ये एटीएम देश का बंटवारा करवायेगा!!!!

रविवार, अक्तूबर 11, 2009

देश का बंटवारा शुरु हो गया है, इसकी शुरुआत की है बैंकिंग सेक्टर ने, अब ये बात आप को जैसे ही पता चली होगी आपको सदमा ज़रुर लगा होगा। कल शाम जब मै कुछ पैसे निकालने एटीएम गया तो आम दिनों के अलावा मेरी आंखों ने जो देखा वो सच में हैरत में डालने वाला था। मै अपने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम पर गया ।

जहां मैने देखा कि वहां पर उसे ऑपरेट करने के लिये कुछ भाषाओं के विकल्प दिये रहते हैं। पिछले कुछ दिनों से मै देख रहा हूं कि पहले वहां पर दो ही भाषाओं के विकल्प दिये रहते थे और वो थे अंग्रेजी (जो कि जल्द ही हमारी मातृभाषा में तब्दील होने वाली है)। और दूसरा विकल्प थी हमारी वर्तमान तथाकथित मातृभाषा और कई ऑफिसों कि राजभाषा हिंदी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से वहां पर एक तीसरी भाषा ने भी अपने स्थान बना लिया है और वो है पंजाबी भाषा। मै उस वक्त सन्न रह गया जब मैने इस तीसरे विकल्प को देखा। हो सकता है कि मेरी नज़र सिर्फ कल ही पड़ी हो लेकिन ये तो तय है कि बहुत पहले से ही भाषा के तीसरे विकल्प के तौर पर चिपका हुआ होगा। उस वक्त दुख हुआ जब उस तीसरे विकल्प को मैने देखा। दुख इस बात का था कि एटीएम चलाने के लिये अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल तो एक बार के लिये समझ में आता है, दूसरा हिंदी का होना भी अच्छा लगता है कि चलो कम से कम हमें अपने ही देश में अपनी राजभाषा में एटीएम चलाने को मिलता है, लेकिन अब ये पंजाबी, कमाल है....

पंजाबी भाषा में कोई बुराई नहीं है लेकिन हिंदी होने के बावजूद पंजाबी का होना या फिर किसी और भाषा का होना क्या दर्शाता है। जिस आदमी को पंजाबी ही आती है वो पंजाबी में एटीएम चला ले, क्या हिंदी जानने के लिये उसे मेहनत नहीं करनी चाहिये जो कि हमारी राष्ट्रभाषा है साथ ही मातृभाषा भी। मातृभाषा कहने में बहुत लोगों को परेशानी तो हो रही होगी ये बात तो पता चलती है लेकिन क्यों ?? ये पता नहीं चलता। कम से कम हिंदी को राष्ट्रभाषा तो कह ही सकते हैं। कम से कम राष्ट्रभाषा का अपमान नहीं करना चाहिये। यहां एटीएम में पंजाबी विकल्प होने को गलत नहीं बताया जा रहा है। बल्कि पंजाबी भाषा की ज़रुरत को कटघरे में खड़ा कि या जा रहा है। पंजाबी भाषा को एटीएम में रखने के पीछे उसे बढ़ावा देना गलत नहीं है लेकिन क्या एटीएम में हिंदी भाषा होने के बावजूद पंजाबी विकल्प की ज़रुरत है???? और अगर है तो क्यों ? इस विकल्प के बाद एक बात दिमाग में खटकती है कि भाषा के आधार में हिस्से करने का ये एक तरीका भी हो सकता है जिस तरह चीन जम्मू कश्मीर के लोगों वीज़ा के साथ साथ एक अलग तरह का पत्र भी दे रहा है। ताकि यहां के लोगों को लगे कि वो कुछ अलग है आखिर ज़रुरत क्यों है????

आखिर में इससे ज़ुड़ा हुआ एक और मजे़दार मुद्दा। मै इस एटीएम के बाद आईसीआईसीआई

के एटीएमपर गया जहां पर मै यही देखने गया था कि क्या वहां पर भी कई ऑप्शन मौजूद हैं । तो मैने देखा कि वहां पर भी तीन भाषाओं का विकल्प मौजूद मिला और फिर उसके पीछे का कारण सोचकर मै हंसी से लोटपोट हो गया।
वहां पर भी तीन विकल्प थे हिंदी, अंग्रेज़ी, और....मराठी। अब मराठी क्यों है इसके पीछे क्या कारण है इसके लिये आपको अपने आईसीआईसीआई के मुख्य शाखा के बारे पता करना होगा जहां से आपके एटीएम बनकर आते है और सारा कामकाज असल में चलता है। चलिये मै बता देता हूं आपके एटीएम कार्ड बनकर आते हैं मुंम्बई से ..और क्या वहां काम करना कोई आसान काम है ?? वहां पर तो "राज" चलता है। अब ये मत पूछना किसका 'राज' चलता है।

6 टिप्पणियाँ:

मुनीश ( munish ) ने कहा…

That is really unfortunate ! This way every one will be asking for one's own regional tongue.

