आज कई दिनों बाद महात्मा गांधी की याद आई है। उन्होंने बहुत किया है हमारे देश को आज़ाद कराने के लिए। लेकिन यार सोचता हूं कि हम क्या कर रहे है। देश क्या कर रहा है। वो नेता क्या कर रहे है जिनके ऑफिसों में महात्मा गांधी की तस्वीरें धूल खा रही हैं। कुछ भी कहने से पहले कुछ बातें कहना चाहता हूं या कहूं कि कुछ याद दिलाना चाहता हूं और साथ में ये उन भारतीयों के लिए शर्म से भरी जानकारी भी हो सकती है जो देश के लिए कुछ भी करने का दम्भ भरते हैं। दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिस घर में तीन साल रहे अब उसकी मालकिन उसे नीलाम कर रही है। हैरत की बात यह है कि भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति ने इसे खरीदने में रुचि नहीं दिखाई। जोहान्सबर्ग के उत्तर में बसा हुए ऑरचर्ड कस्बे की एक गली में बने इस मकान का डिजाइन गांधी के करीबी रहे वास्तुकार हर्मेन केलेनबैक ने तैयार किया था। बापू इस मकान में 1908 से 1911 तक केलेनबैक के साथ रहे थे। 25 साल से इस घर की मालिक रही नैंसी बाल इसे बेचकर केप टाउन में सैटल होना चाहती हैं। हालांकि उसने इस घर की कीमत अभी तक नहीं लगाई है। अब बारी आ रही है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा दिए गए उपहारों की नीलामी की । महात्मा गांधी ने अपनी आइरिश मित्र एम्मा हार्कर को उपहारस्वरूप भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा भेंट की थी। अब इस उपहार की बोली आठ सिंतबर को लगेगी। एशियाई कला के बोनहैम्स सेल में शामिल 13 इंच की इस प्रतिमा की कीमत लगभग चार लाख रुपये आंकी जा रही है। इस महीने के 14 जुलाई को गांधीजी के हस्ताक्षरित तीन पत्रों की नीलामी 4,750 पाउंड [लगभग तीन लाख अस्सी हजार रुपये] में हुई थी। जबकि उनके हाथ का बुना और हस्ताक्षर किया खादी का कपड़ा 2,215 पाउंड में बिका। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में महात्मा गांधी से जुड़े पत्र, हस्ताक्षरित पोस्टकार्ड तथा उनका बुना हुआ खादी का कपड़ा 9266 पाउंड में नीलाम हो गए।‘सूदबे’ कंपनी द्वारा आयोजित इस नीलामी में महात्मा गांधी के मौलाना अब्दुल बारी को उर्दू में लिखे तीन पत्र शामिल थे। इन पत्रों की कीमत 2500 से 3000 पाउंड आंकी गई थी, लेकिन टेलीफोन पर लगी बोली में इन पत्रों को 4892 पाउंड में नीलाम किया गया। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़ी चीजों के मौजूदा मालिक जेम्स ओटिस ने उन वस्तुओं की विवादास्पद नीलामी को रद्द करने और उन्हें भारत को दान करने पर सैद्धांतिक सहमति दी है लेकिन आसार कम ही है। ओटिस ने कहा है कि न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास में हुई बातचीत के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी का चश्मा, चप्पलें तथा अन्य चीजों को इस शर्त पर भारत को दान करने पर रजामंदी दी है कि भारत गरीबों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च में बढ़ोत्तरी करेगा और सौंपे गए स्मृति चिन्हों को अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में रखेगा। चलों इसी बहाने बापू अपनी चीज़ो से भी कई लोगों का भला कर सकेंगे। लेकिन ऐसी हुआ नहीं हमारी सरकार अरे जिसे हमने वोट देकर दुबारा जिताया है उसने स्वास्थ्य सुविधाओं पर होने वाले खर्च बाढाने की शर्त ये कह कर नहीं मानी कि ये तो ब्लैकमेलिंग है। कमाल है हमारे नेताओं को उस वक्त ब्लैकमेलिंग ऩज़र नहीं आई जब प्लेने हाईजैक करके आतंकवादियों ने खूंखार आतंकवादी छुड़वाये थे। आज जब लोगों का भला होने की शर्त है तो ब्लैकमेलिंग वाह भाई हमारा भारत महान और जिसके नेता है इसके भगवान। हमारी वही सरकार जिसका गठन