होली की ठिठोली

रविवार, फ़रवरी 28, 2010

होली हैभाई होली है..बुरा न मानो होली है। इन शब्दों से जुड़ी कई यादें है जिनको याद करके बहुत भावुक महसूस करता हूं। होली एक अकेला ऐसा त्यौहार है जिसमें पाकर खुद को बहुत खुश महसूस करता हूं। होली में कोई बंदिश नहीं रहती है, धूप में सूख रहे पापड़, चिप्स हो या किचन में बन रहे रसगुल्लों पर भी । इनकी खुशबू से पता चल जाता है कि होली का महीना चल रहा है। मौसम मे भीं थोड़ी ठंडक रहती है तो दूसरी ओर गर्मी की धूप दस्तक दे रही होती है। पंखे भी आवाज लगा रहे होते है कि अब उनको चलाने का वक्त हो गया है। हवायें तेज़ी से सूखे पत्तों को हटाकर नई कलियां खिला रही होती हैं। पिता जी के चीनी मिल से ज़ुडे होने के कारण गन्नों से लदी गाडियों के शोर और उन पर लदे तरह तरह की वैरायटी वाले गन्ने की मिठास से ज़बान तो मीठी होती ही है मन भी मीठा हो जाता है।

यूं तो इस साल होली की तारीख एक मार्च है लेकिन सच मानिये हम और आपके स्कूलों में तो होली तीन चार दिन पहले ही शुरु हो जाती थी। क्लास मै बैठे बैठे अपने आगे वाली सीट पर बैठे बच्चे के सिर पर रंग डालकर पीछे से हट जाने का मज़ा अलग ही होता है। मज़ा तब और आता है जब उसको जाकर खुद बताओ कि उसके सिर पर किसी ने रंग डाल दिया है। थोड़ी सी नाराज़गी के बाद वही होता है कि बुरा न मानो होली है।

होली की छुट्टियों के शुरु होने के आखिरी दिन क्लास खत्म होने बाद मस्ती की जो पाठशाला शुरु होती है उसके रंग तन पर तो छपते ही है साथ साथ जीवन भर के लिये मन के कोने पर छाप डालते हैं। एक के पीछे रंगों की थैली लेकर भागना फिर, उसको पकड़कर पूरी तरह से रंगीन बना देना, आहहह..याद करता हूं तो काफी अच्छा लगता है। कोई लौटा देता वो प्यारे दिन तो वापस जीवन की गाड़ी को मोड़कर उस कालेज की सड़क पर खड़ा कर देता जहां पर जल्दी भागने वाले साथियों को पकड़ पकड़ कर रंगों से नहलाया करता था।

सुबह सुबह तेल लगाकर बाहर निकलने के बाद जब तक थक कर गिरने न लगे तब तक रंगों में डूबा रहना अब नहीं होता है। होली के दिन छुपे छुपे घूमने वालों को निकाल निकाल कर रंगने में अलग ही मज़ा है। लेकिन होली में सबसे बड़ी मुसीबत होती है स्कूल या कालेज की परीक्षायें जिनके शिड्यूल भी या तो होली एक दो दिन पहले से होते हैं या होली के दो दिन बाद, लेकिन होली की मस्ती थोड़ी देर के लिये उस मानसिक दबावों को भुलाने का मलहम जैसी लगती है।

पिछले कुछ सालों में ज़रुरत के हिसाब से होली की मस्ती में भी सावधानी का तड़का लगने लगा है। समय बदला है इसलिये हमें कुछ बातों में सावधानी तो बरतनी ही चाहिये। पक्के रंगों का प्रयोग से बचना चाहिये क्योंकि ये हमारी त्वचा को बहुत नुकसान पहुचाते है। जिस तेजी से हम और आपको पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है तो हमें इस बात के लिये भी थोड़ी सावधानी रखनी चाहिये कि पानी का कम इस्तेमाल करें। इस बार होली में सूखे रंगों का प्रयोग करें पानी का इस्तेमाल कम से कम करें,ताकी पानी को बचाया जा सके।

