रात में पैसे लुट रहे है लूट लो ?

रविवार, जनवरी 31, 2010

ठंड की रातों में जहां एक ओर सभी नींद में दुबके हुए रजाई के आगोश में सो रहे थे। वहीं दूसरी तरफ मेरी आंखों में रात में पैसे कमाने का सपना जाग रहा था। अरे मै ही क्यों लगता तो ऐसा था कि ज्यादातर लोग जो अमीर बनने की तरफ अग्रसर हो रहे होते है। वो भी जागते है


क्या आपने कभी रात 12 बजे के बाद  जगने की कोशिश की है, रात को लगभग हर चैनल पर या तो बाबा लोग अपने कवच बेच रहे होते है या फिर कुछ चैनल,  लोगों को पैसे लुटवा रहे है। जी हां, आपको यकीन न हो तो आप हर रात 12 से दो बजे के बीच में पैसे लूटने का काम कर सकते है। हां पर करना ये है कि आपको सिर्फ या तो एक नंबर पर मैसेज करना है या फिर एक नंबर पर कॉल करना होता है। आप चाहे इमेजिन, ज़ी, जैसे किसी भी चैनल को चला लें, अगर बाबा कवच नहीं बेच रहे होंगे तो एक ज्यादा और बेतुकी बातें करने वाला एंकर आपको आपकी किस्मत के सहारे पैसे जितवा रहा हैं।

अब इस कार्यक्रम में जीतते कितने लोग है ये आप इसको देखकर समझ सकते हैं। मजेदार बात ये है कि इसमें वो पज़ल जैसा गेम खिलवाते है आपको बस उन चेहरो को पहचान कर पैसे कमा सकते है। यहीं नहीं इनाम की रकम भी बढ़ती जाती है। इसमें कोई सवाल भी नहीं है जैसा कि अमिताभ बच्चन के कौन बनेगा करोड़पति  में था। बस आपको फोन करना है या मैसेज करना है किस्मत का खेल है किस्मत है तो जीत है

लेकिन क्या आपने ट्राइ किया है। यकीन मानिये लोग लगातार कॉल या मैसेज करते रहते है, ये मै नहीं कह रहा हूं ये तो उसका एंकर कहता रहता है। और वो ये भी कहता है कि आप कॉल और मैसेज कर नहीं रहे हैं। लोग लगातार फोन करत  रहते है।  आपको जानकर हैरानी होगी कि जिन चार हिस्सों के पज़ल में हीरो या हिरोइन को पहचानने की बात की जाती है उसको एक बच्चा भी पहचान सकता है। लेकिन जिन लोगों के फोन स्टूडियो में जोड़ें जाते है वो तस्वीरों को पहचान तक नहीं पाते है। पहली बात तो आपका फोन लगेगा ही नहीं। और वो इसलिये की जब आपको पता चलेगा कि इन नंबर पर कॉल करना पैसों पर काल जैसा है। इन नंबर्स पर कॉल करने की दरें है 10 से 12 रुपये प्रति मिनट। 

जानकर हैरानी हो रही होगी। लेकिन इन नंबर्स पर आधे आधे घंटे लगातार होल्ड पर रहने के बाद भी आपको शायद ही स्टूडियों से जोड़ा जाये लेकिन आपके फोन के बिल.......हां हज़ारों में आ सकते है।

सवाल ये है कि  इस कार्यक्रम को दिखाने का लाभ क्या है। और इन कार्यक्रम को रात में ही क्यों दिखाया जाता है। और मंदी के इस दौर में इन जैसे कार्यक्रमों को दिखाने के पीछे क्या मकसद हो सकता है। यही नहीं जहां एक ओर सभी फोन कंपनियां अपने कॉल रेट कम कर रहे है वहीं दूसरी ओर इन कार्यक्रमों में 10 से 12 रुपये प्रति मिनट कॉल दर होने का क्या मतलब है।