गांधी जी ने ही किया थी उसको इन नीलामियों से कोई लेना देना नहीं है। उल्टे कस्टम विभाग ने नीलामी में खरीद करने वाले विजय माल्या अरे वही जो किंगफिशर के मालिक है और ज्यादातर सुंदरियों के साथ दिखाई देते है, को नोटिस दे दिया है कि वे गांधी जी की घड़ी और चप्पलों पर 15 प्रतिशत यानी लगभग एक करोड़ रुपए का टैक्स दें। मज़े की बात तो ये है कि ये विभाग प्रधानमंत्री के अधीन आता है। विदेश व्यापार महानिदेशालय ने विजय माल्या से पूछा है कि आपने इन चीजों के आयात का लाइसेंस क्यों नहीं लिया था? पता नहीं शर्म से सिर झुकाऊ या फिर हंसू इन नेताओं और निदेशालयों पर। विजय माल्या की ओर से जब सरकार से पूछताछ की गई तो सरकार ने कहा कि उन्हें किसी भी किस्म की रियायत नहीं दी जा सकती क्योंकि कला और दुर्लभ वस्तुओं के आयात के लिए 1972 में एक विशेष कानून बना है। ये कानून सब पर लागू होता है। हां कानूनी पेंच है जिससे हम और आप अक्सर डर जाया करते हैं। दूसरा कमाल कहूं या नेताओं की बेवकूफी कि ये कानून जेम्स ओटिस पर लागू नहीं हुआ था जो 1972 के बाद गांधी जी की ये विरासतें भारत से एक फिल्म बनाने के बहाने ले गये थे। उसी ने गांधी जी की विरासत से नौ करोड़ रुपए कमाए हैं। माल्या ने टीपू सुल्तान की तलवार भी नीलामी में खरीदी थी और उसे सरकारी संग्रहालय को सौप दिया था। अमेरिका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पांच स्मृति चिन्हों की नीलामी हुई..जिसमें बापू का चश्मा, एक जोड़ा चप्पल, उनकी जेनिथ पाकेट घड़ी, एक तश्तरी और एक प्लेट शामिल थी। देश के जाने माने उघोगपति विजय माल्या ने इन्हें करीब 18 लाख अमेरिका डॉलर( करीब नौ करोड रुपए) में खरीद लिया । ऐसा नहीं है कि नौ करोड़ रुपए कोई बहुत बड़ी रकम है। भारत जैसे विशाल देश में इस रकम को चुका देने वाले लाखों की तादाद में होंगे। लेकिन ये काम किया पेशे से शराब बनाने वाले विजय माल्या ने दिखाया। जी हां शराब जिसका गांधीजी जीवन भर विरोध करते रहे। बापू की विरासत को बचाने के लिए एक ऐसा शख्स सामने आया....जो बापू के सिद्धातों पर बिलकुल नहीं चलता ..अरे जिस शख्स ने देश को आजादी दिलाने में इतनी अहम भूमिका निभाई ..उसके स्मृति चिन्हों को वापस लेने के मामले में भारत सरकार का इतना गैर जिम्मेदाराना रवैया शर्मनाक है। आखिर ये क्या हो रहा है कहां है वो इज्जत जो महात्मा गांधी हमें पूरी दुनिया में अपने नाम पर पहचान दिलवाते है वरना कौन जानता है भारत को। दूसरे देशों में जाओ तो महात्मा गांधी ही हमारी पहचान है। एक सच ये भी है.. लेकिन किस सच को आज हम अपनाना चाहते है ये हमारे अंतरआत्मा का सच है!!!!!
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
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दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)14 वर्ष पहले
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जिस देश में गांधी रहता था !!!!
शुक्रवार, जुलाई 31, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 6:39 am 6 टिप्पणियाँ
लेबल: mahatma gandhi
फिर भड़की आरक्षण की दादागीरी...
बुधवार, जुलाई 29, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 8:30 am 4 टिप्पणियाँ
लेबल: मुद्दा
हिम्मत है तो कोई मेरा धर्म बदलकर दिखाओ ???????
गुरुवार, जुलाई 23, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 12:35 pm 14 टिप्पणियाँ
लेबल: धर्म
किनके हाथों में होगी देश की सुरक्षा....
सोमवार, जुलाई 20, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 1:44 pm 3 टिप्पणियाँ
लेबल: देश की चिंता
तुम भी बोलो हम भी बोलें देखें कौन बड़ा नेता है......
