झुर्रियों के सहारे सुरक्षा !!!!

शुक्रवार, अगस्त 28, 2009

रात को अपने दोस्त के यहां से लौट रहा था। बाइक पर जा रहा था अपनी मस्ती में । मुझे याद आया कि एक तो सैलरी लेट आती है ,दूसरा पर्स में एक रुपया भी नहीं है तो क्यों न अपनी गुल्लक जैसी जमापूंजी से कुछ पैसे निकाल लिया जाये। पास के ही एटीएम गया... वहां देखा कि लाइन तो लंबी नहीं थी...पर लोग पैसे लेने के लिये काफी जल्दी मचा रहे थे। सुरक्षा के तैनात एटीएम का गार्ड अपना भोजन कर रहा था। मैने एक सभ्य आदमी की तरह लाइन में अपनी जगह ले ली। उस गार्ड की उम्र यही कोई पचपन के पास की रही होगी। दिन भर गर्मी में तपकर उसके कपड़ों से एक अजीब सी बदबू आ रही थी। मै उससे थोड़ा दूर हो गया.. वो अपना भोजन खाने मस्त था। दिन भर की भूख उस आदमी को कुछ सोचने ही नहीं दे रही थी। वो अपनी धुन में मस्त था। उसे किसी की कोई फिक्र नहीं थी। मैंने पैसे निकाले और अपनी घर की ओर जाने से पहले पास की दुकान से पोहा खरीदने के लिये रुका। दुकान की ओर जाते वक्त मेरी नजर पड़ी एक बूढे आदमी पर जो एक ज्वैलर्स की दुकान पर सोने की तैयारी कर रहा था। दिमाग में एक सवाल आया कि एक तो ये ज्वैलर्स की दुकान और ऊपर से ये गार्ड सोने की तैयारी कर रहा है, काहे का गार्ड है ये जो सोने जा रहा है। मैने सोचा कि आखिर इस उम्र में ये गार्ड भला कर भी क्या सकता है.. किसकी रक्षा कर सकेगा ये अच्छा है कि सो जाये। शायद वो रात भर जाग नहीं सकता। या कहूं कि जो ठीक से बैठ भी नहीं सकता वो कैसे किसी की सुरक्षा कैसे कर सकता हैं। उस वक्त उन दोनों जगहों के वृ्द्धों को देखकर मन दुखी हो गया। पता नहीं क्यों इस उम्र में उन बूढों को आराम करने के बजाय काम करना पड़ रहा है और वो भी सुरक्षा करने का ज़िम्मा उठाने का । और ज्वैलर्स की दुकान कुछ उन दुकानों में से होती हैं जो लुटेरों या चोरों का पसंदीदा होती है और बूढ़े हाथों में सुरक्षा की कमान होने से ये आसान शिकार बन जाती है। और इसी चक्कर में वृद्ध गार्ड्स को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। इनके हाथ में क्या है सिर्फ एक डंडा और शरीर में क्या है दिनभर की भूख और झुर्रियों से युक्त शरीर की थकान, बस। लेकिन आजकल सिर्फ यही नहीं लगभग हर जगह पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इन कमजोर कंधों में होती है। इन सिक्योरिटी गार्डस में से ज्यादातर वो होते है जो रिटायर्ड हो चुके होते है। ये लोग स्वाभिमानी है इसलिये हर वो काम करने को तैयार होते हैं जिनसे इनकी जीविका चल सके। लेकिन मन आज बहुत दुखी है.,,और सलाह है सरकार से कि इन वृद्ध लोगों के लिये कम से कम ऐसी व्यवस्था की जाये जहां पर इन्हे ऐसे काम मिले जिससे इन्हें अपनी जान से हाथ न धोना पड़े और साथ ही स्वाभिमान के साथ ये लोग अपने काम को अंजाम देने के बाद अपने कमाये पैसों से भोजन कर सकें और अपनी जीविका चला सकें। लेकिन पता नहीं इसका हल क्या है पर मेरी नज़र में तो इसका यही हल है। और कई वृद्धाश्रम इस काम को कर भी रहे हैं लेकिन आप भी जानते होंगे कि ये वृद्धाश्रम सिर्फ उन लोगों के लिये है जो अपने घरवालों के होते हुए भी वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर है। स्वाभिमानी बुज़ुर्ग जो वृद्धाश्रम में रहना पसंद नहीं करते और वहां पर जीवन नहीं काट सकते, साथ ही वो भी जो गरीब है औऱ उनके पास वृद्धाश्रम को देने के लिये पैसे नहीं है उनके लिये हमारी सरकार को कुछ करना चाहिये। पहला उनके रहने की व्यवस्था करनी चाहिये, दूसरा उनके जीविकोपार्जन की व्यवस्था करनी चाहिये ताकि ये लोग किसी पर बोझ न बनें, तीसरा आर्थिक तौर पर मदद किया जाये ताकि इन लोगों को मदद मिलती रहे। ये एक सुझाव है और एक अपील भी... पता नहीं इस लेख का कितना असर होगा पर... ब्लाग जगत में बहुत से लोगों के पास इसका जवाब होगा और अगर कोई है जो इसके बाबत कुछ कर सकता है तो कुछ करियेगा ज़रुर और या तो आप ही बतायें इसका हल क्या है ????

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