झुर्रियों के सहारे सुरक्षा !!!!

शुक्रवार, अगस्त 28, 2009

रात को अपने दोस्त के यहां से लौट रहा था। बाइक पर जा रहा था अपनी मस्ती में । मुझे याद आया कि एक तो सैलरी लेट आती है ,दूसरा पर्स में एक रुपया भी नहीं है तो क्यों न अपनी गुल्लक जैसी जमापूंजी से कुछ पैसे निकाल लिया जाये। पास के ही एटीएम गया... वहां देखा कि लाइन तो लंबी नहीं थी...पर लोग पैसे लेने के लिये काफी जल्दी मचा रहे थे। सुरक्षा के तैनात एटीएम का गार्ड अपना भोजन कर रहा था। मैने एक सभ्य आदमी की तरह लाइन में अपनी जगह ले ली। उस गार्ड की उम्र यही कोई पचपन के पास की रही होगी। दिन भर गर्मी में तपकर उसके कपड़ों से एक अजीब सी बदबू आ रही थी। मै उससे थोड़ा दूर हो गया.. वो अपना भोजन खाने मस्त था। दिन भर की भूख उस आदमी को कुछ सोचने ही नहीं दे रही थी। वो अपनी धुन में मस्त था। उसे किसी की कोई फिक्र नहीं थी। मैंने पैसे निकाले और अपनी घर की ओर जाने से पहले पास की दुकान से पोहा खरीदने के लिये रुका। दुकान की ओर जाते वक्त मेरी नजर पड़ी एक बूढे आदमी पर जो एक ज्वैलर्स की दुकान पर सोने की तैयारी कर रहा था। दिमाग में एक सवाल आया कि एक तो ये ज्वैलर्स की दुकान और ऊपर से ये गार्ड सोने की तैयारी कर रहा है, काहे का गार्ड है ये जो सोने जा रहा है। मैने सोचा कि आखिर इस उम्र में ये गार्ड भला कर भी क्या सकता है.. किसकी रक्षा कर सकेगा ये अच्छा है कि सो जाये। शायद वो रात भर जाग नहीं सकता। या कहूं कि जो ठीक से बैठ भी नहीं सकता वो कैसे किसी की सुरक्षा कैसे कर सकता हैं। उस वक्त उन दोनों जगहों के वृ्द्धों को देखकर मन दुखी हो गया। पता नहीं क्यों इस उम्र में उन बूढों को आराम करने के बजाय काम करना पड़ रहा है और वो भी सुरक्षा करने का ज़िम्मा उठाने का । और ज्वैलर्स की दुकान कुछ उन दुकानों में से होती हैं जो लुटेरों या चोरों का पसंदीदा होती है और बूढ़े हाथों में सुरक्षा की कमान होने से ये आसान शिकार बन जाती है। और इसी चक्कर में वृद्ध गार्ड्स को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। इनके हाथ में क्या है सिर्फ एक डंडा और शरीर में क्या है दिनभर की भूख और झुर्रियों से युक्त शरीर की थकान, बस। लेकिन आजकल सिर्फ यही नहीं लगभग हर जगह पर सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इन कमजोर कंधों में होती है। इन सिक्योरिटी गार्डस में से ज्यादातर वो होते है जो रिटायर्ड हो चुके होते है। ये लोग स्वाभिमानी है इसलिये हर वो काम करने को तैयार होते हैं जिनसे इनकी जीविका चल सके। लेकिन मन आज बहुत दुखी है.,,और सलाह है सरकार से कि इन वृद्ध लोगों के लिये कम से कम ऐसी व्यवस्था की जाये जहां पर इन्हे ऐसे काम मिले जिससे इन्हें अपनी जान से हाथ न धोना पड़े और साथ ही स्वाभिमान के साथ ये लोग अपने काम को अंजाम देने के बाद अपने कमाये पैसों से भोजन कर सकें और अपनी जीविका चला सकें। लेकिन पता नहीं इसका हल क्या है पर मेरी नज़र में तो इसका यही हल है। और कई वृद्धाश्रम इस काम को कर भी रहे हैं लेकिन आप भी जानते होंगे कि ये वृद्धाश्रम सिर्फ उन लोगों के लिये है जो अपने घरवालों के होते हुए भी वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर है। स्वाभिमानी बुज़ुर्ग जो वृद्धाश्रम में रहना पसंद नहीं करते और वहां पर जीवन नहीं काट सकते, साथ ही वो भी जो गरीब है औऱ उनके पास वृद्धाश्रम को देने के लिये पैसे नहीं है उनके लिये हमारी सरकार को कुछ करना चाहिये। पहला उनके रहने की व्यवस्था करनी चाहिये, दूसरा उनके जीविकोपार्जन की व्यवस्था करनी चाहिये ताकि ये लोग किसी पर बोझ न बनें, तीसरा आर्थिक तौर पर मदद किया जाये ताकि इन लोगों को मदद मिलती रहे। ये एक सुझाव है और एक अपील भी... पता नहीं इस लेख का कितना असर होगा पर... ब्लाग जगत में बहुत से लोगों के पास इसका जवाब होगा और अगर कोई है जो इसके बाबत कुछ कर सकता है तो कुछ करियेगा ज़रुर और या तो आप ही बतायें इसका हल क्या है ????

कौन कहता है..भारत टूट नहीं सकता ??????

