कैसे दूर होगा रैगिंग का कैंसर

बुधवार, जून 17, 2009


रैगिंग का सांप जिस तरह से हर साल कई छात्रों को हर साल निगलता जाता है उसे देखकर लगता कि कब इससे निजात मिल पायेगी। हर साल कई बच्चे इसकी वजह से आत्महत्या करने जैसा बड़ा कदम उठा लेते हैं। रैगिंग को रोकने के लिए देश की सबसे बड़ी ताकत सुप्रीम कोर्ट ने भी कई तरह के कड़े कानून बनाये है लेकिन हर बार ये कानून फ़ेल होते किसी काम नहीं आते है। इसका उदाहरण दूंगा उस वक्त का जिसको मैने देखा है झेला है.....जब मै अपने कॉलेज में पढ़ा करता था तो उस वक्त भी रैगिंग के मामले सामने आते थे। मै जब पहली बार कालेज में कदम रखा तो उस वक्त भी मेरी रैगिंग हुई थी। मै और मेरा दोस्त कॉलेज के गेट पर पहुंच भी नहीं पाये थे कि हमें आवाज आई कि ऐ फ्रेशर इधर आओ। हम दोनों का अंदाजा तो हो गया कि अब तो गये बेटा...हम दोनों वहां पहुंचे वहां पहुचते ही सबसे पहले उन्होने हमसे हमारा नाम पूछा उसके बाद कहा कि नाच कर दिखाओ बीच सड़क पर हमें नाचना पड़ा क्या करते अंजान शहर अंजान लोग इसलिए हमने नाचकर दिखाया लेकिन बात आगे बढ़ती कि कॉलेज की ही रैगिंग टीम आ गई और हमारे जान में जान आई। लेकिन सिलसिला यहीं ख़त्म नहीं हुआ था... ये तो सिर्फ शुरुआत थी। अब तो जो कोई सीनियर मिलता वो कुछ न कुछ करने को कहता कोई नचाता तो कोई गाने गवाता लेकिन खतरा तो तब और बढ़ जाता जब हर कॉलेज की तरह यहां भी गुंडे टाइप के लोग आ जाते हैं और उनसे हर कोई डरता है चाहे टीचर हो या मैनेजमेंट क्योंकि इनमें ज्यादातर उन लोगों बच्चे होते है जो या तो मंत्री के लड़के होते है किसी आईएएस के.... उस वक्त आप तो समझो गये। मेरे साथ भी ऐसा हुआ। एक बात और कि इस टाइप के बदमाश लड़के सूनसान जगहों पर ही आपको जाने को कहेंगे क्यों कि वहां न मानने पर मारने पीटने की आज़ादी जो होती है। मुझे भी सूनसान जगह देखकर ले जाया गया सबसे पहले मुझसे मेरा नाम पूछा गया और रहने का स्थान...रहने का स्थान इसलिए पूछा जाता है क्यों कि इसी बहाने पता तो लगे कि कहां रहता है या रहती है। मैने बता दिया कि मुज़फ्फरनगर.... शहर की नाम सुनकर एक बार तो लड़के कुछ सोच में पड़ गये शायद इस वजह से कि मेरे शहर का इतिहास ज़रा सा खराब है...लेकिन आगे कोई मांग बढ़ती कि तभी उनमें से एक लड़के ने आवाज लगाई कि ओए...लड़की.......देख लड़की आ रही है.....एक लड़की पर उनकी नज़र पड़ गयी जो बचते बचाते वहां से निकल रही थी। पता नहीं मेरी किस्मत अच्छी थी या उसकी किस्मत खराब कि उन बदमाश लड़कों ने मुझे तो छोड़ दिया पर उस लड़की को पकड़ने चले गये। मैं तो अपनी जान छुड़ाकर भागा लेकिन थोड़ी दूर जाकर ख्याल आया कि क्यों न जाकर देखू कि कहीं उस लड़की वो बदमाश लड़के ज्यादा परेशान तो नहीं कर रहे हैं। मैने तुरंत खुद न जाकर कॉलेज के लोगों को सूचित किया। तब वो लोग उसे बचाने या कहें कि उसे छुड़ाने वहां गये। जब वो वापस आई तो उसके आंखों में आँसूं थे।...उसके आंसू से आप सहज ही अंदाजा ही लगा सकते हैं कि उस बेचारी के साथ क्या हुआ होगा....उस घटना के बाद कॉलेज मे बबाल हुआ लेकिन मैनेजमेंट लाचार था लेकिन हिम्मत की दात देता हूं उस लड़की की कि उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई लेकिन जैसा मैनेजमेंट ने किया था कुछ न करके..... उसी तरह पुलिस ने भी कुछ न किया क्यों उनमें से सभी उच्च अधिकारियों के लड़के थे और इसी वजह से मामला दबता चला गया उस दिन के बाद से उस लड़की को रोज देखता था क्यों कि मुझे लगा कि आखिर कैसे ये लड़की इतना सहने के बाद भी कॉलेज में आ रही है और उन बदमाशों को भी देखता था क्योंकि वो हमेशा की तरह किसी न किसी लड़की को रोककर रैगिंग के नाम अभद्रता कर रहे होते थे और कॉलेज मामले को शांत करता नजर आता था और ऐसा चलता रहा अगले तीन साल तक जब तक मै उस कॉलेज में पढ़ा।

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