इन कार्यक्रमों से सीधा सा मतलब निकाल जा रहा है कि ऐसे कार्यक्रम सिर्फ और सिर्फ लोगों को सपने बेचकर उनको बेवकूफ बनाने का ज़रिया भर है। पता नहीं लेकिन हो सकता है कि इन कार्यक्रमों में लोग जीतते भी कि नहीं पर कब है और कितने ये सवाल बड़ा है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय  को चाहिये कि इन कार्यक्रमों को दिखाने के पीछे क्या मकसद है और इसके ज़रिए कानूनी रुप से जुआ खिलाया क्यों जा रहा है। और इसको कानूनी जामा पहनाया जा रहा है चित्र पहचानने के सवाल को देकर।

मेरा इस पोस्ट को लिखने के पीछे यही मकसद था कि आपको ये जानकारी दी जाये कि इस तरह के कार्यक्रम में अपना लक न आज़माये। क्योंकि इसके ज़रिए सिर्फ आपको बेवकूफ बनाया जा रहा है। यही नहीं होल्ड पर रहने वाली मधुर आवाज के चक्कर में न पड़े ये सिर्फ कंप्यूटर में पहले से ही फीड लड़की की आवाज है जो आपको सिर्फ आपका बिल बढ़ाने के लिये आपका मनोरंजन करेगी। बस बाकी तो आप समझदार है।

अरे कोई तो बचाओ हॉकी को....

मंगलवार, जनवरी 12, 2010

अब अगर मेजबान देश के खिलाड़ी ही किसी टूर्नामेंट में भाग न ले रहे हो तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है। आप, हम, और सबको पता है कि हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी है, लेकिन इसकी हालत राष्ट्रीयता जैसी ही हो गयी है। मध्धम बहुत मध्धम। हॉकी को पहले गिल ने चबाया अब जो बिना रस का लच्छा बचा है उसे हॉकी इंडिया के सदस्य चूसे जा रहे है। कुछ दिनों बात ही भारत में हॉकी विश्वकप होने जा रहा है। पहली बार जब ये जानकारी मिली तो बहुत आश्चर्य हुआ, वो इसलिये कि कमाल है कि विश्व कप जैसा बड़ा आयोजन हो रहा है और टीवी चैनल्स पर प्रचार तक नहीं आ रहे है।


हॉकी का इतना बड़ा त्यौहार सर पर है और लोकल ट्रेनों में सफर करने वाले देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी, के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी प्रैक्टिस तक के लिये मैदान में नहीं उतर रहे है। अब करें भी तो क्या करें। क्योंकि सरकारी तंत्र की तरह चलने वाले हॉकी इंडिया ने खेल के लिये मिलने वाले पैसों से इतने मज़े कर लिये है कि खिलाडियों को उनका हक तक नहीं मिल रहा है। नौबत ये आ गयी है कि हॉकी खिलाडियों ने भत्ता न मिलने पर बबाल काट दिया है। हॉकी खिलाड़ियो ने मांग रखी है कि उनको  उनके हक के पैसे दिये जायें। लेकिन पैसे हों तब न। हॉकी इंडिया के सदस्यो ने सहारा की तरफ से मिली स्पांसरशिप के पैसों को मौज के लिये खर्च कर दिया और उन पैसों में से चवन्नी भी  खिलाडियों के खाते में नहीं गयी।

देश में जब जब हॉकी सुधरने की स्थिति में पहुंची है, तब तब ऐसे हालात पैदा हुए है कि खेल सिर्फ धरातल की ओर ही गया है। खिलड़ियों की मांग जायज है और हमेशा कि तरह हॉकी इंडिया गलत है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या हर बार की तरह मुद्दा यहीं पर गर्म होकर ठंडा हो जायेगा, या फिर इसका एक स्थाई हल निकलेगा। खिलाडियों को धमकियां दी जा रही है कि या तो वो मान जाये या फिर टीम से हट जाये। एक कहावत है कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, उसी तर्ज पर हॉकी इंडिया के सदस्य, खिलाड़ियों पर दबाव बना रहे है कि या तो वो प्रैक्टिस पर लौट जाये या फिर उन्हें टीम से हटा दिया जायेगा। हॉकी इंडिया की तानाशाही की हालत ये है कि उन्होने पहले ही 22 खिलाड़ियो की सूची तैयार कर ली है, जो कि वैकल्पिक रुप से इस्तेमाल की जायेगी, भारतीय खिलाडियों के न खेलने की दशा में।

