26/11 मुंबई हमले को दो साल हो गये। हर साल हमले की याद में श्रद्धांजलि देना त्योहार सा हो गया है। लोग इकट्ठा होते है और शहीदों को याद करते है। उनकी बहादुरी को सलाम करते हैं। लेकिन क्या इतने भर से शहीदों को शांति मिल गई। सच कहे तो हमें क्या पता कि मृत्यु के बाद किसे शांति मिली किसे नहीं। लेकिन सवाल है कि शहीदों के नाम पर क्या हमारे दिलों को शांति मिली। नहीं....नहीं मिली। मारे तो गये थे सारे आतंकी लेकिन पकड़े गए एकमात्र ज़िंदा आंतकी आमिर अजमल कसाब की मृत्यु से हम भारतीयों को दिल को सुकून कब मिलेगा। फांसी की सज़ा मिले तो उसे काफी दिन हो गये। केस चलता जा रहा है। मुझे तो लगता है कि वो अपनी प्राकृतिक मौत तो मरेगा ही साथ ही हमारे देश के करोड़ों रुपये भी खा लेगा। बहुत हुआ तो कोई हवाई जहाज अगवा करके उसे छुड़वाने की अपील करवा लेगा। लेकिन फिर भी हमारे देश के रुपये तो खाकर ही जाएगा।
सवाल है कि आखिर कसाब जैसे दो टके के आतंकी को शाही ट्रीटमेंट क्यों दिया जा रहा है। इसके बारे में ज्यादातर लोग नहीं सोचते हैं। कसाब को अपने अंडे की तरह सेह रहे है। क्योंकि उसके दम पर ही हमे दुनिया को साबित कर सकते है कि पाकिस्तान ही आतंकी गतिविधियों का अड्डा है। मुंबई हमले को तरजीह इसलिये दी जा रही है क्योंकि इस हमले में विदेशी भी मारे गये थे। जिसकी वजह से इस मामले में पुरे विश्व की नजर इसके केस पर टिकी है। इसी को भुनाने के लिये भारत सरकार नहीं चाहती कि कसाब को फांसी हो।
लेकिन हम भारतीय दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं। और अपने नजरिए से सोचूं तो ये सही भी है। सही इसलिये क्योंकि कसाब को फांसी देने या न देने के लिए हमें किसी को कुछ साबित करने की ज़रूरत नहीं है। हमें पूरे विश्व को ये नहीं दिखाना है कि कसाब को हमारे कानून की तरह से सज़ा मिलेगी। या फिर अमेरिकियों को ये बताने के ज़रूरत है कि पाकिस्तान ही आतंकी गतिविधियों का गढ़ है। हमारा देश अपंग तो है नहीं किसी दूसरे देश की मदद की ज़रूरत पड़ेगी युद्ध में। हम खुद अपनी सुरक्षा करने में सक्षम हैं।
ऐसे भारत सरकार के छुपे तर्क बेफिज़ूल है।
कसाब इस केस के बाद पाकिस्तान का हीरो हो गया होगा। हर साल हम तो मनाते है श्रद्धांजलि और वो मनाते है जश्न। हमे किसी और को नहीं बल्कि कि खुद को साबित करना होगा कि हम दृढ़ निश्चयी है। सवाल यही है आखिर कसाब को फांस क्यों नहीं मिल रही है। शायद कसाब की मौत ही शहीदों को सच्ची श्राद्धांजलि होगी
मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
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शुक्रवार, नवंबर 26, 2010
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