1411 एक टाइगर की फरियाद

शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2010






हैलो दोस्तों, कैसे हैं आप लोग। कैसी कट रही है ज़िंदगी। पहचान कौन....अरे नहीं पहचान पा रहे है। ये मै हूं। हो सकता है की तस्वीर देखकर कुछ याद आ जाये।

पहचाना, अरे मै वो बड़ा वाला नहीं हूं , वो तो मेरी मम्मा है। मै हूं छोटू टाइगर। हम दोनों आज घूमने निकले है पप्पा काम काज के चक्कर में अक्सर बाहर रहते है। आज बहुत दिनों बाद हम घूमने निकले है। क्या करें आजकल डर का माहौल इतना बन गया है कि घर से निकलना दूभर हो गया है। आपको तो पता ही होगी कि आतंकवाद इतना बढ़ गया है । मेरी मम्मा पप्पा मुझे घर से बाहर कम ही जाने देते है। वो कहते हैं कि बाहर बुरे लोग हैं। पता नहीं कौन बुरा है। मैने तो आजतक नहीं देखा ऐसा कोई। मुझे तो लगता था कि हमसे सब डरते हैं। जंगल में सारे मुझसे डरते है क्योंकि मेरे पापा बहुत ताकतवर है। ये देखों एक फोटो मैने पापा की खींची है शिकार करते हुए दांयी ओर।

देखा कितने ताकतवर है मेरे पापा इसी वजह से तो जंगल के सभी जानवर मुझसे डरते है। लेकिन पता नहीं पिछले कुछ सालों से दूसरों को डराने वाले हम खुद डर के माहौल में जी रहे है। और इसका कारण है कि आप लोग। देखो बुरा मत मानना लेकिन इसका कारण सिर्फ और सिर्फ आप लोग है। कौन कहता है कि आतंकवाद से सिर्फ मानवों का नुकसान हुआ है। हमारा भी नुकसान हुआ है। देखो आप लोगों ने ही हमारे साथ इतना बुरा किया है कि आज हमारी संख्या कम होती जा रही है। और सही बात दिल से कहूं तो जो आंकड़ें सरकार बता रही है उससे कही ज्यादा कम हमारी संख्या है।हमारे देश पर हमला हुआ ओर हमने कई नंबर बांट दिये। मुंबई पर हमला हुआ तो सबने 26/11 का नाम दे दिया। संसद पर हमला हुआ था तो हमने उसको 13/12 का नाम दे दिया। यहां तक की जब अमेरिका पर हमला हुआ तो सबने उसे 9/11 का नाम दिया। लेकिन कोई हमारी तरफ क्यों नहीं देखता। ये सरकार अच्छी है कि उसने शायद हमारी संख्या को बढ़ाकर 1411 कर दिया ताकी लोगों के ज़ेहन में ये बात बनी रहे जिस तरह बाकी नंबरों की यादें टिकी हुई है। अब आप ही सोचिये कि आंतकवादियों के हमले के बाद सबने उसमें मरने वाले लोगों को श्रंद्धांजली दी थी। यहां हमारे लोग मारे जा रहे हैं उस पर किसी का ध्यान नहीं गया। हमारे जैसे बाघों की पूछ करने वाले लोग कहां है यहां जो हमारा ख्याल रखा जाये।
अब क्या कहूं किससे शिकायत करुं। ये सरकार भी तो अपनी नहीं है कि हमारे लोगों के लिये कुछ करें। आपसे क्या कहुं आपको क्या पता अपने परिवार को खोने का दर्द क्या होता है। आप तो अपने शौक के लिये हमारा कत्ल किये जा रहे है। लेकिन आपको क्या पता कि जब मेरे दादा जी का शिकार किया गया था तो मै कितना रोया था। मेरे सर पर से मेरे दादा जी का साया उठ गया। आपके एक शौक ने मुझे लोरियां और कहानी सुनकर सोने से वंचित कर दिया। कभी कभी उस मंजर को सोचता हूं तो दिल दुखी होता है लेकिन क्या करुं कुछ कर भी तो नहीं सकता हूं क्योंकि उसके पीछे कारण क्या है आप भी अच्छी तरह जानते है और मै भी, आपको उस दिन की तस्वीरे दिखाता हूं, जिस दिन मैने उनकी लाश देखी थी उस दिन मै बहुत रोया था। आप भी देखिये उनकी तस्वीर।
अब तो इस वजह से हमारे परिवार की फैमिली प्लानिंग भी बदल गयी है। पहले मम्मी पप्पा मेरे भाई बहन की बातें करते थे लेकिन अब तो मै अकेला ही बचा हुआ हूं क्योंकि आप लोगों ने प्रदूषण को इतना बढा़ दिया है कि मेरे दो भाई बहन स्वर्ग सिधार गये। मै अकेला पड़ गया हूं। क्या करुं अब तो मां घर से बाहर नहीं निकलने देती है। मुझे याद है कि किस तरह मै और मेरे भाई चूहों का शिकार करते थे। खरगोश पकडा करते थे। उसमें मज़ा तो था ही खाना भी अच्छा था। अब तो कभी कभी भूखे भी दिन गुजारना पड़ता है।जंगल में इतनी भयानक आवाज गूंजती है कि मेरे दिल की धड़कन तेज हो जाती है। मां कहती है कि वो मानवों की आवाज है। पहले सोचता था कि जंगल में हमारी आवाज ही सबसे खतरनाक मानी जाती है लेकिन पहली बार मम्मा ने बताया कि वो मानवों की आवाज है। मै तो डर के मारे उनसे दुबक जाता हूं। लेकिन मैने एक बार झांडियों से छुपकर देखा था कि वो आवाज एक लंबी सी नली से आती है न की उनके मुंह से। लेकिन जैसी भी आवाज आती है भयानक तो आती ही है, उसके बाद हमारे लोगों का कत्ल भी होता है। रोता हूं जब उनको तड़प तड़प कर मरते देखता हूं।

