जिस देश में गांधी रहता था !!!!

शुक्रवार, जुलाई 31, 2009

आज कई दिनों बाद महात्मा गांधी की याद आई है। उन्होंने बहुत किया है हमारे देश को आज़ाद कराने के लिए। लेकिन यार सोचता हूं कि हम क्या कर रहे है। देश क्या कर रहा है। वो नेता क्या कर रहे है जिनके ऑफिसों में महात्मा गांधी की तस्वीरें धूल खा रही हैं। कुछ भी कहने से पहले कुछ बातें कहना चाहता हूं या कहूं कि कुछ याद दिलाना चाहता हूं और साथ में ये उन भारतीयों के लिए शर्म से भरी जानकारी भी हो सकती है जो देश के लिए कुछ भी करने का दम्भ भरते हैं। दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिस घर में तीन साल रहे अब उसकी मालकिन उसे नीलाम कर रही है। हैरत की बात यह है कि भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति ने इसे खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। जोहान्सबर्ग के उत्तर में बसा हुए ऑरचर्ड कस्बे की एक गली में बने इस मकान का डिजाइन गांधी के करीबी रहे वास्तुकार हर्मेन केलेनबैक ने तैयार किया था। बापू इस मकान में 1908 से 1911 तक केलेनबैक के साथ रहे थे। 25 साल से इस घर की मालिक रही नैंसी बाल इसे बेचकर केप टाउन में सैटल होना चाहती हैं। हालांकि उसने इस घर की कीमत अभी तक नहीं लगाई है। अब बारी आ रही है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा दिए गए उपहारों की नीलामी की । महात्मा गांधी ने अपनी आइरिश मित्र एम्मा हार्कर को उपहारस्वरूप भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा भेंट की थी। अब इस उपहार की बोली आठ सिंतबर को लगेगी। एशियाई कला के बोनहैम्स सेल में शामिल 13 इंच की इस प्रतिमा की कीमत लगभग चार लाख रुपये आंकी जा रही है। इस महीने के 14 जुलाई को गांधीजी के हस्ताक्षरित तीन पत्रों की नीलामी 4,750 पाउंड [लगभग तीन लाख अस्सी हजार रुपये] में हुई थी। जबकि उनके हाथ का बुना और हस्ताक्षर किया खादी का कपड़ा 2,215 पाउंड में बिका। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में महात्मा गांधी से जुड़े पत्र, हस्ताक्षरित पोस्टकार्ड तथा उनका बुना हुआ खादी का कपड़ा 9266 पाउंड में नीलाम हो गए।‘सूदबे’ कंपनी द्वारा आयोजित इस नीलामी में महात्मा गांधी के मौलाना अब्दुल बारी को उर्दू में लिखे तीन पत्र शामिल थे। इन पत्रों की कीमत 2500 से 3000 पाउंड आंकी गई थी, लेकिन टेलीफोन पर लगी बोली में इन पत्रों को 4892 पाउंड में नीलाम किया गया। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ी चीजों के मौजूदा मालिक जेम्स ओटिस ने उन वस्तुओं की विवादास्पद नीलामी को रद्द करने और उन्हें भारत को दान करने पर सैद्धांतिक सहमति दी है लेकिन आसार कम ही है। ओटिस ने कहा है कि न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास में हुई बातचीत के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी का चश्मा, चप्पलें तथा अन्य चीजों को इस शर्त पर भारत को दान करने पर रजामंदी दी है कि भारत गरीबों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च में बढ़ोत्तरी करेगा और सौंपे गए स्मृति चिन्हों को अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में रखेगा। चलों इसी बहाने बापू अपनी चीज़ो से भी कई लोगों का भला कर सकेंगे। लेकिन ऐसी हुआ नहीं हमारी सरकार अरे जिसे हमने वोट देकर दुबारा जिताया है उसने स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च बाढाने की शर्त ये कह कर नहीं मानी कि ये तो ब्लैकमेलिंग है। कमाल है हमारे नेताओं को उस वक्त ब्लैकमेलिंग ऩज़र नहीं आई जब प्लेने हाईजैक करके आतंकवादियों ने खूंखार आतंकवादी छुड़वाये थे। आज जब लोगों का भला होने की शर्त है तो ब्लैकमेलिंग वाह भाई हमारा भारत महान और जिसके नेता है इसके भगवान। हमारी वही सरकार जिसका गठन गांधी जी ने ही किया थी उसको इन नीलामियों से कोई लेना देना नहीं है। उल्टे कस्टम विभाग ने नीलामी में खरीद करने वाले विजय माल्या अरे वही जो किंगफिशर के मालिक है और ज्यादातर सुंदरियों के साथ दिखाई देते है, को नोटिस दे दिया है कि वे गांधी जी की घड़ी और चप्पलों पर 15 प्रतिशत यानी लगभग एक करोड़ रुपए का टैक्स दें। मज़े की बात तो ये है कि ये विभाग प्रधानमंत्री के अधीन आता है। विदेश व्यापार महानिदेशालय ने विजय माल्या से पूछा है कि आपने इन चीजों के आयात का लाइसेंस क्यों नहीं लिया था? पता नहीं शर्म से सिर झुकाऊ या फिर हंसू इन नेताओं और निदेशालयों पर। विजय माल्या की ओर से जब सरकार से पूछताछ की गई तो सरकार ने कहा कि उन्हें किसी भी किस्म की रियायत नहीं दी जा सकती क्योंकि कला और दुर्लभ वस्तुओं के आयात के लिए 1972 में एक विशेष कानून बना है। ये कानून सब पर लागू होता है। हां कानूनी पेंच है जिससे हम और आप अक्सर डर जाया करते हैं। दूसरा कमाल कहूं या नेताओं की बेवकूफी कि ये कानून जेम्स ओटिस पर लागू नहीं हुआ था जो 1972 के बाद गांधी जी की ये विरासतें भारत से एक फिल्म बनाने के बहाने ले गये थे। उसी ने गांधी जी की विरासत से नौ करोड़ रुपए कमाए हैं। माल्या ने टीपू सुल्तान की तलवार भी नीलामी में खरीदी थी और उसे सरकारी संग्रहालय को सौप दिया था। अमेरिका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पांच स्मृति चिन्हों की नीलामी हुई..जिसमें बापू का चश्मा, एक जोड़ा चप्पल, उनकी जेनिथ पाकेट घड़ी, एक तश्तरी और एक प्लेट शामिल थी। देश के जाने माने उघोगपति विजय माल्या ने इन्हें करीब 18 लाख अमेरिका डॉलर( करीब नौ करोड रुपए) में खरीद लिया । ऐसा नहीं है कि नौ करोड़ रुपए कोई बहुत बड़ी रकम है। भारत जैसे विशाल देश में इस रकम को चुका देने वाले लाखों की तादाद में होंगे। लेकिन ये काम किया पेशे से शराब बनाने वाले विजय माल्या ने दिखाया। जी हां शराब जिसका गांधीजी जीवन भर विरोध करते रहे। बापू की विरासत को बचाने के लिए एक ऐसा शख्स सामने आया....जो बापू के सिद्धातों पर बिलकुल नहीं चलता ..अरे जिस शख्स ने देश को आजादी दिलाने में इतनी अहम भूमिका निभाई ..उसके स्मृति चिन्हों को वापस लेने के मामले में भारत सरकार का इतना गैर जिम्मेदाराना रवैया शर्मनाक है। आखिर ये क्या हो रहा है कहां है वो इज्जत जो महात्मा गांधी हमें पूरी दुनिया में अपने नाम पर पहचान दिलवाते है वरना कौन जानता है भारत को। दूसरे देशों में जाओ तो महात्मा गांधी ही हमारी पहचान है। एक सच ये भी है.. लेकिन किस सच को आज हम अपनाना चाहते है ये हमारे अंतरआत्मा का सच है!!!!!