गुरुवार, अगस्त 20, 2009



भारत के बारे हम लोगों में इतनी गलतफहमियां है हमारे मन में कि हमें लगता है कि भारत का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अक्सर आपने, मैने औऱ दूसरे लोगों ने सुना या कहा ज़रुर होगा कि हमारे देश का कभी कुछ बिगड़ सका...हमारे नेताओं के मुंह पर हर वक्त रहता है कि भारत पर कितने ही आक्रमणकारियों ने हमले किया लेकिन भारत का अस्तित्व आज भी है। उसका कुछ नहीं बिगड़ा। बचपन में किताबों में भी यहीं पढ़ा कि हमारे देश पर यूनानियों ने हमला किया, फिर उसके बाद तुर्क आक्रमणकारी आये, औऱ उसके बाद अंग्रेज आये। एक बात सबमे समान थी कि सभी लुटेरे थे। सभी भारत को लूटने के इरादे से ही आये थे। लेकिन हमने किताबों में ये भी पढ़ा कि हमारे भारत का कभी कुछ नहीं हुआ। मै तब सोचता था कि सम्राट अशोक जब राज करते थे तो इसी भारतवर्ष की हदें अफ़गानिस्तान, तक फैली हुइ थी। पाकिस्तान हो या बांग्लादेश, तिब्बत, भूटान, सभी देश उस वक्त भारतवर्ष कहे जाते थे। लेकिन क्या ये आज हमारे साथ है। नहीं है। क्यों नहीं है क्योंकि तरह तरह के आक्रमणकारी हमसे हमारी ही ज़मीन छीनकर ले गये है। हमारे खजानों का लूटा। मंदिरों को लूटा, मंदिरों को तोड़कर वहां अपने अपने धर्मस्थल बनाये। यहां तक सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत को लूट लूट कर बिना परों वाली चिड़िया बनाकर छोड़ गये। और हम कहते है कि भारत का कभी कुछ नहीं हो सकता...कितने ही आक्रमणकारी आये और चले गये लेकिन कोई भी भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सका।।....
ये तो बात थी हमारे इतिहास की। लेकिन वर्तमान में भी हमारे नीति निर्माताओं ने भी किसी तरह की पहल नहीं की। इतिहास को तो ये कहकर हम अपना पीछा छुड़ा सकते हैं कि वो हमारा इतिहास था... लेकिन आज का क्या करेंगे। साठ साल पहले बांग्लादेश बना क्या कर लिया हमने....पाकिस्तान बना क्या कर लिया हमने.....चीन लगातार अपनी सीमायें बढ़ा रहा है यकीन ना हो अरुणांचल प्रदेश जाकर देख लीजिये। जहां लगातार उसकी सीमा बढ़ रही है। क्या कर रहा है भारत...सीमा इस कदर बढ़ा रहा है कि उसने अपनी अधिकार तक जमा लिया है उस पर... और उसे अपनी ज़मीन बताता है। कश्मीर में जो हो रहा है उस पर क्या कर लिया हमने। चलो पहले कुछ नहीं कर पाये अब क्या कर ले रहे हैं। लगातार उसने हमारे ज़मीन पर कब्जा कर रखा है। यहां तक की जिस सीमा को हमारे अंदर होना चाहिये वो हमारी नहीं है। हमारे प्यारे मानचित्र में हम जिस कश्मीर को देखते हैं...अगर किसी का बच्चा ये कहने लगे कि कश्मीर के उस हिस्से में जाना है तो शायद ही आप ले जा पायें। क्योंकि कि वो तो भारत में है ही नहीं। इसी कारण से भारत में अपनी सीमाओं में फेरबदल कर लिया है और उन सीमाओं से पहले ही अपने बार्डर बना लिये है। शायद इसलिये कि जितना है उसे बचा पायें पर पता नहीं बचा पायेगें या नहीं...क्योंकि घुसपैठ तो रोक नहीं पा रहे हैं ...। बांग्लादेश सीमा चलें तो वहां तो इस बात के जीते जागते उदाहरण हैं। बांग्लादेशी सीमा पर बसने वाले आधे से ज्यादा गांव और तीस हज़ार से ज्यादा बांग्लादेशी भारत की सीमा के अंदर रहते हैं। तो उसे भी हम भारत की ज़मीन न ही कहें तो अच्छा है क्यों कि उन ज़मीनों को आज तक खाली नहीं कराया जा सका है। हां बांग्लादेश से भारतीयों को जूते मारकर बाहर ज़रुर कर दिया गया है। वहां पर हिंदुओं का क्या हालत है ये आप तस्लीमा नसरीन की किताबों में पढ़ सकते है। और मै इसलिये नहीं कह रहा हूं कि वो हिंदुओं का समर्थन करती है बल्कि इसलिये क्योंकि हमारे भारत का ही मुस्लिम समाज उनसे नफरत करता है। सिर्फ इसलिये क्योंकि बांग्लादेश की उस हकीकत को उजागर करती है जिनका किसी को पता नही चलता । राजनैतिक स्तर पर सब ठीक दिखने वाली स्थिति अक्सर झूठी साबित होती है। तो उस सीमा पर भी भारतीयों का हक नहीं बचा है। अब बाकी सीमाओं का क्या बात करुं वहां तो पहले से ही आपस में ही नक्सलियों ने आतंक मचा रखा है। वहां की बात करना तो ठीक है ही नहीं । बात करते दक्षिण पूर्व की तो ये भारत का वो हाथ है जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता और वो दिन दूर नहीं है जब वो हाथ जो कि इस वक्त मानचित्र में काफी कमज़ोर दिखाई देता...औऱ कभी भी टूट सकता है। और ये हकीकत है कि अलगाववाद सबसे ज्यादा उन क्षेत्रों में ही फैला है। क्योंकि उस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है। तो कौन कहता है कि हमारे भारत का कभी कुछ नहीं बिगड़ सकता है क्योंकि कई आक्रमणकारी आये औऱ चले गये लेकिन आज भारत का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका...आपको पता नहीं हंसी आई या नहीं पर मुझे बहुत आती है। कमाल है भारतवर्ष और कमाल के लोग है यहां के....