कितना शर्मनाक है हॉकी इंडिया के लिये कि खिलाडियों को खुद आगे आकर कहना पड़ रहा है कि स्पांसर से मिले पैसों में से कुछ पैसे खिलाडियों को भी मिलने चाहिये। लेकिन हॉकी इंडिया कहता है कि उनके पास पैसे ही नहीं है। फिलहाल हॉकी में चल रही उठापटक खत्म नहीं हुई है। और इसके लिये इंडियन हॉकी फेडरेशन भी पहल नहीं कर रही है। अब वो भी क्या करे क्योंकि उनके हाथ पहले से ही काले है। इस मसले में पड़ कर वो अपनी गर्दन छुड़ा रहे है।

देश की शान रहे इस खेल के खिलाडियों की  हालत देखकर कहीं न कही हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की आखों में भी आंसू होगें। लेकिन दुख है कि वो कुछ कर नहीं सकते है। और अगर वो होते तो यही कहते कि आखिर क्यों हॉकी को इस देश का राष्ट्रीय खेल बनाया गया जब इसकी कद्र किसी को नहीं है।

ऑस्ट्रेलिया पर कब जागेगा हिंदुस्तान..

शनिवार, जनवरी 09, 2010


आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमले पर आम भारतीय जाग  रहा है पता नहीं हिंदुस्तान कब जागेगा। ये कहना कि आम भारतीय ही हिंदुस्तान है गलत होगा क्योंकि एक आम भारतीय कभी भी हिंदुस्तान नहीं होसकता है। क्योंकि अगर होता तो वो कबका जाग चुका होता।जितने दिनों से आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले हो रहे है, उस पर आम जनता को ही इसके खुल कर सामने आना चाहिये था। यहीं नहीं जिस तरह से भारतीय सरकार भारतीयों को लेकर रवैया अपनाती है उसे देखकर तो लगता है कि जैसे वो देश के नागरिक ही न हो।

पिछले लगभग एक साल से आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर जानलेवा हमले हो रहे है। और इसके पीछे बाकायदा नस्लीय मुद्दा है। लेकिन न तो ऑस्ट्रेलिया ये मानता है और न ही इसके लिये कुछ करता है ताकि ये खुलकर सामने न आ जाये कि ये नस्लीय हिंसा है। आस्ट्रेलियन सरकार इस बात को मानने को बिलकुल तैयार नहीं है कि ये हिंसा नस्लवादी है।जबकि पुलिस को इसके लिये विशेष अधिकार भी दिये गये हैं, लेकिन इसके बाद भी वहां पर हिंसा का वारदात कम होने का नाम नहीं ले रहा है। वहां पर हिंसा के शिकार हुए भारतीय लोग ऑस्ट्रेलिया का दलील से इत्तेफाक नहीं रखते है।
शायद हमें पता हो कि किसी अमेरिकी या ब्रिटिश नागरिक के साथ ऐसी कोई वारदात हो जाती है तो शायद उसने ऑस्ट्रेलिया में बबाल मचा दिया होता, यही सोच उसको मज़बूत बनाती है, और इसी वजह से दुनिया का महाताकत है, क्योंकि उसकी ताकत उसके नागरिक है जिनके लिये वो सारे विश्व को हिला सकता है। क्या बाकी विश्व में, और भारत में अमेरिकी पर कोई हमला होता है, कुछ भी करने से पहले दिमाग में ये बात होती है कि वो अमेरिकी है।इसीलिये उनके साथ कोई कुछ नहीं कहता। यही नहीं हमारे यहां के नपुंसक नेता भी इस पर अपने वर्जन दे चुके होते। लेकिन शायद ऐसा भारत में ही हो सकता है कि भारतीय पर हमला हो और भारत उसके लिये सिर्फ फाल्तू बातों के अलावा कुछ न करे।

