क्या हमें ज़रुरत है 911 की?

शुक्रवार, सितंबर 25, 2009


मै एक दिन हॉलीवुड की फिल्म देख रहा था। फिल्म की कहानी इस तरह थी कि एक कामकाजी आदमी जो अपने घर में अपनी बीवी और बच्चों के साथ रहता है। एक रात जब वो सो रहे थे तो उनके घर में उन्हें कुछ खटपट की आवाजें सुनाई देती है। पति पत्नी दोनों की नींद खुल जाती है। पति अपने हाथों में बेसबॉल का बैट लिये आगे बढ़ता है, उसके पीछे उसकी पत्नी चलती है, बेसबॉल का बैट लिये वो अपने बेटे के कमरे की तरफ जाता है, वहां पहुंचकर वो देखता है कि उसका बेटा ठीक है, फिर वो देखता है कि उसी कमरे की खि़ड़की खुली होती, ये देखकर उसे विश्वास हो जाता है कि उसके घर में कोई चोर घुस आया है। उस चोर की तलाश में वो बाकी कमरों की तरफ बढ़ता है । तभी उसे ज़ोर का धक्का लगता है। वो गिर पड़ता है औऱ चोर बाहर की तरफ भागने लगाता है, वो चोर के पीछे भागता है और फिर चोर के सर बेसबॉल का बैट मारता है वो गिर पड़ता है। उसकी बीवी तुरंत फोन उठाती है और फोन करती है। तभी थोड़ी देर में पुलिस आ जाती है। पुलिस वाला उसे कहता है कि चोर मर चुका है और हीरो को जेल जाना पड़ता है। पुलिसवाले से हीरो की पत्नी कहती है कि जब चोर उसके घर में घुस आया था तो उसे क्या करना चाहिये था अगर उसे मारना गलत था तो क्या करना चाहिये था। उस पुलिसवाले ने कहा आपको घर का सुरक्षित कोना पकड़कर 911( नाइन वन वन) पर फोन करना चाहिये था। बस।

मेरा दिमाग घूम गया। मैने सोचा कि क्या हिंदुस्तान में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं होनी चाहिये। क्या आपने कभी 100 नंबर डायल किया है। पता नहीं अक्सर मैने उस पर किसी को उठाते नहीं देखा। यहां तक कि एक बार मैने गाज़ियाबाद के कविनगर के पुलिस स्टेशन का लैंडलाइन नंबर लगाया तो वहां भी किसी ने फोन नहीं उठाया, हालांकि मुझे कुछ खास जानकारी नहीं चाहिये थी लेकिन फिर भी ज़रुरी काम होता तो!!!!

मुझे महसूस होने लगा कि अगर विदेशों की तर्ज पर भारत में इस तरह की एक केंद्रीय़कृत व्यवस्था होनी चाहिये। जहां पर क़ॉल करने पर वहां से एक ही जवाब आये " बतायें आपकी इमरजेन्सी क्या है" कहां से बोल रहे हैं और साथ में कुछ ज़रुरी सलाह देकर रुकने को कहे और पांच से दस मिनट के अंदर ही पुलिस या फायर ब्रिगेड या एंबुलेंस भिजवा दे। क्या आपको नहीं लगता कि इस तरह की कुछ व्यवस्था होनी चाहिये। इस तरह की व्यवस्था होने के बाद कही न कही सुरक्षा व्यवस्था काफी हद तक ठीक हो जायेगी। एक ऐसा नंबर हो जहां पर कॉल करने के बाद जिस तरह से मोबाइल के काल सेंटर्स में कई लोग मदद के लिये चौबीसों घंटे उपलब्ध रहते है। उसी तरह 911 की तर्ज पर एक ऐसी व्यवस्था हो जहां पर कॉल करने के बाद वो हमारी डिटेल लेने के बाद हमें हर तरह की मदद पहुंचा सके। हममें से कई लोगों को ये पता होगा औऱ मुझे भी पता है कि पुलिस को बुलाना है तो 100 नंबर डायल करों और 101, 102 डायल करो फायर ब्रिगेड, औऱ एंबुलेंस के लिये। लेकिन हममें से ही कई लोगों को नहीं भी पता ये सारे नंबर।