मां चिंता मत करना मै ठीक हूं: आतंकी अजमल कसाब

शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

प्रिय मां
तुम चिंता मत करना मै ठीक हूं। यहां भारत में मेरे भाई लोग मेरी अच्छे से ख्याल रख रहे हैं। मेरी अच्छी ख़ातिरदारी हो रही है। कोई मुझे कुछ नहीं कहता है सब मुझसे अच्छा व्यवहार करते है। मां एक दिन तो मेरे ख़ातिरदारी करवाने की हद तोड़ दी मैने....मैने जेल के अधिकारियों से जेल का खाना नहीं मटन बिरयानी की मांगी पर जज नहीं माना नहीं तो मुझे वो मिल जाती...लेकिन चलो कोई बात नहीं बाकी सब चीज़े तो ठीक है..मुझे किताब मिलती है पढ़ने के लिये वो मेरा टाइम पास नहीं होता जेल में... मेरे रहने की व्यवस्था तो ठीक है लेकिन बाहर नहीं जाने देते यही ग़लत है यहां भारत में...लेकिन यहां मेरे कई दोस्त हो गये हैं जो अलग अलग जुर्म में यहां सज़ा काट रहे हैं..कोई अपनी बीवी के कत्ल में सज़ा काट रहा है तो कोई बलात्कार में जुर्म में लेकिन मज़ा है.. सब मेरे ही भाई है। हर कोई यहां मुझे बडे़ भाई की तरह मानता है क्योंकि मैने बड़ा काम किया था न इसलिये...मां तेरे बेटे ने तेरा और अपने देश का नाम रोशन किया है। लेकिन एक बात गलत है मेरे देश का नाम रोशन नहीं हो रहा है क्योंकि यहां पर तो हर कोई मान रहा है कि मै पाकिस्तानी हूं लेकिन मेरा अपना देश ही ये नहीं मान रहा है कि मै वहां का हूं ये बात रह रह कर मुझे खलती है। वहां का क्या हाल है मां मुझे पता चला है कि आईएसआई ने तुम्हें कहीं छुपा कर रखा है। चलो कोई बात नहीं मां ये तुम्हारी और मेरी सुरक्षा के लिये है मां थोड़ा कोऑपरेट करना उनसे...क्योंकि वो नहीं चाहते कि पाकिस्तान फंस जाये औऱ तुम्हे या मुझे कोई परेशानी न हो। मां तुम तो मुझे कुछ ज्यादा न खिला पाई लेकिन यहां भारत में मेरा वेट पांच किलो बढ़ गया है। मां तुझे तो पता था कि मुझे हार्निया है। लेकिन परेशान मत होना पाकिस्तान में तो मेरा इलाज नहीं हो पाता लेकिन यहां भारत में मेरा ठीक से इलाज चल रहा है और मेरी हालत में सुधार है। मां यहां साफ सुथरा खाना मिलता है..मेरे लिये अलग से खाना बनाने वाला आता है और वो यहीं रहता है..यहां मुझे खतरा है कि कहीं कोई मुझे ज़हर न दे दे खाने में...लेकिन तुम घबराओ मत यहां मैं हाईसिक्योरिटी में हूं मुझे कुछ नहीं होगा। मेरे ऊपर केस चल रहा है लेकिन परेशान मत होना मैं कभी न कभी छूट जाउंगा। यहां का कानून बहुत मददगार है हम जैसों को माफ कर देता है..तुम याद करो... कई अपने साथी पकड़े जाते है तो वो यहीं की जेलों में रहते हैं। बहुत से अपने भाई मिले हैं। मां विश्वास करना कसम से खा खा कर इतने मोटे हो रहे हैं कि बस पूछो मत। मां यहां पर आतंकी घटना वाले ही नहीं... नकली नोट में पकड़े गये..हथियार के साथ पकड़े गये..और आतंकी घटनाओं को अंजाम देने आये बहुत से अपने साथी यहां पर मिले वो सभी मुझसे मिल कर बहुत खुश हुए उनकी आंखों से आंसू आ गये। वो शाबासी दे रहे थे कि तुमने वो कर दिखाया जो हर कोई नहीं कर सकता है और जिसमें हम फेल हो गये थे । उसको तुमने कर दिखाया। मां यहां से मुझे सुनवाई के लिये कोर्ट में ले जाते हैं जज जी मिलने के लिये..बड़े मज़ाकिया है वो मां. अच्छे आदमी है। मै तो उनके साथ बहुत खेल करता हूं लेकिन वो उंची कुर्सी पर बैठते है न मां इसलिये कुछ कहते नहीं है। कभी कभी गुस्सा हो जाते हैं लेकिन चलो ठीक है इसी बहाने कुछ बोलते तो हैं वरना वहां तो सिर्फ वो दुष्ट वकील ही बोलता है.... कहता है कि उसके पास सबूत है कि मै आतंकवादी हूं। मां यहां पर आतंकवादी को गलत नजरों से देखा जाता है अपने देश की तरह नहीं कि हर मोहल्ले में तीन आतंकवादी है। लेकिन तुम चिंता मत करो मां यहां एक नेक बंदा भी वकील है जो कहता है कि वो मुझे बचा लेगा। उसने ही मुझे किताब दिलवाई थी। एक दिन तो मैने राखी बंधवाने की बात कही तो लेकिन कोई बांधने नहीं आया वो बताया है न कि यहां पर आतंकवादी को सही नहीं समझा जाता है। खैर तुम परेशान मत होना मुझे कुछ नहीं होगा मै कुछ सालों बाद छूट जाउंगा। मैंने कहा था न यहां का कानून बहुत मददगार है.. सख्त नहीं है अपने देश की तरह कि सरबजीत को बिना बात के भारतीय होने की वजह से पकड़ रखा है। ठीक है मां अब मैं सोने जा रहा हूं। तुम परेशान मत होना मै ठीक हूं। मै तुम्हे चिट्ठी लिखता रहूंगा। तुम अपना ख्याल रखना मै अपना ख्याल रखुंगा वैसे यहां मेरा ख्याल रखने के लिये बहुत से लोग हैं। खुदा हाफ़िज
तुम्हारा प्यार आतंकी बेटा
आमिर अजमल कसाब

धर्म संबंधी सवालों के जवाब मिलेंगे ??????