फिर भड़की आरक्षण की दादागीरी...

बुधवार, जुलाई 29, 2009


राजस्थान में पिछली सरकार यानी बीजेपी के शासनकाल के दौरान आरक्षण की ऐसी आग लगी थी कि सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर हुए हिंसा को शर्मनाक करार देना पड़ा था। लेकिन उस वक्त कानून व्यवस्था के चलते सब कुछ ठीक हो गया। लेकिन किसी ने ये न सोचा था कि आग बुझी नहीं सुलग रही है और अगर उस पर पानी न डाला गया तो वो फिर से भड़क सकती है। राजस्थान में फिर से आरक्षण की मांग ने ज़ोर पकड़ा है। पिछड़ों को मजबूत करने के लिए शुरु हुए इस सिलसिले को आज लोगों ने हथियार बना लिया है। राजस्थान में आज गुर्जरों को आरक्षण चाहिए, तो मुसलमानों को तथाकथित अल्पसंख्यक होने का आरक्षण, यहीं नहीं अब तो राजस्थान में जब सरकार ने ये तय कर दिया कि आरक्षण ज़रूर मिलेगा और वो भी पांच फीसदी तो ब्राह्मणों ने भी अपने लिए आरक्षण का आवाज़ उठा दी लेकिन जाति के आधार पर नहीं और न ही पिछड़े होने के आधार और न ही अल्पसंख्यक होने का तमगा पहनकर, इन्होने मांगा है गरीब होने के नाम पर। मैं अब इस मांग को ज़ायज़ बताकर इसको सही नहीं ठहराउंगा क्यों कि कई लोगों को इससे परेशानी हो सकती है। मै सिर्फ इस मामले को उठाकर इस मामले सही सोच को अपनाने की बात कह रहा हूं। कल को हर कोई कह सकता है कि उसे आरक्षण चाहिए उस वक्त क्या करेंगे। क्या उस वक्त शांति की अपील करेंगे। मेरे गुर्जर दोस्त है उनसे मैने इस मुद्दे पर बात की तो उन्होने कहा कि देखा शुक्ला हमने क्या कहा था पिछली बार का डर इस बार काम आया, पिछली बार अगर बबाल न होता तो इस बार फिर से उसके डर की वजह से आरक्षण के लिए सरकार तैयार न होती। सवाल ये उठता है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण का मुद्दा उठा साथ ही गुर्जरों को आरक्षण का मुद्दा भी...लेकिन यहां मै बता दूं कि गुर्जरों को आरक्षण तो मिल जायेगा लेकिन गरीब सवर्णों को नहीं क्योंकि हमारे भारतीय संविधान में धन के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान ही नहीं है। तो इस पर आरक्षण की बात करना बेमानी है। एक बात जो मेरे समझ नहीं आई वो ये कि या तो शायद गुर्जर आंदोलन करने वालों को ये बात पता ही नहीं है और या तो वो पता होने के बाद भी वो इससे अंजान बने रहकर ब्राह्मणों को भी अपने साथ लेकर चलना चाह रहे थे...क्यों चाहिए आरक्षण इसका पता तो इनमें से ज्यादातर को पता नहीं होगा और जिन्हे पता होगा शायद उन्हें इसकी ज़रुरत ही न महसूस होती हो।

हिम्मत है तो कोई मेरा धर्म बदलकर दिखाओ ???????

गुरुवार, जुलाई 23, 2009

इस टाइटल को पढ़कर इस समझने का प्रयास मत करियेगा ...क्योंकि ये आपकी सोच से अलग हो सकता है।अपनी बात कहने से पहले मै चाहता हूं कि आप कुछ इन खबरों पर ध्यान दें.....

1) ब्यावर- बेटे-बहू की मर्जी के बगैर दादा द्वारा पौतों का धर्म परिवर्तन करवाने का मामला सामने आया है। बच्चों के पिता ने दादा के खिलाफ धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने, अपहरण, हत्या का प्रयास करने और धारदार हथियार से चोट पहुंचाने के आरोप में सिटी थाना पुलिस में मामला दर्ज करवाया है........

2) भुवनेश्वर। उड़ीसा के कंधमाल जिले में धर्म परिवर्तन और पुन: धर्म परिवर्तन पिछले वर्ष हुए दंगे के मुख्य कारणों में थे। यह बात दंगे की जांच कर रहे एक न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कही है।

3) हाल में मलयेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में एक सिख परिवार के 41 साल के व्यक्ति मोहन सिंह का दिल के दौरे से निधन हो गया। परिवार के लोग जब उनका शव लेकर अंतिम संस्कार करने के लिए श्मशान जा रहे थे, तो उन्हें इस्लामिक विभाग के अधिकारियों ने रास्ते में रोक लिया। उन्होंने कहा कि मोहन सिंह 1992 में धर्म परिवर्तन करके मुसलमान हो गए थे, इसलिए उनके शव का अंतिम संस्कार सिख रीतिरिवाजों से नहीं, बल्कि मुस्लिम विधिविधान से ही किया जा सकता है।

4) लंदन - ब्रिटेन में एक कट्टरपंथी मौलवी ने कथित तौर पर 11 साल के एक स्कूली बच्चे का धर्म परिवर्तन करने की कोशिश की। सीन नाम के इस श्वेत लड़के को एक टेप में अरबी में आयतें पढ़ते और अल्लाह के प्रति निष्ठा जाहिर करते देखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक निर्वासित उमर बाकरी मोहम्मद के अनुयायी और विवादास्पद मौलवी अंजम चौधरी ने इस लड़के का धर्म बदलने की कोशिश की।