शुक्रवार, जुलाई 17, 2009कमाल की उठापटक चल रही है आज कल उत्तर प्रदेश की राजनीति में....मायावती बलात्कार पीड़ितों को मुआवज़ा देकर तथाकथित भला काम कर रही थीं। उनके सचिव गांव गांव जाकर हैलीकॉप्टर से लड़कियों औऱ महिलाओं को 25 हज़ार से लेकर 75 हज़ार तक की कीमत अदा माफ करियेगा मुआवज़ा दे रहे थे। इस शुभ काम या कहें कि ज़बान बंद करने की कीमत या ये भी कह सकते है कि बलात्कार पीड़ित महिलाओं के जले पर नमक छिड़कने का भला कर रही थीं। एक तो पहले ही उनके आत्मविश्वास को तोड़ दिया गया औऱ बजाए आरोपियों को मृत्युदंड दिये महिलाओं को पैसे थमा रही हैं। भाई मैं तो इस तरह के मामले पर तालिबान का समर्थन करता हूं कि जब भी उनके राज में कोई पुरुष किसी महिला के साथ छेड़छाड़ करता या बलात्कार करता तो उसको ऐसा दंड दिया जाता था कि फिर कभी वो ये करने के हालत में ही न रहे। मतलब आप समझ गये होंगे। लेकिन भईया ये भारत है हम है सबसे बड़े लोकतंत्र। यहां पर सबको जीने का हक है चाहे वो बलात्कारी हो या बलात्कार पीड़ित। यहां पर किसी भी कत्ल में शामिल मुजरिम को सिवाय कुछ दिन की सज़ा के अलावा कुछ नहीं मिलता। तभी तो आजकल फैशन हो गया है कि पांच पांच सौ में लोगों का मर्डर हो जाता है। क्योंकि कानून कड़ा नहीं है। और अगर कोई ये कहता है कि कानून कड़ा है तो मै बता दूं तो वे दलाल भी तो कानूनविद् है जो ऐसे अपराधियों को छुड़ा लेते है प्रोफेशनल बनकर। खैर मुद्दे से भटक गया था मुद्दा है मायावती के बलात्कार पीड़ित महिलाओं को उनकी कीमत अदा अरे फिर गलती हो गई माफ करियेगा मुआवज़ा देने औऱ इसी मुद्दे पर कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी के बयान के बाद भड़की आग में झुलसे उनके घर औऱ उत्तर प्रदेश की राजनीति की। रीता के बयान को सही नहीं ठहरा रहा हूं ये दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। कार्यकर्ता कह रहे है कि मायावती पर की गई टिप्पणी अशोभनीय थी और बीएसपी कार्यकर्ताओं द्वारा रीता का घर प्रतिशोध की ज्वाला में जल गया तो एक बात मै ऐसे कार्यकर्ताओं को याद दिला दूं कि ये वहीं मायावती हैं जो मुलायम सिंह के खिलाफ बयानबाज़ी में माहिर है। मायावती ने अपने एक बयान में कहा था कि अगर मुलायम की बेटी होती वैसे तो उसकी बेटी है नहीं लेकिन अगर उनके रिश्तेदारी में किसी लड़की का बलात्कार हो जाये तो उन्हें कुछ पैसे दे दे दिये जाये तो कैसा रहेगा। उस वक्त भी वो मुलायम के बलात्कार पीड़ित महिलाओं को पैसे बांटने के मुद्दे पर बोल रही थीं। क्यों उस वक्त बसपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा नहीं भड़का...हां उस वक्त तो खी खी करके हंस रहे होंगे पक्का है। लेकिन अब जब रीता बहुगुणा ने ज़हर उगला तो भड़क गये.. घर फूंक दिया.. जान से मारने की धमकी दी। तो अब क्यों मचा है बवाल। यहीं तो मुद्दा है कि तुम भी बोलो हम भी बोलें देखें कौन बड़ा नेता है।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 9:12 am 0 टिप्पणियाँ
लेबल: सामाजिक
ये आम रास्ता नहीं है.....
शनिवार, जुलाई 11, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 6:37 pm 8 टिप्पणियाँ
लेबल: सामाजिक
मोबाईल गुमशुदा ही क्यों होता है.......