सोमवार, अगस्त 10, 2009

सुबह सुबह सोकर उठा फिर सोचा कि चलो रात अच्छी कटी और एक पूरे चौबीस घंटे शांति के साथ कटे। सुबह उठकर मैने सोचा कि क्यों न अपने ब्लाग को खोलें देखें कि क्या हो रहा है ब्लाग जगत में। अपने ब्लाग पर एक लेख पर एक टिप्पणी पढ़कर दिमाग एकदम से चकरायमान हो गया। मै पहले आपके एक बात बता दूं कि आजकल ब्लाग पर ऐसे लोगों को कमेंट आते है जो ब्लाग पढ़कर अपने टिप्पणी नहीं करते है। किसी और पोस्ट को पढ़कर किसी और मामले पर टिप्पणी चिपका देतें है। हां तो मै आपको बता रहा थी मेरे एक ब्लाग पर एक पोस्ट पर टिप्पणी देखकर मै सन्न रह गया । किसी ने लिखा था कि....

भाई शशाक जी मौहल्ला पर आपका एक पुराना लेख पढऩे को मिला। इसमें आपने धर्म बदलने संबंधी मुद्दे पर कई बातें लिखी। मेरे ब्लॉग पर लगभग सौ लोगों के बारे में है जो धर्म बदलकर मुस्लिम हो गए। क्या आप उनको पढऩा नहीं चाहेंगे कि आखिर यह मुस्लिम क्यों हो गए? आपको अपने कई सवालों के जवाब मिलेंगे।

तो ये थी टिप्पणी...धर्म पर चर्चा हो तो मोहल्ला सबसे फेवरेट जगह बनती जा रही है। चाहे धर्म का प्रचार हो या बबाली लेख। लेकिन एक बात जो मेरे समझ में नहीं आई कि क्यों ये भाई साहब मुझे समझा रहे है कि धर्म बदल लो। वो ये भी कह रहे हैं सौ से ज्यादा लोग घर्म बदलकर मुस्लिम बन गये..... वो अब ये चाहते है कि मै भी साइट पर जाकर मुस्लिम बनने के फायदे खोजूं और मुसलमान बन जाउं।कमाल है इन्हे लगता है कि मै ऐसा करुंगा???? मै आपने ब्लागर भाईयों से पूछना चाहुंगा कि मोहल्ला में ये क्या हो रहा है। आखिर ये जनाब किन सवालों के जवाब देना चाह रहे है। क्या कहना चाह रहे थे ये मेरे मित्र....कहीं इन्हे ये तो नहीं लग रहा कि मुझे अपनी बातों के जाल में फंसा कर मेरा धर्म परिवर्तन करवा लेंगे। तो ऐसे लोगों कों मेरी सलाह कि जैसा कि मेरा पेशा है उसी को देखकर समझ लेना चाहिये एक पत्रकार को समझाना दुनिया का सबसे बड़ा काम होता है। क्योकि उसके पास ढेरों तर्क होते है। जिससे समाने वाला फंस जाता है। क्योंकि यही तो उसका काम है। रही सौ लोगों वाली बात तो मै दो सौ से ज्यादा लोगों को जानता हूं जो मेरी तरह की सोच रखते हैं। हमारी कौम ही ऐसी है पत्रकार बिरादरी ऐसी ही होती है यार....एक बात और मेरे दिमाग में खटकी है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने ब्लाग या डॉट काम का प्रचार करने के लिये ऐसा किया गया हो। अभी तक मैने उस साइट या ब्लाग को पढ़ा तो नहीं है लेकिन ये एक शुरुआत है जहां से मै उस साइट पर जाकर इस बेकार की बात और उन तथाकथित सौ लोगों से मिलकर देखुं कि वो बेचारे मुस्लिम बनकर क्यों जी रहे हैं। आखिर ऐसा क्या हो गया उनके जीवन में कि उन्हे लगा कि धर्म परिवर्तन ही उनकी परेशानियों का हल है। या धर्म परिवर्तन करवाकर उनकी परेशानियां ( हो सकता है कि धन संबंधी परेशानिया, जैसा कि अक्सर होता है) सच में हल तो नहीं हो गयी। भाई साहब ने तो मुझे ऑफऱ किया है कि उनके ब्लाग पर जाकर देखुं कि कौन है वो सौ लोग.....मै इस मुद्दे पर आगे लिखता रहुंगा हर बार जिन लोगों की कहानी मै पढ़ता रहुंगा। पर मेरी एक दिली ख्वाहिश है कि मौहल्ला पर कृपया एक बोर्ड ज़रुर लगायें कि यहां धर्म का प्रचार करना मना है.....

बच्चे ने पूछा जितनी बहन होती है उतनी राखी बांधते है क्या?