आपको कुछ और भी बताना चाहता हूं। मेरी मम्मा ने एक बार चुपके से रात में मेरे भाई को दुनिया में लाने की बात की थी। लेकिन मेरे जिम्मेदार पप्पा ने उनको मना कर दिया। उनका कहना था कि उनकी जाति का अंत निकट है। एक तरफ लोग दुनिया के खत्म होने की बात साल 2012 में सभी कर रहे हैं लेकिन यहां तो पप्पा ने पहले ही अपने बच्चों को दुनिया में लाने से मना कर दिया। अच्छा है इसे कहते है जिम्मेदार पापा। आखिर कौन पिता चाहेगा कि उसके बच्चे दुनिया में आकर मानवों के शौक के लिये मारे जायें। अरे हम तो दूसरे जानवरों को मारते है लेकिन क्या करें वो हम अपनी भूख मिटाने के लिये करते है, लेकिन मनुष्यों ने तो हमें अपने शौक के लिये मारना शुरु कर दिया है, ये देखिये

इसमें अब आप लोग ही कुछ कर सकते है। आप लोग हमें बचाने के लिये मदद का हाथ बढ़ायें। हैती के भूकंप में तो आपने बहुत दान दिये है। कम से कम हमें बचाने के लिये भी कुछ कीजिये। आप मेरी घटती संख्या के बारे में बात कर सकते हैं। बाघ की खाल से बनी चीज़ों का बहिष्कार कर सकते हैं। क्योंकि आपके इस कदम से हमारे शिकार में कमी होगी। सरकार से भी कुछ अपील करना चाहता हूं कि प्लीज मेरे शिकार पर लगाम लगाई जाये। जब आप जैसे नेताओं को जेड श्रेणी की सुरक्षा मिल सकती है और पचास से ज्यादा सुरक्षाकर्मी आपकी सुरक्षा में लगे रहते है तो कम से कम आप मेरी सुरक्षा के लिये जंगल में सुरक्षाकर्मियों की संख्या बढ़ा ही सकते है।
आपसे अपील करता हूं कि आप मेरी रक्षा करें। क्योंकि मेरी मम्मा कहती है कि मनुष्य ही हमारे लिये बड़ा खतरा है ये पर्यावरण नहीं। पप्पा के पिता जी की मौत के बाद तो उन्होने ये मानना शुरु कर दिया है कि हमारे लिये तो आप ही आतंकवादी है। इसलिये आपसे तहेदिल से अपील कर रहा हूं कि मुझे मत मर मारो मै जीना चाहता हूं।




