अब से आने वाली फिल्म के बारे में एक समीक्षक के तौर पर उसकी समीक्षा करके ये जानने की कोशिश करुंगा कि बॉलीवुड फिल्म और हॉलीवुड फिल्म में क्या खास अंतर होता है। कोशिश यही रहेगी कि ताज़ातरीन फिल्मों को देखने जाना चाहिये या नहीं।
फिल्म है ----थ्री इडियट्स
हर बार की तरह इस बार भी विधु विनोद चोपड़ा की एक और बेहतरीन डायरेक्टेड फिल्म है। विधु की एक खास बात है कि उनकी फिल्म में हर कैरेक्टर के पास करने को बहुत कुछ होता है। और वो जानते है कि कि किस कलाकार से कैसे और कितना काम लेना है। उनकी फिल्म में हर कलाकार के पास अपनी कला का नमूना पेश करने का पूरा मौका होता है।
फिल्म में सिनेमोटोग्राफी की बात करें तो फिल्म में लगभग हर तरह के सीन आजमाये गये है चाहे वो वादियां हो या फिर बारिश का मौसम, यहीं नहीं फिल्म के आखिरी हिस्से में आप फिल्म के कुछ सीन को इमरान स्टारर तुम मिले के हिस्से को ताजा करेंगी।
कलाकारों की बात करें तो फिल्म में करीना कपूर का रोल बेमानी ही था, लगता तो ऐसे ही है आमिर खान के साथ काम करने की इच्छा लेकर ही उन्होंने फिल्म साइन की थी। बोमन इरानी का रोल काफी बड़ा तो नहीं है लेकिन फिल्म में अपनी मजाकिया सख्त इमेज की झलक दिखलायी है। उनकी ये एक्टिंग देखकर 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' की याद ताज़ा हो गयी। जैसे की शीर्षक से लग रहा है कि फिल्म में तीन कलाकारों की एक्टिंग देखने को मिलेगी पर ऐसा कुछ भी नहीं है फिल्म में है तो थ्री इडियट्स लेकिन आमिर ही पूरी फिल्म में एकाधिकार दिखाते नजर आये है। ऐसा नहीं है कि फिल्म में शरमन जोशी और माधवन के लिये कुछ नहीं है लेकिन फिल्म के नाम से ऐसा कुछ भी नहीं है कि फिल्म तीनों के लिये बनी हो। शरमन ने अपने रोल के साथ न्याय किया है। अपनी एक्टिंग से उन्होने फिर साबित किया है कि वो एक मेच्योर एक्टर है। माधवन को अपनी एक्टिंग में अभी कुछ सीखना बाकी है क्योंकि उनके पास वैरायटी नहीं है।
फिल्म को जिस उद्देश्य़ के लिये बनाया गया, समझा जा रहा है असल में वैसा है नहीं। फिल्म कहीं से भी शिक्षा प्रणाली को झकझोरती नज़र नहीं आ रही है।
वैसे शिक्षा व्यवस्था पर लगभग चोट करती इस फिल्म में इजीनियरिंग कालेज में पढ़ने वाले छात्र हैं रणछोड़दास, फरहान, और राजू रस्तोगी। फरहान मिडिल क्लास लोगों का नेतृत्व करता है वहीं राजू एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का है। रणछोडदास की बात करें जिसको रैंचो नाम से ही सब बुलाते हैं तो वो एक पैसे वाला लड़का है। लेकिन इंटरवल से पहले। तीनों दोस्त है, जो साथ ही पढते है, रहते है और मौज मस्ती करते है। लेकिन रैचो एक मस्तमौला लड़का है जो इंजीनियरिंग को जानकारी के तौर पर पढ़ता है। यहां पर स्टोरी में ट्विस्ट आता है कि एक दिन पढ़ाई खत्म करके रैचों कहीं चला जाता है। फरहान, राजू और फिल्म का तीसरा कॉमेडी केरेक्टर साइलेंसर, रैचों को ढूढने निकलते है।
फिल्म के संदेश को देखें तो फिल्म कई संदेश देती है जैसे पढाई को नंबरो के लिये नहीं काबिल होने के लिये करों। दूसरा जिसमें दिल करे उसी फील्ड को चुनों। इस तरह के संदेशों को लेकर बनी फिल्म में यही एक कमी है कि फिल्म के काबिल लोगों के लिये ही ये सारा कथानक चुना गया है। आमिर हर बार पहली पोजीशन पाते है लेकिन फरहान जो कि एक फोटोग्राफर बनना चाहते है वो आखिरी नंबर पर, वही राजू जो इंजीनियरिंग ही करना चाहता था वो भी आखिरी रैकिंग पर ही आता है।
हमेशा खास उद्देश्य को लेकर बनी फिल्म में ही काम करने वाले आमिर ने इस फिल्म में बेहतरीन काम किया है लेकिन स्क्रिप्ट में कुछ कमियां जैसे फिल्म का उद्देश्य साफ नहीं हुआ से मात खा रहे हैं। जो उद्देश्य साफ भी हुआ है वो पहले हाफ में ही क्लियर हो गया है जब आमिर ही कालेज टॉप करता है।
फिल्म की कहानी ठीक है लेकिन जैसा कि पहले कहा कि फिल्म कोई संदेश देती नज़र नहीं आ रही है। शिक्षा व्यवस्था पर जहां तक सवाल उठाने का सवाल है तो सवाल है लेकिन जवाब नज़र नहीं आ रहे हैं।
फिल्म के गाने अच्छे है। खासकर रेट्रो इफेक्ट द्वारा गानों को पुराने अंदाज में फिल्माया गया गाना। जिसका चलन आजकल बहुत हो रहा है। पढाई पर पढ़ने वाले प्रेशर, और टेंशन को दिखाने में फिल्म सफल रही है। फिल्म को देखने जाया जा सकता है लेकिन युवाओं के लिये पूर्णतया बनायी गयी फिल्म है।
मेरी ओर से फिल्म को
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
3 दिन पहले
5 टिप्पणियाँ:
आप पहले समीक्षक हो जिसने फिल्म को उद्देश्यहीन बताया है। खैर अपनी अपनी सोच है। नजॉरिया है। अच्छी समीक्षा की है।
फिल्म samixhaa अच्छी रही बधाई
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बेहतरीन। बधाई।
अबे निपट बेवकूफ आदमी तू अकल से पैदल है क्या? पहला आदमी मिला है जो फिल्म को फालतू बता रहा है। जुम्मा-जुम्मा दो दिन हुए नहीं कि विशेषज्ञ बन गया, पहले फिल्म देखने के लायक तो बन
अबे थोड़ा समझने की ही कोशिश की होती तो ये हाल न होते, गंवार
behtreen....
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