों को इस शर्त पर भारत को दान करने पर रजामंदी दी है कि भारत गरीबों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च में बढ़ोत्तरी करेगा और सौंपे गए स्मृति चिन्हों को अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में रखेगा। चलों इसी बहाने बापू अपनी चीज़ो से भी कई लोगों का भला कर सकेंगे। लेकिन ऐसी हुआ नहीं हमारी सरकार अरे जिसे हमने वोट देकर दुबारा जिताया है उसने स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च बाढाने की शर्त ये कह कर नहीं मानी कि ये तो ब्लैकमेलिंग है। कमाल है हमारे नेताओं को उस वक्त ब्लैकमेलिंग ऩज़र नहीं आई जब प्लेने हाईजैक करके आतंकवादियों ने खूंखार आतंकवादी छुड़वाये थे। आज जब लोगों का भला होने की शर्त है तो ब्लैकमेलिंग वाह भाई हमारा भारत महान और जिसके नेता है इसके भगवान। हमारी वही सरकार जिसका गठन गांधी जी ने ही किया थी उसको इन नीलामियों से कोई लेना देना नहीं है। उल्टे कस्टम विभाग ने नीलामी में खरीद करने वाले विजय माल्या अरे वही जो किंगफिशर के मालिक है और ज्यादातर सुंदरियों के साथ दिखाई देते है, को नोटिस दे दिया है कि वे गांधी जी की घड़ी और चप्पलों पर 15 प्रतिशत यानी लगभग एक करोड़ रुपए का टैक्स दें। मज़े की बात तो ये है कि ये विभाग प्रधानमंत्री के अधीन आता है। विदेश व्यापार महानिदेशालय ने विजय माल्या से पूछा है कि आपने इन चीजों के आयात का लाइसेंस क्यों नहीं लिया था? पता नहीं शर्म से सिर झुकाऊ या फिर हंसू इन नेताओं और निदेशालयों पर। विजय माल्या की ओर से जब सरकार से पूछताछ की गई तो सरकार ने कहा कि उन्हें किसी भी किस्म की रियायत नहीं दी जा सकती क्योंकि कला और दुर्लभ वस्तुओं के आयात के लिए 1972 में एक विशेष कानून बना है। ये कानून सब पर लागू होता है। हां कानूनी पेंच है जिससे हम और आप अक्सर डर जाया करते हैं। दूसरा कमाल कहूं या नेताओं की बेवकूफी कि ये कानून जेम्स ओटिस पर लागू नहीं हुआ था जो 1972 के बाद गांधी जी की ये विरासतें भारत से एक फिल्म बनाने के बहाने ले गये थे। उसी ने गांधी जी की विरासत से नौ करोड़ रुपए कमाए हैं। माल्या ने टीपू सुल्तान की तलवार भी नीलामी में खरीदी थी और उसे सरकारी संग्रहालय को सौप दिया था। अमेरिका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पांच स्मृति चिन्हों की नीलामी हुई..जिसमें बापू का चश्मा, एक जोड़ा चप्पल, उनकी जेनिथ पाकेट घड़ी, एक तश्तरी और एक प्लेट शामिल थी। देश के जाने माने उघोगपति विजय माल्या ने इन्हें करीब 18 लाख अमेरिका डॉलर( करीब नौ करोड रुपए) में खरीद लिया । ऐसा नहीं है कि नौ करोड़ रुपए कोई बहुत बड़ी रकम है। भारत जैसे विशाल देश में इस रकम को चुका देने वाले लाखों की तादाद में होंगे। लेकिन ये काम किया पेशे से शराब बनाने वाले विजय माल्या ने दिखाया। जी हां शराब जिसका गांधीजी जीवन भर विरोध करते रहे। बापू की विरासत को बचाने के लिए एक ऐसा शख्स सामने आया....जो बापू के सिद्धातों पर बिलकुल नहीं चलता ..अरे जिस शख्स ने देश को आजादी दिलाने में इतनी अहम भूमिका निभाई ..उसके स्मृति चिन्हों को वापस लेने के मामले में भारत सरकार का इतना गैर जिम्मेदाराना रवैया शर्मनाक है। आखिर ये क्या हो रहा है कहां है वो इज्जत जो महात्मा गांधी हमें पूरी दुनिया में अपने नाम पर पहचान दिलवाते है वरना कौन जानता है भारत को। दूसरे देशों में जाओ तो महात्मा गांधी ही हमारी पहचान है। एक सच ये भी है.. लेकिन किस सच को आज हम अपनाना चाहते है ये हमारे अंतरआत्मा का सच है!!!!!

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