उस वक्त मैं बहुत ज़ोर से हंसता हूं
जब कहता है कोई कि मै
आपकी परेशानी समझता हूं
जब कहता कोई कि
बॉस से मांग लेना थोड़ी मनी
क्या महसूस कर सकेगा वो शर्म ?
जो अनुज( छोटा भाई) से पैसे मांगने पड़े
क्या महसूस कर सकेगा वो हताशा ?
कि बीच सड़क खड़ा बगैर पैसे के
घर जाने की आस लगाये
क्या कोई छोड़ेगा मुझे ?
बिना रुपये की प्यास दिखाये
क्या बन सकेगा बेशर्म जो
मकान मालिक की गालियां सुन जाये
क्या दबा देगा
मन के उस चोर को ?
जो भूखे पेट किसी की थाल पर
नज़र पड़े.. तो नफरत से
मुंह फेरने के हिम्मत दिखाये
पेट भरा हो तो निकलती हैं
सब्र रखने की सौ बातें,
जीने के संघर्ष में ही यहां
निकल जाती है सारी रातें
आस है बेहतर जीवन की
सपने हैं कि माया मिलेगी, लेकिन
न माया मिले न राम
यहां नहीं मिल सका सुकून के
दो पलों का आराम
क्या ऐसे वक्त को समझेगा कोई ?
क्या उस वक्त कहेगा कोई ?
कि, मै आपकी परेशानी
समझता हूं।
2 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब! सब्र करो, सब ठीक होगा।
अच्छी कविता....
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