शुक्रवार, जुलाई 10, 200928 जून को मेरा मोबाइल और पर्स मेरे ही घर से चोरी हो गया। कुछ दिनों तक तो मुझे लगा कि मेरा मोबाइल घर में ही कहीं रखा होगा। वो अक्सर इतना लगाव हो जाता है कि कुछ यकीन ही नहीं होता है। कुछ दिन बाद यकीन हो गया कि मेरा मोबाइल घर से ही चोरी हो गया है। चैनल में काम करता हूं तो टाइम नहीं मिल पाया कि पोलीस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जा सके। चूंकि मोबाइल घर से चोरी हुआ था तो मेरे घर थाना सेक्टर 24 में आता है।मै समय निकालकर थाने मे पहुंचा पहली बार किसी अपने किसी काम से थाने में आया था। थाने में प्रवेश करते ही मैने देखा कि हर कोई अपने काम में मग्न था आम आदमी वहां पहुंचे तो उनकी भाषाओं को समझने मे काफी देर लग जाये। एक तो एक दम अक्खड़, सख्त से चेहरे, लंबे चौड़े साथ में कुछ छोटे कद के भी थे। कुल मिलाकर जब मै वहां पहुंचा तो करीब 10 लोग होंगे। हा कुछ लोगो बंदीग्रह में भी थे गर्मी की वजह से वहां दरवाजे के बाहर एक पंखा लगा था। अंदर पानी की बोतल थी लेकिन ज्यादा झांक नहीं सका क्योंकि वहा पर अंधेरा बहुत था। एक कमरा था जिसमें थाना प्रभारी निरीक्षक लिखा था साथ में जो उस वक्त वहां नियुक्त थे उनका नाम..प्रभारी निरीक्षक का नाम था कैलाश चंद। दूसरे कमरे में जाने से पहले बाहर ही कुछ कुर्सियां औऱ रखी हुई थीं और एक पुलिस की वर्दी में महाशय बैठे थे नाम था फतह सिंह। अब मै उनके पास कमरे में गया जहां पर कुछ लिखा पढ़ी का काम चल रहा था। मैने वहां जाकर अपनी बात कही कि भाई साहब मेरा मोबाइल चोरी हो गया है क्या आप रिपोर्ट लिखेंगे। उन्होंने कहा क्यों नहीं मैने कहा कि तो फिर एक पर्चा दे दीजिए। उन्होने तुरंत एक पर्चा दे दिया। मैने तुरंत लिखा सारी जानकार लिख दी कि मेरा मोबाइल और पर्स मेरे घर में चोरी हो गया है। ये घटना सुबह आठ बजे से नौ बजे के बीच की है। और भी कई जानकारी लिखी और लेकर वहां गया तो उन्होने कहा कि यार ये राम कहानी क्यों लिख दी बस इतना करों कि ये लिख दो मोबइल गुम हो गया है। मै दोबारा पर्चा लेकर गया औऱ मैने फिर वहीं बातें लिखी जो पहले लिखी थीं। इस बार दो पर्चें लेकर गया था। मैने कहा कि भाई साहब मेरा मोबाइल चोरी हुआ है न कि गुम। उन्होने मेरी तरप नाक सिकोड़कर कहा कि तो फिर ऐसा करो कि साहब से मिलकर आजाओ। मै तुरंत कैलाश चंद के पास गय़ा जो कि वहां के थाना प्राभारी थे। उन्हे पूरी बात बताई फिर उन्होने कहा कि ठीक है जाकर पर्चा दे दो। मै वापस आया तो वो दूसरे साहब जी मानने को तैयार नहीं हुए कि फोन चोरी हुआ है। वो दोबारा लेकर गये पर्चा कैलाश जी के पास। वापस आये तो तेवर बदले हुए थे। मुझे समझाने लगे बोले कि यार फोन गुमशुदा ही होता है चोरी नहीं होता। मैने कहा कि क्यों जब मेरे घर से मोबाइल चोरी हुआ है तो मै गुमशुदा कि रिपोर्ट दर्ज क्यों करवाउँ। उन्होने बारामदे में बैटे मोटे से पुलिस वाले के पास भेज दिया, कुछ देर मुजे टरकाया लेकिन जब मै न माना तो मुझे उस मोटे से पुलिस वाले के पास भेजा। उनका नाम था फतह सिंह, मोटे से, गोल चेहरा सख्त चेहरा, सांवला सा रंग, बाहर बैठे थे बारामदे में पर्चा लेकर बोले कि फोन कैसे चोरी हुआ, मैने कहा कि मेरा भाई सुबह कोचिंग के लिए निकला और मुझे बाताये बगैर वो दरवाजा बंद करके चला गया लेकिन दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था। मै उठा आठ बजकर पचास मिनट पर मैने देखा कि मेरी पर्स और मोबाइल वहां नहीं था। इतना कहते ही फतह सिंह बोले कि आपकी लापरवाही