क्रिकेट का सुपरमैन !

बुधवार, फ़रवरी 24, 2010

सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का सुपरमैन कहें तो इसमें कोई दूजी राय नहीं हो सकती है। हां ये अलग बात है कि वो पैंट के उपर चढ्ढी नहीं पहनते है। लेकिन जिस तरह सचिन विरोधी टीम पर हावी होते है उससे इतना होता ही है कि कोई भी गेंदबाज उन्हें गेंद फेंकने से पहले अपनी पैंट को कस कर ज़रुर बांध लेता होगा।

साउथ अफ्रीका के साथ इस माइक्रोमैक्स मोबाइल कप के दूसरे वनडे में सचिन द्वारा बनाये गये नाट आउट दो सौ रनों की पारी मेरे ज़ेहन में तब तक रहेगी जब तक मेरी सांसे चलेंगी। दुनिया का हर क्रिकेट प्रेमी या खिलाड़ी जानता है कि सचिन की नकल अगर कोई कर सकता है तो वो सिर्फ सचिन तेंदुलकर ही है

सचिन की ये पारी उनके साथ साथ भारत के हर क्रिकेट प्रेमी के लिये अहम है। क्योंकि जब हमारी जेनरेशन अपने बुढापे को देख रही होगी तो कम से कम हम अपने बच्चों को ये कह सकते है कि हमने सचिन की वो पारी देखी थी जिसमें सचिन ने वन डे मैच में दोहरा शतक जमाया था। 

सचिन जैसे खिलाड़ियों को देखना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धी है। क्योंकि जिस खिलाड़ी का करियर बीस साल लंबा हो और जिस पर कभी खेल भावना का अपमान या किसी भी प्रकार का कोई आरोप न लगा हो, उसको खेलते देखना अपने आप में सुखद अनुभूति है। सचिन ने अपनी पारी में यही कोई पच्चीस चौके लगाये होंगे साथ ही तीन छक्के भी। लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्होने कभी इतने चौके या छक्के नहीं लगाये। पहली ही गेंद से लगने लगा था कि सचिन तेंदुलकर हो न हो कम से कम सैंचुरी मारकर ही जायेंगे। ये बात  सिर्फ इसलिये नहीं कह रहा हूं  क्योंकि मै सचिन का फैन हूं पर इसलिये भी क्योंकि पहली बार मुझे लगा कि आज सचिन शतक मारकर जायेगा। अक्सर मै पहले ही डर जाता था कि सचिन कहीं आउट न हो जाये, पर  ऐसा बिलकुल नहीं लगा यहां तक की सचिन के दोहरे शतक के करीब पहुंचने के बाद भी। इसको एक इत्तेफाक भी कह सकते है।

