चलों जूता जूता खेलें....

सोमवार, अप्रैल 13, 2009

गीत पेश कर रहा हूं ज़रा ध्यान दीजिएगा औऱ जूतम पैजार का मौसम है तो मन मचल उठा कि विरोध का मुन्ना भाई की तरीका ज़रा पुराना हो गया तो एक गीत पेश है जिसकी तर्ज है "लगी आज सावन की फिर जो झड़ी है"

लगी आज जूतों की फिर जो झड़ी है.....
किसी को यहां तो किसी को वहां पड़ी है.....

जूतों से यहां खबरें बन पड़ी है...
चैनलों में जूतों पर फिल्में बन पड़ी हैं....

कभी स्वागत गृहमंत्री का तो कभी जिंदल से जुड़ी है....
लगी आज खबरों में जूतों की झड़ी हैं......

लगी आज जूतों की फिर जो झड़ी है.....
किसी को यहां तो किसी को वहां पड़ी है.....

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