कल रात बादलों की आड़ में
जो खेल चल रहा था,
उसकी रचनाकार तुम हो
हां वो तुम हो,
बड़े इंतज़ार के बाद,
बेक़रार दिल पर,
चांदनी बरसाने वाली तुम हो
हां वो तुम हो,
पास तो न हो तुम इस वक्त मेरे,
पर रात के अंधेरे में
मुझ पर छुपी नज़रों से देखती
हां वो तुम हो,
ग़र होती पास मेरे,
तेरे हाथों लेकर हाथों में, पर
हाय री किस्मत, दूर हो
सिमटती हुई इस कविता में तुम हो
हां वो तुम हो,
ज़रो रुको तो क्षण भर,
देख लूं जी भरकर,
पर तुम फिर न मानी
बादलों की ओट लेकर छुपती हुई तुम हो,
हां वो तुम हो।