बच्चे ने पूछा जितनी बहन होती है उतनी राखी बांधते है क्या?

गुरुवार, अगस्त 06, 2009

मै रहने वाला उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर शहर का हूं जो कि एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है ...पता नहीं है या नहीं... पर ज्यादातर लोग यही कहते हैं। क्योंकि मै नोएडा़ में रहता हूं तो पता नहीं चलता क्या हो रहा है वहां । कम ही आता हूं यहां पर, इत्तेफाक से किन्ही कारणों से मै इस रक्षाबंधन के मौके पर घर पर ही मौजूद था। इसी बीच मुझे याद आया कि क्यों ने इसी बहाने कुछ काम कर लिया जाये। तो सोचा कि अपनी बाइक का लॉक जो कि कई दिनों से खराब पड़ा था उसे बनवा लिया जाये। यहीं सोचकर अपने घर से मै मुज़फ्फरनगर की मार्केट की तरफ निकला मौसम काफी अच्छा था औऱ सड़क के दोनों तरफ ऐसा लग रहा था कि बरसात के पानी से सारे पेड़ भीगे हुए हों, शायद यहां बारिश हुई है, मै अपनी बाइक से शहर की तरफ चला जा रहा था। रास्ते में मिलने वाली नहरें पूरी तरह भरी पड़ी थी जिसका फायदा वहां के गांव वाले उठा रहे थे, बहुत से छोटे बच्चे नहरों में तैराकी सीख रहे थे या फिर अठखेलिया करके नहर में बहने वाले पानी के मज़े ले रहे थे। गर्मी को दूर करने के लिये बरसात ने बहुत दिनों बाद अपने रंग दिखाये थे जिसके मज़े ये बच्चे लूट रहे थे। मै अपनी मस्ती में मस्त बाइक पर हवाओं के थपेड़ों का मज़ा लेते हुए आगे बढ़ता जा रहा था। शहर पहुंचा, वहा पर कोई ओवर ब्रिज बन रहा था तो रास्तों की हालत काफी खराब थी किसी तरह मैं रेलवे ट्रैक के पास तक पहुंचा जिसके पार मुझे जाना था लेकिन फिर समस्या खड़ी हो गयी, लेकिन मैने हार नहीं मानी मै फिर भी आगे बढ़ा औऱ बड़ी मेहनत के बाद रेलवे ट्रैक पार किया। पार करने के बाद सबसे पहले मै गया सर्विस स्टेशन वहां पता लगा कि ये समस्या उनके बस की बात नहीं हैं। उन्होने मुझे बताया कि मै मीनाक्षी पिक्चर हाल के पास जाकर वहां पर जो सर्विस की दुकाने हैं वहा ठीक करवा लूं। मै किसी तरह वहां पहुचा तो एक दुकान पर बाइक खड़ी की, बाइक खड़ी करते ही एक छोटा बच्चा उम्र यही कोई दस साल ही रही होगी, सांवला रंग, एक शर्ट औऱ एक फुल पैंट पहन रखी थी, शर्ट औऱ पैंट दोनो पर ग्रीस के दाग, ऐसे लग रहा था कि कई दिनों से ये शर्ट धुली नहीं है, औऱ अक्सर आपने देखा होगा कि बाइक सर्विस वाले या कार सर्विस वालों के कपड़ो पर अगर ग्रीस के दाग न हो तो समझो कि वो अच्छा मैकेनिक नहीं होगा। वो लड़का काफी देर तक मेरी बाइक पर अपनी बुद्धि लगाता रहा फिर जाकर अपने दुकान मालिक को सारी कहानी बता दी उसके मालिक ने उससे पता नहीं क्या कहा, वो मेरे पास आकर बोला कि भाईजान अभी सही करता हूं आपकी मोटरसाइकल,....मैने कहा ठीक है...वो मेरे पास खड़ा हो गया....तभी मैने पूछा कि कौन सही करेगा तुम या कोई और....उसने कहां शहबा़ज़ भाई... मैने कहा ठीक है।.....वो बहुत देर तक मेरे हाथों पर बंधी राखियां देखता रहा। मैने कहा कि क्या हुआ,..उसने पूछा भाईजान आज राखी है क्या....