बसों से सफ़र करते रहो तो जीवन के कई अनोखे और मज़ेदार अनुभव होते है। मै अपने घर से बस में सफर करता हुआ मुज़फ्फरनगर शहर की तरफ जा रहा था। रास्ते में जानसठ कस्बे में जो की एक तहसील भी है वहां पर लगे एक होर्डिंग को देखकर खुद को हंसे बिना नहीं रोक सका। असल में वो स्वच्छता अभियान के तहत लगाया गया होर्डिंग था जो कि लोगों को जागरुक कर रहा था। लेकिन उस होर्डिंग पर जिस तरह के चित्र और वाक्य लिखे थे उसे देखकर स्वत ही हंसी आ गयी। आसपास के लोगों को स्वच्छता अभियान में भागीदारी देने के लिये घर में ही शौचालय बनाने का संदेश था जो इस प्रकार था कि मुझे हंसी आ गई।
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
कुछ और लिखाड़...
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फिर लगेगा नाइट कर्फ्यू !3 वर्ष पहले
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दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)14 वर्ष पहले
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ले गये गुण्डे धनिया को......
बुधवार, अक्तूबर 28, 2009इस होर्डिंग में एक अच्छा संदेश लिखा था जिसका मकसद समाज के दिलो दिमाग तक पहुंचना था। और साथ ही लोगों में एक डर बैठाकर सही रास्ता चुनने की सलाह थी जो मुझको बहुत अच्छी लगी।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 10:52 am 1 टिप्पणियाँ
लेबल: चित्र चित्रित
हिमाचल की वादियों में कुछ दिन
सोमवार, अक्तूबर 26, 2009पिछले कुछ महीनों से परेशान होने के बाद शांति की तलाश में काफी जगहों पर मुझे भटकना पड़ा। समस्या तब सामने आयी ,जब ये सोचना पड़ी कि जायें तो जाये कहां। खानाबदोश जीवन में भी अपना एक मजा है, इसलिये मै निकल पड़ा अपना सामान बांधकर, काफी सोच विचार के बाद ये तय किया कि मै पहाड़ो पर जाकर कुछ शांति की तलाश करुं। ये जो तस्वीरें आप देख रहे हैं उनको देखकर आपको इसका एहसास ज़रुर होगा
इन तस्वीरों की खूबसूरती यहीं खत्म नहीं होती है, हिमाचल प्रदेश में अच्छी जगहें तो बहुत है लेकिन इस बार योजना बनीं कुल्लु और मनाली की, पहाड़ों के बीच से बहती नदी का बहाव
और दो पहाड़ों के बीच दिखते बादलों का झुंड, इन सभी नज़ारों के बीच ख़ुद को पाकर दिल बागबाग हो गया है, एक बात दिमाग में आई कि हिमाचल में जाकर वहां के लोक गीतों और
लोक नृत्यों को देख लेना बहुत किस्मत की बात है।चारों तरफ से पहा़ड़ों से घिरा मणीकरण, वहां के एक स्कूल में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने का मौका मिला, वहां पर आसपास के सभी स्कूलों के बच्चे मौजूद थे जो अपनी कला से अपने प्रदेश की खूबसूरती को दिखा रहे थे, औऱ वो भी अपनी लोकनृत्यों औऱ गायकी से..