5) जबलपुर में धर्म न बदलने पर दलित परिवार पर हमला कर मारपीट एवं तोड़फोड़ करने वाले कुछ युवकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए धर्मसेना के साथ बड़ी संख्या में एसपी कार्यालय पहुंचे रामपुर बेन मोहल्ला के रहवासियों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा। आक्रोशित लोगों ने गोरखपुर थाने का घेराव कर मामले में त्वरित कार्यवाही की मांग की


ये तो कुछ ही मामले है धर्म परिवर्तन के.....पहले तो मै सोच रहा था कि आखिर लोग धर्म कैसे बदल लेते हैं। मेरे परिवार में भी इस बात पर चर्चा ज्यादा होती है कि आखिर कैसे लोग अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। हमारे यहां तो उन लोगों को हिकारत की नज़रो से देखा जाता है जो अपने धर्म को छोड़कर दूसरे का धर्म अपना लेते हैं। लेकिन यूं ही एक दिन खाली बैठा था और सोच रहा था कि आखिर क्यों लोग अपनी धर्म बदलते है और आखिर क्यों लोग इतने मजबूर बन जाते हैं कि उन्हें अपनी पूरे जीवन में जिस प्रकार से पूजा अर्चना की है उस पद्धति को छोड़कर दूसरी पद्धति अपना ले। परेशान हालात में मै सड़क पर यूं ही घूमने निकल पड़ा। थोड़ी दूर पर एक शिव मंदिर पड़ता है और क्योंकि मैं हिंदु धर्म से ताल्लुक रखता हूं और साथ ही ब्राह्मण जाति में जन्म लिया है तो अक्सर मंदिरों की पैड़ियों यानी दर पर सिर झुक ही जाता है। मैने भी सिर झुका लिया। आगे बढ़ा तो माथा ठनका। मैने सोचा कि आखिर अगर पिछले बीस सालों से जिस पद्धति को मैने और मेरे परिवार ने अपनाया है उसको अगर मै छोड़ दूं तब क्या होगा। मैने सोचा क्यों न मान लिया जाये कि मैने हिंदु धर्म छोड़ दिया। तब होगा ये कि मेरे परिवारवाले मुझसे लड़ाई कर लें। कुछ धार्मिक संगठन मेरे दुश्मन हो जाये या ये भी हो सकता है मुझे जान से मारने की भी कोशिश होने लगे। पर एक चीज जो मेरे दिमाग में आई वो ये कि उस वक्त जिस धर्म को मै अपनाउंगा.... क्या वो मुझे ये लगने लगेगा कि वो बेहतरीन है और उस पद्धति को अपना सकूंगा। जिस दर पर अक्सर अकारण ही सिर झुक जाया करता था क्या गैर धर्मी होने पर न झुकेगा। नहीं ऐसी नहीं हो सकता। क्यों जिस पद्धति को मैने बचपन से देखा, सुना और अपनाया है जिस विधि से मैने भगवान की पूजा अर्चना की है उस विधि को मै कैसे भूल पाउंगा। न चाह कर भी अक्सर उस तरीके से भगवान को याद करुंगा भले ही मेरा नाम उस वक्त शशांक शुक्ला की जगह शफीकुर्रहमान हो या सैम्पसन,या फिर सुखविंदर...लेकिन मै चाहे जिस नाम में भी रहूं चाहे जो भी नाम हो या जो भी धर्म लेकिन बचपन से जिस ज़िदगी के पैटर्न को अपनाया है उसे नहीं भूल पाउंगा। और मैं क्या कोई भी नहीं कर पायेगा हां वो भूलने की नाकाम कोशिश या नाटक ज़रूर करेगा। लेकिन उसका अपना सच वो कभी नहीं भूल पायेगा। मै कहता हूं कि धर्म परिवर्तन की बहुत सी घटनायें होती हैं इसलिए मै कह रहा हूं कि कोई मेरा धर्म बदलकर दिखाओ......कैसे मारोगे उस भक्ति को जिस भक्ति से मैने बरसों पूजा कि है। चंद मंत्रो या आयतों या अन्य विधियों से मेरी सोच नहीं बदली जा सकती हैं। नाम का धर्म बदल सकते हो पर काम का धर्म नहीं बदल सकते। सोच का धर्म नहीं बदल सकते और अगर मैने धर्म बदल भी लिया तो होगा ये कि आपकी नज़र में मै चाहे किसी भी धर्म में रहूं पर रहुंगा उसी धर्म का बाशिंदा जिस पर मेरी आस्था होगी और बिना आस्था किसी भी धर्म की कोई औकात नहीं।

किनके हाथों में होगी देश की सुरक्षा....

सोमवार, जुलाई 20, 2009


उत्तर प्रदेश के चंदौली में रविवार को सेना की भर्ती के दौरान मची भगदड़ के बाद फायरिंग में एक अभ्यर्थी की मौत हो गई। भर्ती में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए हंगामा कर रहे युवकों पर मिलेट्री पुलिस की फायरिंग में तीन अभ्यर्थी घायल भी हुए हैं। इसके बाद बेकाबू युवाओं ने पूरे शहर में तोड़फोड़ करने की कोशिश की। हंगामे के कारण दिन में करीब चार घंटे तक शहर में अफरातफरी रही। पुलिस ने कड़ी मशक्कत के बाद हालात को काबू में किया है। उपद्रवियों ने सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़ व आगजनी की। चंदौली रेलवे स्टेशन पर तोड़फोड़ के कारण यातायात प्रभावित रहा। लंबी दूरी की कई ट्रेनों को दूसरे स्टेशनों पर रोक कर रखा गया। इसके अलावा उपद्रवियों ने कुछ वाहनों को फूंक डाला और जिला अदालत में तोड़फोड़ मचाई। भर्ती रैली में आसपास के इलाकों के साथ पड़ोसी राज्य बिहार से करीब दो हजार युवाओं ने भाग लिया था। युवाओं ने शारीरिक परीक्षण के दौरान धांधली की शिकायत की थी और उसके बाद ही सेना अधिकारियों से उनका विवाद हो गया था। ये तो थी वो ख़बर जो मै आपको बता रहा था लेकिन पता नहीं आप इस ख़बर बताने के पीछे के मकसद को समझ पायें होंगे या नहीं, मै ही आपको समझा दूं कि सेना की भर्ती के दौरान हुए इस विवाद के पीछे बात कुछ भी हो ये कुछ ऐसे सवाल खड़े कर रहा है जिससे हमे शर्म महसूस होनी चाहिए। जैसे की पहला सवाल सेना की भर्ती में घोटाला ? जैसा की भर्ती के दौरान गये अभ्यार्थियों ने कहा। तो क्या ये सच मान लिया जाये कि सेना में भी हर तरह के घोटाले होता है.... दूसरा सवाल ये है कि जो अभ्यार्थी शहर में उत्पात मचा सकते है हुड़दंग करते है क्या उनके हाथों में हमारे भारत की सुरक्षा रहेगी। जो खुद दंगई हो उनसे देश की सुरक्षा करवाना कहां तक ठीक हैं। ये हालत सिर्फ सेना में भर्ती होने वाले युवकों में ही नहीं है बल्कि पुलिस की भर्ती के दौरान, या लगभग सभी सुरक्षाबलों में भर्ती के दौरान इसी तरह बबाल मचता है। लेकिन सवाल ये है कि जब इन जैसे युवाओं के हाथों में सुरक्षा का ज़िम्मा रहेगा तो देश किस ओर जायेगा ये उसका भविष्य ही जाने। औऱ उसके बाद किस तरह की ख़बरे आती है वो तो आप भी देखते ही होगें। जहां पुलिस स्टेशन में बलात्कार हो जाता है फर्जी इनकाउंटर हो जाते हैं। बार्डर्स पर बलात्कार होते है, वहां के लोगों का उत्पीड़न किया जाता है। और ये सब क्यों होता है ये आप इस घटना से समज सकते हैं।

