मै जहां काम करता हूं॥वहां अजीब सा माहौल रहता है॥सभी लोग अपने काम व्यस्त रहते हैं पर सभी को पता रहता है कि उनकी मेहनत का फल उन्हें नहीं मिलने वाला और अगर मिलेगा भी तो इतना घिसना पड़ेगा कि आपकी इच्छा ही मर जाएगी...यहां पर लोगों पता है कि उनकी सैलरी इतना घिसने के बाद आएगी कि तब तक आप को अपना स्वाभिमान बेच कर दूसरों से उधार तक लेना पड़ेगा॥यहां तक की सैलरी इतनी देर से आती है कि लोगों को ये याद तक नहीं रहता कि उनकी कौन से महीने की सैलरी रुकी पड़ी है...बड़े ही धूम धाम से बड़े बैनर का नाम देखकर आए लोगों की हालत ये है कि अब कोई काम ही नहीं करना चाहता और सिर्फ खानापूर्ति करते रहते हैं...जहां पर आपकी मेहनत को कोई देखने वाला न हो ॥आपके अच्छे काम को कोई सम्मान न दे वहां ऐसे ही काम होता है॥हां एक बात है कि ऐसी जगहों पर ऐसे लोग काम करते हैं जो दूसरों की ग़लतियों पर बहुत ध्यान देते हैं॥इसलिए ऐसी जगहों पर काम बस काम होता है पूजा नहीं ...और जिस काम को आप पूजा समझकर ना करते हों वो काम कभी भी पूरा नहीं होता और अगर हो भी जाता है तो बस हो ही जाता है.....ऐसे काम के शिकार लोग यहां ज्यादा मिलते हैं....शिकार बने लोग बस तड़पते हैं बच नहीं पाते...इसी का शिकार यहां वो बच्चे हो रहे हैं जो आए तो उसी फर्म के इंस्टिट्यूट से जहां वो काम करते हैं पर ये भी यहां सिर्फ शोषित हो रहे हैं...जो काम तो कर रहे हैं लेकिन उन्हें उनका मेहनताना नहीं मिल रहा है......सिर्फ कोल्हू के बैल की तरह काम कर रहे हैं और फ्री का मजदूर किसे नहीं अच्छा लगता है॥ये फर्म भी यही चाह रही है और इन छोटे बच्चों को फ्री के मजदूरों की तरह जब तक ज़रूरत हो उनका ख़ून चूसते रहेगें काम करवाते रहेंगे लेकिन देंगे कुछ भी नहीं और जब ये बच्चे मांग करते रहेंगे तब तक टरकाते रहेंगे और जब हद हो जाएगी या कहें कि ज़रुरत पूरी हो जाएगी तो फेंक देंगे॥सवाल ये है कि क्या सभी फर्म में ऐसा ही होती है??????
मेरे बारे में
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- शशांक शुक्ला
- नोएडा, उत्तर प्रदेश, India
- मन में कुछ बातें है जो रह रह कर हिलोरें मारती है ...
कुछ और लिखाड़...
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2 टिप्पणियाँ:
ऐसा सभी जगह नही होता पर कई संस्थानो मे होता है। पूर्व मे जमीदार अपने असामियों से बेगार करवाते थे, अब उन जमीदारों के स्थान पूँजीपतियों ने ले लिया है। यह जग की रीति है ताकतवर कमजोरों को सताता है परन्तु अंततः वह पराजित ही होता है भले ही उसमे समय लगे। अपने हाथ केवल मेहनत एवम् ईमानदारी है, अच्छा कर रहे हो और अच्छा करते रहो सब्र का फल निश्चित रूप से मीठा होता है, और आपके सब्र का फल भी मीठा अवश्य होगा, निरीश न हों।
अपने बेबाक अंदाज़ और अपने मन की आग को बरक़रार रखें। इंशा-अल्लाह... आने वाला वक़्त इस तरह की ओछी पत्रकारिता करने वालो को जवाब जरुर देगा । और हां... आने वाला वक़्त हमारा है ।
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