सचिन के दोहरे शतक में जितना बड़ा हाथ सचिन तेंदुलकर का है उससे भी ज्यादा बड़ा हाथ उनके साथ साझेदारी निभाने वाले दिनेश कार्तिक, युसुफ पठान, और महेंद्र सिंह धौनी का है। सचिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी दोहरे शतक को तोड़ते नजर आ रहे थे लेकिन दूसरे छोर से विकटों की पतझड़ ने एक दबाव पैदा कर दिया था इसी के साथ सचिन तेज़ खेलने के चक्कर में अंट शंट शाट खेलकर विकेट गंवा बैठे। लेकिन इस मैच में ऐसा बिलकुल नहीं हुआ। आज उनकी किस्मत में दोहरा शतक जमाना लिखा हुआ था।  सचिन ने ये दोहरा शतक नाबाद बनाया है यहीं नहीं उनको कोई जीवनदान तक नहीं मिला। पचास ओवर खेलने के बाद भी सचिन तेंदुलकर दो रनों के लिय भाग रहे थे। ये उनकी फिटनेस का नजारा था।

सचिन बिना दबाव के रन बनाते चले गये, जैसे ही सचिन सैचुरी के करीब आये उन्होने सिंगल,डबल पर भरोसा जताया, जब दोहरे शतक के करीब आये तब भी उन्होनें सिंगल डबल से ही अपना दोहरा शतक पूरा किया, इस तरह की बल्लेबाजी उनके एक्सपीरियंस को दिखलाती है। सचिन के बीस साल के करियर में एक समय ये भी आया था जब उनसे पारी की शुरुआत न करने की सलाह ने सचिन के साथ साथ सभी को हैरत में डाल दिया था,लेकिन सचिन की इस उम्र में खेली जा रही पारियों को देखकर कहीं से नहीं लग रहा है कि उनकी उम्र क्रिकेट से सन्यास लेने की हो रही है। सचिन की उम्र वाले ज्यादातर खिलाड़ी संयास लेकर क्रिकेट को देखना ही पसंद करते है लेकिन ये सचिन ही है जिनकी रनों की भूख आज भी वैसी ही है जैसी क्रिकेट के शुरुआती करियर में थी।

आने वाली पीढ़ी के लिये नई चुनौती पेश करने वाले सचिन रमेश तेंदुलकर के रिकॉर्ड  तब तक नहीं टूटेगा जब तक घुंघराले बालों वाला तेंदल्या अगले जन्म में क्रिकेट के मैदान में नहीं उतरेगा।

किस्मत क्या है ?

बुधवार, फ़रवरी 17, 2010

मन दुखी है इसलिये कुछ ऐसा लिख रहा हूं जिसको पढ़कर हो सकता है कुछ लोगों को अजीब लगे। ये भी हो सकता है कि कुछ लोग मेरी बातों से सहमत हो। लेकिन जो मेरे साथ  हो रहा है उसको देखकर पता नहीं क्यों मुझे महसूस हो रहा है कि जो लोग किस्मत को बलवान बताते है शायद वो सही कहते है।

बहुत दिनों से बेकार घर बैठने के बाद एक जगह से कॉल तो आई नौकरी के लिये, हां ये बात अलग है कि उस कंपनी की हालत खराब है और वहां पर लोगों को तीन तीन महीने से सैलरी के दर्शन तक नहीं हुए है, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों वहां से आये बुलावे ने मुझे वहां जाने के लिये मजबूर कर दिया। सोचा था कि जहां से करियर की शुरुआत हुई  और वहीं से लगभग अंत भी..तो मुझे लगा कि क्यों न जब एक और शुरुआत वहीं से करने को मिल रही है तो मौके का इस्तेमाल करना चाहिये। लोगों ने बहुत समझाया कि वहां जाना ठीक नहीं है, लेकिन घर बैठकर बेकार की बातें सोचने से अच्छा कहीं पर बिना सैलरी के काम करना है। वो भी तब जब आप खाली बैठे हों।

बुलावे पर चले तो गये,पर हालत सामान्य नहीं थे। बाकायदा वहां के एच आर से बात भी हुई, उन्होने इंटरव्यू भी लिया, चलो यहां तक तो ठीक था। अगले दिन ज्वाइनिंग का दिन था। ज्वाइनिंग का फार्म मेरे हाथ में था, मै उसको भरने ही जा रहा था कि अचानक मेरे फोन की घंटी बज उठी। मुझे फिर से एच आर के ऑफिस में तलब किया गया। वहां से मुझे वो अपने साथ न्यूज रुम की ओर ले गये। जहां पर बैठे ज्यादातर लोग मेरे जानकार थे। और शायद ज्यादातर शुभचिंतक भी। मुझे इंचार्ज से मिलवाया गया औऱ बस मै उनसे शिफ्ट की बात करने ही वाला था कि......

