मेरे बारे में
- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
कुछ और लिखाड़...
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फिर लगेगा नाइट कर्फ्यू !3 वर्ष पहले
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दुश्मन भगवान (अंतिम भाग)14 वर्ष पहले
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होली की ठिठोली
रविवार, फ़रवरी 28, 2010प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 7:16 pm 12 टिप्पणियाँ
1411 एक टाइगर की फरियाद
शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2010प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 5:31 pm 6 टिप्पणियाँ
लेबल: टाइगर संरक्षण
क्रिकेट का सुपरमैन !
बुधवार, फ़रवरी 24, 2010सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का सुपरमैन कहें तो इसमें कोई दूजी राय नहीं हो सकती है। हां ये अलग बात है कि वो पैंट के उपर चढ्ढी नहीं पहनते है। लेकिन जिस तरह सचिन विरोधी टीम पर हावी होते है उससे इतना होता ही है कि कोई भी गेंदबाज उन्हें गेंद फेंकने से पहले अपनी पैंट को कस कर ज़रुर बांध लेता होगा।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 11:57 pm 4 टिप्पणियाँ
लेबल: खेल खिलाड़ी
किस्मत क्या है ?
बुधवार, फ़रवरी 17, 2010मन दुखी है इसलिये कुछ ऐसा लिख रहा हूं जिसको पढ़कर हो सकता है कुछ लोगों को अजीब लगे। ये भी हो सकता है कि कुछ लोग मेरी बातों से सहमत हो। लेकिन जो मेरे साथ हो रहा है उसको देखकर पता नहीं क्यों मुझे महसूस हो रहा है कि जो लोग किस्मत को बलवान बताते है शायद वो सही कहते है।
बहुत दिनों से बेकार घर बैठने के बाद एक जगह से कॉल तो आई नौकरी के लिये, हां ये बात अलग है कि उस कंपनी की हालत खराब है और वहां पर लोगों को तीन तीन महीने से सैलरी के दर्शन तक नहीं हुए है, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों वहां से आये बुलावे ने मुझे वहां जाने के लिये मजबूर कर दिया। सोचा था कि जहां से करियर की शुरुआत हुई और वहीं से लगभग अंत भी..तो मुझे लगा कि क्यों न जब एक और शुरुआत वहीं से करने को मिल रही है तो मौके का इस्तेमाल करना चाहिये। लोगों ने बहुत समझाया कि वहां जाना ठीक नहीं है, लेकिन घर बैठकर बेकार की बातें सोचने से अच्छा कहीं पर बिना सैलरी के काम करना है। वो भी तब जब आप खाली बैठे हों।
बुलावे पर चले तो गये,पर हालत सामान्य नहीं थे। बाकायदा वहां के एच आर से बात भी हुई, उन्होने इंटरव्यू भी लिया, चलो यहां तक तो ठीक था। अगले दिन ज्वाइनिंग का दिन था। ज्वाइनिंग का फार्म मेरे हाथ में था, मै उसको भरने ही जा रहा था कि अचानक मेरे फोन की घंटी बज उठी। मुझे फिर से एच आर के ऑफिस में तलब किया गया। वहां से मुझे वो अपने साथ न्यूज रुम की ओर ले गये। जहां पर बैठे ज्यादातर लोग मेरे जानकार थे। और शायद ज्यादातर शुभचिंतक भी। मुझे इंचार्ज से मिलवाया गया औऱ बस मै उनसे शिफ्ट की बात करने ही वाला था कि......