सोचिये जब हमें कोई इंमरजेंसी होती है तो कैसे हमें कितने नंबर याद रहते है। सोचिये कि सिर्फ एक नंबर डायल करने पर ही हमें पुलिस, फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस, या कई अन्य तरह की मदद मिल जाये। हमें ज़रुरत है। लेकिन क्या इसका पता हमारे राजनेताओं को है। नागरिकों को एक खास नंबर देने की प्रणाली कई देशों में अपनायी जा चुकी है बहुत पहले से, लेकिन उस वक्त किसी को इस बात का ख्याल नहीं आया कि हमारे देश में भी इस तरह की कोई व्यवस्था होनी चाहिये। जब आतंकवादियों ने हमले करने शुरु किये और ये पता चलने लगा कि हमारे देश में भी छेद करने वाले नागरिक, और बाहरी देश के नागरिक देश को बर्बाद करने में लगे हुये है तो इस व्यवस्था की ज़रुरत सबको महसूस होने लगी है। उसी तर्ज पर हमारे देश में भी अब सभी नागरिकों को एक विशेष नंबर दिए जायेंगे जो उनकी पहचान होगी। 911 की तर्ज पर एक केद्रीयकृत व्यवस्था शुरु करने की ज़रुरत है। ताकि सुरक्षा की दृष्टि से देश में लोगों को विश्वास हो कि हम सुरक्षित है। जिस कारण से विदेशी नागरिक यहां आने से डरने लगे है उस पर भी लगाम कसने में भी मदद मिलेगी और हो सकता है कि किसी आतंकवादी घटना को घटित होने से पहले ही कोई नागरिक सूचना देकर पुलिस को सूचित कर दे। लेकिन क्या ऐसा हो पायेगा। कोई सुन रहा है क्या?

7 टिप्पणियाँ:

निशाचर ने कहा…

आपकी बात बिलकुल सही है परन्तु इस जरूरत पर हमारे नीति नियंताओं का ध्यान जायेगा इसकी उम्मीद कम ही है क्योंकि उन्हें तो सभी सुविधाएँ स्वतः सुलभ हैं.

मुंबई हमले के बाद राष्ट्रीय पहचान पत्र की परियोजना को अमल में लाने का काम शुरू हुआ है इसके कुछ कारण है:-
१. यह उनकी (नेताओं की स्वयं की सुरक्षा से जुडा हुआ मुद्दा भी है क्योंकि आतंकवादियों के लिए वे एक आकर्षक निशाना हैं.
२. इस हमले में उच्च वर्ग के लोग हताहत हुए और स्वयं दो संसद भी किसी तरह ही बच पाए जो उस रात होटल में ठहरे हुए थे.
३. इस हमले से दो बड़े उद्योगपति घरानों के हितों को आघात पहुंचा है जो सरकार में खासा दखल रखते हैं और सरकार के लिए उन्हें नजरअंदाज करना नामुमकिन है.
४. जैसा कि सभी जानते हैं कि इस "राष्ट्रीय पहचान पत्र परियोजना" में मुख्या भूमिका टेक्नोलॉजी खासकर IT की होगी. आर्थिक मंदी के चलते इसकी हालत खस्ता है और विदेशों से तमाम इंजिनियर नौकरी चली जाने के कारण भारत लौट रहे हैं. तो दरअसल यह परियोजना IT सेक्टर को पिछले दरवाजे से मदद देने का एक जरिया है. दूसरी बात इस परियोजना के भारी- भरकम बजट का कितना हिस्सा वास्तव में लगत के रूप में खर्च होगा और कितना कमीशन के रूप में नेताओं, दलालों के जेब में जायेगा इसका अंदाजा लगाना कोई कठिन कार्य नहीं है.

POLICE HEARQUARTERS ने कहा…

पुलिस के खिलाफ ज़हर उगलना बंद करो नहीं तो सख्त कार्रवायी की जायेगी

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

हौसले काफी बुलंद हैं ....अच्छा लिख रहे हैं आप ....और फिर सच्चाई कहने से डर किस बात का ....!!

बी. एन. शुक्ल ने कहा…

पहली बात तो यहाँ ऐसी व्यवस्था के लिये कोई सुनेगा नही, अगर नेता व उच्च वर्ग पर असर पड़ने के कारण कोई व्यवस्था बनती भी है तो उसकी वही दशा होगी जो आज बोटर आई डी कार्ड की है। आज कितने और कैसे लोगों के पास सही वोटर आई डी कार्ड हैं। अधिकतम् के पास जो कार्ड हैं उनमे आधी सूचना गलत है। फिर इसकी उम्मीद करना बेवकूफी नही तो क्या है?

बलजिंदर सिंह ने कहा…

बी एन शुक्ला से सहमत है, जब इतनी पुरानी वोटर व्यवस्था आज तक सही हुई और इतने लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, तो ये व्यवस्था कहां तक होगी

शशांक जी,

आपकी बात जायज है. पूरे सिस्टम में बदलाव की जरूरत है.

Sanjeet Tripathi ने कहा…

bandhu,
muddaa aapne sahi uthaya hai

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