क्या है धार्मिक उन्माद....कौन है कट्टर..

गुरुवार, जून 18, 2009


मुझसे किसी न सवाल किया कि धार्मिक उन्माद क्या है..असल में उन्होने सवाल किया कि उनके कौन से लेख से मुझे लगा कि उन्होने धार्मिक उन्माद फैलाने कि कोशिश की है...
यहां तक की मुझे तो किसी ने आऱ एस एस का कार्यकर्ता ही घोषित कर दिया...लेकिन मै पूछना चाहता हूं कि अगर कोई अपने ब्लाग पर सिर्फ धर्म से जुड़े मुद्दों के बारे में लिखे तो उसे आप क्या कहेंगे...कुछ लोग उसे कहेंग कि वो धार्मिक कट्टर है पर मै इस बात को नकार देता हूं उस वक्त मेरी नज़र में वो ठीक है और बिलकुल एक आम आदमी की तरह आपने धर्म से जुड़ी बातें करता है और कुछ नहीं....लेकिन दिक्कत उस वक्त शुरु हो जाती है जब वो शख्स ये कहने लगे कि मेरे धर्म में जो लिखा है उसके हिसाब से अगर कोई रहने लगे तो समाज सुधर जाएगा..और वही आदमी दूसरे धर्मों के विषय में गलत बातें लिखने लगे और कहे कि ये सच है तो....उस वक्त मेरे विचार से ये गलत होगा....क्यों आपके धर्म में जो बातें लिखी है वो ठीक होंगी सच होंगी इसका मतलब ये तो नहीं कि जो बातें आपके धर्मिक पुस्तकों में लिखीं हो वो ही सही हैं और दूसरों की पुस्तकों में जो लिखा है वो गलत...बेशक आप व्याख्यानों के महारथी हों...किसी पेड़ को देखकर कल्पवृक्ष की संज्ञा तक देकर उसका व्याख्यान करें लेकिन इस वक्त आप धार्मिक उन्मादी की श्रेणी में आ जायेंगे..क्यों कि उस वक्त आप तो अपने धर्म की अच्छी बातों को नहीं कह रहे होते है दूसरे के धर्म को गलत ठहराने में व्यस्त होते हैं...आप जो लिखें ठीक लिखें अपने से मतलब रखें किसी और को गलत न कहें खासकर धर्म से जुड़े मसायल पर क्योंकि धर्म कुछ नहीं होता...होता है जीवन जीने के तरीका या ढंग जिसका निर्माण हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए किया ताकि हम इस जीवन को सलीके से जिंए न की दूसरे को गलत ठहराकर खुद को ज्यादा अच्छा दिखायें....ये बात सभी धर्मों पर लागू होती है.... इन बातों को किसी भी धर्म के अनुयायी अपना सकते हैं...धर्म धर्म करते रहते हैं कभी ये भी कहा है कि क्यों भाई साहब कहीं मेरे इस काम आपकों कोई परेशानी तो नहीं हो रही है...ये बात ठीक है कि किसी के कहने पर आप कुछ बदल नहीं सकते औऱ बदलना भी नहीं चाहिए पर समझना तो चाहिए....मेरे इस लेख हो सकता है कि आपके समझ में आया हो जिसको समझाने के लिए मैने इतना समय दिया इस लेख को बात को समझे...धर्म कुछ नहीं मात्र एक जीवनशैली है

2 टिप्पणियाँ:

shukla ji mai aap ke vicharo ka ab bahut prabal samathk ho gaya hun likha aap ne hai par lag raha hai ki jaise maine likha ho yek dam samaan vichaar dharm ke bare me bilkul yahi rai meri bhi hai dharm vo nahi jo sabhi ko yek chij manne ke liye majbur kare balki vo hai hai jo unki suvidha aur avsykta ke hisab se karne ka amantarn de
sabhi logo ko jabardshati kisi yek baat ko mane ke liye majbur karnna keval krurta hi hai aur kishi yek vichar dhara ko hi sahi aur sarv many vichar dhara kahna sabse badi murkhta
bahut accha likha hai mai aap se
aage bhi aur communicate karna chahunga
saadar
praveen pathik
9971969084

धन्यवाद प्रवीण जी आपने मेरे विचारों का समर्थन किया हैं। आपसे संपर्क बना रहेगा

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