एक फोन बज उठा और उसको उठाने वाले व्यक्ति ने मुझको बताया कि एक बार फिर से मुझे एच आर के ऑफिस में बुलाया गया है। अब इस बार जो होने वाला था उसका मुझे अंदाज़ा कम ही था। क्योंकि जब आपके सामने सब कुछ ठीक चल रहा हो औऱ चीज़े फाइनल दौर में हो तो आल इज वैल...यहीं लगता है।
एचआर मुझसे पहले किसी और से बातों में मशगूल था। उनके बाद मेरा नंबर आया। कुछ देर चुप रहने बाद एच आर बोले
" शशांक देखो ऐसा है कि आपका समय बर्बाद करने के लिये सॉरी,
मैने पूछा क्यों सर क्या हुआ
देखो ऐसा है कि तुमसे पहले किसी को बुलाया था, पहले वो नहीं आ रहा था लेकिन अब आ गया है तो मै आपको अभी ज्वाइन नहीं करवा सकता हूं।
एक बार के लिये मै सन्न रह गया लेकिन फिर अपने आप को संभाला और एक सवाल दाग दिया
ठीक है सर पर..ये तो आपकी बात हुई...अब सच क्या है ये बता दीजिये।
देखो शशांक तुम तो जानते हो..कभी कभी लगाई बुझाई की वजह से हमें नीचा देखना पड़ता है। अब क्या कह सकते है इससे ज्यादा। बस तुम्हारा समय खराब करने के लिये माफी मांग सकता हूं। इतना कह सकता हूं कि फिलहाल तुमको नहीं रख सकते।
मै उनके इस जवाब के बाद चुप हो गया और चुपचाप उनके कैबिन से निकल कर बाहर आ गया, न सिर्फ बाहर बल्कि बिलकुल बाहर। उनके इस जवाब के बाद मुझे ज्ञात हो गया कि हो न हो किसी ने मेरे खिलाफ कोई न कोई साज़िश रच डाली है। न्यूजरुम में बैठे मेरे शुभचिंतक लगने वाले लोगों में से कोई न कोई मेरा दुश्मन था जो मुझे पसंद नहीं करता। लेकिन सच कह रहा हूं आज तक कभी मैने किसी को अपना दुश्मन नहीं होने दिया है।
इस घटना के बाद अब सोचने को मजबूर हो गया हूं कि ये कैसा किस्मत का खेल चल रहा है। एक तरफ सब ठीक होता नज़र आता है तो दूसरी तरफ राजनीति का शिकार होता मै। किसको दोष दूं खुद को, कंपनी की पालिसी को या फिर उस आदमी को जिसने मेरे खिलाफ साजिश रची है।
क्योंकि पहले मै वहां पर काम कर चुका हूं इसलिये मेरे काम के बारे में वहां काम करने वाले लोग अच्छी तरह से जानते है। लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है क्योंकि जिस देश का राजा निरंकुश हो वहां की हालत अच्छी कैसे रह सकती है। उसका को सर्वनाश उन्ही के पिछलग्गू ही करते है
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 5:19 pm 6 टिप्पणियाँ
लेबल: अनुभव
वैलेंनटाइन्स डे और विरोधी
शनिवार, फ़रवरी 13, 2010एक बात समझ के परे है कि ये लोग तब कहां रहते है जब बलात्कार के आरोपियों को सालों साल सजा तक नहीं मिल पाती। आखिर ये कौन लोग हैं जो समाज को संस्कृति का पाठ पढ़ाते हैं । कितना जानते है ये विरोधी... जो वैलेनटाइन डे का विरोध करते है। इस विषय में सिवाय इसके कि ये पश्चिमी सभ्यता का पर्व है कितना जानते है ? हीर रांझा, सोहनी महिवाल, राधा कृष्ण का नाम तो इज्जत लेते है...लेकिन रोमिया जूलियट का नाम इनके दिलों में चुभता है। तालिबान की रीति या नीति का विरोध तो बहुत करते हैं पर क्यों नहीं सोचते की अंजाने में या फिर जानकर भी हम उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 10:13 pm 3 टिप्पणियाँ
लेबल: सामाजिक
शिवसेना और शाहरुख़ 'ख़ान'