तुम भी बोलो हम भी बोलें देखें कौन बड़ा नेता है......

शुक्रवार, जुलाई 17, 2009

कमाल की उठापटक चल रही है आज कल उत्तर प्रदेश की राजनीति में....मायावती बलात्कार पीड़ितों को मुआवज़ा देकर तथाकथित भला काम कर रही थीं। उनके सचिव गांव गांव जाकर हैलीकॉप्टर से लड़कियों औऱ महिलाओं को 25 हज़ार से लेकर 75 हज़ार तक की कीमत अदा माफ करियेगा मुआवज़ा दे रहे थे। इस शुभ काम या कहें कि ज़बान बंद करने की कीमत या ये भी कह सकते है कि बलात्कार पीड़ित महिलाओं के जले पर नमक छिड़कने का भला कर रही थीं। एक तो पहले ही उनके आत्मविश्वास को तोड़ दिया गया औऱ बजाए आरोपियों को मृत्युदंड दिये महिलाओं को पैसे थमा रही हैं। भाई मैं तो इस तरह के मामले पर तालिबान का समर्थन करता हूं कि जब भी उनके राज में कोई पुरुष किसी महिला के साथ छेड़छाड़ करता या बलात्कार करता तो उसको ऐसा दंड दिया जाता था कि फिर कभी वो ये करने के हालत में ही न रहे। मतलब आप समझ गये होंगे। लेकिन भईया ये भारत है हम है सबसे बड़े लोकतंत्र। यहां पर सबको जीने का हक है चाहे वो बलात्कारी हो या बलात्कार पीड़ित। यहां पर किसी भी कत्ल में शामिल मुजरिम को सिवाय कुछ दिन की सज़ा के अलावा कुछ नहीं मिलता। तभी तो आजकल फैशन हो गया है कि पांच पांच सौ में लोगों का मर्डर हो जाता है। क्योंकि कानून कड़ा नहीं है। और अगर कोई ये कहता है कि कानून कड़ा है तो मै बता दूं तो वे दलाल भी तो कानूनविद् है जो ऐसे अपराधियों को छुड़ा लेते है प्रोफेशनल बनकर। खैर मुद्दे से भटक गया था मुद्दा है मायावती के बलात्कार पीड़ित महिलाओं को उनकी कीमत अदा अरे फिर गलती हो गई माफ करियेगा मुआवज़ा देने औऱ इसी मुद्दे पर कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी के बयान के बाद भड़की आग में झुलसे उनके घर औऱ उत्तर प्रदेश की राजनीति की। रीता के बयान को सही नहीं ठहरा रहा हूं ये दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। कार्यकर्ता कह रहे है कि मायावती पर की गई टिप्पणी अशोभनीय थी और बीएसपी कार्यकर्ताओं द्वारा रीता का घर प्रतिशोध की ज्वाला में जल गया तो एक बात मै ऐसे कार्यकर्ताओं को याद दिला दूं कि ये वहीं मायावती हैं जो मुलायम सिंह के खिलाफ बयानबाज़ी में माहिर है। मायावती ने अपने एक बयान में कहा था कि अगर मुलायम की बेटी होती वैसे तो उसकी बेटी है नहीं लेकिन अगर उनके रिश्तेदारी में किसी लड़की का बलात्कार हो जाये तो उन्हें कुछ पैसे दे दे दिये जाये तो कैसा रहेगा। उस वक्त भी वो मुलायम के बलात्कार पीड़ित महिलाओं को पैसे बांटने के मुद्दे पर बोल रही थीं। क्यों उस वक्त बसपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा नहीं भड़का...हां उस वक्त तो खी खी करके हंस रहे होंगे पक्का है। लेकिन अब जब रीता बहुगुणा ने ज़हर उगला तो भड़क गये.. घर फूंक दिया.. जान से मारने की धमकी दी। तो अब क्यों मचा है बवाल। यहीं तो मुद्दा है कि तुम भी बोलो हम भी बोलें देखें कौन बड़ा नेता है।

ये आम रास्ता नहीं है.....