गुरुवार, अगस्त 06, 2009

मै रहने वाला उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर शहर का हूं जो कि एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है ...पता नहीं है या नहीं... पर ज्यादातर लोग यही कहते हैं। क्योंकि मै नोएडा़ में रहता हूं तो पता नहीं चलता क्या हो रहा है वहां । कम ही आता हूं यहां पर, इत्तेफाक से किन्ही कारणों से मै इस रक्षाबंधन के मौके पर घर पर ही मौजूद था। इसी बीच मुझे याद आया कि क्यों ने इसी बहाने कुछ काम कर लिया जाये। तो सोचा कि अपनी बाइक का लॉक जो कि कई दिनों से खराब पड़ा था उसे बनवा लिया जाये। यहीं सोचकर अपने घर से मै मुज़फ्फरनगर की मार्केट की तरफ निकला मौसम काफी अच्छा था औऱ सड़क के दोनों तरफ ऐसा लग रहा था कि बरसात के पानी से सारे पेड़ भीगे हुए हों, शायद यहां बारिश हुई है, मै अपनी बाइक से शहर की तरफ चला जा रहा था। रास्ते में मिलने वाली नहरें पूरी तरह भरी पड़ी थी जिसका फायदा वहां के गांव वाले उठा रहे थे, बहुत से छोटे बच्चे नहरों में तैराकी सीख रहे थे या फिर अठखेलिया करके नहर में बहने वाले पानी के मज़े ले रहे थे। गर्मी को दूर करने के लिये बरसात ने बहुत दिनों बाद अपने रंग दिखाये थे जिसके मज़े ये बच्चे लूट रहे थे। मै अपनी मस्ती में मस्त बाइक पर हवाओं के थपेड़ों का मज़ा लेते हुए आगे बढ़ता जा रहा था। शहर पहुंचा, वहा पर कोई ओवर ब्रिज बन रहा था तो रास्तों की हालत काफी खराब थी किसी तरह मैं रेलवे ट्रैक के पास तक पहुंचा जिसके पार मुझे जाना था लेकिन फिर समस्या खड़ी हो गयी, लेकिन मैने हार नहीं मानी मै फिर भी आगे बढ़ा औऱ बड़ी मेहनत के बाद रेलवे ट्रैक पार किया। पार करने के बाद सबसे पहले मै गया सर्विस स्टेशन वहां पता लगा कि ये समस्या उनके बस की बात नहीं हैं। उन्होने मुझे बताया कि मै मीनाक्षी पिक्चर हाल के पास जाकर वहां पर जो सर्विस की दुकाने हैं वहा ठीक करवा लूं। मै किसी तरह वहां पहुचा तो एक दुकान पर बाइक खड़ी की, बाइक खड़ी करते ही एक छोटा बच्चा उम्र यही कोई दस साल ही रही होगी, सांवला रंग, एक शर्ट औऱ एक फुल पैंट पहन रखी थी, शर्ट औऱ पैंट दोनो पर ग्रीस के दाग, ऐसे लग रहा था कि कई दिनों से ये शर्ट धुली नहीं है, औऱ अक्सर आपने देखा होगा कि बाइक सर्विस वाले या कार सर्विस वालों के कपड़ो पर अगर ग्रीस के दाग न हो तो समझो कि वो अच्छा मैकेनिक नहीं होगा। वो लड़का काफी देर तक मेरी बाइक पर अपनी बुद्धि लगाता रहा फिर जाकर अपने दुकान मालिक को सारी कहानी बता दी उसके मालिक ने उससे पता नहीं क्या कहा, वो मेरे पास आकर बोला कि भाईजान अभी सही करता हूं आपकी मोटरसाइकल,....मैने कहा ठीक है...वो मेरे पास खड़ा हो गया....तभी मैने पूछा कि कौन सही करेगा तुम या कोई और....उसने कहां शहबा़ज़ भाई... मैने कहा ठीक है।.....वो बहुत देर तक मेरे हाथों पर बंधी राखियां देखता रहा। मैने कहा कि क्या हुआ,..उसने पूछा भाईजान आज राखी है क्या....मैने कहा हां आज रक्षाबंधन है...उसके भाईजान कहने से पहले ही मुझे अंदाज़ा हो गया था कि हो न हो ये किसी मुस्लिम समाज का लड़का है। मैने उससे पूछा क्यों क्या हुआ। उसने कहा कुछ नहीं आपने दो राखी बांधी है आपकी दो बहनें हैं क्या? मैने कहां बहनें तो बहुत है लेकिन जिसकी राखी आयी थी उसकी बांध ली....बाकी जब आयेगी तब बाधुंगा। उसने कहा कि जितनी बहनें होती है उतनी राखी बांधते है क्या? मैने कहा हां । उसने फिर पूछा कि अगर किसी के बहने न हो वो क्या करता है आज के दिन... मैने कहा कि किसी पड़ोस की किसी लड़की को बहन मानकर उससे राखी बंधवा सकता है। उसने कहा सच में ऐसा करते हैं। क्यों बांधते है आप लोग राखी। मैने कहा कि ये त्योहार है औऱ इस दिन सभी भाई अपनी बहन की रक्षा करने की कसम खाते हैं। पहले तो उसकी समझ में मेरी बात नहीं आई मैने कहा कि उसे उम्र भर मदद करने का वादा करते हैं चाहे जो हो जाये। तब उसकी समझ में मेरी बात आई...पर मेरी तो बहन नहीं है तो क्या मै भी किसी से भी राखी बंधवा सकता हूं... मैने कहा क्यों नहीं....फिर उसने कहा कि नहीं ..कहीं मेरे अब्बू मुझे मारेंगे तो नहीं। मैने कहा कि पूछ कर बंधवाना....इतना सुनकर उसे थोड़ी आशा बंधी। और तब तक उसका असली मैकेनिक आ गया औऱ उसे कुछ और काम पकड़ा दिया और मै सोचता रहा कि अब पता नहीं उसके अब्बू क्या कहेंगें। चिंता उसे होगी या नहीं, उस बच्चे को ये याद रहेगा या नहीं.... पर मुझे लगता रहा कि उसके अब्बू क्या कहेंगे। क्योंकि उस दस साल के लड़के के दिमाग में कुछ और नहीं था...वो तो बस किसी बहन की रक्षा के लिये इसे पहना जाता था। लेकिन अब उसके अब्बू उसे क्या शिक्षा देते हैं ये उन पर निर्भर करता है, चाहे वो उसे धर्म का पाठ पढाकर उसकी सोच को बदल सकते हैं...और उसे धर्म का अंधा पैरोकार बना सकते हैं या फिर उसे मानवता का पाठ पढ़ाकर उसे एक अच्छी ज़िदगी दे सकते हैं। बस मै यही सोचता रहा पता नहीं क्या हुआ होगा उसके अब्बू उससे क्या कहेंगे??