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 2:35 pm 4 टिप्पणियाँ
लेबल: यात्रा
दीपावली यानी पैसा खर्च = ख़तरा ख़रीद
शनिवार, अक्तूबर 17, 2009दीपावली के शुभ अवसर पर लेख को शुरु करने से पहले सभी पढ़ने वालों को दीपावली की शुभकामनायें, और हां ये दीपावली बस आज के लिये ही नहीं है ये तो बीते हुये कल से लेकर आने वाले दो दिनों तक चला करती है। यूं तो मेरी उम्र तेईस साल ही है लेकिन बचपन की याद आ ही जाती है, मुझे याद है कि दीपावली के दो दिन पहले से ही मिठाइयों के ढेर लग जाया करते थे साथ ही पटाखों की लिस्ट तैयार हो जाया करती थी। हर बार ये प्रतियोगिता हुआ करती थी कि मेरे दोस्तों के यहां ज्यादा पटाखे आये है या मेरे यहां। हर बार ज़िद करके पटाखों में जितने पैसे पिछले साल फूंके थे उससे ज्यादा का बजट इस बार तैयार हो जाया करता था। पापा कितना भी मना करें लेकिन हर साल पटाखों की संख्या साल दर साल बढ़ती जाती थी। मुझे याद है हम अपने घर से ज्यादा चाचा के पास जाकर दीपावली मनाना ज्यादा पसंद करते थे क्योंकि चाचा पटाखों के शौकीन थे, वो हर तरह का पटाखा जलाना चाहते थे चाहे वो पैराशूट हो या सेवन शॉट या फिर टेन शॉट, उस वक्त इन्हीं नामों से पटाखे आया करते थे। दो दिन पहले ही पटाखे लाना फिर उनको दीपावली के दिन तक धूप में सुखाना फिर शाम होते ही समेटकर सूटकेस या किसी बैग में भर लेना ये रुटीन हुआ करता था। दीपावली के दिन तो जैसे सिर्फ पटाखा जलाना ही मकसद ही बचा रह गया था। शाम को सबसे पहले इंतजार होता था कि जल्दी से पूजा का कार्यक्रम समाप्त हो फिर पटाखे जलाने का कार्यक्रम शुरु । शुरुआत होती थी पटाखों में सबसे बड़े और नये पटाखे को जलाकर, इसी के साथ पटाखा फोडू प्रतियोगिता शुरु । रात के बारह बजे तक पटाखे फोड़ने का प्रोग्राम चलता रहता था। सिर्फ पटाखे जलाते रहना ही मजेदार नहीं होता, जब तक सामने से कोई फायर न हो मतलब ये है कि पटाखए जलाने में प्रतियोगिता हुआ करती थी।सभी पड़ोसियों से पटाखे जलाने का कांम्पटीशन होता था, अगर वो कोई बम फोड़ते थे तो उनसे बड़ा बम हमें भी फोड़ना होता था नहीं तो हार मानी जाती थी।
दीपावली की रात पटाखे जलाने के बाद अगले दिन फिर वही रुटीन शुरु, पटाखे धूप में सुखाये फिर रात में जलाये। ये दीपावली अगले दो दिन लगातार चला करती थी। दीपावली के अगले दिन तो ज्यादा रोचक काम सभी बच्चे किया करते थे, जो पटाखे किसी कारण से नहीं फट सके थे उसे इकट्ठा करने का काम, ये काम कुछ लोगों के लिये गंदा हो सकता है लेकिन उस वक्त वो बड़ा ही रोचक खेल था बचे हुए बिना फटे हुए पटाखों को इकट्ठा करके उनका बारुद निकालकर उन्हें कागज में रखकर जलाना। उसमें भी ख़तरा तो था ही लेकिन मज़ा भी बहुत आता था।
लेकिन आज सोचता हूं तो दुख होता है। जब अपने कुछ दोस्तों के चेहरे और उनके हाथों को देखता हूं तो सारा मज़ा काफूर हो जाता है और दिल सहम जाता है। एक डर दिल में बैठ जाता है कि ये त्यौहार खतरों के खेल जैसा क्यों हो गया है, क्यों पटाखों के खेल में हम खुद को ख़तरे में डाल देते हैं। जब पटाखे जलते है तो उनमें रोशनी होती है लेकिन उन्ही रोशनियों में जलते हुए मेरे एक दोस्त की आखों की रोशनी चली गई थी। वो अब हर साल दीपावली के दियों को ठीक से देख तक नहीं पाता, दुख होता है ,लेकिन क्या करें अब कुछ नहीं हो सकता है।