एक फोन बज उठा और उसको उठाने वाले व्यक्ति ने मुझको बताया कि एक बार फिर से मुझे एच आर के ऑफिस में बुलाया गया है। अब इस बार जो होने वाला था उसका मुझे अंदाज़ा कम ही था। क्योंकि जब आपके सामने सब कुछ ठीक चल रहा हो औऱ चीज़े फाइनल दौर में हो तो आल इज वैल...यहीं लगता है।

एचआर मुझसे पहले किसी और से बातों में मशगूल था। उनके बाद मेरा नंबर आया। कुछ देर चुप रहने बाद एच आर बोले
" शशांक देखो ऐसा है कि आपका समय बर्बाद करने के लिये सॉरी,
मैने पूछा क्यों सर क्या हुआ
देखो ऐसा है कि तुमसे पहले किसी को बुलाया था, पहले वो नहीं आ रहा था लेकिन अब आ गया है तो मै आपको अभी ज्वाइन नहीं करवा सकता हूं।

एक बार के लिये मै सन्न रह गया लेकिन फिर अपने आप को संभाला और एक सवाल दाग दिया
ठीक है सर पर..ये तो आपकी बात हुई...अब सच क्या है ये बता दीजिये

देखो शशांक तुम तो जानते हो..कभी कभी लगाई बुझाई की वजह से हमें नीचा देखना पड़ता है। अब क्या कह सकते है इससे ज्यादा। बस तुम्हारा समय खराब करने के लिये माफी मांग सकता हूं। इतना कह सकता हूं कि फिलहाल तुमको नहीं रख सकते।


मै उनके इस जवाब के बाद चुप हो गया और चुपचाप उनके कैबिन से निकल कर बाहर आ गया, न सिर्फ बाहर बल्कि बिलकुल बाहर। उनके इस जवाब के बाद मुझे ज्ञात हो गया कि हो न हो किसी ने मेरे खिलाफ कोई न कोई साज़िश रच डाली है। न्यूजरुम में बैठे मेरे शुभचिंतक लगने वाले लोगों में से कोई न कोई मेरा दुश्मन था जो मुझे पसंद नहीं करता। लेकिन सच कह रहा हूं आज तक कभी मैने किसी को अपना दुश्मन नहीं होने दिया है।

इस घटना के बाद अब सोचने को मजबूर हो गया हूं कि ये कैसा किस्मत का खेल चल रहा है। एक तरफ सब ठीक होता नज़र आता है तो दूसरी तरफ राजनीति का शिकार होता मै। किसको दोष दूं खुद को, कंपनी की पालिसी को या फिर उस आदमी को जिसने मेरे खिलाफ साजिश रची  है।

क्योंकि पहले मै वहां पर काम कर चुका हूं इसलिये मेरे काम के बारे में वहां काम करने वाले लोग अच्छी तरह से जानते है। लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है क्योंकि जिस देश का राजा निरंकुश हो वहां की हालत अच्छी कैसे रह सकती है। उसका को सर्वनाश उन्ही के पिछलग्गू ही करते है

