गीत पेश कर रहा हूं ज़रा ध्यान दीजिएगा औऱ जूतम पैजार का मौसम है तो मन मचल उठा कि विरोध का मुन्ना भाई की तरीका ज़रा पुराना हो गया तो एक गीत पेश है जिसकी तर्ज है "लगी आज सावन की फिर जो झड़ी है"
लगी आज जूतों की फिर जो झड़ी है.....
किसी को यहां तो किसी को वहां पड़ी है.....
जूतों से यहां खबरें बन पड़ी है...
चैनलों में जूतों पर फिल्में बन पड़ी हैं....
कभी स्वागत गृहमंत्री का तो कभी जिंदल से जुड़ी है....
लगी आज खबरों में जूतों की झड़ी हैं......
लगी आज जूतों की फिर जो झड़ी है.....
किसी को यहां तो किसी को वहां पड़ी है.....
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
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सोमवार, अप्रैल 13, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 5:16 am 1 टिप्पणियाँ
लेबल: हास्य व्यंग
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