बुधवार, फ़रवरी 03, 2010शिवसेना प्रमुख और उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने शाहरुख को तो देशद्रोही तक मानने लगे है और पाकिस्तानी खिलाड़ियों के मुद्दे पर किंग खान को माफी मांगने को कह डाला है। शाहरुख ने भी माफी न मांगने दम्भ भरा है। क्योंकि ये तो सौ फीसदी सत्य है कि शाहरुख ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खरीदने की बात कही थी, लेकिन इसके पीछे का कारण है खिलाडि़यों की उपलब्धता। कोई भी टीम ये नहीं चाहती है कि उनके खिलाड़ी टीम के लिये उपलब्ध न हो सके। इसलिये किसी भी टीम ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खरीदने में रुचि नहीं दिखाई।
लेकिन सवाल ये है कि क्या पाकिस्तानी खिलाडि़यों को खरीदना ज़रुरी है या नहीं। और अगर ज़रुरी है तो वो इसलिये क्योंकि वो इस वक्त ट्वेंटी ट्वेंटी चैम्पियन है। चैम्पियन होने के नाते पाकिस्तानी खिलाड़ियों को तवज्जो न मिलना इस बात को दर्शाता है कि कोई न कोई दूसरा कारण ज़रुर है जिसकी वजह से उन खिलाड़ियों को नहीं खरीदा जा रहा है। टीमें अपना कारण बता चुकी है शाहरुख भी इसी कारण से अपना पक्ष रख चुके है। शाहरुख के अपने पक्ष ने ही उनको मुसीबत मे डाल रखा है। शिवसेना जैसी कट्टरपंथी सिर्फ इसलिये ही दबाव बना रहे है क्योंकि इसमें पाकिस्तानी खिलाड़ियों का नाम है । हां ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का भी विरोध हो रहा है लेकिन शिवसेना का मुख्य मकसद पाकिस्तान के नाम पर शाहरुख को लपेटना है क्योंकि उनका नाम शाहरुख खान है। औऱ ये बात किसी से छुपी नहीं है कि शिवसेना किस कदर कट्टरपंथी है।
पाकिस्तानी खिलाड़ियों को न लेना या लेना इससे उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये पाकिस्तानी खिलाड़ियों का लालच है जो न लेने पर उन्हें बैखलाये दे रहा है। पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लेने या लेने के मुद्दे पर हर कोई इस मुद्दे पर एक दूसरे के पाले में डाल रहा है क्योंकि इस मामले में पाकिस्तानी खिलाड़ियों का नाम है। अगर कोई और देश होता तो शायद इतना बबाल न होता। पाकिस्तान से भारत की दुश्मनी सालों से चली आ रही है लेकिन आज के मुद्दे पर ये कहना है कि मुंबई पर हुए हमले की वजह से पाकिस्तानी खिलाडियों को न लिया जाए। अपनी जगह सही है लेकिन शाहरुख को गलत ठहराना कि वो पाकिस्तान जाकर बस जायें, ये तो शिवसेना द्वारा हिंदुत्व की गलत परिभाषा है। शाहरुख को सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से निशाना न बनाया जाए। अगर दिक्कत थी तो पहले आईपीएल में क्यों नहीं शिवसेना जैसी कट्टरपंथी पार्टियों ने अपना विरोध दर्ज कराया।
रही बात पाकिस्तान की तो उनसे तो सभी तरह के संबंध तोड़ लेने चाहिये। चाहे वो खेल हो राजनीति है या व्यवसाय। क्योंकि जो देश हमारे खिलाफ षडयंत्र रचता रहता है उससे किसी प्रकार का संबंध गलत होगा। लेकिन शिवसेना की बात की जाये तो उनकी सोच एक दूसरे को हमेशा काटती है। कभी वो पश्चिमी सभ्यता के विरोध में वैलेंनटाइंस डे का विरोध करते है तो दूसरी तरफ माइकल जैक्सन के साथ गलबहियां करते नज़र आते है तो कभी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने के विरोध में पिच ही खोद डालते है, लेकिन यहां भी मियांदाद को खाने पर बुलाते है।
अब इसे क्या कहें, इन सवालों पर जवाह चाहे जो भी निकल कर सामने आये लेकिन इस मुद्दे पर यही कहना ठीक होगा कि शिवसेना इस पर खालिस राजनीति कर रही है। और इसी की आड़ में अपने छद्म हिंदुत्व की रोटियां सेंक रही है और कुछ नहीं।
प्रस्तुतकर्ता शशांक शुक्ला पर 8:20 pm 6 टिप्पणियाँ
लेबल: सामाजिक