हिम्मत है तो कोई मेरा धर्म बदलकर दिखाओ ???????

गुरुवार, जुलाई 23, 2009

इस टाइटल को पढ़कर इस समझने का प्रयास मत करियेगा ...क्योंकि ये आपकी सोच से अलग हो सकता है।अपनी बात कहने से पहले मै चाहता हूं कि आप कुछ इन खबरों पर ध्यान दें.....

1) ब्यावर- बेटे-बहू की मर्जी के बगैर दादा द्वारा पौतों का धर्म परिवर्तन करवाने का मामला सामने आया है। बच्चों के पिता ने दादा के खिलाफ धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने, अपहरण, हत्या का प्रयास करने और धारदार हथियार से चोट पहुंचाने के आरोप में सिटी थाना पुलिस में मामला दर्ज करवाया है........

2) भुवनेश्वर। उड़ीसा के कंधमाल जिले में धर्म परिवर्तन और पुन: धर्म परिवर्तन पिछले वर्ष हुए दंगे के मुख्य कारणों में थे। यह बात दंगे की जांच कर रहे एक न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कही है।

3) हाल में मलयेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में एक सिख परिवार के 41 साल के व्यक्ति मोहन सिंह का दिल के दौरे से निधन हो गया। परिवार के लोग जब उनका शव लेकर अंतिम संस्कार करने के लिए श्मशान जा रहे थे, तो उन्हें इस्लामिक विभाग के अधिकारियों ने रास्ते में रोक लिया। उन्होंने कहा कि मोहन सिंह 1992 में धर्म परिवर्तन करके मुसलमान हो गए थे, इसलिए उनके शव का अंतिम संस्कार सिख रीतिरिवाजों से नहीं, बल्कि मुस्लिम विधिविधान से ही किया जा सकता है।

4) लंदन - ब्रिटेन में एक कट्टरपंथी मौलवी ने कथित तौर पर 11 साल के एक स्कूली बच्चे का धर्म परिवर्तन करने की कोशिश की। सीन नाम के इस श्वेत लड़के को एक टेप में अरबी में आयतें पढ़ते और अल्लाह के प्रति निष्ठा जाहिर करते देखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक निर्वासित उमर बाकरी मोहम्मद के अनुयायी और विवादास्पद मौलवी अंजम चौधरी ने इस लड़के का धर्म बदलने की कोशिश की।

5) जबलपुर में धर्म न बदलने पर दलित परिवार पर हमला कर मारपीट एवं तोड़फोड़ करने वाले कुछ युवकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए धर्मसेना के साथ बड़ी संख्या में एसपी कार्यालय पहुंचे रामपुर बेन मोहल्ला के रहवासियों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा। आक्रोशित लोगों ने गोरखपुर थाने का घेराव कर मामले में त्वरित कार्यवाही की मांग की


ये तो कुछ ही मामले है धर्म परिवर्तन के.....पहले तो मै सोच रहा था कि आखिर लोग धर्म कैसे बदल लेते हैं। मेरे परिवार में भी इस बात पर चर्चा ज्यादा होती है कि आखिर कैसे लोग अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। हमारे यहां तो उन लोगों को हिकारत की नज़रो से देखा जाता है जो अपने धर्म को छोड़कर दूसरे का धर्म अपना लेते हैं। लेकिन यूं ही एक दिन खाली बैठा था और सोच रहा था कि आखिर क्यों लोग अपनी धर्म बदलते है और आखिर क्यों लोग इतने मजबूर बन जाते हैं कि उन्हें अपनी पूरे जीवन में जिस प्रकार से पूजा अर्चना की है उस पद्धति को छोड़कर दूसरी पद्धति अपना ले। परेशान हालात में मै सड़क पर यूं ही घूमने निकल पड़ा। थोड़ी दूर पर एक शिव मंदिर पड़ता है और क्योंकि मैं हिंदु धर्म से ताल्लुक रखता हूं और साथ ही ब्राह्मण जाति में जन्म लिया है तो अक्सर मंदिरों की पैड़ियों यानी दर पर सिर झुक ही जाता है। मैने भी सिर झुका लिया। आगे बढ़ा तो माथा ठनका। मैने सोचा कि आखिर अगर पिछले बीस सालों से जिस पद्धति को मैने और मेरे परिवार ने अपनाया है उसको अगर मै छोड़ दूं तब क्या होगा। मैने सोचा क्यों न मान लिया जाये कि मैने हिंदु धर्म छोड़ दिया। तब होगा ये कि मेरे परिवारवाले मुझसे लड़ाई कर लें। कुछ धार्मिक संगठन मेरे दुश्मन हो जाये या ये भी हो सकता है मुझे जान से मारने की भी कोशिश होने लगे। पर एक चीज जो मेरे दिमाग में आई वो ये कि उस वक्त जिस धर्म को मै अपनाउंगा.... क्या वो मुझे ये लगने लगेगा कि वो बेहतरीन है और उस पद्धति को अपना सकूंगा। जिस दर पर अक्सर अकारण ही सिर झुक जाया करता था क्या गैर धर्मी होने पर न झुकेगा। नहीं ऐसी नहीं हो सकता। क्यों जिस पद्धति को मैने बचपन से देखा, सुना और अपनाया है जिस विधि से मैने भगवान की पूजा अर्चना की है उस विधि को मै कैसे भूल पाउंगा। न चाह कर भी अक्सर उस तरीके से भगवान को याद करुंगा भले ही मेरा नाम उस वक्त शशांक शुक्ला की जगह शफीकुर्रहमान हो या सैम्पसन,या फिर सुखविंदर...लेकिन मै चाहे जिस नाम में भी रहूं चाहे जो भी नाम हो या जो भी धर्म लेकिन बचपन से जिस ज़िदगी के पैटर्न को अपनाया है उसे नहीं भूल पाउंगा। और मैं क्या कोई भी नहीं कर पायेगा हां वो भूलने की नाकाम कोशिश या नाटक ज़रूर करेगा। लेकिन उसका अपना सच वो कभी नहीं भूल पायेगा। मै कहता हूं कि धर्म परिवर्तन की बहुत सी घटनायें होती हैं इसलिए मै कह रहा हूं कि कोई मेरा धर्म बदलकर दिखाओ......कैसे मारोगे उस भक्ति को जिस भक्ति से मैने बरसों पूजा कि है। चंद मंत्रो या आयतों या अन्य विधियों से मेरी सोच नहीं बदली जा सकती हैं। नाम का धर्म बदल सकते हो पर काम का धर्म नहीं बदल सकते। सोच का धर्म नहीं बदल सकते और अगर मैने धर्म बदल भी लिया तो होगा ये कि आपकी नज़र में मै चाहे किसी भी धर्म में रहूं पर रहुंगा उसी धर्म का बाशिंदा जिस पर मेरी आस्था होगी और बिना आस्था किसी भी धर्म की कोई औकात नहीं।

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