शनिवार, जुलाई 11, 2009



मेरी एक बहुत बुरी आदत बनती जा रही है कि मुझे गलत लगने वाली बातें गलत ही लगती है। हमारे नोएडा शहर में एक ट्रेंड चल रहा है...मुझे ये तो नहीं पता कि हर शहर में ऐसा होता है या नहीं लेकिन हमारे नोएडा लगता है आम लोगों का शहर नहीं रह गया है। जहां भी जाओ एक बोर्ड हर तरफ मिलता है और वो बोर्ड है...ये आम रास्ता नहीं है..का ...भगवान कसम मेरी नजर में तो ऐसी जगह पता नहीं कौन सी है.. जो आम लोगों के लिए हो। सुरक्षा के नाम पर हर सेक्टर में गेट पर एक लोहे का दरवाजा लगा होता है औऱ बड़े से बोर्ड पर लिखा होता है कि ये आम रास्ता नहीं है अंग्रेजी में भी अंग्रेजी बुद्धुओं के लिए भी लिखा होता हैं वो भी अंग्रेजी में साथ बड़ी मूंछों वाले कुछ लठैत...ये बोर्ड कोई आम बोर्ड नहीं है। इन बोर्डस पर बाकायदा घुसने का समय और जाने का समय लिखा जाता है। अगर आप गलत समय पर आये तो अंदर नहीं जा सकते और अगर चले गये तो वापस तो नहीं जाने दिया जाएगा। या तो आप उस वक्त लड़ाई करिये या फिर गुंडो की तरह दादागिरी दिखाकर आइये..... भाई साहब आम आदमी तो आ ही नहीं सकता है। मैने एक चीज़ नोटिस की है कि अगर हर रास्ता आम न रहे तो आम आदमी कहां रहे। अक्सर इस तरह के बोर्ड आपको उन सेक्टर्स में मिलते है जो तथाकथित पॉश इलाके होते है और हेहेहेहेहेहेहेहेहे...आप तो समझते ही होंगे कि पॉश इलाकों में आम आदमी कहां रहते हैं ?...माफ करियेगा वो लोग रहते ही कहां हैं वो तो ज्यादातर विदेशों में रहते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि वो आदमी कहां रहे जो उन कॉलोनियों के दूसरी तरफ रहते हैं। आपमे से ही ज्यादातर लोग ये सोच रहे होंगे कि दूसरा रास्ता भी तो हो सकता है। तो उनकें लिए जवाब है कि रास्ते तो बहुत हैं पर वो रास्ता कोई खास है क्या। सिर्फ इसलिए कि पॉश सेक्टर है चारों तरफ सो बार्डर लगा दो और हर दरवाजे पर मुछ्छड़ सिक्योरिटी गार्ड खड़ा कर दो बस। आखिर क्या है ये.... आम रास्तों को लोग क्यों खास बना रहे हैं सिर्फ उन चंद लोगों के लिए जो उन जगहों पर रहते हैं। क्या डर है उन्हें चोरी डकैती का। अरे जिसे चोरी करनी होगी वो क्या छह फुट के दरवाजे के उस पार नहीं जा सकता है। दिखावे के लिए दरवाजे लगाने से कोई जगह खास नहीं हो जाती है। ऊपर से ये बोर्ड जो ये कहता है कि ये आम रास्ता नहीं है....क्या घटियापन है उन लोगों का जो उन जगहों पर रहते हैं। क्या खास है उस रास्ते पर। आम आदमी का रास्ता क्यों नहीं है वो ..जरा कोई तो मुझे बताये। क्या जरा सा भी ये पता चलता है उन लोगों को कि किसी आदमी को कितनी परेशानी होती है जब चार कदम की दूरी को वो पचास कदमों से पूरी करता है। कौन देता है ये हक कि किस रास्ते को आम बनाना है और किसे खास ?...... कौन होता है ये कहने वाला कि ये रास्ता आम नहीं है। ज़रा कोई तो मुझे बताये कि क्या खास है उस रास्तों पर।

मोबाईल गुमशुदा ही क्यों होता है.......

शुक्रवार, जुलाई 10, 2009

28 जून को मेरा मोबाइल और पर्स मेरे ही घर से चोरी हो गया। कुछ दिनों तक तो मुझे लगा कि मेरा मोबाइल घर में ही कहीं रखा होगा। वो अक्सर इतना लगाव हो जाता है कि कुछ यकीन ही नहीं होता है। कुछ दिन बाद यकीन हो गया कि मेरा मोबाइल घर से ही चोरी हो गया है। चैनल में काम करता हूं तो टाइम नहीं मिल पाया कि पोलीस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सके। चूंकि मोबाइल घर से चोरी हुआ था तो मेरे घर थाना सेक्टर 24 में आता है।मै समय निकालकर थाने मे पहुंचा पहली बार किसी अपने किसी काम से थाने में आया था। थाने में प्रवेश करते ही मैने देखा कि हर कोई अपने काम में मग्न था आम आदमी वहां पहुंचे तो उनकी भाषाओं को समझने मे काफी देर लग जाये। एक तो एक दम अक्खड़, सख्त से चेहरे, लंबे चौड़े साथ में कुछ छोटे कद के भी थे। कुल मिलाकर जब मै वहां पहुंचा तो करीब 10 लोग होंगे। हा कुछ लोगो बंदीग्रह में भी थे गर्मी की वजह से वहां दरवाजे के बाहर एक पंखा लगा था। अंदर पानी की बोतल थी लेकिन ज्यादा झांक नहीं सका क्योंकि वहा पर अंधेरा बहुत था। एक कमरा था जिसमें थाना प्रभारी निरीक्षक लिखा था साथ में जो उस वक्त वहां नियुक्त थे उनका नाम..प्रभारी निरीक्षक का नाम था कैलाश चंद। दूसरे कमरे में जाने से पहले बाहर ही कुछ कुर्सियां औऱ रखी हुई थीं और एक पुलिस की वर्दी में महाशय बैठे थे नाम था फतह सिंह। अब मै उनके पास कमरे में गया जहां पर कुछ लिखा पढ़ी का काम चल रहा था। मैने वहां जाकर अपनी बात कही कि भाई साहब मेरा मोबाइल चोरी हो गया है क्या आप रिपोर्ट लिखेंगे। उन्होंने कहा क्यों नहीं मैने कहा कि तो फिर एक पर्चा दे दीजिए। उन्होने तुरंत एक पर्चा दे दिया। मैने तुरंत लिखा सारी जानकार लिख दी कि मेरा मोबाइल और पर्स मेरे घर में चोरी हो गया है। ये घटना सुबह आठ बजे से नौ बजे के बीच की है। और भी कई जानकारी लिखी और लेकर वहां गया तो उन्होने कहा कि यार ये राम कहानी क्यों लिख दी बस इतना करों कि ये लिख दो मोबइल गुम हो गया है। मै दोबारा पर्चा लेकर गया औऱ मैने फिर वहीं बातें लिखी जो पहले लिखी थीं। इस बार दो पर्चें लेकर गया था। मैने कहा कि भाई साहब मेरा मोबाइल चोरी हुआ है न कि गुम। उन्होने मेरी तरप नाक सिकोड़कर कहा कि तो फिर ऐसा करो कि साहब से मिलकर आजाओ। मै तुरंत कैलाश चंद के पास गय़ा जो कि वहां के थाना प्राभारी थे। उन्हे पूरी बात बताई फिर उन्होने कहा कि ठीक है जाकर पर्चा दे दो। मै वापस आया तो वो दूसरे साहब जी मानने को तैयार नहीं हुए कि फोन चोरी हुआ है। वो दोबारा लेकर गये पर्चा कैलाश जी के पास। वापस आये तो तेवर बदले हुए थे। मुझे समझाने लगे बोले कि यार फोन गुमशुदा ही होता है चोरी नहीं होता। मैने कहा कि क्यों जब मेरे घर से मोबाइल चोरी हुआ है तो मै गुमशुदा कि रिपोर्ट दर्ज क्यों करवाउँ। उन्होने बारामदे में बैटे मोटे से पुलिस वाले के पास भेज दिया, कुछ देर मुजे टरकाया लेकिन जब मै न माना तो मुझे उस मोटे से पुलिस वाले के पास भेजा। उनका नाम था फतह सिंह, मोटे से, गोल चेहरा सख्त चेहरा, सांवला सा रंग, बाहर बैठे थे बारामदे में पर्चा लेकर बोले कि फोन कैसे चोरी हुआ, मैने कहा कि मेरा भाई सुबह कोचिंग के लिए निकला और मुझे बाताये बगैर वो दरवाजा बंद करके चला गया लेकिन दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था। मै उठा आठ बजकर पचास मिनट पर मैने देखा कि मेरी पर्स और मोबाइल वहां नहीं था। इतना कहते ही फतह सिंह बोले कि आपकी लापरवाही है इसमें हम क्या कर सकते हैं। मैं उनकी बात सुनकर सन्न रह गया। मुझे ऐसे जवाब की आशंका नहीं थी। मै उस वक्त क्या कहूं ये मुझसे कहते नहीं बन रहा था क्योंकि मै तो वहां मदद मांगने गया था। पर मैं बोला भाई साहब दरवाजा खुला था इसका मतलब ये तो नहीं कि आपका काम खत्म हो जाता है दरवाजा बंद होने से या खुला होने से। आप मेरी रिपोर्ट लिखिये। वो बोले कि ऐसा करों कि गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवा दो। मैने कहा कि नहीं फोन चोरी हुआ है। उन्होने मुझसे कहा कि फोन चाहिए या नहीं। मैन कहा कि चाहिए। तो बोले कि तो फिर गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवाओ। मैने कहा कि चोरी कि रिपोर्ट दर्ज करवाने पर नहीं मिलेगा इसका मतलब। वो बोले ऐसा है कि गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवाओं वर्ना कहीं और जाओ। मैने कहा कमाल की बात कर रहे है आप मैरे घर इस थाने के अंदर आता है तो मै और कहा जाउंगा। इस पर उन्होने कहा कि मै नहीं लिखुंगा ऱिपोर्ट कहीं औऱ जाकर लिखवाओं। अब मेरे मुझे जो झटका लगा वो शायद ज्यादातर लोगों को लगता होगा जो लोग पुलिस स्टेशन मे आते होंगे। मै अभी तक सोचता था कि पता नहीं लोग कैसे कहते है कि पुलिस स्टेशन पर रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। लेकिन उनका गुस्सा और मुजरिमों को डराने वाले अंदाज को देखकर मै तो बिलकुल नहीं डरा हां अक्सर लोग डरकर उनकी बात मान जाते होंगे। मैने कहां कि तो फिर ठीक आप मुझे लिख कर दे दीजिए कि आप मेरी रिपोर्ट नहीं लिखेंगे। उन्होने कहा नहीं दूंगा और मेरा प्रार्थना पत्र मेरी ओर फेंक दिया उस वक्त मुझे पुलिस स्टेशनों की हालत औऱ असलियत सामने आ गई। इस बीच मुझे एक और जानकारी मिली कि दिनभर में सैकड़ों मोबाइल चोरी होते हैं कहां तक चोरी की शिकायतें लिखेगा कोई। ये बातें मुझे लिखा पढ़ी करने वाले पुलिसवाले ने बताई। मै परेशान हो गया कुछ काम न होते देख मै हताश होता लेकिन पत्रकार ठहरा हताश होना सीखा नहीं है मैने। मैने तुरंत अपने एक मित्र को फोन किया उसने अपने एक मित्र जो कि आईबीएन 7 में कार्यरत है उसके पास फोन किया ब्रजेश नाम के उस शख्स ने अपने फोन पर थाना प्राभारी से क्या बात की ये तो पता नहीं लेकिन उसके बाद मेरा काम बनता हुआ नजर आने लगा और जो पुलिस वाले अभी तक मुझपर हावी हो रहे थे वो हलके पड़ गये और फतह सिंह की डराने के अंदाज पर मित्र का एक फोन भारी पड़ गया और उन्होने कहा कि मै कुछ नहीं कर सकता आप लिखा पढ़ी वाले के पास जाइयें वो रिपोर्ट लिखेगा। मैने देखा कि पहले जो सुस्ती वो लोग दिखा रहे थे इस बार तेजी से काम हो रहा था। मुझसे दो कॉपियां लिखवा ली थी एक कॉपी खुद रख ली और अब मेरे पास तो बस वो दूसरी कॉपी है जिसमें न तो मोहर है और न ही कोई सूबूत की मैं पुलिस स्टेशन पर गया था। एक कॉपी तो उन्होने रख ली है औऱ नाम भी बता दिया है कि अश्वनी जी जांच करेंगे पर जांच होगी या नहीं ये जांच का विषय ज़रुर बन गया है।

