देश को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने वाले मोहन दास करमचंद गांधी के उपनाम के साथ एक ऐसा गांधी भी है जो क्रांतिकारी विचार वाले हैं और वो हैं वरुण गांधी ..जी हां इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की क्रांतिकारी छवि को नया आयाम देने के लिए अब राजनीति के मैदान में उतरे हैं वरुण गांधी....नया जोश है या नया ख़ून ये तो नहीं पता पर अपने पिता की छवि उनमें साफ देखने को मिल सकती है....पीलीभीत में दिये गये उनके भाषण में एक बात तो साफ हो रही है कि वो कितना भी ये कह लें कि वो किसी भी धर्म विशेष के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन उनके भाषण में धर्म विशेष के लिए की गई टिप्पणियों से सब साफ़ हो रहा है...इतना ज़रुर है कि अगर इस तरह के तीन चार भाषण वो दे दें तो देश में सांप्रदायिकता की आग अवश्य लग जाएगी....हिन्दुत्व की बात करने वाले लोगों में वरुण प्रसिद्ध हो गये हैं...ठाकरे जैसे लोगों के लिए वो हिंदुत्व के नए सिपाही हैं ...चाहे इस भाषण के बाद वरुण सभी से माफ़ी की बात कह रहे हों पर दिल की बात कभी न कभी तो ज़ुबान पर आ ही जाती है....आगे की बात फिर कभी क्योंकि अभी वरुण को बहुत कुछ देखना अभी बाकी है....
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
कुछ और लिखाड़...
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फिर लगेगा नाइट कर्फ्यू !3 वर्ष पहले
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दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)14 वर्ष पहले
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"क्रांतिकारी" गांधी
बुधवार, मार्च 18, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 10:11 pm 0 टिप्पणियाँ
लेबल: राजनीति
कहां है आदर्श आचार संहिता
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद चुनाव की आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है पर जिस देश के राजनीतिज्ञ को वहां के आम लोग अपना आदर्श मानना छोड़ दें । वहां के राजनीतिज्ञों से आदर्श आचार संहिता का पालन करने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। एक बात का तो कम से कम हम आम वोटरों को दिमाग में रखना ही चाहिए कि पूरे पांच सालों बाद लोकसभा के चुनाव आते हैं। ये बात अलग है कि ऐसी नौबत कम ही आईं है। और फिर अबकी बार सरकार ने पूरे पांच साल भी पूरे कर लिए है । ऐसे में चुनाव होने वाले हों तो हर नेता यही कहेगा न कि कौन सी आचार संहिता ? कैसी आचार संहिता ? सब चलता है मेरे दोस्त । अपने ही वोटरों को सपने दिखाकर ख़ुद के सपने पूरे करने के बाद भी हर चुनाव में हमारे राजनेता वोट मांगने से ज़रा सा भी नहीं कतराते हैं । कभी होली का नेग कहकर पैसा दिया जाता है तो कभी मौलाना पर पैसे की गंगा बहाई जाती है। कोई नेता सिनेमा हॉल में फिल्म दिखाकर अपने कार्यकर्ताओं समेत सभी लोगों को आचार संहिता का पालन करने का संदेश देने का पाठ भी पढ़ाते हैं । अरे भाई जो लोग संसद की मर्यादा का पालन नहीं कर पाते वो चुनाव की आदर्श आचार संहिता की पालन कैसे कर सकेंगे।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 8:38 pm 0 टिप्पणियाँ
लेबल: जागो रे