कलमबंद की ओर से जनहित में जारी
दिल्ली की लाजपतनगर इलाके की मार्केट खरीददारी के लिये बढिया मानी जाती है। यहां पर हर उम्र के लिये और सबकी ज़रुरत का सामान मिलता है। लेकिन आप अगर खरीददारी का मन बना रहे हैं और वो भी लाजपतनगर मार्केट में तो ज़रा सावधानी बरतनी पड़ेगी। अरे जेबकतरों से नहीं भाई...जेब कुतरों से...आपको खबरदार इसलिये किया जा रहा है क्यों कि यहां पर ट्रैफिक की समस्या सबसे ज्यादा है। जिसका मज़ा उठाती है यहां ट्रैफिक पुलिस के वो हवलदार जो ईमानदार तो कतई नहीं। आगे कहने से पहले आपको दो तस्वीरे दिखाते हैं ।
ये जो पहली तस्वीर आप देख रहे हैं वो है जनाब राजन सिंह ....ये महाशय ट्रैफिक पुलिस में हवलदार के पद पर हैं और इनके साथ ये दूसरी तस्वीर में उनका नाम लेना उचित नहीं है क्योंकि यहां पर उनकी तस्वीर की ज़रुरत ज्यादा थी नाम की नहीं...
यहां पर आपको, सावधान किया जा रहा है, दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के हरियाणवी अंदाज के राजन सिंह से, जी हां...तेज़ नज़र, आवाज में पुलिसिया अकड़, शब्दों में कड़े तेवर, हवलदार की गोल टोपी लगाये ये जनाब लाजपत नगर इलाके की मार्केट में अक्सर सड़को पर चालान बनाते नज़र आते हैं। आप लोगों को सावधान इसलिये किया जा रहा है क्योंकि इन जनाब के कुछ उसूल हैं और उन उसूलों के चक्कर में आप लोग न फंसे इसलिये आपको सावधान किया जा रहा है। राजन सिंह जी को इनके उसूलों को तोड़ने वाले या इस पर सवाल उठाने वाले बिलकुल नहीं पसंद, इनके उसूलों के विषय में आगे विस्तार से बताया जा रहा है साथ ही उसूलों के कारण भी लिखे है ज़रा ध्यान दें और ख़ुद को बचायें।
राजन उसूल नंबर एक - ये जनाब सिर्फ परिवार के साथ के खरीददारी करने आने वाले लोगों पर अपनी नज़र ऱखते हैं।
कारण- परिवार के साथ आने वाले लोग बहस में ज्यादा नहीं पड़ते हैं, जल्दी से निपटने की कोशिश किया करते हैं, इसलिए आसान शिकार हैं।
उसूल नंबर दो - पुलिसया अकड़ और तेवर दिखाना ज़रूरी है।
कारण- पुलिसया अकड़ के आगे अच्छे अच्छों ढीली हो जाती है तो बेचारे परिवार के साथ आने वाले क्या करेंगे, जो पुलिस जी कहेंगे वही होगा।
उसूल नंबर तीन- अपनी तीखी नज़रों से सभ्य दिखने वालों को शिकार बनाना।
कारण- सभ्य लोग कानून नहीं जानते इसलिये उन्हें कानून से डराना आसान होता है भले ही ऐसा जिसका उल्लंघन किया गया हो।
उसूल नंबर चार- किसी लड़की के साथ आने वालों को प्रीफरेंस,
कारण- कारण सबको पता है, कोई बताना नहीं चाहेगा, किसी महिला के साथ आने वाले लोग ज़रा ढीले पड़ जाते है अब इसका कारण मत पूछियेगा, क्यों?
उसूल नंबर पांच- अगर शुद्ध हिंदी आती भी हो तो भी हिंदी भाषी लोगों से हरियाणवी अकड़ वाली भाषा ही प्रयोग करना।
कारण- आपमें से कई लोगों को पता होगा कि हरियाणवी या पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बोली को कई लोग अक्सर धौंस जमाने वाली भाषा भी कहते है। और ज्यादातर पुलिस, और बदमाश टाइप के लोग इसका अच्छा प्रयोग करते हैं।
उसूल नंबर छह- लोगों को घूरकर उन पर पुलिस की पावर का एहसास दिलवाना,
कारण- अब इसका क्या कारण दूं। पुलिस के पास पावर है तो है। एहसास नहीं दिलवाते तो भी लोग डरते हैं। जी मैं शरीफ लोगों की बात कर रहा हूं।
उसूल नंबर सात- कार को रखो दर किनार
कारण- अब गाड़ीवालों से कौन पंगा ले यार, नौकरी न खा लें।
उसूल नंबर आठ- ज्यादा सवाल जवाब मतलब ज्यादा चालान (जुर्माना)
कारण- पुलिस से ज्यादा सवाल जवाब करेगा कोई, इतनी हिम्मत
उसूल नंबर नौ- हर कोई कानून नहीं तोड़ता है, जिस पर नज़र पड़ी वही चोर
कारण- "मेरे दस हाथ तो है ना जो सबको पकड़ूं" ये जवाब भी मिलता है। सच में
उसूल नंबर दस- मै चाहे जिसे पकड़ू जिसे छोड़ूं ,मेरी मर्जी...
कारण- पुलिस की मर्जी है भईया कोई कारण नहीं है।
ये जितने भी उसूल लिखे गये हैं वो सत्य घटनाओं पर आधारित है। ये सारे के सारे जवाब अपने सामने से देखकर समझकर लिखे है। इतेफाक से मै अपनी महिला मित्र के साथ खरीददारी के लिहाज से लाजपतनगर पहुंच गया था जिसके बाद मै इनके चंगुल में फंस गया और मेरा चालान कर दिया गया। मुझे पहले तो लगा कि पत्रकार होने का फायदा उठाऊं जैसा कि अक्सर कुछ पत्रकार उठाते है लेकिन कानून तोड़ा था तो सोचा कि जुर्माना देने में कोई बुराई नहीं है। आपको बता दूं लाजपतनगर मार्केट की सड़क अब वन वे हो गयी है इसलिये जरा और सावधान हो जाइयेगा। हां ये अलग बात है कि पूरी सड़क पर वन वे का कोई बोर्ड नहीं है लेकिन फिर भी यहां पर राजन सिंह जी चालान बनाने में माहिर है। इसलिये तस्वीरों को ज़रा गौर से देखिये और पहचान लीजिये। और ज़रा बचकर.... कहीं परिवार के साथ आप इनकी नज़र में न आ जाईयेगा वरना पैदल चलने का भी चालान कैसे बनता है.. ये भी आपको सिखा दिया जायेगा । हां अगर आप कार से आते है तो ठीक है, या आपके साथ परिवार नहीं है तो बहुत बढ़िया। और एक बात तो भूल गया जेब में माल है तो सबसे बढ़िया है शायद अच्छे दोस्त ही बन जायें।
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
कुछ और लिखाड़...
-
-
-
-
-
फिर लगेगा नाइट कर्फ्यू !3 वर्ष पहले
-
-
-
-
-
-
-
दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)14 वर्ष पहले
-
-
दिल्ली ट्रैफिक पुलिस यानी परिवारवालों की शामत
सोमवार, सितंबर 21, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 9:55 pm 8 टिप्पणियाँ
लेबल: वाह रे पुलिस?
सदस्यता लें
संदेश (Atom)