क्या वो लड़कियां वैश्या थीं!!!!!

सोमवार, जुलाई 06, 2009


लगभग दो साल पहले की बात है जब मैं अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था। इस वक्त एक अलग ही जोश था दुनिया बदलने वाला टाइप का...उस वक्त सभी लड़कों की तरह मै भी दोस्तों के साथ रहता था। और हम सभी पांच लड़के इंदिरापुरम् में रहा करते थे। वैसे तो ये इंदिरापुरम.... ग़ाज़ियाबाद में आता है लेकिन नोएडा-दिल्ली के पास ही है तो यहां का इलाका पॉश है। ऊंची सैलरी वाले लोग यहां ज्यादा रहते है। ऊंची बिल्डिंग हैं और ऊंचे लोग। एक शाम की बात है कि मै अपने बिल्डिंग एस पी एस के पास के प्लाज़ा में चावल खरीदने जा रहा था। मेरे साथ मेरा दोस्ता था.. जो कुछ दूर तो मेरे साथ आया लेकिन गर्लफ्रेंड के फोन ने उसे थोड़ा अलग कर दिया था। मै प्लाज़ा के पास पहुंचा थोड़ी भीड़ थी ...कुछ लोग दुकानों से सामान खरीद रहे थे। कुछ लड़के वहां पर आने जाने वाली लड़कियों को निहार रहे थे.....लकड़ी का काम चल रहा था फर्नीचर की दुकान थी.... कुछ लोग वहां बनी रेलिंग.. जो सीमेंट की बनी हुई और एक बार्डर की तरह काम कर रही कि कोई बाइक सवार प्लाज़ा के अंदर बाइक लेकर न चला आये। उस रेलिंग पर बहुत लोग बैठे थे। कुछ मंगोलिया के लोग थे जो चीनी लोगों की तरह लग रहे थे मेरा दोस्त उनसे बातें करने लगा क्योंकि उनकी समझ में अंग्रेजी ही आ रही थी। नोएडा के कॉल सेंटर्स में ये लोग काम करते थे। कुछ लड़के बैठे सिगरेट के कश उड़ा रहे थे। मै दुकान की सीढ़ियां चढ़ ही रहा था कि एक हट्टे कट्टे मोटे से आदमी...वहां बैठी दो लड़कियों पर ज़ोर से चिल्लाया.... लड़कियों कि उम्र यही कोई बीस से पच्चीस के बीच रही होगी.... रंग सांवला या कहूं कि सांवला से थोड़ा और काला.... दोनों लड़कियां ने एक सस्ती सी टी शर्ट जिसका रंग उड़ चुका था उसे पहने रखा था, बाल बांधे हुए थे, जिसमें क्लिप लगी थी, दोनों ने बेहद साधारण जीन्स पहन रखी थी.... पैरों में हवाई चप्पल थी... लिबास दोनों के बेहद साधारण थे.... उन्हें देखकर आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वो बेहद गरीब परिवार से होंगी या कहें कि किसी घर पर नौकरानी का काम करती होंगी.... मै एक ऐसा आदमी हूं जो हर किसी से नहीं बोलता, लेकिन सबको देखकर आब्जर्व ज़रुर करता है लेकिन वो लड़कियां इतनी साधारण थी कि इत्तेफाक देखिये कि मेरी नज़र भी उन पर पहले नहीं पड़ी.....पर उस तगड़े आदमी की नज़र उन पर पड़ गई थी। वो आदमी करीब पांच फुट दस इंच के आस पास होगा मुझसे लंबा था.... तगड़ा सा.... बरमूड़ा नीचे पहन रखा था..... स्पोर्ट्स शू पहन रखे थे..... एक ब्लैक कलर की टी शर्ट पहन रखी थी.... हाथ में मोबाइल था.... पसीने लथपथ था.... शायद थोड़ा मोटा होने की वजह से जागिंग से लौटा होगा या किसी दुकान पर समान ले रहा होगा... उसने चिल्लाकर कहा कि ...ऐ लड़की यहां कैसे बैठी है....वो लड़कियां तो एक बार को इतनी वज़नी आवाज़ सुनकर सहम गई.. और बोलीं.....हम तो यूं ही बैठे हैं बाजार घूमने आये थे........डर की वजह से उनकी आवाज़ लड़खडा रही थी शायद......मोटा आदमी बोला....साली मा***द यहां यूं ही बैठी है ब***द... उसके आदमी के आवाज़ के भारीपन में गालियां सुनकर वो और ज्यादा डर गई..... डर कर बोली भाई साहब गाली काहे दे रहे हैं.... हम यहां घूमने नहीं आ सकते क्या ?... यहां और भी लोग तो बैठे थे आप उनसे कुछ क्यों नहीं कहते। आदमी का गुस्सा सांतवे आसमान पर चढ़ चुका था क्योंकि अब ये उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका था..... उसने अपने गुस्से से लाल मुंह से बोला.....साली ब***द, मा***द, रंडी साली तू मुझसे पूछ रही है.... साली ब****ड़ी उठ यहां से.... इतना कहकर वो मारने के लिए आगे बढ़ा.... लेकिन इतने में लड़कियां डर के मारे खड़ी हो गई... लेकिन मोटे से आदमी का गुस्सा शांत नहीं हुआ.. उसने एक ज़ोरदार लात जड़ दी एक लड़की के... वो लड़की इस ज़ोरदार लात पड़ने से एकदम से बिखर गई.... बेसुध होकर वो लड़की इस तरह गिर पड़ी जिस तरह भूकंप के झटके से कोई बिल्डिंग भरभरा कर गिर जाती है। पहले वाली लड़की को तो होश नहीं आया काफी देर तक..... लेकिन इतने में दूसरी लड़की दीदी कह कर रोने लगी। उसके आंसू देखकर मेरी रुह कांप गई क्योंकि उसका रोना कोई आम रोना नहीं था। उसके रोने में वो दर्द था जो दर्द लिये हर झुग्गीवाला जीता है....जो विरोध करता है.... वो बदमाश बन जाता है...औऱ जो सहता है वो दम तोड़ देता है.... या जिनमें इतनी भी हिम्मत नहीं होती वो इसी तरह से बेबसी के आंसू लेकर रोते हैं। क्योंकि इन आंसूओं में वो बेबसी होती है जो कहती है कि वो कुछ नहीं कर सकते.... क्योंकि उनका साथ यहां कोई नहीं देगा.... इस समाज में क्योंकि यहां वही सभ्य माना जाता है जिसके कपड़े सभ्य होते हैं... और वो तो इन लड़कियों के बेहद साधारण थे। ख़ैर जहां कुछ लोग इसे सभ्यता मानते वहीं कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं। कुछ लोग आगे बढ़े उस आदमी को रोकने के लिए। लेकिन अभी भी कोई उन लड़कियों को उठाने को आगे नहीं आया। दूसरी लड़की ने रोते हुए अपनी दीदी को हाथ देकर उठाया.... और उसके कपड़े झाड़कर बोली की चलो दीदी यहां से चलें.... इतने में वो मोटा आदमी बोला .... जाती कहां है मा***द रुक तेरी मां***त... जाती कहां है.... इतना कह कर वो आगे बढ़ा लेकिन पहले से उसे रोक रहे लोगों ने एक बार फिर उसे रोका तब उसने राज़ खोला भड़कने का....