मैने कहा हां आज रक्षाबंधन है...उसके भाईजान कहने से पहले ही मुझे अंदाज़ा हो गया था कि हो न हो ये किसी मुस्लिम समाज का लड़का है। मैने उससे पूछा क्यों क्या हुआ। उसने कहा कुछ नहीं आपने दो राखी बांधी है आपकी दो बहनें हैं क्या? मैने कहां बहनें तो बहुत है लेकिन जिसकी राखी आयी थी उसकी बांध ली....बाकी जब आयेगी तब बाधुंगा। उसने कहा कि जितनी बहनें होती है उतनी राखी बांधते है क्या? मैने कहा हां । उसने फिर पूछा कि अगर किसी के बहने न हो वो क्या करता है आज के दिन... मैने कहा कि किसी पड़ोस की किसी लड़की को बहन मानकर उससे राखी बंधवा सकता है। उसने कहा सच में ऐसा करते हैं। क्यों बांधते है आप लोग राखी। मैने कहा कि ये त्योहार है औऱ इस दिन सभी भाई अपनी बहन की रक्षा करने की कसम खाते हैं। पहले तो उसकी समझ में मेरी बात नहीं आई मैने कहा कि उसे उम्र भर मदद करने का वादा करते हैं चाहे जो हो जाये। तब उसकी समझ में मेरी बात आई...पर मेरी तो बहन नहीं है तो क्या मै भी किसी से भी राखी बंधवा सकता हूं... मैने कहा क्यों नहीं....फिर उसने कहा कि नहीं ..कहीं मेरे अब्बू मुझे मारेंगे तो नहीं। मैने कहा कि पूछ कर बंधवाना....इतना सुनकर उसे थोड़ी आशा बंधी। और तब तक उसका असली मैकेनिक आ गया औऱ उसे कुछ और काम पकड़ा दिया और मै सोचता रहा कि अब पता नहीं उसके अब्बू क्या कहेंगें। चिंता उसे होगी या नहीं, उस बच्चे को ये याद रहेगा या नहीं.... पर मुझे लगता रहा कि उसके अब्बू क्या कहेंगे। क्योंकि उस दस साल के लड़के के दिमाग में कुछ और नहीं था...वो तो बस किसी बहन की रक्षा के लिये इसे पहना जाता था। लेकिन अब उसके अब्बू उसे क्या शिक्षा देते हैं ये उन पर निर्भर करता है, चाहे वो उसे धर्म का पाठ पढाकर उसकी सोच को बदल सकते हैं...और उसे धर्म का अंधा पैरोकार बना सकते हैं या फिर उसे मानवता का पाठ पढ़ाकर उसे एक अच्छी ज़िदगी दे सकते हैं। बस मै यही सोचता रहा पता नहीं क्या हुआ होगा उसके अब्बू उससे क्या कहेंगे??

5 टिप्पणियाँ:

Aadarsh Rathore ने कहा…

बहुत बढ़िया शशांक
लिखा अच्छा है...

बेनामी ने कहा…

nice very nice
kya likha hai.
aap ne is lekh se hum sabhi se yahi sawal kiya hai .
dharm ke naam pe hum kya shiksha de rahe hai?

मो,तारिक ने कहा…

अच्छा लिखा है..लेकिन ये ज़रुर लिखियेगा पता करके कि उसके पिता ने कहा क्या था बाद में.....

भाई शशाक जी
मौहल्ला पर आपका एक पुराना लेख पढऩे को मिला। इसमें आपने धर्म बदलने संबंधी मुद्दे पर कई बातें लिखी। मेरे ब्लॉग पर लगभग सौ लोगों के बारे में है जो धर्म बदलकर मुस्लिम हो गए। क्या आप उनको पढऩा नहीं चाहेंगे कि आखिर यह मुस्लिम क्यों हो गए? आपको अपने कई सवालों के जवाब मिलेंगे।

बेनामी ने कहा…

shashank ji aap dubara us dukaan par jarur jaiyega aur us ladke se jarur puchiyega ki uske abba ne kya kaha?accha lekh hai..badhai ho...

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