हमें दीपावली पर इस बात का ध्यान ज़रुर देना चाहिये कि पटाखे हमारे लिये कितना बड़ा खतरा है, साथ ही इससे हमारे पर्यावरण को भी कितना नुकसान होता है, इसका पता हमें उस वक्त नहीं चलता जब हम ठीक होते है और हमारे साथ कोई दुर्घटना नहीं होती है ये हमें तब पता चलता है जब हमें पटाखे जलाने का मज़ा सज़ा के रुप में मिलता है। तो इस दीपावली में सब मिलकर पटाखों से तौबा करें ये हमें प्रण लेना होगा। पटाखों को खरीदने से पैसों की बर्बादी तो होती ही है साथ ही हम पैसों में खुद के लिये खतरा खरीदते है और कुछ नहीं। हमें समझदारी से काम लेना होगा, पर्यावरण को बचाये पटाखो से तौबा करें, खुशियां मनाये पर पटाखों के साथ नहीं कहीं ऐसा न हो कि आज का मज़ा कल के लिये सज़ा बन जाये।SAY NO TO CRACKERS
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 3:34 pm 2 टिप्पणियाँ
जो लिखता हूं सच लिखता हूं
गुरुवार, अक्तूबर 15, 2009जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता,
बढते हुए अपराधों पर,
जुल्म के शिकार अबोधों पर,
जाति पर, नवजातों पर
मै लिखता हूं...
जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच कि सिवा कुछ नहीं लिखता
देश के गद्दारों पर,
सफेदपोश मक्कारों पर,
चोरों पर नाकारों पर
मै लिखता. हूं
जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता
शहर में होते बलात्कारों पर
शिकार हुई औरतों पर
मासूम बच्चियों के दर्द पर
मै लिखता हूं ..
जो लिखता हूं सच लिखता हूं
सच के सिवा कुछ नहीं लिखता
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 10:51 am 4 टिप्पणियाँ
लेबल: कविता
ये एटीएम देश का बंटवारा करवायेगा!!!!
रविवार, अक्तूबर 11, 2009देश का बंटवारा शुरु हो गया है, इसकी शुरुआत की है बैंकिंग सेक्टर ने, अब ये बात आप को जैसे ही पता चली होगी आपको सदमा ज़रुर लगा होगा। कल शाम जब मै कुछ पैसे निकालने एटीएम गया तो आम दिनों के अलावा मेरी आंखों ने जो देखा वो सच में हैरत में डालने वाला था। मै अपने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम पर गया ।
जहां मैने देखा कि वहां पर उसे ऑपरेट करने के लिये कुछ भाषाओं के विकल्प दिये रहते हैं। पिछले कुछ दिनों से मै देख रहा हूं कि पहले वहां पर दो ही भाषाओं के विकल्प दिये रहते थे और वो थे अंग्रेजी (जो कि जल्द ही हमारी मातृभाषा में तब्दील होने वाली है)। और दूसरा विकल्प थी हमारी वर्तमान तथाकथित मातृभाषा और कई ऑफिसों कि राजभाषा हिंदी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से वहां पर एक तीसरी भाषा ने भी अपने स्थान बना लिया है और वो है पंजाबी भाषा। मै उस वक्त सन्न रह गया जब मैने इस तीसरे विकल्प को देखा। हो सकता है कि मेरी नज़र सिर्फ कल ही पड़ी हो लेकिन ये तो तय है कि बहुत पहले से ही भाषा के तीसरे विकल्प के तौर पर चिपका हुआ होगा। उस वक्त दुख हुआ जब उस तीसरे विकल्प को मैने देखा। दुख इस बात का था कि एटीएम चलाने के लिये अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल तो एक बार के लिये समझ में आता है, दूसरा हिंदी का होना भी अच्छा लगता है कि चलो कम से कम हमें अपने ही देश में अपनी राजभाषा में एटीएम चलाने को मिलता है, लेकिन अब ये पंजाबी, कमाल है....