समझ में ये नहीं आता कि जो देश अपने लोगों की सुरक्षा के लिये कड़े कदम नहीं ले सकता है उसके नेताओं को देश का नेता होने का हक क्यों मिल जाता है। देश के नागरिकों की सुरक्षा न कर पाने वाले नेताओं को भूलकर भी वोट न देने का कसम खानी पड़ेगी। शर्म की बात है कि भारत अपने ही नागरिकों पर हो रहे हमले के बाद भी कुछ नहीं कर पा रहा है। इसके बाद सारे विश्व में भारतीयों और उनके देश को लेकर जिस तरह की इमेज बन रही होगी इसका तो सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है

हां वो तुम हो....

शुक्रवार, जनवरी 08, 2010




कल रात बादलों की आड़ में
जो खेल चल रहा था,
उसकी रचनाकार तुम हो
हां वो तुम हो,


बड़े इंतज़ार के बाद,
बेक़रार दिल पर,
चांदनी बरसाने वाली तुम हो
हां वो तुम हो,



पास तो न हो तुम इस वक्त मेरे,
पर रात के अंधेरे में
मुझ पर छुपी नज़रों से देखती
हां वो तुम हो,


ग़र होती पास मेरे,
तेरे हाथों लेकर हाथों में, पर
हाय री किस्मत, दूर हो
सिमटती हुई इस कविता में तुम हो
हां वो तुम हो,


ज़रो रुको तो क्षण भर,
देख लूं जी भरकर,
पर तुम फिर न मानी
बादलों की ओट लेकर छुपती हुई तुम हो,
हां वो तुम हो।


थ्री इडियट्स का उद्देश्य क्या था?

बुधवार, जनवरी 06, 2010

अब से आने वाली फिल्म के बारे में एक समीक्षक के तौर पर उसकी समीक्षा करके ये जानने की कोशिश करुंगा कि बॉलीवुड फिल्म और हॉलीवुड फिल्म में क्या खास अंतर होता है। कोशिश यही रहेगी कि ताज़ातरीन फिल्मों को देखने जाना चाहिये या नहीं।


फिल्म है ----थ्री इडियट्स

हर बार की तरह इस बार भी विधु विनोद चोपड़ा की एक और बेहतरीन डायरेक्टेड फिल्म है। विधु की एक खास बात है कि उनकी फिल्म में हर कैरेक्टर के पास करने को बहुत कुछ होता है। और वो जानते है कि कि किस कलाकार से कैसे और कितना काम लेना है। उनकी फिल्म में हर कलाकार के पास अपनी कला का नमूना पेश करने का पूरा मौका होता है।

फिल्म में सिनेमोटोग्राफी की बात करें तो फिल्म में लगभग हर तरह के सीन आजमाये गये है चाहे वो वादियां हो या फिर बारिश का मौसम, यहीं नहीं फिल्म के आखिरी हिस्से में आप फिल्म के कुछ सीन को इमरान स्टारर तुम मिले के हिस्से को ताजा करेंगी।

कलाकारों की बात करें तो फिल्म में करीना कपूर का रोल बेमानी ही था, लगता तो ऐसे ही है आमिर खान के साथ काम करने की इच्छा लेकर ही उन्होंने फिल्म साइन  की थी। बोमन इरानी का रोल काफी बड़ा तो नहीं है  लेकिन फिल्म में अपनी मजाकिया सख्त इमेज की झलक दिखलायी है। उनकी ये एक्टिंग देखकर 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' की याद ताज़ा हो गयी। जैसे की शीर्षक से लग रहा है कि फिल्म में तीन कलाकारों की एक्टिंग देखने को मिलेगी पर ऐसा कुछ भी नहीं है फिल्म में है तो थ्री इडियट्स लेकिन आमिर ही पूरी फिल्म में एकाधिकार दिखाते नजर आये है। ऐसा नहीं है कि फिल्म में शरमन जोशी और माधवन के लिये कुछ नहीं है लेकिन फिल्म के नाम से ऐसा कुछ भी नहीं है कि फिल्म तीनों के लिये बनी हो। शरमन ने अपने रोल के साथ न्याय किया है। अपनी एक्टिंग से उन्होने फिर साबित किया है कि वो एक मेच्योर एक्टर है। माधवन को अपनी एक्टिंग में अभी कुछ सीखना बाकी है क्योंकि उनके पास वैरायटी नहीं है।