भाई साहब मै अब बस में सफ़र नहीं करता??

मै एक दिन बाइक से अपने ऑफिस की ओर जा रहा था। कानों में हेडफोन लगाये, आखों पर काला चश्मा, सफेद रंग की टी शर्ट, और गले से बैग लटकाये अपनी मस्ती में मस्त होकर, नोएडा के 12-22 चौराहे पर रुका रेड लाइट की वजह से। देखा कि एक आदमी मेरे पास आया कुछ बोलने लगा। मुझे तो कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, अरे मैने तो कानों में हेड फोन जो डाल रखा था, मैने उससे इशारे से रुकने को कहा फिर कानों से हेडफोन निकाला औऱ फिर पूछा कि क्या हो गया। उसने कहा कि भाईसाहब मुझे लेबर चौक तक जाना है क्या मुझे छोड़ दोगे। मैने ऊपर से नीचे तक उसे ध्यान से देखा देखने में तो ठीक लग रहा था, देख कर लग रहा थी कि किसी ऑफिस में काम करता है। मैने उससे कहा कि चलो छोड़ दूंगा, बैठ जाओ। वो फिर तुरंत बैठ गया। ग्रीन लाइट होते ही मैने बाइक स्टार्ट की औऱ आगे बढ़ गया, थोड़ा आगे जाकर मैने कौतूहलवश पूछ लिया, क्या हुआ बस नहीं आ रही है क्या ?.. उसने कहा आ रही है लेकिन मै जाना नहीं चाहता था । मैने पूछा क्यों क्या हुआ पैसे खत्म हो गये हैं क्या...तो बोला अरे नहीं भाई साहब ग़ाज़ियाबाद जाने वाली बसें जाने लायक थोड़े ही होती हैं, मैने पूछा क्यों, उसने कहा कि एक बस ड्राइवर के साथ बदमाश टाइप के चार क्लीनर होते हैं पैसे तो ज्यादा लेते ही है साथ ही अगर आपसे बद्तमीजी करने से भी पीछे नही हटते हैं। और अगर कहीं आपकी भाषा में बिहारी टच देख लें तो समझो कि आपको बेवकूफ बनाने में देर नहीं करेंगे या दादागीरी दिखायेगें। मैने पूछा क्यों आपके साथ कुछ हो गया है क्या। उसने कहा हां अभी कल ही मैं जा रहा था तो मुझसे लेबर चौक के ही दस रुपये मांगने लगा, मैने कहा कि थोड़ी ही दूर है तो इतने क्यों उसने कहा कि कहां से आया है बे, मैने कहा कि 12-22 से, तो वो बोला अपना गांव बता बे बिहारी, मैने कहा कि आपको क्या करना तो उसने कहा कि जहां से आया है वहां इतनी दूर के उतने लगते होंगे जितने तू दे रहा है। यहां नहीं लगते । मैने कहा इतने नहीं दूंगा तो उसने कहा कि यहीं उतर जा फिर, काफी मनाने पर भी नहीं माना तो उसने मुझे बिना बस रोके धीमे करवाके नीचे धक्का दे दिया मुझे कुछ चोटें आई लेकिन चलो बच तो गया उनसे। मैने तो सुना है कि यहां इतनी सी बात में गोली तक मार देते हैं। मै हंसा औऱ बोला हो सकता है भाई मैने तो नहीं सुना आज तक ऐसा। उसने कहा कि हां भाई साहब होता है। तो फिर मैने बोला कि यार आज तक तो मैने सिर्फ ब्लूलाइन बसों के लिये ही ऐसा सोचता था कि उसमें गुंडागर्दी होती है, इधर की बसों के बारे में तो नहीं सुना आज तक। अब क्या बताऊं सर मैने तो झेला है इसलिये नहीं जाता बसों से। तो क्या हुआ टैम्पो से चले जाया करो, अरे नहीं भाई साहब उसमें तो और भी बुरा हाल है। मैने कहा क्यों उसमें क्या हो गया अब क्या उसमें भी आपके साथ ऐसा ही हो गया क्या ? अरे नहीं उसमें से तो मौत से वापस आया हूं.... कैसे ? क्या बताऊं सर उसका ड्राइवर तीन पहियों को इतनी तेज़ी से चला रहा था कि लग रहा था कि अब गिरा की तब गिरा, मै किसी तरह राम राम जपकर उतरा.... आगे देखा कि मेरे सामने फिर जैसे ही वो टैम्पो आगे बढ़ा कि मिट्टी में फिसलकर पलट गया ज्यादातर लोगों को चोटे आईं। अब आप ही बताईये कि कैसे जाये आदमी अपने काम पर। इतने में लेबर चौक आ गया वो आदमी उतर गया। फिर मुझे याद आया कि यार उसका नाम तो पूछ लिया होता। लेकिन फिर सोचा कि चलो क्या फर्क पड़ता है हर रोज कोई न कोई मिल जाया करता है कहां तक सबके नाम रटता फिरुं, लेकिन समस्या विकराल है, अगर मेरे पास बाइक न होती तो मेरी तो हर रोज किसी बस या ऑटो चालक से लड़ाई होती। एक आम आदमी जिसको सिर्फ इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर भरोसा है वो कैसे इनमें सफर करते होगें जिनके पास अपना वाहन है वो लोग इसका सिर्फ अंदाज़ा लगा सकते हैं। हालात ये है लेकिन फिर अक्सर टीवी पर औऱ कई सरकारी प्रचार कर लोग सलाह देते है कि प्रदूषण कम करना हो या ईंधन की बचत करनी हो तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें या शेयर करके आये जायें। डर जाता हूं कि कहीं ऐसा कोई कानून आ जायेगा तो फिर इन पब्लिक ट्रांसपोर्ट वालों की तो दादागीरी कैसे झेल पाउंगा। क्योंकि उस वक्त कोई और चारा नहीं रहेगा। और ये मुद्दा अभी किसी की नज़रों में भी नहीं है। लेकिन इस समस्या से हर कोई परेशान है, कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता तो कोई इस बात को छोड़कर अपने राग में लग जाता है।

