ऑस्ट्रेलिया.... इस देश का नाम आते सबसे पहले हमारे दिमाग में जो तस्वीर उभर कर आती है वो है वहां की क्रिकेट टीम...बेहतरीन खेल से वहां के खिलाड़ियों ने क्रिकेट की दुनिया में अपना खौफ़ कायम कर रखा था। लेकिन आजकल इस देश की चर्चा वहां के खिलाड़ियों के बेहतरीन खेल की वजह से नहीं बल्कि वहां पर हो रही हिंसा की वजह से हो रही है। ये हिंसा एक आम हिंसा नहीं है और न तो हो सकती है। इस हिंसा का शिकार हो रहे सिर्फ भारतीय। कभी तो वो छात्र होते हैं तो कभी वहां पर काम करने वाले आम भारतीय....पिछले कुछ महीनो पर नज़र डालें तो हम पायेंगे कि किस तरह से वहां पर हिंसा का दौर रुक नहीं रहा है औऱ जिसका शिकार भारतीय छात्र हो रहे हैं। इन हमलों में वहां की सरकार तो इस आम लूट पाट के लिए होने वाला हमला बता रही है पर असल में ऐसा है नहीं। वहां पर पिछले चालीस सालों से ज्यादा समय से भारतीय रह रहे हैं और वहां हमेशा से ही भारतीयों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता था। न सिर्फ भारतीय बल्कि वो देश जो विकासशील थे या ये कहें कि ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले कम अमीर थे। उस वक्त यहां के लोगों में भारतीयों या यहां के लोगों प्रति कोई गलत भावना नहीं थी क्यों जिस तरह कम पैसे वाले या बेहाल को देखकर हम उनपर दया दिखाते हैं लेकिन जब वो हमसे आगे निकलने लगते है उस वक्त हमें जलन होती है उसी तरह जबा ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों का वर्चस्व बढ़ने लगा या कहें कि भारतीय पैसों के मुकाबले और अमीर होने लगे तो वहां के निवासियों को ये गवांरा नहीं हो रही है। यहीं कारण है कि वहां रह रहे 7 हज़ार टैक्सी चालकों में से साढ़े पांच हज़ार सिर्फ भारतीय ड्राइवर हैं और उन पर हमले के मामले कम होते हैं लेकिन पढ़े लिखे सभ्य़ और आर्थिक रुप से मजबूत भारतीयों या छात्रों पर लगातार हमलें हो रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के बारे आप वहां के खिलाड़ियों के बर्ताव से पता लगा सकते है कि कभी भी इंग्लैड और साउथ अफ्रीका या बड़े देशों के खिलाड़ियों से उनकी झड़पें कम होती थी लेकिन भारतीय, श्रीलंका, पाकिस्तान जैसे देशों से उनका बर्ताव मैदान पर भी दिख जाता है...भारतीय खिलाड़ियों से उनकी झड़पें तो कई बार सुर्खियां भी बटोर चुकी हैं। वहीं बांग्लादेश जैसे देशों से उनकी झड़पों की ख़बर नहीं आती है..क्यों? ...इसकी जवाब है कि ये देश उनकी वर्चस्व को चुनौती देती नहीं दिखती हैं। भारतीय खिलाड़ियों से उनके दुश्मनी का कारण यही है कि क्यों कि भारतीय उनके वर्चस्व को चुनौती देते थे। इसका सबसे चर्चित उदाहरण है आई पी एल में जब कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाड़ी अजीत अगरकर को की गई नस्लीय टिप्पणी जिसमें ऑस्ट्रेलियन कोच ने किस तरह उनसे कहा था कि ....तुम भारतीय वहीं करो जैसा कहा जाये... इस बात से सहज़ ही अंदाजा लग जाता है कि किस तरह गुलाम रखने की मानसिकता के साथ के पले ऑस्ट्रेलिया के लोग भारतीयों को अपने से नीचे समझते हैं और जब उनको इसकी चुनौती मिलती है तो इस तरह कि नस्लीय हिंसा समाने आती है। और ये हिंसा कई सालों से आ रही जब से भारत आर्थिक रुप से प्रगति कर रहा है। और एक बात औऱ कि ये हालात सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में नहीं है सभी जगह शुरु होने वाले हैं क्यों कि सभी जगह आर्थिक मंदी है और भारतीयों के इसकी फिक्र नहीं हो क्यों भारत में इसका ज्यादा असर देखने में नहीं आया है। इसलिये इसका समाधान कुछ नहीं है कोई भी सरकार इसका हल नहीं निकाल सकती है। क्यों कि इस सोच का हल नहीं है। हां एक चीज है जो हो सकती है और वो ये कि सभी भारतीय एकजुट होकर रहें औऱ सभी घटनाओं का मुंहतोड़ जवाब दें.....
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
3 दिन पहले
1 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर लिखा आपने...हम ये चाहते है कि कभी भी रैगिंग न हो...सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए
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