पंजाबी भाषा में कोई बुराई नहीं है लेकिन हिंदी होने के बावजूद पंजाबी का होना या फिर किसी और भाषा का होना क्या दर्शाता है। जिस आदमी को पंजाबी ही आती है वो पंजाबी में एटीएम चला ले, क्या हिंदी जानने के लिये उसे मेहनत नहीं करनी चाहिये जो कि हमारी राष्ट्रभाषा है साथ ही मातृभाषा भी। मातृभाषा कहने में बहुत लोगों को परेशानी तो हो रही होगी ये बात तो पता चलती है लेकिन क्यों ?? ये पता नहीं चलता। कम से कम हिंदी को राष्ट्रभाषा तो कह ही सकते हैं। कम से कम राष्ट्रभाषा का अपमान नहीं करना चाहिये। यहां एटीएम में पंजाबी विकल्प होने को गलत नहीं बताया जा रहा है। बल्कि पंजाबी भाषा की ज़रुरत को कटघरे में खड़ा कि या जा रहा है। पंजाबी भाषा को एटीएम में रखने के पीछे उसे बढ़ावा देना गलत नहीं है लेकिन क्या एटीएम में हिंदी भाषा होने के बावजूद पंजाबी विकल्प की ज़रुरत है???? और अगर है तो क्यों ? इस विकल्प के बाद एक बात दिमाग में खटकती है कि भाषा के आधार में हिस्से करने का ये एक तरीका भी हो सकता है जिस तरह चीन जम्मू कश्मीर के लोगों वीज़ा के साथ साथ एक अलग तरह का पत्र भी दे रहा है। ताकि यहां के लोगों को लगे कि वो कुछ अलग है आखिर ज़रुरत क्यों है????
आखिर में इससे ज़ुड़ा हुआ एक और मजे़दार मुद्दा। मै इस एटीएम के बाद आईसीआईसीआई
के एटीएमपर गया जहां पर मै यही देखने गया था कि क्या वहां पर भी कई ऑप्शन मौजूद हैं । तो मैने देखा कि वहां पर भी तीन भाषाओं का विकल्प मौजूद मिला और फिर उसके पीछे का कारण सोचकर मै हंसी से लोटपोट हो गया।
वहां पर भी तीन विकल्प थे हिंदी, अंग्रेज़ी, और....मराठी। अब मराठी क्यों है इसके पीछे क्या कारण है इसके लिये आपको अपने आईसीआईसीआई के मुख्य शाखा के बारे पता करना होगा जहां से आपके एटीएम बनकर आते है और सारा कामकाज असल में चलता है। चलिये मै बता देता हूं आपके एटीएम कार्ड बनकर आते हैं मुंम्बई से ..और क्या वहां काम करना कोई आसान काम है ?? वहां पर तो "राज" चलता है। अब ये मत पूछना किसका 'राज' चलता है।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 8:02 am 6 टिप्पणियाँ
लेबल: देश की चिंता
कश्मीर में आयेगा विशेष दूत!!
