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फिर वही एहसास है.....

मंगलवार, सितंबर 07, 2010


सालों बाद 
पिछले कुछ दिनों से 
फिर वही एहसास .....

बरसों पहले छू गया था वो
कुछ दिनों से
पास से गुजरता....
फिर वही एहसास.....

कैसे शब्दों में उलझाउं 
निशब्द उलझा हूं....
मेरी नज़रों के पास..
फिर वही एहसास ........

अंजानी क्यों पहचानी सी.....
नैनों में प्यास पुरानी सी
कुछ तो खास है.....
उफ़....
.क्या कहूं..... क्या करूं..... 
फिर वही एहसास .....

पहले भी पहल नहीं ...
अब भी रुका हूं
लेकिन
इस दिल में उठा
फिर वही एहसास है

हां वो तुम हो....

शुक्रवार, जनवरी 08, 2010




कल रात बादलों की आड़ में
जो खेल चल रहा था,
उसकी रचनाकार तुम हो
हां वो तुम हो,


बड़े इंतज़ार के बाद,
बेक़रार दिल पर,
चांदनी बरसाने वाली तुम हो
हां वो तुम हो,



पास तो न हो तुम इस वक्त मेरे,
पर रात के अंधेरे में
मुझ पर छुपी नज़रों से देखती
हां वो तुम हो,


ग़र होती पास मेरे,
तेरे हाथों लेकर हाथों में, पर
हाय री किस्मत, दूर हो
सिमटती हुई इस कविता में तुम हो
हां वो तुम हो,


ज़रो रुको तो क्षण भर,
देख लूं जी भरकर,
पर तुम फिर न मानी
बादलों की ओट लेकर छुपती हुई तुम हो,
हां वो तुम हो।


जो लिखता हूं सच लिखता हूं

गुरुवार, अक्टूबर 15, 2009

जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता,

बढते हुए अपराधों पर,
जुल्म के शिकार अबोधों पर,
जाति पर, नवजातों पर
मै लिखता हूं...

जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच कि सिवा कुछ नहीं लिखता

देश के गद्दारों पर,
सफेदपोश मक्कारों पर,
चोरों पर नाकारों पर
मै लिखता. हूं

जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता

शहर में होते बलात्कारों पर
शिकार हुई औरतों पर
मासूम बच्चियों के दर्द पर
मै लिखता हूं ..

जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता

मै आपकी परेशानी समझता हूं!!!!!

शुक्रवार, जुलाई 03, 2009

उस वक्त मैं बहुत ज़ोर से हंसता हूं
जब कहता है कोई कि मै
आपकी परेशानी समझता हूं


कुटिल दिखती है तब हर कथनी
जब कहता कोई कि
बॉस से मांग लेना थोड़ी मनी

क्या महसूस कर सकेगा वो शर्म ?
जो अनुज( छोटा भाई) से पैसे मांगने पड़े

क्या महसूस कर सकेगा वो हताशा ?
कि बीच सड़क खड़ा बगैर पैसे के
घर जाने की आस लगाये
क्या कोई छोड़ेगा मुझे ?
बिना रुपये की प्यास दिखाये

क्या बन सकेगा बेशर्म जो
मकान मालिक की गालियां सुन जाये
क्या दबा देगा
मन के उस चोर को ?
जो भूखे पेट किसी की थाल पर
नज़र पड़े.. तो नफरत से
मुंह फेरने के हिम्मत दिखाये

पेट भरा हो तो निकलती हैं
सब्र रखने की सौ बातें,
जीने के संघर्ष में ही यहां
निकल जाती है सारी रातें

आस है बेहतर जीवन की
सपने हैं कि माया मिलेगी, लेकिन
न माया मिले न राम
यहां नहीं मिल सका सुकून के
दो पलों का आराम

खुशी में तो हर कोई खुश होता है, लेकिन
क्या ऐसे वक्त को समझेगा कोई ?
क्या उस वक्त कहेगा कोई ?
कि, मै आपकी परेशानी
समझता हूं। 

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