है इसमें हम क्या कर सकते हैं। मैं उनकी बात सुनकर सन्न रह गया। मुझे ऐसे जवाब की आशंका नहीं थी। मै उस वक्त क्या कहूं ये मुझसे कहते नहीं बन रहा था क्योंकि मै तो वहां मदद मांगने गया था। पर मैं बोला भाई साहब दरवाजा खुला था इसका मतलब ये तो नहीं कि आपका काम खत्म हो जाता है दरवाजा बंद होने से या खुला होने से। आप मेरी रिपोर्ट लिखिये। वो बोले कि ऐसा करों कि गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवा दो। मैने कहा कि नहीं फोन चोरी हुआ है। उन्होने मुझसे कहा कि फोन चाहिए या नहीं। मैन कहा कि चाहिए। तो बोले कि तो फिर गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवाओ। मैने कहा कि चोरी कि रिपोर्ट दर्ज करवाने पर नहीं मिलेगा इसका मतलब। वो बोले ऐसा है कि गुमशुदगी कि रिपोर्ट दर्ज करवाओं वर्ना कहीं और जाओ। मैने कहा कमाल की बात कर रहे है आप मैरे घर इस थाने के अंदर आता है तो मै और कहा जाउंगा। इस पर उन्होने कहा कि मै नहीं लिखुंगा ऱिपोर्ट कहीं औऱ जाकर लिखवाओं। अब मेरे मुझे जो झटका लगा वो शायद ज्यादातर लोगों को लगता होगा जो लोग पुलिस स्टेशन मे आते होंगे। मै अभी तक सोचता था कि पता नहीं लोग कैसे कहते है कि पुलिस स्टेशन पर रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। लेकिन उनका गुस्सा और मुजरिमों को डराने वाले अंदाज को देखकर मै तो बिलकुल नहीं डरा हां अक्सर लोग डरकर उनकी बात मान जाते होंगे। मैने कहां कि तो फिर ठीक आप मुझे लिख कर दे दीजिए कि आप मेरी रिपोर्ट नहीं लिखेंगे। उन्होने कहा नहीं दूंगा और मेरा प्रार्थना पत्र मेरी ओर फेंक दिया उस वक्त मुझे पुलिस स्टेशनों की हालत औऱ असलियत सामने आ गई। इस बीच मुझे एक और जानकारी मिली कि दिनभर में सैकड़ों मोबाइल चोरी होते हैं कहां तक चोरी की शिकायतें लिखेगा कोई। ये बातें मुझे लिखा पढ़ी करने वाले पुलिसवाले ने बताई। मै परेशान हो गया कुछ काम न होते देख मै हताश होता लेकिन पत्रकार ठहरा हताश होना सीखा नहीं है मैने। मैने तुरंत अपने एक मित्र को फोन किया उसने अपने एक मित्र जो कि आईबीएन 7 में कार्यरत है उसके पास फोन किया ब्रजेश नाम के उस शख्स ने अपने फोन पर थाना प्राभारी से क्या बात की ये तो पता नहीं लेकिन उसके बाद मेरा काम बनता हुआ नजर आने लगा और जो पुलिस वाले अभी तक मुझपर हावी हो रहे थे वो हलके पड़ गये और फतह सिंह की डराने के अंदाज पर मित्र का एक फोन भारी पड़ गया और उन्होने कहा कि मै कुछ नहीं कर सकता आप लिखा पढ़ी वाले के पास जाइयें वो रिपोर्ट लिखेगा। मैने देखा कि पहले जो सुस्ती वो लोग दिखा रहे थे इस बार तेजी से काम हो रहा था। मुझसे दो कॉपियां लिखवा ली थी एक कॉपी खुद रख ली और अब मेरे पास तो बस वो दूसरी कॉपी है जिसमें न तो मोहर है और न ही कोई सूबूत की मैं पुलिस स्टेशन पर गया था। एक कॉपी तो उन्होने रख ली है औऱ नाम भी बता दिया है कि अश्वनी जी जांच करेंगे पर जांच होगी या नहीं ये जांच का विषय ज़रुर बन गया है।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 2:51 pm 7 टिप्पणियाँ
लेबल: वाह रे पुलिस?
क्या वो लड़कियां वैश्या थीं!!!!!
सोमवार, जुलाई 06, 2009(नोट: लड़कियां कुछ कुछ भोजपुरी में बोल रही थी, मैने उसे हिंदी में परिवर्तित किया है)
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 5:06 pm 8 टिप्पणियाँ
लेबल: सवाल
मै आपकी परेशानी समझता हूं!!!!!
शुक्रवार, जुलाई 03, 2009प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 1:37 pm 2 टिप्पणियाँ
लेबल: कविता