रविवार, अक्तूबर 04, 2009जम्मू कश्मीर एक ऐसा मुद्दा रहा जिस पर हमेशा से ही पाकिस्तान और हिंदुस्तान के अलावा भी लगभग सभी देशों की निगाहें बनी रहती है। और पाकिस्तान इसका इस्तेमाल उस वक्त करता है जब उस पर आतंकवादी हमले करवाने का आरोप लगता है। अब जबकि पिछले साल 26 नवंबर को मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान पर कार्रवाई का जबरदस्त दबाव बन रहा है तो अब एक नया पैतरा खेला गया है। आपको बता दें कि एक खबर के मुताबिक इस्लामी सम्मेलन संगठन (ओआईसी) द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिए एक विशेष दूत नियुक्त किए जाने के फैसला किया गया है हालांकि भारत ने इस फैसले को सिरे से खारिज कर दिया है। राजनयिक सूत्रों ने स्पष्ट कर दिया है कि उस विशेष दूत का भारत में कभी स्वागत नहीं किया जाएगा। इसी साल बाराक ओबामा ने जम्मू-कश्मीर और भारत-पाकिस्तान के लिए विशेष दूत नियुक्त किए जाने की तैयारी थी, लेकिन भारत के तेवर को देखते हुए ओबामा ने अपना फैसला बदल दिया था। ओआईसी 57 मुस्लिम देशों का संगठन है। इसका मुख्यालय जेद्दा में है।
हर साल पाकिस्तान के कहने पर ही इस्लामी सम्मेलन संगठन की प्रत्येक बैठक में जम्मू-कश्मीर पर अलग से प्रस्ताव पारित करवाया जाता है। ओआईसी में इस प्रस्ताव को भी पारित करवाने में पाकिस्तान की विशेष भूमिका है। हर बार की तरह पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने और अपनी धरती पर आतंकवादी संगठनों को कई तरह की मदद देने के आरोप लग रहे हैं। इसी बीच पाकिस्तान ने भारत पर दबाव बनाने की ये नई चाल चली है। आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने में आनाकानी के भारत के आरोपों के बीच पाकिस्तान ने यह नई रणनीति अपनाई है। पाकिस्तान की कोशिश है कि वो आतंकवाद के आरोपों को दबाये और जम्मू-कश्मीर के मसले को फिर से अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाये ताकि उस पर से ये आरोप ठंडे बस्ते में जा सके। पाकिस्तान आतंकवाद के आरोपों को जम्मू-कश्मीर से जोड़कर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने पेश करना चाहता है ताकि इसे लोगों के प्रतिकार के तौर पर लिया जा सके।
वैसे तो ओआईसी एक कागजी संगठन है, और इसके प्रस्तावों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय गंभीरता से नहीं लेता। लेकिन, सऊदी अरब के अब्दुल्ला बिन अब्दुल रहमान अल बकर को जम्मू-कश्मीर पर विशेष दूत नियुक्त करने का फैसला इस्लामी दुनिया में जम्मू-कश्मीर के मसले पर नई रुचि पैदा करता है। विदेश मंत्रालय ने ये साफ तो कर दिया है कि ओआईसी के विशेष दूत का भारत में कभी स्वागत नहीं होगा लेकिन देश में गद्दारों को कमी नहीं है, इसलिये कश्मीर की भलाई का राग अलापने वाले हुर्रियत के नेता इस तथाकथित विशेष दूत का स्वागत करेंगे और बातचीत में भी हिस्सा लेंगे। कश्मीर इन दिनों किस कदर भारत पर दबाव बनाने का हथियार बन रहा है इसका उदाहरण कुछ दिन पहले ही सामने आया था जब भारत का दोस्ती के मुखौटा पहनने वाल सबसे बड़ा दुश्मन चीन के भारतीय दूतावास में जम्मू-कश्मीर के लोगों की वीजा अर्जी पर पासपोर्ट के बजाय अलग पेपर पर वीजा मंजूरी की मुहर लगाना शुरू किया था जिसका भी भारत ने विरोध किया था। लेकिन इस विरोध का कितना असर हुआ है इसका पता नहीं चल पाया । अब ओआईसी का यह नया फैसला भारत के लिए इस्लामी दुनिया में रामुजनयिक मुश्किलें पैदा कर रहा है। लेकिन भारत अपनी हमेशा वाली नींद सोया हुआ हैं। औऱ इन मामलों को गंभीरता से नहीं ले रहा है। जो कि आगे चलकर बड़ी परेशानी की कारण बनेगा।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 2:11 pm 6 टिप्पणियाँ
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