मायावती का पूरक बजट, मै हूं हिमायती!!!!!

मंगलवार, अगस्त 04, 2009

उत्तर प्रदेश की या तो किस्मत खराब है या तो यहां के नेता ज़रुरत से ज्यादा ही स्याणे हो गये हैं, या ये भी हो सकता है कि दोनों ही हो। जिस तरह का पूरक बजट आया है उसे देखकर लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के 47 से ज्यादा ज़िले सूखाग्रस्त हुये ही न हो। प्रदेश में 47 ज़िले सूखा ग्रस्त घोषित हो चुके हैं लेकिन इस बजट को देखकर लोगों को ये लग रहा होगा प्रदेश सूखाग्रस्त नहीं मूर्तित्रस्त है। जिस कारण यहां हर रोज़ कभी हाथी तो कभी सुश्री मायावती अपनी औऱ साथ में उनके गुरु काँशीराम की मूर्तियां लगवाई जा रही हैं। आपको बता दूं कि मूर्ति में होने वाला खर्च है लगभग 512 करोड़ से ज्यादा लेकिन आपको ये जानकर औऱ ज्यादा शर्म आयेगी कि सूखाग्रस्त ज़िलों के लिये सिर्फ 250 करोड़ रुपये खर्च का बजट लाया गया है। शर्म इसलिये कि यार हमने ही तो चुना है मायावती को। पता नहीं खुद ने या किसी और ने लेकिन वोट तो हमें ही देने होते हैं। बड़ा संकट खड़ा हो जाता है जब वोटिंग का समय आता है। समझ में ही नहीं आता है कि किसे वोट दें... उस वक्त तो सभी एकदम देवता स्वरुप नज़र आते है लेकिन असली रंग दिखता है कुछ समय सत्ता में बीत जाने पर, जब पता चलता है कि घोटाले में हर किसी का नाम आया। तो फिर यूपी के लोगों तैयार हो जाओ, इस लेख में दो बातों पर ज़ोर दूंगा कि एक तो मायावती के मज़ेदार औऱ लोगों को बेवकूफ बनाने वाले पूरक बजट पर.....दूसरा क्या इस वक्त उनके अलावा कोई विकल्प है आपके पास हाहाहा। जी पहले मुद्दा मायावती के पूरक बजट पर। आपको पता है उत्तर प्रदेश के लोगों को विकास नहीं पार्क चाहिये, आप कहेंगे कि क्या बात कर रहे हो यार पार्क ज्यादा ज़रुरी है या बिजली... तो मै कहूंगा कि पार्क अरे बच्चों के लिये पार्क से ज्यादा सही जगह कुछ हो सकती है ? फिर आप कहेंगे कि पार्क से ज्यादा जरुरी है शिक्षा व्यवस्था पर खर्च ताकि बच्चों के लिये पढा़ई और सस्ती हो जाये, ज्यादा से ज्यादा बच्चे पढ़ सकेंगें। लेकिन फिर भी सिर्फ मै ही नहीं इस बार तो सरकार भी कह रही है कि लोगों के लिये पार्क औऱ मूर्तियां ज्यादा ज़रुरी है। विधानसभा में इस बार 75 अरब 60 करोड़ का पूरक बजट पेश किया गया। इसमें राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि से खर्च के लिये मात्र 250 करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे है। एक और खास बात कि राजधानी के लोगों के लिये एक खुशी की खबर है कि राजधानी के विकास में सौ करोड़ रुपये लगाये जायेंगे पता नहीं इतने खर्च होंगे कि नहीं पर पास तो हुए हैं। अब ये मत कहियेगा कि यार मेरे यहां कि नाली पता नहीं कब ठीक होगी, घर के बाहर की सड़क कब बनेगी या पता नहीं कूड़ा उठाने वाले कब आयेंगे बदबू से घर भर गया है मच्छर बहुत हो रहे है छिड़काव कब होगा यार। फिकर नॉट बजट पास हो गया सब हो जायेगा। कोई ये तो नहीं कह रहा है न पिछली बार भी विकास के नाम पर बहुत पैसे आये थे तब तो कुछ नहीं हुआ। बड़ी दिक्कत हो जाती है जब ऐसे सवाल आते हैं तो। एक और खुश खबरी पूरे प्रदेश के लोगों के लिये, अरे बता रहा हूं यार परेशान न हो। पता है कि इस बार मूर्तियों और पार्कों के लिये साढ़े पांच अरब रुपये से अधिक की व्यवस्था की गई है। कहीं से आवाज आई कि क्यों यार बिजली बहुत दिनों से नहीं आ है। क्या हुआ, कुछ नहीं यार जो लकड़ी की खम्भा लगा था आंधी में टूट गया है इस वजह से बिजली नही आ रही है। तो क्या शिकायत नहीं की क्या। की थी यार कहा तो था कि आयेगा ठीक करने.. लेकिन आया नहीं। मै बोला कि ठीक ही तो है यार सरकार पार्क काहे के लिये बनवा रही है बिजली नही आ रही है बिजली नहीं आ रही है.. जब देखो तब रोना रोते हो यार जाओ पार्कों में सो जाओ चबड़ चबड़ न करो। कोई बोला कि यार बरसात नहीं हुई मेरे खेत तो धूप में जल गये... सारी फसल बर्बाद हो गई, अब क्या करें पता नहीं सरकार कुछ करेगी या नही, मै बोला अरे कर तो रही है 250 करोड़ रुपये पास तो कर दिये है जाओ मदद मिल जायेगी। पर कैसे होगा पूरे इतने ज़िले है उनमें से 47 ज़िले सूखाग्रस्त हैं.. ऐसे में कितनों को मिलेगी मदद। मै बोला देखो भइया कम कम मत करो पहले जाओ पहले पाओ...