मुझे रोको मत भाईसाहब ये साली दोनो रंडियां हैं कॉलगर्ल हैं.... इतना कह कर उसने एक बार फिर दौड़कर उन दोनों के बाल पकड़ लिए। इतने में मुझे भी लगा कि मामला बढ़ रहा है तो मैने कहा कि लोगों का साथ मुझे भी जाना पड़ेगा क्योंकि रोकने वाले ज्यादातर दुकान वाले थे जो नहीं चाहते होंगे कि उनका वो मोटा ग्राहक उनकी दुकान से सामान न खरीदे। मैने उस मोटे आदमी से जो मुझसे सेहत में डबल था.... उससे कहा कि सर जी आप क्यों इन्हें मार रहे हो यार.... जाने दो इन्हें जा तो रही हैं। तो वो बोला कि अरे नहीं भाई साहब मै तो इन्हे अभी पुलिस के हवाले करुंगा..... मैने कहा कि यार आप कैसे कह सकते है कि ये रंडियां हैं। इतना कहने पर वो तो मुझ पर भी तेल पानी लेकर चढ़ने लगा। बोला क्यों बे तू भी साले लगता है इनसे मिला हुआ है। मैने अपना नाम जुड़ने से पहले और लोगों की नज़र में आने से पहले उसकी अक्ल ठिकाने लगाई कि अबे ओ ब****ड़े साले यहीं घुसा दूगां समझ गया। साले यहीं रहता हूं एफ सात सौ पांच में...साले एक फोन पर यहीं मां**द जायेगी। समझ गया मेरे तेवर देख कर वो भी समझ गया कि यहीं का लोकल है लगता है.... इतने मेरा दोस्त आ गया वो ज़रा मुझसे तगड़ा है। दोनों को देखकर उस मुटल्ले की अक्ल ठिकाने आई.... तब वो बड़े ही प्यार से बोला कि भाईसाहब ये कॉल गर्ल हैं। इतने में उन लड़कियों को अपने उपर लांछन लगता देख वो भड़क गई और बोली नहीं भाईसाहब हम पास की हैं यहीं बंगाली कॉलोनी के पास मेरा घर है... मेरे भाईया रिक्शा चलाते हैं..... हम तो सिर्फ पास के सब्जी मार्केट से सब्जी लेने आये थे....तो सोचा कि यहां थोड़ी देर बैठ जायें..... इतने में मोटा फिर भड़का साली झूठ बोल रही है.... मारने बढ़ा लेकिन पहले ही मेरे दोस्त ने उसके हाथ को रोका। दोनों लड़कियां अपने बाल छुड़ा कर दूर हट गई.... अब मसला ये हो गया कि किसे सच माना जाये औऱ किसे गलत....मुद्दा अब कुछ लोगों के बीच था.... एक तो ख़ुद उन लडकियों के बीच, दूसरा उस मोटे आदमी के बीच जिसे पता नहीं कहां से पता चल गया था कि वो लड़कियां कॉलगर्ल थी.... तीसरा मेरे बीच। क्योंकि वहां पर खड़े बाकी सब लोग तो वो पूरा मामला किसी हिंदी फिल्म के क्लाइमेक्स की तरह बड़े चाव से देखभर रहे थे। इतने में मै बोला कि पुलिस के हवाले करने से कोई फायदा नहीं होगा अगर ये लड़कियां कॉलगर्ल नहीं होंगी तो भी वो फंस जायेंगी इस चक्कर में....तो ऐसा करना चाहिए कि इन्हें जाने देना चाहिए और हिदायत देनी चाहिए कि आइंदा न आयें.... ये बात पहले तो उस मोटे आदमी को पची नहीं पता नहीं क्यों.... लेकिन जब उन लडकियों ने कहा कि वो नहीं आयेंगी.... तब जाकर वो मान गया..... उन लड़कियों ने लंबी सांस ली और धीमें कदमों से चलीं गयी। जो लड़की रो रही थी.... वो लगातार रोये जा रही.... सुबक रही थी ..लगता था पहली बार इस तरह के माहौल में आई थी..... क्योंकि उसे डर था कि वो बच नहीं पायेगी और कुछ न कुछ गलत हो जाएगा.... और रोते रोते ही जैसे ही उसने सुना कि जाने को कह दिया गया है वो बोली जल्दी जल्दी चलो दीदी जल्दी घर चलो हम यहां कभी नहीं आयेंगे..... रोते ही जा रही थी.. उसी तरह से जिस तरह अगर आप कभी दुर्घटनाग्रस्त होकर अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हों और फिर आपकी जान बच जाय ....उस वक्त आपके परिवारवाले आपको देखकर रो रहे हों कि आप मौत के मुंह से बच कर आये है। जिस तरह की भावना उस वक्त आती है वैसी ही खुशी झलक रही थी उसके आंसुओं में....कहीं न कहीं मन में डर भी था कहीं ये छिन न जाए.... और मन में एक तरह की ठंडक..... एक सुकून ये सोचकर कि चलो बच गये.... वो दोनों चले गये। सभी अपने अपने घर चले गये लेकिन मेरा मानसिक द्वंद चल रहा। अगले दिन मै उसी प्लाजा में गया वहां कि बेकरी से पैटी, और पेस्ट्रीज खाने। वहां पहुंचा कि बेकरी वाले ने मुझे पहचान लिया और बोला कि.... कल तो बड़ी बहस हो गई सर... मैने कहा हां यार बेकार में वो मोटा उन लड़कियों को पीट रहा था.... बेकरी वाला चुप हो गया फिर बोला.... सर वो आदमी सही कह रहा था.... मैने उसकी बात सुनी तो मेरे दिमाग सन्न रह गया.... उसने कहा कि मै उन्हें पिछले कुछ दिन से उन्हें नोट कर रहा था... वो कॉल गर्ल ही लग रही थी.... औऱ तो और मैने तो उनमें से एक को तो उस मोटे से आदमी की कार में बैठकर कहीं जाते हुए भी देखा था.... उसकी बात सुनकर मेरी पैटी मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही था.... उस वक्त मुझे अपनी बेवकूफी पर जवाब नहीं सूझ रहा था....मै जिन्हें गलत समझ रहा असल में वो सही थे और मै बेफिज़ूल में उस मोटे आदमी से लड़ बैठा.... मैने बेकरीवाले से पूछा ....तो फिर वो उनसे लड़ क्यों रहा था.... बेकरी वाला बोला कि अरे भाईसाहब पैसे की बात नहीं फिट नहीं बैठी होगी.... इसलिए वो मोटा साला ...ठर्की ...बिगड़ गया होगा... ये सब रोज़ का धंधा है सर.... पैसे वाला है इसलिए अय्याशी करता है साला.... मै अब कुछ सोच समझ नहीं पा रहा था कि सच क्या है क्योंकि कल की बहस एकदम सही थी कुछ भी बनावटी नहीं लग रहा था क्या उसके लड़की के आंसू झूठे थे? क्या ये बेकरीवाला सही कह रहा है ? क्या कल की बहस बेफिज़ूल थी ? क्या मोटा आदमी अय्याश और वो लड़कियां वैश्या थीं ?........
(नोट: लड़कियां कुछ कुछ भोजपुरी में बोल रही थी, मैने उसे हिंदी में परिवर्तित किया है)

