सुंदरता नहीं सुविधा चाहिए

सोमवार, जून 29, 2009

जी हां क्या चाहते है आप सुंदरता या सुविधा....ये सवाल कई बार मेरे दिमाग में कौंधता है जब जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती जनता के पैसे को बेकार यूं ही मूर्तियों और हाथियों पर खर्च करती हैं। और तो और अपनी इस हरकत को भी बड़े गुणगान की तरह बताती भी हैं। उनका कहना ये है कि हाथी अच्छे काम के लिए दरवाजो़ पर लगाया जाता है। किस हद तक गिर गये है ये लोग की जनता के जिस पैसे का इस्तेमाल पानी, बिजली औऱ अन्य सुविधाओं में करना चाहिए था उसका इस्तेमाल वो अपनी बेवकूफियों पर खर्च कर रही है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि लगभग दो हज़ार करोड़ रुपये को वो इन मूर्तियों पर खर्च कर चुकी हैं। जनता को बेवकूफ साबित करके वो क्या दिखाना चाहती हैं ये तो कोई नहीं जानता। सुरक्षा व्यवस्था अच्छी करने का खर्च वो अपनी लालसा को पूरी करने में खर्च कर रही हैं। और वो खुद को महान करवाने के लिए तिकड़मबाजी भी शुरु कर चुकी है। क्योंकि खुद की भी मूर्तियां भी धड़ल्ले से बनवा रही हैं। और तर्क ये हैं कि काँशीराम जी की इच्छा थी। अबे राजनीति के रक्त पिपासूओं जनता को ये सब नहीं जमता। इसी वजह से लोकसभा चुनावों में मुंह की खानी पड़ी और आसार नहीं है कि विधानसभा में भी जीत पाओगे। सुप्रीम कोर्ट में इस मूर्तिबाज़ी के खिलाफ याचिका दायर की गई है लेकिन जो पैसा खर्च हो चुका उसका हिसाब कैसे देगी ये मुद्रा की राक्षस। मै लखनऊ गया था मैने देखा शहर को सुंदर बना दिया गय़ा है लेकिन हर जगह किसने सुंदर बनाया है इसका सबूत मायावती या कांशीराम की मुर्तियां बता रही है। यही नहीं आने वाली तीन जुलाई को चालीस प्रतिमाओं को अनावरण करने वाली हैं। खास बात तो ये है कि इनमें से छह मूर्तियां तो सिर्फ उसकी है। मायावती और कांशीराम की प्रतिमाओं पर लगभद सात करोड़ रुपये खर्च कर दिये है। आखिर इन पैसों की क्या ये इस्तेमाल सही जगह किया गया। अगर इन्हीं पैसों का इस्तेमाल बिजली, पानी और विकास कार्यों पर लगाया होता तो शायद प्रदेश आगे बढ़ता और यही काम हमारे देश के नेता करें तो भी देश आगे बढेगा लेकिन आजकल राजनीति इसलिए नहीं कि जाती कि लोगों की मदद करें बल्कि इसिलिए की जाती है कि चुनावों में लगाई गयी रकम को जल्द से जल्द लपेटा जाये फिर मिलने वाले पैसों को बैंकों के गुप्त खातों मे जमा करवाया जाए। चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

1 टिप्पणियाँ:

बी. एन. शुक्ल ने कहा…

बिलकुल सही कहा आपने। वर्तमान में ये नेता आम जनता से जबरन लूटे गये अनाप-सनाप टैक्स के धन का दुरपयोग करने में शर्म महसूस नही करते बल्कि उसे अपनी उपलब्धि बताते हुए गर्व महसूस करते हैं, कि मैंने आम जन को लूट कर यह किया। नेता शब्द आज के समय में आम जन के लिए लुटेरे का पर्य़ायवाची बन गया है। आम जन खुद को गधा बनाता जा रहा है ,क्योकि वह इन सत्ता लोलुप लुटेरे नेताओं द्वारा रचे जाल में फँसकर खुद को जातिओं में बाँट लिया है। ऐसे में कोर्ट का ही आसरा है कि वह ऐसे नेतोओं पर लगाम लगा पाता है या नही। यदि कोर्ट बरबाद किये गये लगभग दो हजार करोड़ रुपये की वसूली का आदेश दे दे तो यह इस देश व देश की गरीब जनता पर उपकार होगा।

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