वैलेंनटाइन्स डे और विरोधी

शनिवार, फ़रवरी 13, 2010

लो फिर आया  प्यार का त्यौहार.... 14 फरवरी  यानी वैलेंनटाइन्स डे। वैलेनटाइन्स डे और उसके विरोधियों का तो जैसे चोली दामन का साथ है। हर साल इसी दिन प्रेमी प्रेमिका को लाल गुलाब देता है तो वही दूसरी तरफ विरोधी भी प्रेमी जोड़ों के गालों पर लाल निशान भी दे देते है। यही दिन है जब एक ओर तो प्रेमी जोड़े हाथों में गुलाब लिये प्यार का इज़हार करते है तो दूसरी तरफ हाथों में तलवार लिये .संस्कृति के 'रक्षक'.....ओह माफ करियेगा.. राक्षस भी जोड़े बनाये रहते है।  जिन्हें अपनी राजनीति चमकानी है वो गिद्ध नज़र बनाये रहते है...और हमारे लैला मजनू खुद को बचाने के लिये पेंड़ों के पीछे घोंसले बनाये रहते है। अब क्या कहें पुरातन काल में ये वही समय था जब मुरली मनोहर सांवरे कृष्ण  गोपियों संग रास भी रचाया करते थे। लेकिन क्या करें ये विरोधी भी  यही समय होता है ख़ुद की उपस्थिति दर्ज कराने का  साथ ही अपनी राजनीति चमकाने का। आखिर ये कौन लोग हैं जो समाज को संस्कृति का पाठ पढा रहे हैं । क्या कभी इन्होने भगवान कृष्ण के बारे नहीं सुना। जहां आज कल लोगों के पास इतना समय नहीं होता कि वो अपने परिवार के साथ कुछ पल बिता लें  वहीं इन लोगों के पास इतना फालतू समय है कि ये लोग काम धाम छोड़कर हाथों में बैनर लिए... नारे लगाते हुए गलियों में , सड़कों पर और पता नहीं कहां कहां चक्कर लगाते है।

एक बात समझ के परे है कि ये लोग तब कहां रहते है जब बलात्कार के आरोपियों को सालों  साल सजा तक नहीं मिल पाती। आखिर ये कौन लोग हैं जो समाज को संस्कृति का पाठ पढ़ाते हैं । कितना जानते है ये विरोधी... जो वैलेनटाइन डे का विरोध करते है। इस विषय में सिवाय इसके कि ये पश्चिमी सभ्यता का पर्व है कितना जानते है ?  हीर रांझा, सोहनी महिवाल, राधा कृष्ण का नाम तो इज्जत लेते है...लेकिन रोमिया जूलियट का नाम इनके दिलों में चुभता है। तालिबान की रीति या नीति का विरोध तो बहुत करते हैं पर क्यों नहीं सोचते की अंजाने में  या फिर जानकर भी हम उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रहे हैं।

शिवसेना और शाहरुख़ 'ख़ान'

बुधवार, फ़रवरी 03, 2010

क्या इंडियन प्रिमियर लीग इस बार भी सुखद तरीके से हो पायेगा। क्योंकि जिस तरह नीलामी के बाद से ही बबाल मचना शुरु हो गया है उसे देखकर लगता है कि आईपीएल के वापस भारत में होने वाले जो एडवर्टीज़मेंट बेकार हो जायेंगे है। शिवसेना जिसका दूर दूर तक किसी भी खेल से कोई वास्ता नहीं है उसको भी इस मामले पर नया मसाला मिल गया है। शाहरुख ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खरीदने की बात क्या की...शिवसेना का भारत प्रेम जाग गया। मजेदार बात ये है कि ये वहीं शिवसेना है जिनके यहां पर कभी पूर्व पाकिस्तानी कप्तान जावेद मियांदाद बाकायदा भोजन पर बुलाये गये थे।

शिवसेना प्रमुख और उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने शाहरुख को तो देशद्रोही तक मानने लगे है और पाकिस्तानी खिलाड़ियों के मुद्दे पर किंग खान को माफी मांगने को कह डाला है। शाहरुख ने भी माफी न मांगने दम्भ भरा है। क्योंकि ये तो सौ फीसदी सत्य है कि शाहरुख ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खरीदने की बात कही थी, लेकिन इसके पीछे का कारण है खिलाडि़यों की उपलब्धता। कोई भी टीम ये नहीं चाहती है कि उनके खिलाड़ी टीम के लिये उपलब्ध न हो सके। इसलिये किसी भी टीम ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खरीदने में रुचि नहीं दिखाई।