मै आपकी परेशानी समझता हूं!!!!!

शुक्रवार, जुलाई 03, 2009

उस वक्त मैं बहुत ज़ोर से हंसता हूं
जब कहता है कोई कि मै
आपकी परेशानी समझता हूं


कुटिल दिखती है तब हर कथनी
जब कहता कोई कि
बॉस से मांग लेना थोड़ी मनी

क्या महसूस कर सकेगा वो शर्म ?
जो अनुज( छोटा भाई) से पैसे मांगने पड़े

क्या महसूस कर सकेगा वो हताशा ?
कि बीच सड़क खड़ा बगैर पैसे के
घर जाने की आस लगाये
क्या कोई छोड़ेगा मुझे ?
बिना रुपये की प्यास दिखाये

क्या बन सकेगा बेशर्म जो
मकान मालिक की गालियां सुन जाये
क्या दबा देगा
मन के उस चोर को ?
जो भूखे पेट किसी की थाल पर
नज़र पड़े.. तो नफरत से
मुंह फेरने के हिम्मत दिखाये

पेट भरा हो तो निकलती हैं
सब्र रखने की सौ बातें,
जीने के संघर्ष में ही यहां
निकल जाती है सारी रातें

आस है बेहतर जीवन की
सपने हैं कि माया मिलेगी, लेकिन
न माया मिले न राम
यहां नहीं मिल सका सुकून के
दो पलों का आराम

खुशी में तो हर कोई खुश होता है, लेकिन
क्या ऐसे वक्त को समझेगा कोई ?
क्या उस वक्त कहेगा कोई ?
कि, मै आपकी परेशानी
समझता हूं। 

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