Varun Kumar Jaiswal ने कहा…

भाषाओँ के मामले में आपकी सोच काफी ओछी है |
सोच का दायरा बढायें , आखिर आप को जब अंग्रेजी की गुलामी से समस्या नहीं है तो फिर दूसरी स्थानीय भाषा से ये अलर्जी क्यों ?

वरुण जी आप मेरी इस पोस्ट का मूल सार समझ नहीं सके है। मैने अंग्रेज़ी को सिर्फ एक भाषा के तौर पर इसलिये स्वीकारा है क्योंकि पहले इस तरह की टेक्नॉलजी अग्रेज़ी भाषा में ही उपलब्ध थी,इसलिये वो अग्रेजी में ही भारत आई,इसलिये एक बार को तो इसको स्वीकार किया जा सकती है। क्या आप इस बात को नहीं स्वीकार करते है। मै यहां पर हिंदी भाषा के विकल्प होने के बाद भी किसी अन्य भाषा के विकल्प होने का सवाल उठा रहा हूं। चाहे वो अंग्रेजी ही क्यों न हो?

निशाचर ने कहा…

शशांक जी, किसी प्रदेश में वहां की स्थानीय भाषा में सुविधाए या निर्देश उपलब्ध करने में कोई बुराई नहीं है. यह सच है कि हिंदी हमारी राजभाषा है परन्तु वास्तविक स्थिति क्या है यह सर्वविदित है.

वास्तव में हिंदी अपना वांछित स्थान इसीलिए नहीं प्राप्त कर पाई क्योंकि राज्यों की स्थानीय भाषाओँ के लुप्त हो जाने का भय दिखाकर इस देश में ही इसका विरोध करने के लिए लोगों को भड़काया गया.

मेरा मानना है कि विकल्प दो ही होने चाहिए- हिंदी तथा स्थानीय भाषा. स्थानीय लोग अपनी भाषा का प्रयोग करेंगे और जो लोग बाहरी प्रदेशों से आयें हैं वे हिंदी का उपयोग करेंगे. इस प्रकार हर देशवासी को संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को सीखने की आवश्यकता महसूस होगी. इससे न सिर्फ स्थानीय भाषा को बढावा मिलेगा बल्कि हिंदी को भी उसका अपेक्षित स्थान प्राप्त होगा.

आप एक बात पर गौर करें- जो हिन्दीभाषी हैं वे स्वयं भी हिंदी का उपयोग कितना करते हैं? ATM में हिंदी का विकल्प मौजूद रहते हुए भी वे अंगरेजी को ही चुनते हैं. बैंक, रेलवे रिसर्वेशन, होटल के चेक इन रजिस्टर, हाऊसिंग सोसाएटी के एंट्री रजिस्टर आदि में वे अंगरेजी का ही प्रयोग करते हैं क्योंकि उन्हें शुरू से ही अंगरेजी शिक्षा प्राप्त हुई है और हिंदी को सीखने या उसका उपयोग करने की बाध्यता कभी उनके सामने नहीं आयी. और असल समस्या यही है. इसलिए स्थानीय भाषा का विकल्प देना स्वागत योग्य है और साथ ही अंगरेजी विकल्प को हटा देना अच्छा होगा.

ashokemehta ने कहा…

बहुत बेकार कि बात कि है आपने अरे कोई अच्छी बात लिखो भाई और शीर्षक भी ठीक बनाओ.

सतीश पंचम ने कहा…

आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि आसाम में एक बैंक मैनेजर को एक हफ्ते की छुट्टी लेकर घर भागना पडा था क्योंकि ATM में आसामी भाषा नहीं थी और उल्फा वाले पीछे पड गये थे।

ये भाषा का मामला है ही बहुत पेचीदा। स्थानीय स्तर पर जो भाषा चलती है उसे आम स्थानीय लोगों के सुविधा के लिहाज से रखा जाता है। उस पर नाक भौं सिकोडना ठीक नहीं।

लेकिन गलत तब है जब भाषा के नाम पर कट्टरता बरती जाय, मार पीट की जाय, तोड फोड की जाय। तब गलत कहा जा सकता है।

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