लेकिन सवाल ये है कि क्या पाकिस्तानी खिलाडि़यों को खरीदना ज़रुरी है या नहीं। और अगर ज़रुरी है तो वो इसलिये क्योंकि वो इस वक्त ट्वेंटी ट्वेंटी चैम्पियन है। चैम्पियन होने के नाते पाकिस्तानी खिलाड़ियों को तवज्जो न मिलना इस बात को दर्शाता है कि कोई न कोई दूसरा कारण ज़रुर है जिसकी वजह से उन खिलाड़ियों को नहीं खरीदा जा रहा है। टीमें अपना कारण बता चुकी है शाहरुख भी इसी कारण से अपना पक्ष रख चुके है। शाहरुख के अपने पक्ष ने ही उनको मुसीबत मे डाल रखा है। शिवसेना जैसी कट्टरपंथी सिर्फ इसलिये ही दबाव बना रहे है क्योंकि इसमें पाकिस्तानी खिलाड़ियों का नाम है । हां ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का भी विरोध हो रहा है लेकिन शिवसेना का मुख्य मकसद पाकिस्तान के नाम पर शाहरुख को लपेटना है क्योंकि उनका नाम शाहरुख खान है। औऱ ये बात किसी से छुपी नहीं है कि शिवसेना किस कदर कट्टरपंथी है।

पाकिस्तानी खिलाड़ियों को न लेना या लेना इससे उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये पाकिस्तानी खिलाड़ियों का लालच है जो न लेने पर उन्हें बैखलाये दे रहा है। पाकिस्तानी खिलाड़ियों के लेने या लेने के मुद्दे पर हर कोई इस मुद्दे पर एक दूसरे के पाले में डाल रहा है क्योंकि इस मामले में पाकिस्तानी खिलाड़ियों का नाम है। अगर कोई और देश होता तो शायद इतना बबाल न होता। पाकिस्तान से भारत की दुश्मनी सालों से चली आ रही है लेकिन आज के मुद्दे पर ये कहना है कि मुंबई पर हुए हमले की वजह से पाकिस्तानी खिलाडियों को न लिया जाए। अपनी जगह सही है लेकिन शाहरुख को गलत ठहराना कि वो पाकिस्तान जाकर बस जायें, ये तो शिवसेना द्वारा  हिंदुत्व की गलत परिभाषा है। शाहरुख को सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से निशाना न बनाया जाए। अगर दिक्कत थी तो पहले आईपीएल में क्यों नहीं शिवसेना जैसी कट्टरपंथी पार्टियों ने अपना विरोध दर्ज कराया।

रही बात पाकिस्तान की तो उनसे तो सभी तरह के संबंध तोड़ लेने चाहिये। चाहे वो खेल हो राजनीति है या व्यवसाय। क्योंकि जो देश हमारे खिलाफ षडयंत्र रचता रहता है उससे किसी प्रकार का संबंध गलत होगा। लेकिन शिवसेना की बात की जाये तो उनकी सोच एक दूसरे को हमेशा काटती है। कभी वो पश्चिमी सभ्यता के विरोध में वैलेंनटाइंस डे का विरोध करते है तो दूसरी तरफ माइकल जैक्सन के साथ गलबहियां करते नज़र आते है तो कभी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने के विरोध में पिच ही खोद डालते है, लेकिन यहां भी मियांदाद को खाने पर बुलाते है।

अब इसे क्या कहें, इन सवालों पर जवाह चाहे जो भी निकल कर सामने आये लेकिन इस मुद्दे पर यही कहना ठीक होगा कि शिवसेना इस पर खालिस राजनीति कर रही है। और इसी की आड़ में अपने छद्म हिंदुत्व की रोटियां सेंक रही है और कुछ नहीं।

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