फिल्म को जिस उद्देश्य़ के लिये बनाया गया, समझा जा रहा है असल में वैसा है नहीं। फिल्म कहीं से भी शिक्षा प्रणाली को झकझोरती नज़र नहीं आ रही है।

वैसे शिक्षा व्यवस्था पर लगभग चोट करती इस फिल्म में इजीनियरिंग कालेज में पढ़ने वाले छात्र हैं रणछोड़दास, फरहान, और राजू रस्तोगी। फरहान मिडिल क्लास लोगों का नेतृत्व करता है वहीं राजू एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का है। रणछोडदास की बात करें जिसको रैंचो नाम से ही सब बुलाते हैं तो वो एक पैसे वाला लड़का  है। लेकिन इंटरवल से पहले। तीनों दोस्त है, जो साथ ही पढते है, रहते है और मौज मस्ती करते है। लेकिन रैचो एक मस्तमौला लड़का है जो इंजीनियरिंग को जानकारी के तौर पर पढ़ता है। यहां पर स्टोरी में ट्विस्ट आता है कि एक दिन पढ़ाई खत्म करके रैचों कहीं चला जाता है। फरहान, राजू और फिल्म का तीसरा कॉमेडी केरेक्टर साइलेंसर,  रैचों को ढूढने निकलते है।

फिल्म के संदेश को देखें तो फिल्म कई संदेश देती है जैसे पढाई को नंबरो के लिये नहीं काबिल होने के लिये करों। दूसरा जिसमें दिल करे उसी फील्ड को चुनों। इस तरह के संदेशों को लेकर बनी फिल्म में यही एक कमी है कि फिल्म के काबिल लोगों के लिये ही ये सारा कथानक चुना गया है। आमिर हर बार पहली पोजीशन पाते है लेकिन फरहान जो कि एक फोटोग्राफर बनना चाहते है वो आखिरी नंबर पर, वही राजू जो इंजीनियरिंग ही करना चाहता था वो भी आखिरी रैकिंग पर ही आता है।

हमेशा खास उद्देश्य को लेकर बनी फिल्म में ही काम करने वाले आमिर ने इस फिल्म में बेहतरीन काम किया है लेकिन स्क्रिप्ट में कुछ कमियां जैसे फिल्म का उद्देश्य साफ नहीं हुआ से मात खा रहे हैं। जो उद्देश्य साफ भी हुआ है वो पहले हाफ में ही क्लियर हो गया है जब आमिर ही कालेज टॉप करता है।

फिल्म की कहानी ठीक है लेकिन जैसा कि पहले कहा कि फिल्म कोई संदेश देती नज़र नहीं आ रही है। शिक्षा व्यवस्था पर जहां तक सवाल उठाने का सवाल है तो सवाल है लेकिन जवाब नज़र नहीं आ रहे हैं।

फिल्म के गाने अच्छे है। खासकर रेट्रो इफेक्ट द्वारा गानों को पुराने अंदाज में फिल्माया गया गाना। जिसका चलन आजकल बहुत हो रहा है। पढाई पर पढ़ने वाले प्रेशर, और टेंशन को दिखाने में फिल्म सफल रही है। फिल्म को देखने जाया जा सकता है लेकिन युवाओं के लिये पूर्णतया बनायी गयी फिल्म है।

मेरी ओर से फिल्म को


Related Posts with Thumbnails