बाबा वाबा ना...बाबा ...ना

मंगलवार, मार्च 16, 2010

भक्तों .....सालों......बाद मिले हैं। भगवान हर जगह है हर चीज में है, प्रभु सुबह है तो प्रभु शाम,
ये प्रवचन एक ऐसा प्रवचन है कि जिसका आडियो हर बाबा के मुंह में फिट टेपरिकार्डर में बजता रहता है। भारत में लोगों के पास समय की इतनी कमी है कि भगवान को याद करने के लिये खुद कुछ नहीं करना चाहते। सबने इसके लिये शार्टकट  तरीका अपनाया है। वो क्या है कि हम सबको शार्टकट बहुत पसंद होता है न । चाहे वो मंजिल तक पहुंचने वाली किसी सड़का का हो या फिर पैसे कमाने का। यही नहीं आपमें से ही कई लोगों ने  अपने अपने गुरु भी बना लिये है जो आपके लिये पुण्य का काम करते है। पता नहीं कैसे ? लेकिन पोल तो अब खुलनी शुरु हुई है कि ये गुरु सिर्फ घंटाल हैं। बाबा रखने का फैशन इस कदर बढ़ गया है कि  अब तो आस पड़ोस की महिलाओं में भी कॉम्पटीशन होने लगा है। औऱ बाबा रखना स्टेटस सिंबल हो गया है। जैसे अगर आप आर्ट ऑफ लिविंग गुरु रविशंकर को अपना बाबा या गुरु मानते है तो समझो आप इलीट क्लास है। क्योंकि रविशंकर जी तो आर्ट आफ लिंविग सिखाते है। और इतना पैसा कमाने के बाद कम से कम इस इलीट क्लास को आर्ट आफ लिविंग तो आनी ही चाहिये। उसी तरह योग वाले बाबा रामदेव भी मोटे मोटे और अक्सर बीमार रहने वाले लोगों का इलाज कर रहे हैं। इस क्लास के लोगों को मध्यमवर्गीय कहा जाता है जो एक तरफ तो सरकार से परेशान है तो दूसरी तरफ योग वाले बाबाओं की टिकट की लाइन से। इन बाबाओं में तरह तरह की वैरायटी है, जैसे कृष्ण भक्ति वाले बाबा, भगवान राम वाले बाबा, साई वाले बाबा इत्यादि। और भगवानों की तरह इन बाबाओं की ड्रेस भी अलग अलग होती है। अरे विश्वास नहीं होता तो रोज सुबह सुबह टीवी खोलकर देख लिया करो यार। मेरा सही कम से कम टीवी का विश्वास तो करो , जिस पर विश्वास करके हम आपके घर की महिलायें पगलाये रहती हैं। यही सब तो आता है उसपर । अरे न सिर्फ सुबह बल्कि कई चैनलों पर तो बाकायदा ये बाबा आधे घंटे या एक घंटे का स्लाट लेकर अपना इलेक्ट्रानिक प्रवचन करते हैं, चौबीसों घंटे ।यकीन मानिये इसमें लगने वाला पैसा भी आपकी ही जेब से आता है।

टीवी पर चौबीसों घंटे प्रवचन करने वाले जिस तरह खाली होते है उसी तरह उसको सुनने वालों के पास भी कोई काम नही होता। घरों में स्वेटर बुनते या सब्जियां काटती महिलायें या फिर अपने बिस्तर पकड़े बैठे वरिष्ठ। कई युवा भी होते है जो भगवान से ज्यादा इन बाबाओं पर विश्वास करते हैं, क्योंकि उनको कोई अच्छा मेंटर नहीं मिलता। जो उन्हे सही मार्ग दिखलाये।

लेकिन जिस तरह की घटनाओं के बाद लोगों के विश्वास की धज्जियां उड़ रही है उसके बाद कईयों को तो समझ नहीं आ रहा है कि किया क्या जाये। हर कोई यही सोच रहा है कि अब किसे बाबा बनाया जाये। क्योंकि सीधे भगवान के पास पहुंचने के लिये भी लगता है कि बाबाओं जैसे दलालों की ज़रुरत पड़ गयी है जो रिश्वत लेकर भगवान के दरबार में नकली हाजिरी लगवा रहे है। लेकिन जिन कुकर्मों में इन बाबाओं के नाम आ रहे है। उसे जानने के बाद कम से कम महिलाओं को तो उनसे दूर रहने की नसीहत मिल ही गयी होगी। और इसके बाद वो कहने भी लगी है कि बाबा वाबा न बाबा न। लेकिन हां कुछ पुरुषों ने अपने संपर्क साधने शुरु कर दिये होंगे। अरे उसी टाइप के लोग जो जीवन के इस तरह के आनंद को पाना चाहते है। बाबा जी की तरह वो भी भोग को योग की संज्ञा दे रहे हैं। बाकी आप खुद समझदार है

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