चले जाना और हां कुछ पैसे वहां के अधिकारी को खिला देने हो जायेगा। वो बोला कि अबे लिखाड़ तूझे नहीं लगता कि जब इतने कम पैसों में सबका तो नहीं हो पायेगा, मूर्ति पर ज्यादा खर्च क्यों करें... क्यों न किसानों पर खर्च करें। मै बोला चुप कर सरकार तेरी है या मायावती की। खर्च के लिये बहाने कौन लायेगा तू कि सुश्री मायावती, वो बोला मायावती तो मै बोला तो फिर चल अपने से मतलब रख। बड़ा आया सुझाव लेकर। मायावती के पास कम है सुझाव वाले जो तू भी नया सुझाव लेकर पहुंचेगा। उनकी सरकार उनका पैसा जहां चाहे वहां खर्च करें तुझे क्या। कोई बोला कि विकास के नाम पर अक्सर लखनऊ को ही क्यों याद किया जाता है। प्रदेश मै और भी तो कई गांव व शहर हैं। मै बोला अबे वो राजधानी है बोले तो पहचान अपने प्रदेश की। और शहरों को विकास की क्या ज़रुरत है वो तो शहर है, और गांवों को गांव ही रहने दो नहीं तो अपने बच्चों को गांव कैसे दिखाओगे। मिट्टी से कैसे जोड़ोगे। हमने सुना है कि मायावती जी एक नया हेलीकॉप्टर खरीद रही हैं। तुम बे हमेशा मायावती के पीछे ही पड़े रहते हो। क्या चक्कर है ? अब क्या वो सड़क मार्ग से जायें कहीं... पुराना वाला खराब हो रहा है, तो नया तो चाहिये ही न। कितने का आयेगा हेलीकॉप्टर, यही आयेगा कुछ नब्बे लाख के आसपास का, क्यों तुम्हें कैसे पता कि उतने का आयेगा। अरे भाई पिछली बार मैने ही तो मंगवाया था। अरे हां लिखाड़ भईया हमने भी देखा था एक रात आपके पास बहुत पैसा आ गया था तो अगले दिने आपके घर के नीचे होंडा सिटी आ गई थी। ओए कौन बोला कौन बोला वो हमारी नहीं थी गिफ्ट में मिली थी। हेलीकॉप्टर बनाने वालों ने दी थी। लिखाड़ भईया हमने सुना है कि अब तो न्यायाधीशों के लिये भी होंडा सिटी कार ही खरीदी जा रही है, पिछली कहां गई, पुरानी हो गयी है तो नयी तो चाहिये ही। और इतने मामले चल रहे हैं कि न्यायाधीशों से जानपहचान तो बना के रखनी पड़ेगी ही। अब होंडा देकर अपनी संबंध मजबूत किये जा रहे है। तुम लोग भी न बस पीछे ही पड़ जाते हो। आपसी रिश्ते मजबूत करने से ही आगे काम बनता है। इतना कहकर सभी लोग चले गये अपने अपने घर ....और भी बहुत कुछ है लेकिन यहां पर यही खत्म कर रहा हूं क्यों कि लोगों को इसे जानकर ही बोरियत महसूस होने लगी है क्यों कि उनके लिये सिर्फ बिजली पानी, सड़क के अलावा कुछ सूझता ही नहीं है। बहुत सोच लिया तो चिकित्सा सुविधाओं के बारे ये अलग बात है कि इसमें कुछ नही हैं इस बार। कुछ लोग कहेंगे कि शिक्षा भी तो एक मुद्दा है, तो भाई साहब शिक्षा कब से मु्द्दा हो गया, हममें से कितनो के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। हम हर वो सच जानते हैं जो हम जानना चाहते हैं लेकिन उस वक्त हमें उस बात के जवाब का ख्याल ही नहीं आता क्योंकि सवालों में इतने उलझा जाते है कि जवाब ढूढे नहीं मिलता। ठीक इसी तरह हम जानते है कि सरकारी स्कूलों का क्या स्तर है तो कोई नहीं चाहता कि उसमें अपने बच्चों को पढ़ाये। और जो लोग पढ़ाते है वो उतने में ही खुश हैं। इन सभी चीज़ो के लिए अगर कोई दोषी है तो वो हम हैं क्यों हम है इसका जवाब भी हमारे अंदर है बस उसको ढूढना ज़रुरी है। रही बात इसके विकल्प की तो जब दिमाग में कुछ विकल्प आयेगा तो मै आपको बताउंगा नहीं तो आपके दिमाग में आये तो मुझे ज़रुर बताईगा।

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